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Friday, 15 November, 2024
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वन रक्षा नियम कमजोर कर आदिवासियों की जमीन छीनने की कोशिश में मोदी सरकार : राहुल गांधी

राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘मोदी-मित्र सरकार अपनी मित्रता में बेहतरीन! जंगल की जमीन ‘ छीनने में सुगमता’ के लिए भाजपा सरकार नए वन संरक्षण नियम-2022 के साथ आई और सप्रंग की वन अधिकार नियम-2006 को कमजोर कर रही है.’

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नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि केंद्र की मोदी सरकार आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है. पार्टी ने साथ ही कहा कि नया वन संरक्षण कानून करोड़ों ‘‘आदिवासियों’’ और वन क्षेत्र में रह रहे लोगों को शक्तिविहीन कर देगा.

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा नीत सरकार पर ‘वन भूमि को छीनने की प्रक्रिया आसान बनाने के लिए’ वन रक्षा नियमों को कमजोर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ‘मजबूती से आदिवासी भाइयों और बहनों’ के साथ खड़ी है.

राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘मोदी-मित्र सरकार अपनी मित्रता में बेहतरीन! जंगल की जमीन ‘ छीनने में सुगमता’ के लिए भाजपा सरकार नए वन संरक्षण नियम-2022 के साथ आई और सप्रंग की वन अधिकार नियम-2006 को कमजोर कर रही है.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस मजबूती के साथ हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों की ‘जल-जंगल और जमीन’ बचाने की लड़ाई में खड़ी है.’

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि हाल में जारी नए नियम केंद्र सरकार द्वारा अंतिम रूप से वन मंजूरी देने के बाद ही वन अधिकार के मुद्दे को निपटाने की अनुमति देते हैं.

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘निश्चित तौर पर यह कुछ लोगों द्वारा चुने गए ‘व्यापार सुगमता’’के नाम पर किया गया. लेकिन यह बड़ी आबादी की ‘जीविकोपार्जन सुगमता’’ समाप्त करेगा.’

पूर्व पर्यावरण मंत्री ने कहा कि इसने वन भूमि को किसी अन्य उपयोग के लिए इस्तेमाल के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए वन अधिकार अधिनियम-2006 के उद्देश्य और अर्थ को ही खंडित कर दिया है.

रमेश ने कहा, ‘‘एक बार वन मंजूरी दे देने के बाद बाकी सभी चीजें महज औपचारिकता रह जाएंगी और यह लगभग तय है कि किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा व उनका समाधान नहीं होगा. इसके तहत राज्य सरकारों पर केंद्र की ओर से वन भूमि को अन्य उपयोग के लिए बदलने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए अधिक दबाव बनाया जाएगा.’’

रमेश ने हैशटैग आदिवासीविरोधीनरेंद्रमोदी के साथ ट्वीट किया, ‘अगर मोदी सरकार द्वारा आदिवासियों के हितों की रक्षा करने और उन्हें प्रोत्साहित करने की वास्तविक मंशा दिखाई गई है तो यह फैसला है, जो करोड़ों आदिवासियों और वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को शक्तिविहीन बनाएगा.’

उन्होंने एक समाचार रिपोर्ट साझा करते हुए कहा कि सरकार आदिवासियों और वनवासियों की सहमति के बिना जंगलों को काटने की मंजूरी दे रही है.

रमेश ने कहा कि ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006,’ जिसे वन अधिकार अधिनियम, 2006 के रूप में जाना जाता है, एक ऐतिहासिक और प्रगतिशील कानून है जिसे संसद द्वारा व्यापक बहस और चर्चा के बाद सर्वसम्मति से और उत्साहपूर्वक पारित किया गया है. और यह देश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी, दलित और अन्य परिवारों को, व्यक्तिगत और समुदाय दोनों को भूमि और आजीविका के अधिकार प्रदान करता है.

अगस्त 2009 में, इस कानून के पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए, तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय ने निर्धारित किया कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के अन्य किसी इस्तेमाल के लिए किसी भी मंजूरी पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के पहले उनका निपटारा नहीं कर दिया जाता.

उन्होंने कहा, ‘यह पारंपरिक रूप से वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और अन्य समुदायों के हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए किया गया था.’

उन्होंने दावा किया, ‘अब, हाल ही में जारी नए नियमों में, मोदी सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा वन मंजूरी के लिए अंतिम मंजूरी मिलने के बाद वन अधिकारों के निपटान की अनुमति दी है.’

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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