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Sunday, 3 November, 2024
होमदेशएक रहस्यमयी नई रिपोर्ट आपको बताएगी कि अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवाद को कौन, कितना फंड देता है

एक रहस्यमयी नई रिपोर्ट आपको बताएगी कि अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवाद को कौन, कितना फंड देता है

एक तरफ जहां एचएसएस जैसे हिंदू ग्रुप रिपोर्ट को 'अविश्वसनीय' बता कर खारिज कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हिंदुत्व विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि आंकड़े सामने हैं लेकिन उन पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा.

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नई दिल्ली: एक रहस्यमय लेखक, जनता के पैसे के दुरुपयोग का संकेत और कहीं कोई ज्यादा शोर-शराबा नहीं. एक नाटकीय नई रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवाद को कैसे फंड किया जाता है और कितने पैसे उन्हें अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए मुहैया कराए जाते हैं.

हाल ही में जारी किए आंकड़ों के अनुसार, रिपोर्ट में लगभग 24 संगठनों का नाम है, जिनकी कुल संपत्ति कम से कम 97.7 मिलियन डालर है. इन संगठनों में धर्मार्थ समूह, थिंक टैंक, राजनीतिक समर्थक ग्रुप और उच्च शिक्षा पर काम करने वाली संस्थाएं शामिल हैं – ये सभी भारत में हिंदू समूहों के साथ किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं.

सार्वजनिक रूप से उपलब्ध संसाधनों के आधार पर तैयार की गई यह रिपोर्ट, अमेरिका में इन ग्रुप के आर्थिक सहयोगियों का विवरण देती है जो अमेरिकी शिक्षा को प्रभावित करने और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली भारत सरकार के हितों को आगे बढ़ाने के लिए लाखों खर्च कर रहे हैं.

लगभग 20 सालों में – 2001 से 2019 तक – इनमें से सात धर्मार्थ समूहों ने कम से कम  158.9 मिलियन डॉलर खर्च किए है. इसमें से कुछ पैसा भारत में काम कर रहे समूहों को भेजा गया. इस पैसे का लगभग आधा, तकरीबन 85.4 मिलियन डॉलर, साल 2014 और 2019 के बीच खर्च किया गया था.

एक तरफ जहां अमेरिका के हिंदू समूहों ने रिपोर्ट को ‘अविश्वसनीय’ बताया है, वहीं दूसरी तरफ हिंदुत्व विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि आंकड़े सामने हैं लेकिन उन पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा.

‘हिंदू नेशनलिस्ट इन्फ्लुएंस इन द यूनाइटेड स्टेट्स, 2014-2021: द इन्फ्रास्ट्रक्चर ऑफ हिंदुत्व मोबिलाइजिंग’ नामक रिपोर्ट को जासा माचर ने लिखा है और ये रिपोर्ट साउथ एशियन सिटीजन वेब पर उपलब्ध है. दरअसल यह 2014 की रिपोर्ट पर एक शोधित अपडेट है, जिसे किसी ऐसे व्यक्ति ने लिखा है जो अपने नाम और ईमेल एड्रेस के लिए जे एम नाम का इस्तेमाल करता है.

अगर आप लेखक के बारे में जानने के लिए गूगल करेंगे तो कोई जानकारी नहीं मिलेगी, लेकिन हां उनकी रिपोर्ट का जिक्र मिल जाएगा.

हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) ने दिप्रिंट को एक ईमेल के जवाब में लिखा, ‘हमें यह अजीब लगता है कि हमारे साथ-साथ अन्य कई संगठनों की कथित जघन्यता पर एक छद्म नाम से रिपोर्ट लिखी गई है. ऐसा प्रतीत होता है कि इसे पूरी तरह से उद्देश्य के लिए बनाया गया है.’


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कहां से आता है पैसा

तो, पैसा कहां से आता है? प्रवासी समाज सेवी, फंड उगाहने वाले अभियान, अमीर लोगों द्वारा चलाए जा रहे फाउंडेशन और खुद अमेरिकी करदाता.

टैक्स रिकॉर्ड के मुताबिक, भुटाडा फैमिली फाउंडेशन और पूरन देवी अग्रवाल फैमिली फाउंडेशन जैसे संगठनों ने 2006 और 2018 के बीच एचएएफ, हिंदू स्वयंसेवक संघ (एचएसएस), विश्व हिंदू परिषद ऑफ अमेरिका (वीएचपीए) और यूएसए के एकल विद्यालय फाउंडेशन जैसे समूहों को लगभग 2 मिलियन डॉलर का दान दिया था. रिपोर्ट बताती है कि दानदाताओं की वैचारिक राय को इस तथ्य के आधार पर नहीं माना जा सकता है कि उन्होंने हिंदू गैर-लाभकारी समूहों को दान दिया है, यह फैमिली फाउंडेशन को चलाने वाले लोगों की संघ से जुड़ाव को सूचीबद्ध करता है.

2021 की अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, पांच दक्षिणपंथी समूहों – यूएसए का एकल विद्यालय फाउंडेशन, एचएएफ, इन्फिनिटी फाउंडेशन, सेवा इंटरनेशनल और वीएचपीए – को अमेरिकी करदाता द्वारा भुगतान किए गए यूएस फेडरल कोविड राहत कोष से 833,000 डॉलर प्राप्त हुए. एचएएफ ने रिपोर्टर रकीब हमीद नाइक, साथ ही रिपोर्ट में नामित अन्य लोगों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसमें एक अन्य यूएस के ग्रुप, हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स के सदस्य भी शामिल थे. दिप्रिंट ने इस लेख में जिक्र किए गए संगठनों से रिपोर्ट पर उनकी टिप्पणियों के लिए संपर्क किया.

एचएएफ ने दिप्रिंट को एक ईमेल स्टेटमेंट में लिखा, ‘एचएएफ के बारे में (इस रिपोर्ट में) सभी आरोप निराधार हैं. एचएएफ पूरी तरह से स्वतंत्र, अमेरिकी संगठन है. इसका अमेरिका या विदेश में किसी भी संगठन या राजनीतिक दलों से कोई संबंध नहीं है. एचएएफ की स्थापना दूसरी पीढ़ी के हिंदू अमेरिकियों ने की थी. इनका जन्म और पालन-पोषण संयुक्त राज्य अमेरिका में ही हुआ है. और हमारे काम और नीतिगत रुख उन्हीं के लिए है.’

जासा माचर ने दिप्रिंट को लिखा कि पाठकों को दस्तावेज़ में उल्लिखित तथ्यों और आंकड़ों से जुड़ना चाहिए. उन्होंने एक ईमेल में लिखा, ‘रिपोर्ट एक ही तरह के कार्यों के पैटर्न के बारे में बताती है, जिनमें से अधिकांश कानूनी हैं, लेकिन उन लोगों से संबंधित हैं जो लोकतंत्र को महत्व देते हैं और उस इकोसिस्टम को चुनौती देना चाहते हैं जो जाहिर तौर पर विदेशों में चरमपंथ को समर्थन और सुरक्षा देते है’  वह आगे लिखते हैं, ‘यह पैटर्न संघ समूहों के बढ़ते सामाजिक और राजनीतिक प्रोफाइल के बारे में बताता है, क्योंकि हम संघ ग्रुप के पैसे को ज्यादा से ज्यादा स्वीकार करने और संस्थानों व राजनीतिक अधिकारियों द्वारा बनाए जा रहे दबाव को देख रहे हैं.’

माचर के अनुसार, रिपोर्ट के लक्षित दर्शक अमेरिकी सरकार के अधिकारी, कॉन्ट्रीब्यूटर्स और हिंदू राष्ट्रवादी परियोजनाओं के सशक्त फंडर्स और प्रवासी राष्ट्रवाद का अध्ययन करने वाले हैं. रिपोर्ट में आगे की जांच की पड़ताल में अनियमितताओं का भी संकेत दिया है.

दिप्रिंट को एकेडमिक प्रोफेशनल ऑड्रे ट्रुश्के ने लिखा, ‘रिपोर्ट साफ तौर पर बताती है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंदू विचारधारा वाले ग्रुप शक्तिशाली और आर्थिक रूप से मजबूत हैं. और भारत में हिंदू राष्ट्रवादी प्रयासों का समर्थन करते हैं.’

पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखने का प्रयास

पैसे का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है, यह सवाल अभी भी संदिग्ध है.

इसका एक निश्चित लक्ष्य हिंदुओं और हिंदू धर्म को जिस तरीके से पेश किया जाता है, उसे बदलने के लिए अमेरिकी शिक्षा प्रणाली पर दबाव डालना है.

रिपोर्ट दो मौकों (2005 और 2016 में) की ओर इशारा करती है जब एचएएफ और एचएसएस से जुड़े उबेरॉय फाउंडेशन फॉर रिलिजियस स्टडीज ने अमेरिकी पाठ्यपुस्तकों से ‘दलित’ शब्द को संपादित करने का प्रयास किया था.

उबेरॉय फाउंडेशन ने 2010 और 2016 के बीच शिक्षा पर कम से कम आधा मिलियन डॉलर खर्च किए. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसमें पब्लिक स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को प्रभावित करना, विश्वविद्यालय के अनुदान की स्थापना, शिक्षकों को प्रशिक्षण देना और अनुसंधान अनुदान आवंटित करना शामिल है.

उबेरॉय फाउंडेशन के पैसे का कम से कम 142,000 डालर – आधा मिलियन का सबसे बड़ा हिस्सा – 2012 और 2016 के बीच एचएएफ को दिया गया था. एचएएफ ने दिप्रिंट को लिखा कि उन्होंने उबेरॉय फाउंडेशन से अनुदान का उपयोग शैक्षिक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए किया गया, अमेरिकी शिक्षा प्रणाली और अमेरिकी पाठ्यपुस्तकों में कठोर और अकादमिक रूप से सत्यापित छात्रवृत्ति के आधार पर यह सुनिश्चित करते हुए कि हिंदू धर्म को सटीक रूप से चित्रित किया जाए.

एक अन्य समूह, धर्मा सिविलाइजेशन फाउंडेशन (डीसीएफ) ने कम से कम तीन विश्वविद्यालयों में अकादमिक कार्यक्रमों को दान देने का प्रयास किया.  डीसीएफ ने दक्षिणी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ रिलिजन को 3.24 मिलियन डॉलर, ग्रेजुएट थियोलॉजिकल यूनियन को 4.4 मिलियन डॉलर और इरविन में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी को 6 मिलियन डॉलर देने का वचन दिया. छात्रों का इस ग्रुप के हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़े होने का शक था और उन्होंने इसे लेकर सवाल उठाए थे.  जिसके बाद इस कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने 6 मिलियन के दान को लेने से इनकार कर दिया.

अमेरिका में हिंदू अमेरिकी छात्रों के अनुभव भी चिंता का कारण प्रतीत होते हैं – हिंदू एजुकेशन फाउंडेशन ने हिंदू छात्रों के खिलाफ की जाने वाली बुलिंग को अमेरिकी पाठ्यपुस्तकों में हिंदू धर्म के चित्रण से जोड़ने की कोशिश की. द हिंदू एजुकेशन फाउंडेशन एचएसएस का एक प्रोजेक्ट है – 2011 से 2019 तक के टैक्स रिटर्न में कहा गया है कि संगठन ‘हिंदू एजुकेशन फाउंडेशन के रूप में व्यवसाय कर रहा है’

दिप्रिंट को एक ईमेल में, एचएसएस ने कहा कि यह ‘संयुक्त राज्य अमेरिका के कानूनों के तहत संगठित एक स्वतंत्र 501 (सी) (3) गैर-लाभकारी संगठन है और इसका मिशन ‘हिंदू अमेरिकियों को एक साथ लाना है. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए हिंदू संस्कृति और अमेरिका में हमारे स्थानीय समुदायों में सामूहिक रूप से योगदान करते हैं और उनकी सेवा करते हैं’

एचएसएस ने लिखा, ‘हमारा मानना है कि जिस रिपोर्ट का आपने जिक्र किया है वह एचएसएस और अन्य हिंदू संगठनों के खिलाफ राजनीति से प्रेरित अभियान है. इस तरह की रिपोर्ट और गठबंधन की हिंदू विरोधी गतिविधियां संयुक्त राज्य में स्थानीय हिंदुओं के खिलाफ बढ़ते हिंदूफोबिया और घृणा अपराधों का मूल कारण हैं.’

‘हिंदुत्व’ के साथ ‘हिंदूफोबिया’ से लड़ना

यहां तक कि अमेरिका में पहचान-आधारित समूहों के भीतर एक लड़ाई चल रही है – इसमें एक वो खेमा है जो हिंदुत्व को खत्म करना चाहता है और दूसरा वो हिंदूफोबिया का विरोध करना चाहता है. दोनों खेमे भारत में राजनीति को लेकर आमने-सामने हैं.

एक और हालिया संघर्ष हिंदू नेशनलिज्म, डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व: मल्टीडिसीप्लिनरी पर्सपेक्टिव नामक 2021 के सम्मेलन को लेकर था. हिंदू समूहों की वजह से प्रतिभागियों और आयोजकों को अमेरिका में इसे लेकर काफी नकारात्मक प्रतिक्रिया फैलाईं गईं थीं, कुछ प्रतिभागियों ने मौत की धमकी मिलने के बाद इसमें से अपना नाम वापस लेने का विकल्प चुना. सम्मेलन में शामिल विश्वविद्यालयों को 10 लाख से ज्यादा ईमेल भेजे गए और उन पर सम्मेलन को बंद करने का दबाव डाला गया.

यह साफ तौर पर ‘हिंदू फोबिक’ था.

इंडिया एक्सप्लेन्ड पॉडकास्ट के अकादमिक और सह-संस्थापक रोहित चोपड़ा के अनुसार, ‘हिंदूफोबिया’ शब्द को हथियार बनाया जा रहा है. यहां तक कि अब जाति का जिक्र करना भी हिंदू विरोधी है.’ वह कहते हैं  ‘हिंदू धर्म और भारत से जुड़ी किसी भी चीज की आलोचना करना अब हिंदू फोबिक माना जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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