मुंबई: महाराष्ट्र के मंत्रालय के गलियारों में आजकल मजाक में यह भी कहा जाने लगा है कि अगर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री एक साथ लिफ्ट में चढ़े हों, तो शायद वहां उनकी कैबिनेट बैठक चल रही होगी.
इस तरह की टीका-टिप्पणियों की एक बड़ी वजह यह है कि नई सरकार को सत्ता में आए तीन सप्ताह से ऊपर हो गए हैं, लेकिन कैबिनेट में अब तक केवल दो मंत्री हैं—मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस. और यही दो मंत्री महाराष्ट्र के सभी 36 जिलों, 31 विभागों 30 आयुक्तालयों, और 29 निदेशालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
हालांकि, सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं का दावा है कि पूर्ण कैबिनेट नहीं होने से सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में कोई बाधा नहीं आ रही है, और सीएम और डिप्टी सीएम के कार्यालयों की तरफ से फाइलों को मंजूरी मिल रही है.
भाजपा के एक नेता ने कहा कि अब तक तीन कैबिनेट बैठकें हो चुकी हैं और सभी विभागों की सभी फाइलों को ‘बिना किसी बाधा’ क्लियर किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘डिप्टी सीएम अपने दिन की शुरुआत सुबह 10 बजे करते हैं और दोपहर 2 बजे तक काम करते हैं. सीएम का शेड्यूल भी कुछ इसी तरह का है. पूर्व सीएम (एमवीए के उद्धव ठाकरे) के विपरीत, दोनों सभी विभागों के सचिवों के साथ मिलने के लिए उपलब्ध हैं. अब तक तीन कैबिनेट बैठकें हो चुकी हैं और विभागों में विभिन्न छोटे और बड़े कार्यों से संबंधित 500 से अधिक निविदाओं को मंजूरी दी गई है.’
ठाकरे जब मुख्यमंत्री के पद पर थे तब अक्सर इस बात को लेकर उनकी आलोचना की जाती थी कि वह लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलने के बजाये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से घर से काम करते हैं, जिसका शिवसेना ये कहते हुए बचाव करती थी कि इससे कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ रहा और महामारी और उनकी रीढ़ की सर्जरी को इसकी वजह बताती थी.
हालांकि, कुछ सिविल सेवकों और नेताओं का मानना है कि टू-मैन शो, चाहे कितने ही कुशल क्यों न हो, किसी भी तरह से आदर्श स्थिति नहीं है.
कुछ सिविल सेवकों के मुताबिक, ‘गार्जियन मिनिस्टर’ (जिन्हें जिलों का प्रभारी बनाया गया है) का स्थानीय स्तर पर ज्यादा ध्यान नहीं है क्योंकि मंत्रियों को अपने निर्धारित विभागों के लिए योजनाएं बनाने और गहन नजर बनाए रखने पर फोकस करना पड़ता है.
इसके अलावा, दो-व्यक्तियों वाली कैबिनेट की बैठकों में अब तक के अधिकांश प्रमुख निर्णय राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहे हैं, खासकर जो भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं.
शिवसेना के एक बागी विधायक—जो महाविकास अघाड़ी सरकार की कैबिनेट का हिस्सा थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘सीएम और डिप्टी सीएम अनुभवी प्रशासक हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि शासन कोई एक मुद्दा बने. हमने शिंदे साहब से जल्द से जल्द कैबिनेट विस्तार करने का आग्रह किया है.’
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने हमें कुछ और दिनों तक इंतजार करने को कहा है, इसलिए अब यह थोड़े ही समय की बात है.’
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‘राष्ट्रपति चुनाव, कोर्ट केस’ की वजह से हो रही देरी
सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता अभी तक मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होने के कई कारण बताते हैं. कुछ का कहना है कि दोनों पार्टियों के नेता—खासकर भाजपा के—राष्ट्रपति चुनाव के कारण व्यस्त थे.
कुछ अन्य लोगों का कहना है कि उनके नेता असामान्य परिस्थितियों में सत्ता में आने के मद्देनजर इस सरकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट होने तक प्रतीक्षा करना चाहते हैं.
गौरतलब है कि 10 दिनों के सियासी नाटक के बाद 30 जून को नई सरकार ने शपथ ली थी, जब शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के कुछ विधायकों ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार के खिलाफ बगावत कर अलग रास्ता अपना लिया था. बगावत के कारण एमवीए सरकार गिर गई थी- जिसमें शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल थीं.
पहले उद्धृत किए गए एक पूर्व मंत्री ने कहा कि कैबिनेट विस्तार को फिलहाल रोक रखा गया है क्योंकि इससे पहले ‘कई लोगों को भरोसे में लेने की जरूरत है.’
उन्होंने कहा, ‘अदालत में हमारे खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं लंबित होने के कारण, हमें वकीलों से परामर्श करना पड़ा. राष्ट्रपति चुनाव की वजह से भी इसे फिलहाल टाल दिया गया. बताया जा रहा है कि सीएम और डिप्टी सीएम के बीच इस बात पर पहले ही सहमति बन चुकी है कि दोनों पक्षों की तरफ से कितने-कितने मंत्री बनाए जाएंगे.’
ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोही खेमे ने एक-दूसरे के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. अगली सुनवाई 1 अगस्त को होनी है.
फडणवीस के करीबी एक भाजपा पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार बनने से पहले ही दोनों पक्ष ‘दो तिहाई-एक तिहाई व्यवस्था’ (यानी भाजपा के लिए दो तिहाई और शिवसेना के बागी खेमे के लिए एक तिहाई) पर सहमत हो गए थे. 106 विधायकों के साथ भाजपा के पास शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के बागी गुट—जिसमें 10 निर्दलीयों सहित 50 विधायक हैं—की तुलना में अधिक मंत्री होंगे.
उन्होंने कहा, ‘हमारे नेताओं के 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव और गुरुवार को मतगणना में व्यस्त होने के कारण देरी हुई.’
इस बीच, विपक्षी नेताओं ने कहना है कि सत्ता में आने का जो तरीका अपनाया गया उसकी वजह से यह सरकार ‘गैरकानूनी’ है.
उदाहरण के तौर पर, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने पिछले हफ्ते संवाददाताओं से कहा कि सरकार ‘अवैध’ है और इसके गठन के कई दिन बाद भी ‘मंत्री अभी तक शपथ नहीं ले पाए हैं.’
उन्होंने कहा था, ‘यहां एक-दूजे के लिए के तौर पर सिर्फ एक डिप्टी सीएम और सीएम हैं. यह राजनीति में एक नई फिल्म है. जिस तरह फिल्म (एक दूजे के लिए) खत्म हुई थी, इस सरकार का भी दुखांत होगा.
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दो मंत्रियों के साथ चल रही सरकार
एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि कैसे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों दोनों ने क्षेत्र का दौरा शुरू किया है, जो कुछ ऐसा है जैसा पूर्व सीएम ठाकरे अपने स्वास्थ्य कारणों से ‘शायद ही कभी कर पाए हों.’
हालांकि, मंत्रालय में एक विभाग के प्रधान सचिव ने नाम न छापने के अनुरोध के साथ दिप्रिंट को बताया कि सरकार के सामान्य कामकाज में कुछ व्यवधान आ रहे हैं क्योंकि ‘विभाग के मंत्री के पास जाने के बजाये, फाइलें सीधे सीएम को भेजी जा रही हैं.’
अधिकारी ने कहा, ‘पूर्ण कैबिनेट की अनुपस्थिति में सीएम वस्तुतः सभी विभागों के मंत्री हैं. हालांकि, फाइलें सुचारू ढंग से क्लियर की जा रही हैं और हमारे पास आ जाती हैं. यदि कोई समस्या हो तो मैं मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव से मिलकर जानकारी ले सकता हूं.’ लेकिन साथ ही जोड़ा कि राज्य सरकार विधायिका के मानसून सत्र के लिए अपनी तैयारियों में पिछड़ रही है.
उन्होंने कहा, ‘विधायकों की तरफ से उठाए जाने वाले सवालों के जवाबों का ड्राफ्ट तैयार होने चाहिए और उन्हें सदन में जवाब के लिए मंत्रियों की मंजूरी मिलनी चाहिए. मानसून सत्र अगले महीने तक आयोजित करना होगा. हालांकि, इसकी तैयारियों के लिए हमें कैबिनेट विस्तार का इंतजार करना होगा.’
राजनीतिक फैसले
मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने अब तक की तीन कैबिनेट बैठकों में कम से कम 13 निर्णय लिए हैं. इनमें से 11 भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करते हैं—जैसे जलयुक्त शिवार योजना को वापस लाना—जिसे फडणवीस के सीएम पद पर रहने के दौरान उनकी फ्लैगशिप योजना के तौर पर जाना जाता था—और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा योजनाओं जैसे स्वच्छ भारत और अमृत (कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन) की तर्ज पर स्वच्छ महाराष्ट्र के कार्यान्वयन को मंजूरी देना.
शिंदे-फडणवीस कैबिनेट ने ठाकरे के नेतृत्व वाले एमवीए के फैसले को पलटते हुए भूमिगत कोलाबा-बांद्रा-सीपज मेट्रो के लिए विवादास्पद मेट्रो कार शेड को वापस पर्यावरण-संवेदनशील आरे में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है.
इसके अलावा, दो सदस्यीय कैबिनेट ने एमवीए सरकार के अन्य फैसलों को भी पलट दिया, जैसे ग्राम परिषद अध्यक्षों और सरपंचों के लिए सीधे चुनाव, और किसानों को कृषि उत्पाद विपणन समितियों के चुनाव के लिए मतदान का अधिकार देना.
रोचक बात यह है कि दोनों मंत्रियों ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर, उस्मानाबाद का धाराशिव, और नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नाम डीबी पाटिल एयरपोर्ट करने के एमवीए के फैसलों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उन्हें जल्दबाजी में लिया गया था. उनके मंत्रिमंडल ने फिर वही नाम रखने का फैसला किया, यह कहते हुए उनका राजनीतिक श्रेय लिया कि शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने उचित जांच के बाद उन्हें मंजूरी दी है.
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