वो कोई बॉलीवुड शादी नहीं थी. कोई पैपराज़ी (स्वतंत्र फोटोग्राफर्स) नहीं थे. लेकिन फिर भी कोलकाता के मेहमानों से कहा गया था, कि जब तक शहर की पहली सार्वजनिक गे शादी के सभी समारोह पूरे नहीं हो जाते, तब तक सोशल मीडिया पर कोई फोटोग्राफ्स शेयर न करें.
कारण? अभिषेक और चैतन्य की जोड़ी किसी भी तरह का सुरक्षा ख़तरा नहीं चाहती थी.
अभिषेक ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘लेकिन एक बार सात फेरे हो गए तो सोशल मीडिया में जैसे विस्फोट सा हो गया’. सुंदर सफेद फूलों से सजे स्टेज पर रत्नों से जड़ी क्रीम कलर की शेरवानी और धोती कुर्ता पहने जोड़े के फोटोग्राफ्स को, तुरंत ही फेसबुक पर धड़ाधड़ लाइक्स आने लगे और फोटो शेयर की जाने लगी. मंगलवार तक एक दूसरे के चेहरे पर हल्दी लेपती जोड़ी को 2,000 लाइक्स मिल गए. अभिषेक ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि इससे दूसरों को भी हिम्मत मिलेगी कि वो सामने आएं, और अपने पार्टनर के प्रति अपने प्यार को स्वीकार करेंगे’.
ये प्यार का स्मारक ताजमहल था जहां चैतन्य को मार्च 2020 में एक बिल्कुल सही जगह मिल गई, और उन्होंने एक घुटने पर झुककर अभिषेक को अंगूठी पहना दी. लेकिन ये सिटी ऑफ जॉय था जहां उन्होंने सभी बाधाओं को पार किया.
हाथ पर मेहंदी लगाए हुए नवविवाहित चैतन्य ने कहा, ‘हैरानी की बात है कि कोलकाता में शादी का स्थल तलाशने में कोई परेशानी नहीं हुई’. एक परफेक्ट शादी की तैयारी में छह महीने लग गए
हालांकि सबसे बड़ी चुनौती सामने आई विवाह कराने के लिए किसी पुरोहित को तलाशे में.
उन्होंने आगे बताया, ‘बहुत सारे पंडितों ने हमें मना कर दिया. हमें चिंता हो रही थी कि हमें कोई नहीं मिलेगा. मेरी आख़िरी उम्मीद थी अपने पारिवारिक पंडित, और मेरे लिए वो एक बनने या बिगड़ने की स्थिति थी. जैसे ही मैंने उनसे हमारी शादी संपन्न कराने के लिए कहा, तो बहिष्कार के डर के बावजूद वो तुरंत तैयार हो गए.’
चैतन्य ने याद किया, ‘उन्होंने यहां तक कहा, ‘लक्ष्मी और नारायण की जोड़ी तो देखा है, ये नारायण-नारायण का जोड़ी है’. अभिषेक ने कहा, ‘उन्होंने हमें बताया कि कैसे गांवों में लड़के लड़कियां अपने समलैंगिक साथी के प्रति प्यार का इज़हार नहीं कर पाते, लेकिन इस शादी से शायद एक अंतर आएगा’.
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‘हम भाग्यशाली हैं’
सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया था, और गे सेक्स को अपराध न मानते हुए वैध क़रार दे दिया था, लेकिन भारत में समलैंगिक विवाह अभी भी अवैध हैं. तो औपचारिक रूप से एक होने के बाद अभिषेक और चैतन्य क्या करने जा रहे हैं?
उम्मीद से भरे चैतन्य ने कहा, ‘हम दोनों यहीं काम करते हैं इसलिए अपनी शादी को क़ानूनी रूप देने के लिए हम भागकर किसी और देश नहीं जा रहे हैं. अगर हमें किसी समलैंगिक मित्र देश में काम करने का कोई मौक़ा मिलता है, तो फिर हम उस पर विचार करेंगे. लेकिन हमें उम्मीद है कि एक दिन भारत समलैंगिक विवाह को मान लेगा. मेरे सहकर्मी अभिषेक के बारे में जानते हैं, और मेरे ख़ास दिन के लिए उनकी ओर से शुभकामनाएं आईं हैं. मैं अगले महीने काम पर लौट जाउंगा’.
अभिषेक उस समर्थन से अभिभूत हैं जो उन्हें अपने परिवार के बुज़ुर्गों से मिला है. उन्होंने कहा, ‘ये वो पीढ़ी है जिससे आप अपेक्षा नहीं करते कि वो उससे समझौता कर पाएगी जिसे हमने इतनी आसानी से कर लिया. मैं अपने दोनों पेरेंट्स को पहले ही खो चुका हूं, लेकिन मेरी बहन मेरी बहुत बड़ी समर्थक रही है’.
जोड़े को अहसास है कि वो भाग्यशाली हैं कि वो अपने दोस्तों और परिवार के बीच घिरे हैं, जो उनके रिश्ते का जश्न मना रहे हैं, लेकिन चैतन्य के लिए ये सफर आसान नहीं था.
चैतन्य ने कहा, ‘मैं स्कूल के समय से ही अपने रुझान से वाकिफ था. लेकिन पहले मैंने अपनी सबसे छोटी बहन से इस बारे में बात की. वो मुझे कॉल करती थी और पूछती थी कि क्या मैं किसी से मिल रहा हूं, और उसने ये भी कहा कि अगर मैं इस बारे में अपने माता-पिता से बात करता हूं, तो वो मेरा पक्ष लेने के लिए तैयार है. 2006 में मैंने उन्हें बता दिया. शुरू में उन्होंने स्वीकार नहीं किया. लेकिन धीरे धीरे मेरे माता-पिता ने मुझे मेरी वास्तविकता के साथ स्वीकार कर लिया. शादी के दिन मेरी मां ने मुझसे पूछा कि सात फेरे लेने के लिए मैंने इतना लंबा इंतज़ार क्यों किया. वो अब एक गर्वित मां हैं जिनके तीन दामाद हैं’.
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प्यार तो प्यार है
ज़्यादातर जोड़े स्वीकार करेंगे कि एक भव्य विवाह की तैयारी करना हमेशा आसान नहीं होता. चैतन्य ने जब अपनी बहन नेहा मिश्रा को, जो इंडोनेशिया में रहती हैं, अपनी शादी की योजना बताई तो शुरू में वो आशंकित थीं. नेहा ने कहा, ‘मुझे नहीं मालूम था कि समाज इसे किस तरह से देखेगा, सच कहूं तो मैं थोड़ी संशयी और चिंतित थी कि कोई मेरे भाई का आदर नहीं करेगा’.
लेकिन जब वो कोलकाता आईं और अभिषेक के परिवार और दोस्तों से मिलीं, तो उनकी सारी शंकाएं दूर हो गईं. उन्होंने किसी को आंखें चढ़ाते या मेहंदी समारोह के दौरान जोड़े का मज़ाक़ उड़ाते नहीं देखा. नेहा ने कहा, ‘मैं बहुत ख़ुश थी. मुझे उम्मीद है कि मेरे भाई ने जो हिम्मत दिखाई है, उससे देश भर में बहुत से लोगों को मदद मिलेगी. मैं जानती हूं कि हमें एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन ये बदलाव एक बेहतर और समावेशी समाज के लिए शुरू हुआ है. अभिषेक और चैतन्य को तमाम ख़ुशियों का हक़ है’.
डिज़ाइनर और दोस्त नवोनिल ने, जो शादी में शरीक हुए थे, दिप्रिंट से कहा कि ये ज़रूरी है कि समलैंगिक विवाह समारोह को सार्वजनिक रूप से मनाया जाए. ‘सार्वजनिक जश्न से पूरा नैरेटिव बदल जाता है, अवधारणा बदल जाती है कि हम अदृश्य हैं. अब समय आ गया है कि हम सामने दिखें, और इस तरह के समारोह के ज़रिए हम उसकी मांग करते हैं जो सही है, और जो न्यायोचित है- ये हमें समानता के अधिकार के रूप में मिला है, जिसका संविधान में वादा किया गया है’.
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