नई दिल्ली: ब्रिटेन-भारत व्यापार परिषद (यूकेआईबीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष रिचर्ड हील्ड का कहना है कि भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश के लिए अधिक मजबूत ढांचा बनाने के उद्देश्य से द्विपक्षीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगा, इसका भारतीय व्यवसायों के लिए यूरोपीय बाजार तक पहुंच बनाने से कोई लेना-देना नहीं है.
हील्ड ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि एफटीए— जिस पर बातचीत दिवाली तक पूरी हो जाने की उम्मीद है—अनुमति हासिल करने, एक-दूसरे के क्षेत्रों में ऑपरेट करना शुरू करने के लिए लाइसेंस लेने और एक अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगा. उन्होंने कहा कि इसमें शराब पर उच्च आयात शुल्क जैसी भारत की चिंताओं को दूर करने का प्रयास भी होगा.
हील्ड ने कहा, ‘जब आप एक एफटीए देखें, तो जरूरी नहीं कि तब एक स्नैपशॉट देख रहे हों. आप देख रहे हैं कि दोनों पक्षों के बीच संबंध कैसे विकसित होंगे… आप सिर्फ एक एफटीए नहीं देख रहे हैं, बल्कि आप अगले करीब 30 वर्षों का भविष्य देख रहे हैं.’
हील्ड ने कहा कि यद्यपि अल्कोहल पर उच्च शुल्क जैसी खास चिंताओं पर दोनों देशों के बीच विचार-विमर्श जारी है, लेकिन यह ‘विशुद्ध रूप से भारत आने वाली व्हिस्की की एक बोतल की बात भर नहीं है. ‘यह सब दोनों पक्षों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने से जुड़ा है.’
उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय आधार पर एक एफटीए— जो खासकर व्यापार संबंधी तकनीकी बाधाओं जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगा और जरूरी नहीं कि विशुद्ध रूप से टैरिफ पर आधारित हो— ‘न केवल उन भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करेगा, जो पहले से ही यूके में निवेश कर चुकी हैं, बल्कि उन कंपनियों के लिए भी उत्प्रेरक साबित होगा जो यूके आने की इच्छुक हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, मैं पूरी दृढ़ता के साथ एफटीए को द्विपक्षीय रखने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह करूंगा और यूरोपीय संघ और भारत चाहें तो बाद में इसके आधार पर अपनी बहुपक्षीय व्यवस्था बना सकते हैं.’
भारत और यूरोपीय संघ 2007 से इसी तरह के व्यापार करार पर चर्चा करते रहे हैं लेकिन 2013 में वार्ता स्थगित हो गई थी. दोनों पक्षों ने इस सप्ताह के शुरू में ब्रसेल्स में वार्ता 2023 तक पूरी करने के लक्ष्य के साथ फिर से चर्चा शुरू की है.
वहीं, भारत और ब्रिटेन के बीच जनवरी 2022 में एफटीए पर चर्चा शुरू होने के बाद से दोनों पक्ष चार दौर की बातचीत कर चुके हैं.
हालांकि, अब ये बातचीत और तेज होने की उम्मीद है. जैसा कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि दोनों पक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बोरिस जॉनसन की तरफ से तय की गई दिवाली तक की समयसीमा पर कायम हैं.
हील्ड ने संकेत दिया कि भारत और ब्रिटेन अर्ली हार्वेस्ट डील कहे जाने वाले किसी अंतरिम सौदे का विकल्प चुनने के बजाये एक बार में ही पूर्ण करार पर सहमत हो सकते हैं.
भारत ने इस साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के साथ अर्ली हार्वेस्ट डील की थी.
उन्होंने कहा, ‘कारोबार अर्ली हार्वेस्ट समझौतों के समर्थक हैं. लेकिन लगता है कि हमारे बीच अभी तक की बातचीत में इसे शामिल नहीं किया गया है.’
उन्होंने आगे कहा कि अब जब हम ‘एफटीए पर हस्ताक्षर के लक्ष्य के अपेक्षाकृत काफी नजदीक पहुंच गए हैं’ तब अर्ली हार्वेस्ट करार का कोई औचित्य भी नहीं रह जाता है.
उन्होंने कहा, ‘दिवाली की समयसीमा बहुत दूर नहीं है.’
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व्यापार बाधाएं दूर करने पर विशेष जोर
हील्ड के मुताबिक, दोनों पक्षों के बीच व्यापार में तकनीकी बाधाएं घटाने को लेकर विशेष तौर पर चर्चा जारी है. उन्होंने कहा कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर ‘न केवल व्यापार के लिहाज से गौर किया जा रहा है, बल्कि भारत द्वारा यूके की तरफ से भारत में किए जाने वाले निवेश के मद्देनजर भी इस पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, हम मूल के नियमों— जैसे किसी एक के क्षेत्राधिकार बनाम दूसरे के क्षेत्र में कोई सामान विशेष कितना बनाया जाना है— और मानकों के बीच सामंजस्य, बौद्धिक संपदा, निवेशकों को प्रोत्साहन और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर काफी जोर दे रहे हैं.’
शराब की ऊंची दरों पर उन्होंने कहा कि भारत थोक में ब्रिटेन से व्हिस्की का आयात करता है.
उन्होंने कहा, ‘थोक व्हिस्की का उपयोग घरेलू शराब उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए भी होता है. आयातित स्कॉच व्हिस्की की एक निश्चित मात्रा को यहां निर्मित व्हिस्की और अल्कोहल में मिलाया जाता है और इस तरह इससे घरेलू उद्योग का विकास भी होता है.’
उन्होंने आगे कहा कि यदि आयातित अल्कोहल युक्त पेय पदार्थों पर टैरिफ कम होगा, यह बौद्धिक संपदा प्रक्रियाओं, पैकेजिंग संबंधी तकनीक, बॉटलिंग संबंधी तकनीक को प्रोत्साहित करेगा जो कि घरेलू उद्योग में सुधार में मददगार है.
नॉन-टैरिफ बाधाओं से जुड़े एक बड़े मुद्दे के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘अनुमति, लाइसेंस जारी करने को सुव्यवस्थित किया जाएगा और भारत में व्यापार करने की क्षमता को सही मायने में बढ़ावा मिलेगा.’
केयर्न एनर्जी और वोडाफोन से संबंधित रिट्रोस्पेक्टिव टैक्स विवादों के मुद्दे पर हील्ड ने कहा कि उन्हें निपटाने के भारत सरकार के फैसले को ब्रिटेन के उद्योगों ने एक ‘व्यावहारिक’ कदम के तौर पर देखा है.
विवादों की वजह 2012 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की तरफ से किया गया रिट्रोस्पेक्टिव टैक्स का प्रावधान था, जिसके तहत अन्य के साथ-साथ ब्रिटिश कंपनियों वोडाफोन और केयर्न एनर्जी को कर देयता के भुगतान के लिए नोटिस जारी किया गया था. दोनों मामलों में इन कंपनियों की तरफ से भारतीय कंपनियों में शेयरों का अधिग्रहण किया जाना शामिल था.
आखिरकार, पिछले साल— 5 अगस्त 2021 को— तब जाकर इस विवाद का समाधान हुआ जब भारत सरकार ने कहा कि वह इन कंपनियों पर रिट्रोस्पेक्टिव कानून के तहत सभी कर मांगों को वापस ले लेगी और जो पैसा लिया गया होगा, उसे भी रिफंड कर देगी, बशर्तें इन कंपनियों को इस संबंध में शुरू किए गए मुकदमे को वापसी लेना होगा.
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