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Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमतकोई रबर स्टैंप नहीं- द्रौपदी मुर्मू के क्षेत्र में नए सिरे से उठने लगी है विकास कार्यों की मांग

कोई रबर स्टैंप नहीं- द्रौपदी मुर्मू के क्षेत्र में नए सिरे से उठने लगी है विकास कार्यों की मांग

मुर्मू के गांव के तमाम लोग न तो रायसीना हिल के बारे में जानते हैं और न ही उन्हें यह पता है कि भारत में राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों की सीमा क्या है.

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मृत्यु के देवता कहे जाने वाल यम देव का द्रौपदी मुर्मू के घर आना-जाना लगा ही रहता था, जिन्होंने उन्हें असहनीय दुख दिया. लेकिन भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद लगता है कि उन्हें एक नया जीवन मिल गया है.

न केवल उनके जीवन में एक नए उत्साह का संचार हुआ है, बल्कि ओडिशा के मयूरभंज जिले (जहां की वह रहने वाली हैं) और झारखंड में रहने वाला संथाल आदिवासी समुदाय भी एकदम अभिभूत है. आदिवासी परिवार यह बात जानते हैं कि यह भले ही प्रतीकात्मक हो लेकिन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.

संथाल के लोग बहुत खुश हैं | विशेष व्यवस्था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से राष्ट्रपति पद—जिसे जमीनी स्तर पर ‘प्रथम नागरिक’ का दर्जा हासिल है—के लिए मुर्मू के चयन पर भारतीय आदिवासियों के बीच इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है कि जैसे रातो-रात उन्हें भारत की मुख्यधारा में शामिल करने वाला सभ्यतागत बदलाव लाने के लिए एक दुर्लभ अवसर की खिड़की खुल गई हो. यह एक बड़ी बात होगी ऐसा अगर हो सकता है तो लेकिन निश्चित तौर पर एक बड़ा अवसर पैदा हुआ है.

पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के प्रसार और बेहतर सड़क नेटवर्क से भारत के जनजातीय जीवन में मूलभूत बदलाव आए हैं. अब इसे और मजबूत करने की आवश्यकता है क्योंकि आदिवासियों से किए गए अधिकांश बड़े वादे अधूरे हैं. लेकिन इसने उम्मीदों को पूरी तरह खत्म नहीं किया है.

विकास की जबर्दस्त भूख

मुर्मू की जन्मस्थली उपरबेड़ा, उनके पति के परिवार के गांव पहाड़पुर, और मयूरभंज के जिला मुख्यालय रायरंगपुर—जहां दो बार की विधायक मुर्मू कई सालों से रह रही हैं, की एक यात्रा से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां जंगलों में बसी सबसे पुरानी आबादी किस कदर उत्साहित है.

मुर्मू निर्वाचित होने पर राष्ट्रपति बनने वाली पहली आदिवासी और ओडिशा की पहली नेता होंगी.

मुर्मू के पीछे आदिवासी उसी मजबूती के साथ एकजुट हो रहे हैं, जैसे अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय ने बराक ओबामा को आगे बढ़ाने के लिए अपना समर्थन दिया था.

भाजपा की स्थानीय इकाई ने शहरों और गांवों में जीत की कामना करते हुए द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री मोदी के होर्डिंग लगा रखे हैं.

कई स्थानीय गांवों के निवासियों ने न तो रायसीना हिल, नई दिल्ली के बारे में सुना है—जो मुर्मू की संभावित जीत के बाद उनका नया आवासीय पता होगा—और न ही वे भारतीय राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों की सीमा के बारे में जानते हैं. लेकिन उनके निर्वाचन के लिए प्रार्थना करते हुए मांग कर रहे हैं कि उनके जंगलों में और अधिक विकास हो.

संथालों ने रांची-विजयवाड़ा हाईवे पर रायरंगपुर में बाइपास रोड बनाने की मांग फिर शुरू कर दी है. उपरबेड़ा के स्थानीय लोग चाहते हैं कि रेलवे लाइनों को बादामपहाड़ और गोरुमहिसानी से आगे बढ़ाया जाए, जो कि वो दो प्रसिद्ध पहाड़ियां हैं जहां लौह अयस्क की खुदाई की जाती है और दशकों से इस क्षेत्र में आदिवासी शोषण का प्रतीक बनी हुई हैं.

इन लौह अयस्क भंडारों के आसपास रहने वाले तमाम लोग खनन प्रभावित समुदायों की मदद के लिए खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में 2015 में किए गए संशोधन के बाद गठित जिला खनिज फाउंडेशन के संदिग्ध प्रबंधन को लेकर शिकायतें कर रहे हैं. क्षेत्र में विकास के लिए उनकी बढ़ती अपेक्षाएं यहां साफ नजर आती हैं.


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उपरबेड़ा की पुट्टी

मुर्मू की करीबी रिश्तेदार और विश्वस्त सहयोगी सरस्वती टुडू ने मुझे बताया, ‘मयूरभंज के सभी गांवों में हमारे पूजास्थल झाखिरा में धार्मिक अनुष्ठान किए गए हैं. हमारे देवता साल के पेड़, जानवर, कीट-पतंगे और पौधे हैं. जब भी ‘माई’ (मुर्मू) उपरबेड़ा आती है तो हमेशा झाखिरा और वड़ के पेड़ के नीचे प्रार्थना करती हैं. हमसे तो कई साल पहले कहा गया था कि उपरबेड़ा का कोई व्यक्ति भारत में बहुत बड़ा व्यक्ति बनेगा.’

फिर, उन्होंने मुझे एक कहानी सुनाई. उन्होंने कहा, ‘हमारा परिवार टुडू है. हम टुडू में शादी नहीं कर सकते. द्रौपदी का विवाह पास के गांव के मुर्मू परिवार में हुआ था. टुडू परिवार को सरदार परिवार कहा जाता है क्योंकि द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण और दादा ग्राम पंचायत के मुखिया थे. हमारे गांव को बुधिया राणा पहाड़ (पास की एक पहाड़ी की तरफ इशारा करते हुए) का आशीर्वाद हासिल है. हमारे लिए पहाड़ ही भगवान है. बुधिया राणा पहाड़  की सात बेटियां थीं. उनकी दो बेटियां कमला और बिमला हमारे गांव आ गईं. हमने 1967 में इन देवियों के लिए मंदिर बनवाए थे. तबसे वह हमारी रक्षा करती आ रही हैं. द्रौपदी उपरबेड़ा की आशीष प्राप्त पुत्री हैं. उपरबेड़ा के चार परिवार पहले ही राजनीति में सफल हो चुके हैं. हमारे चाचा कार्तिक टुडू भुवनेश्वर में मंत्री थे. उन्होंने मैट्रिक पूरी करने और भुवनेश्वर के एक कॉलेज में पढ़ने में द्रौपदी की मदद की.’

द्रौपदी का नाम उनकी दादी द्रौपदी टुडू के नाम पर रखा गया था, लेकिन उनका उपनाम पुट्टी है. उनका राजनीतिक करियर 1997 में भाजपा की स्थानीय पार्षद के तौर पर शुरू हुआ था.

उनके चाचा और सेवानिवृत्त बैंक प्रबंधक समय टुडू कहते हैं, ‘वह एक भावुक इंसान हैं लेकिन एक दृढ़ महिला हैं. वह बहुत जिद्दी भी हैं. वह दृढ़ संकल्पी हैं. उसकी क्षमता को कम मत आंको. वह पढ़ी-लिखी हैं, भाषण दे सकती हैं और अच्छी तरह जानती हैं कि आदिवासी समुदाय के लिए क्या अच्छा है. उनमें आत्म-गौरव की भावना काफी मजबूत है. उन्हें ‘रबर-स्टैम्प’ मत मानो.’

40 वर्ष से मुर्मू के पारिवारिक मित्र और रायरंगपुर के पत्रकार रवींद्र पटनायक कहते हैं, ‘वह सीमित जरूरतों वाली एक साधारण महिला हैं. उनका पसंदीदा भोजन पाखला है, जो चावल और दही से बना एक पारंपरिक रसीला व्यंजन है. वह एकदम शाकाहारी हैं, हिंदू धर्म का पालन करती हैं और आदिवासी संस्कृति में आस्था रखने के साथ तमाम अंधविश्वासों से दूर रहती हैं. जब झारखंड की राज्यपाल थीं, तो उन्होंने एक कानून पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह आदिवासियों के हित में नहीं है. उन्होंने उस पर हस्ताक्षर से इनकार कर दिया. अपने प्राइमरी स्कूल में वह पढ़ाई और खेलकूद में अव्वल आती थी. उनकी कक्षा में 40 छात्र और 8 छात्राएं थीं. स्कूल का नियम था कि टॉपर को क्लास का मॉनिटर बनाया जाता था लेकिन आज से करीब 55 साल पहले पितृसत्तात्मक समाज में उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली. तो उन्होंने कड़ा संघर्ष किया और आखिरकार मॉनिटर बन भी गईं.’

द्रौपदी मुर्मू भले ही शिबू सोरेन की तरह एक करिश्माई जननेता नहीं हैं, लेकिन मयूरभंज में उनके निर्वाचन क्षेत्र में एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर उनकी विश्वसनीयता का कोई सानी नहीं है.

उनके सामाजिक दायरे में तमाम मामूली दोस्त आते हैं. पटनायक का दावा है, ‘उन्होंने जमकर कमाई कराने वाले लौह अयस्क के सौदों में कभी हाथ नहीं डाला.’ आदिवासी लोगों के सामने अपने अधिकांश भाषणों में मुर्मू हमेशा कहती हैं, ‘याद रखें कि हम सब समान हैं. अपने को छोटा नहीं समझना.’

…जब एक ‘सुनामी’ का किया सामना

मुर्मू का निजी जीवन विनम्रता और ‘आत्म-गौरव’ की कहानी है. 2009 में उन्हें बेहद दुखद क्षण का सामना करना पड़ा जब उनके 25 वर्षीय बेटे लक्ष्मण की भुवनेश्वर में एक सभा में भाग लेने के बाद अप्रत्याशित मृत्यु हो गई. उसकी मौत ने उन्हें तोड़कर रख दिया. रायरंगपुर स्थित ब्रह्म कुमारी आश्रम की मुखिया सुप्रिया कुमारी बताती हैं, ‘वह पूरी तरह टूट चुकी थीं. उनके अंदर बात करने तक की ताकत नहीं बची थी.’

उनके परिवार जाने की समाधि। फोटो : विशेष व्यवस्था द्वारा

ब्रह्म कुमारी के एक टेलीविजन प्रोग्राम में मुर्मू ने खुद इस घटना के बारे में बताया, ‘2009 में मेरे जीवन में सुनामी आई थी. यह मेरे लिए बहुत बड़ा झटका था. कुछ दिनों तक तो मुझे कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा था. मैं डिप्रेशन में चली गई थी. लोग कहते ये तो मर जाएगी. लेकिन, नहीं, मैं जीना चाहती थी

दो महीने बाद उन्होंने कुमारी को आश्रम में बुलाया, एक कोर्स पूरा किया और सहज राज योग . उन्होंने अपना जीवन एकदम बदलकर रख दिया. तबसे, वह हर दिन तड़के लगभग 3.30 बजे उठती और रात 9.30 बजे तक सो जाती हैं. वह बिना रुके योग और ध्यान करती हैं और समय की एकदम पाबंद भी हैं. आध्यात्मिक झुकाव ने न केवल उनके जीवन को बचाया बल्कि उसे एक स्थिरता भी दी.

लेकिन एक और त्रासदी मुर्मू का इंतजार कर रही थी और उनके छोटे बेटे शिपुन की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. जब उसका शव घर लाया गया, तो वह एक बार फिर पूरी तरह से टूट चुकी थी.

उनके घर पर मौजूद एक स्थानीय पत्रकार राजेश शर्मा ने बताया, ‘वह बुरी तरह रो रही थी. वह अपने बेटे का शव देखते ही मानों एकदम टूट गईं. उन्होंने आसमान की तरफ हाथ उठाकर पूछा, ‘भगवान, तुम मुझसे और क्या चाहते हो? अब मेरे पास क्या बचा है?’ यह कहर जारी रहा.’

इसे बयां करना भी मुश्किल है कि किस तरह एक महीने के भीतर उसकी मां और एक छोटे भाई की मृत्यु हो गई. और एक साल बाद ही गहरे अवसाद से पीड़ित उनके पति श्याम चरण मुर्मू की भी मृत्यु हो गई.

उस समय द्रौपदी मुर्मू ने पीड़ाभरी आवाज के साथ एक टीवी एंकर से कहा था, ‘जब मेरे दूसरे बेटे की मृत्यु हुई, तो झटका पहले की तुलना में थोड़ा कम था क्योंकि तब मैं ध्यान कर रही थी. मेरे पति मेरी तरह मजबूत नहीं थे, इसलिए जिंदा नहीं नहीं पाए.’

उन्होंने अपनी इकलौती बेटी इतिश्री से शादी करने और सामान्य जीवन जीने को कहा. परिवार के पांच सदस्यों की मृत्यु के बाद उन्होंने आध्यात्मिकता और शाकाहार की ओर रुख किया. जब वह झारखंड की राज्यपाल (2015-2021) रहीं, तो उन्होंने रसोई को पूरी तरह शाकाहारी बना दिया. उनके राष्ट्रपति भवन पहुंचने के बाद वहां के कामकाज के तरीके में कई मूलभूत परिवर्तन आने की संभावना है.

मुर्मू ने पहाड़पुर में अपने परिवार की जमीन सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए दान कर दी है. अपने पति और दो बेटों की याद में वह एसएलएस आवासीय विद्यालय चलाती हैं. उन्होंने ठीक उसी जगह उनकी स्मृति में समाधियां बनवाई है. यहां का नजारा काफी व्यथित कर देने वाला है.

पहाड़पुर में मुर्मू के परिवार के घर को स्कूल में बदल दिया गया है | विशेष व्यवस्था

लेकिन साथ ही जब आप आदिवासी लड़के-लड़कियों को मुफ्त शिक्षा पाते और समाधि के आसपास एक सभ्य वातावरण मिलते देखते हैं तो एक उजाड़ अतीत की गर्त से एक सुंदर भविष्य सामने आने की कल्पना करने लगते हैं.

आओ, भारत की राष्ट्रपति बनने के लिए द्रौपदी मुर्मू को नमन करें!

शीला भट्ट दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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