नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट के बाद रविवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी आरबी श्रीकुमार की गिरफ्तारी ने 2002 के गुजरात दंगों को फिर से उर्दू अखबारों के पहले पन्नों की सुर्खियों में ला दिया.
24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के मामले में मोदी को विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी. गौरतलब है कि अहमदाबाद में 28 फरवरी 2002 को गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड के दौरान जकिया जाफरी के पति और कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद एहसान जाफरी की हत्या कर दी गई थी.
वहीं, जकिया की याचिका का समर्थन करने को लेकर सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्रीकुमार को 26 जून को आपराधिक साजिश और जालसाजी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
उर्दू अखबारों के संपादकीय में इन गिरफ्तारियों की आलोचना की गई और इसे सत्तारूढ़ सरकार का विरोध करने वालों के खिलाफ बदले की कार्रवाई करार दिया गया.
इस हफ्ते उर्दू अखबारों की सुर्खियों में रहीं अन्य खबरों में फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी, महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल, राष्ट्रपति चुनाव और उदयपुर में एक दर्जी की नृशंस हत्या की घटनाएं शामिल रहीं.
दिप्रिंट अपने इस राउंडअप में बता रहा है कि इस हफ्ते कौन-सी खबरें उर्दू प्रेस में सुर्खियों में रहीं.
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गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में जकिया जाफरी की तरफ से दायर याचिका खारिज होने और उसके बाद गिरफ्तारी की खबरें कई दिनों तक पहले पन्ने पर सुर्खियों में बनी रहीं.
25 जून को, रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने ‘मोदी को एसआईटी की क्लीन चिट पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर’ शीर्षक के साथ खबर प्रकाशित की.
इंकलाब ने भी यह स्टोरी पहले पन्ने पर छापी. सियासत ने प्रमुख हेडलाइन में लिखा, ‘अब कहां न्याय की गुहार लगाएं?’ और साथ ही चिंता में डूबी जकिया जाफरी की एक तस्वीर भी प्रकाशित की. अखबार ने अपनी खबर की सब-हेडिंग में लिखा कि ‘यहां तक’ सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रधानमंत्री मोदी को क्लीन चिट दे दी है.
अगले दिन सियासत ने अपने पहले पन्ने पर गुजरात के आतंकवाद निरोधी दस्ते द्वारा सीतलवाड़ को गिरफ्तार करने की खबर, और साथ ही में कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का यह बयान प्रमुखता से छापा कि अदालत ने केवल एसआईटी रिपोर्ट को ही बरकरार रखा है और फैसले को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
सीतलवाड़ की गिरफ्तारी की खबर इंकलाब में भी फ्रंट पेज की सुर्खियों में रही.
27 जून को इंकलाब ने लिखा कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार दोनों को एटीएस की हिरासत में भेज दिया गया है.
28 जून को सियासत ने तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के खिलाफ बेंगलुरू में एक कोर्ट परिसर के बाहर विरोध-प्रदर्शनों को पहले पन्ने की खबर बनाया.
29 जून को अपने संपादकीय में ‘अघोषित आपातकाल’ शीर्षक से सहारा ने देश में मौजूदा स्थिति की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरफ से 25 जून, 1975 को घोषित आपातकाल से की.
इसमें लिखा गया कि वर्तमान सरकार की आलोचना के कारण अनगिनत कार्यकर्ता, पत्रकार और बुद्धिजीवी 2016 से जेलों में सड़ रहे हैं और ऐसे मामलों में अदालत के कई फैसले देश के कानून, न्याय और लोकतंत्र के निर्धारित रास्ते से भटक गए हैं.
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मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी
29 जून को सियासत ने दिल्ली पुलिस द्वारा ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किए जाने पर इसी तरह के एक संपादकीय में पूछा, ‘कितनी और आवाजें खामोश की जाएंगी?’
अखबार ने अपने संपादकीय में कहा कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई से पता चलता है कि उसने राजनीतिक दबाव में आकर यह कदम उठाया है और पिछले कुछ सालों में सत्ता में बैठी पार्टियों की आलोचना करने वालों को निशाना बनाने का चलन तेजी से बढ़ा है.
संपादकीय में अन्य पत्रकारों की गिरफ्तारी का भी हवाला दिया गया, जैसे सिद्दीकी कप्पन—जिन्हें 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक बलात्कार की घटना पर रिपोर्ट करने के दौरान गिरफ्तार किया गया था—और यूपी का ही एक और पत्रकार, जिसे मिर्जापुर के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में बच्चों को सिर्फ रोटी और नमक दिए जाने का मामला उजागर करने पर गिरफ्तार किया गया था.
इंकलाब और सियासत दोनों ने जुबैर की गिरफ्तारी की खबर को अपने पहले पन्ने पर छापा.
28 जून को गिरफ्तारी की सूचना देते हुए, सियासत ने सवाल उठाया कि क्या जुबैर का असली ‘गुनाह’ यह था कि उन्होंने अब निलंबित की जा चुकी भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा की ‘ईशनिंदा’ वाली टिप्पणियों पर दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया था.
उदयपुर हत्याकांड
29 जून को, तीनों उर्दू अखबारों ने नूपुर शर्मा के समर्थन में टिप्पणी के कारण मंगलवार को उदयपुर में एक दर्जी की बेरहमी से हत्या की खबर को प्रमुखता से छापा.
इंकलाब ने इस कृत्य को भयावह बताया और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और मौलाना कल्बे जवाद नकवी सहित बड़ी संख्या में मजहबी और राजनीतिक मुस्लिम नेताओं की तरफ से इस घटना की निंदा किए जाने संबंधी टिप्पणियां प्रकाशित की.
उस दिन सियासत की हेडलाइन थी ‘उदयपुर में नूपुर शर्मा के कट्टर समर्थक कन्हैया लाल की हत्या’
अपने 1 जुलाई के संपादकीय में कन्हैया लाल की निर्मम हत्या की आलोचना करते हुए इंकलाब ने लिखा कि दादरी में 2015 की मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं के दौरान अधिकांश भारतीय नागरिक मुसलमानों के साथ खड़े थे, लेकिन यह जरूरी है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.
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महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल
महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक, जिसमें बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा और शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने गुरुवार को नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, ने भी उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर जगह बनाई.
28 जून को इंकलाब ने लिखा कि कैसे शिंदे की अगुआई वाले बागी गुट को सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी, जब उसने 16 बागी विधायकों को भेजे गए अयोग्यता नोटिस पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से जवाब तलब किया.
सहारा ने जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता पर किसी भी फैसले को 11 जुलाई तक टाल दिया है.
30 जून को इंकलाब ने लिखा कि ठाकरे ने विश्वास मत से एक दिन पहले ही इस्तीफा दे दिया.
25 जून को ‘सभी को पता है पर्दे के पीछे कौन है’ शीर्षक के साथ एक संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि महाराष्ट्र की स्थिति उस राजनीतिक संकट से अलग है जो 2020 में मध्य प्रदेश और 2019 में कर्नाटक में सरकारों के गिरने की वजह बनीं.
इसमें कहा गया है कि ‘ऑपरेशन लोटस’—विपक्ष ने भाजपा की तरफ से कथित तौर पर विपक्ष शासित राज्यों में सरकार गिराने की कवायद को यह नाम दिया है—के पिछले संस्करणों के विपरीत महाराष्ट्र में भाजपा एक ‘पटकथा लेखक’ की भूमिका में रही है.
राष्ट्रपति चुनाव
इस माह के अंत में होने वाला राष्ट्रपति चुनाव भी इस हफ्ते उर्दू अखबारों में पहले पन्ने पर सुर्खियों में रहा.
25 जून को इंकलाब ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू द्वारा 18 जुलाई के चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किए जाने की खबर प्रकाशित की.
अखबार में मुस्कुराते मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के बगल में खड़ी मुर्मू की एक तस्वीर भी छापी. यह स्टोरी अन्य उर्दू अखबारों ने भी पहले पन्ने पर छापी.
28 जून को, सहारा और इंकलाब दोनों ने विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की तरफ से नामांकन दाखिल करने की खबर पहले पन्ने पर दी.
उस दिन सियासत के संपादकीय में कहा गया कि अब मुर्मू और विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा दोनों ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है, विपक्षी दलों के लिए 2024 के संसदीय चुनावों की तैयारी में सहयोग की भावना बनाए रखने के लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण है. संपादकीय में विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन करने के तेलंगाना राष्ट्र समिति के फैसले का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया.
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