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Friday, 15 November, 2024
होमहेल्थ2019-21 में आयुष्मान भारत के तहत स्ट्रोक बीमा का क्लेम करने वालों में केरल टॉप पर, ये रही वजहें

2019-21 में आयुष्मान भारत के तहत स्ट्रोक बीमा का क्लेम करने वालों में केरल टॉप पर, ये रही वजहें

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के विश्लेषण से पता चला है कि केरल में स्ट्रोक के इलाज के लिए सबसे ज्यादा बीमा क्लेम किए गए है. डॉक्टरों ने इसकी एक वजह राज्य की हायर लाइफ एक्सपेक्टेंसी को माना है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) के एक विश्लेषण के अनुसार, अगस्त 2019 और मार्च 2021 के बीच प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) के तहत स्ट्रोक के इलाज के लिए किए गए सभी बीमा दावों में केरल का हिस्सा 40 प्रतिशत से ज्यादा रहा.

केरल के डॉक्टरों का कहना है कि इस आंकड़े को राज्य की हायर लाइफ एक्सपेक्टेंसी- क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है – और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के साथ-साथ स्ट्रोक के बारे में अधिक जागरूकता और लोगों में आधुनिक चिकित्सा पर बढ़ते विश्वास को इसकी वजह माना जा सकता है.

एनएचए विश्लेषण से पता चलता है कि अगस्त 2019 से मार्च 2021 तक 536 प्राइवेट और 299 सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में नौ राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 16,179 मरीजों का इलाज किया गया था.

केरल में सबसे ज्यादा 42 फीसदी स्ट्रोक से जुड़े बीमा क्लेम किए गए थे. इसके बाद 13 प्रतिशत बीमा दावों के साथ मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर रहा. छत्तीसगढ़ और पंजाब में 11 प्रतिशत, उत्तराखंड में 10 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 6 प्रतिशत स्ट्रोक को लेकर बीमा क्लेम किए गए थे.

विश्लेषण एनएचए, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सहयोग से किया गया है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण(एनएचए) को राज्य सरकारों के साथ संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एक स्वायत्त इकाई के रूप में गठित किया गया है.

जब कोई व्यक्ति स्ट्रोक से जूझ रहा होता है तो उसके दिमाग के एक हिस्से में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती है. यह तब होता है जब रक्त की आपूर्ति करने वाले वैसल्स (इस्केमिक स्ट्रोक) में से एक में ब्लॉकेज होती है, या जब मस्तिष्क में कोई एक नस फट जाती है (रक्तस्रावी स्ट्रोक).

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के केरल चैप्टर के रिसर्च सेल के वाइस चेयरमैन डॉ राजीव जयदेवन ने कहा कि इन सालों में स्ट्रोक के मामलों में खासी बढ़ोतरी देखी गई है. क्योंकि केरल में लोगों के अनुमानित जीवनकाल यानी लाइफ एक्सपेंटेन्सी काफी ज्यादा है, इसलिए यहां बाकी राज्यों के मुकाबले स्ट्रोक के मामले ज्यादा है. उम्र बढ़ने के साथ- साथ स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ जाता है.

केरल में डायबिटीज और हाई बीपी के मामले अधिक पाए गए हैं और ये दोनों बिमारियां स्ट्रोक के खतरों की बड़ी वजहों में से हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार, 30.9 फीसदी महिलाएं और 15 साल से ज्यादा उम्र के 32.8 फीसदी पुरुष या तो रक्तचाप से ग्रस्त हैं या हाइपरटेंशन की दवा ले रहे हैं.

डायबिटीज के लिए ये आंकड़े क्रमशः 24.8 प्रतिशत और 27 प्रतिशत हैं. पूरे भारत में हाइपरटेंशन से जूझने वाले महिलाओं और पुरुषों का औसत 21.3 और 24 प्रतिशत है. जबकि डायबिटीज के लिए यह औसत 13.5 प्रतिशत और 15.6 प्रतिशत है.

एनएचए विश्लेषण में पाया गया कि ‘बीमा का लाभ लेने वालों में 60 से 74 साल की उम्र के लोगों का प्रतिशत (38 प्रतिशत) सबसे ज्यादा था. इसके बाद 45-59 के उम्र के 29.8 फीसदी लोगों ने बीमा का लाभ उठाया था. यह भारत में पीबीएसआर (जनसंख्या-आधारित स्ट्रोक रजिस्ट्रियां) में आयु पैटर्न वितरण के समान था.’

विश्लेषण में आगे कहा गया, ‘भारत में विभिन्न जनसंख्या-आधारित अध्ययनों में स्ट्रोक आने की औसत उम्र 58-67 वर्ष थी. 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में, छत्तीसगढ़ में औसत आयु 44 वर्ष से लेकर केरल में 64 वर्ष तक थी. भारत में किए गए अध्ययन में 4 से 20 प्रतिशत के रेंज की तुलना में युवा लोगों में स्ट्रोक (45 वर्ष से कम में स्ट्रोक का अनुपात) 18.9 प्रतिशत था, जबकि भारत में जनसंख्या-आधारित रजिस्ट्री डेटा से पता चला है कि 11 प्रतिशत स्ट्रोक पंजीकरण 18 से 44 वर्ष के आयु वर्ग के थे.’

हालांकि, यह देखते हुए कि PM-JAY का लाभ उठाने वाले विशेष सामाजिक-आर्थिक स्तर (सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना में सूचीबद्ध कमियों के अनुसार) तक सीमित हैं, और उनके द्वारा किए गए दावे भी चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता से जुड़े होंगे, इसलिए इन आंकड़ों से पूरे देश के स्ट्रोक की घटनाओं का आकलन नहीं किया जा सकता है.

PM-JAY के तहत, जो आयुष्मान भारत की त्रिस्तरीय स्वास्थ्य सेवा है, योग्य परिवारों को 5 लाख रुपये का वार्षिक स्वास्थ्य कवर मुहैया कराती है.


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लंबी उम्र, जागरूकता और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच

आईएमए के केरल चैप्टर के डॉ राजीव जयदेवन ने कहा कि स्ट्रोक के आंकड़े इस बात को बताते हैं कि केरल में लाइफ एक्सपेंटेन्सी राष्ट्रीय औसत से अधिक है.

उन्होंने कहा, ‘केरल में लोग की लंबी उम्र होती है और शायद इसी वजह से यहां नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों से जूझ रहे लोगों की लोगों की संख्या भी ज्यादा है. जीवन के हर गुजरते दशक के साथ स्ट्रोक होने की संभावना आम हैं. यह भी एक तथ्य है कि केरल में स्वास्थ्य सेवा की लोगों तक पहुंच हर स्तर के लोगों तक है.’ वह आगे कहते हैं कि यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बहुत अच्छा है और इसलिए निजी अस्पताल भी बेहतर तरीके से काम करते हैं..

वह आगे कहते हैं, ‘यहां लोग काफी ज्यादा जागरूक हैं. कई तरीके के अभियानों के चलते आम लोग और जमीनी स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ता दोनों स्ट्रोक केयर की बुनियादी अवधारणाओं और समय पर चिकित्सा सहायता प्राप्त करने के महत्व से परिचित हैं.’

अमृता अस्पताल, एर्नाकुलम के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विवेक नांबियार ने कहा कि केरल में स्ट्रोक बीमा क्लेम की संख्या इसलिए ज्यादा है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में न्यूरोलॉजिस्ट और स्ट्रोक-केयर सेंटर हैं. और यहां लोगों को आधुनिक चिकित्सा पर विश्वास है.

वह कहते हैं, ‘केरल एक बड़ा है. शहर में 8-10 बहुत अच्छे स्ट्रोक-केयर सेंटर हैं. लगभग 300-350 न्यूरोलॉजिस्ट हैं. साथ ही लोगों का आधुनिक चिकित्सा में विश्वास है’ वह आगे कहते हैं, ‘देश के कई हिस्सों में स्ट्रोक को लेकर लोगों में अंधविश्वास फैला हुआ है. कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां लोग मानते हैं कि कबूतर के खून को रोगी पर मलने से स्ट्रोक ठीक हो जाता है. स्ट्रोक के मरीज अक्सर झाड़-फूंक या देसी इलाज की तरफ जाते हैं. लेकिन केरल में लोग आधुनिक केंद्रों में जाकर इलाज करवाते हैं’

भारत में स्ट्रोक की घटनाएं

‘विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष’ (डीएएलवाई) को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परिभाषित करते हुए कहा है, कि यह पूर्ण स्वास्थ्य के एक वर्ष के बराबर के नुकसान का प्रतिनिधित्व करता है. अध्ययन के अनुसार, स्ट्रोक डीएएलवाई के शीर्ष 10 प्रमुख कारणों में से हैं. इसकी दर पूर्वी (पश्चिम बंगाल, ओडिशा) और पूर्वोत्तर (असम, त्रिपुरा) और मध्य (छत्तीसगढ़) राज्यों में सबसे अधिक है.

रिपोर्ट में लिखा है, ‘नेशनल स्ट्रोक रजिस्ट्री प्रोग्राम के आंकड़ों से पता चला है कि भारत में स्ट्रोक के लिए विशुद्ध रूप से स्ट्रोक के मामले कछार, कोटा, वाराणसी, तिरुनेलवेली और कछार जनसंख्या-आधारित रजिस्ट्रियों के क्षेत्रों में प्रति लाख जनसंख्या पर 96.6-187187.6 थे. स्ट्रोक के ये आंकड़े स्ट्रोक के कारण विकलांगता और मृत्यु दर को कम करने के लिए स्ट्रोक सेवाओं की जरूरतों की तरफ इशारा कर रहे हैं.’

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि स्ट्रोक सेवाओं की उपलब्धता पर अद्यतन डेटा की कमी है. 2012 में, स्ट्रोक का इलाज करने और उसकी रोकथाम के लिए क्लॉट-बस्टिंग सर्विस और 35 स्ट्रोक इकाइयां वाले 100 केंद्र थे.

2018-19 के डेटा से पता चलता है कि पंजीकृत मामलों में स्ट्रोक इमेजिंग का उपयोग असम के कछार जिले में 72 प्रतिशत से लेकर कटक, तिरुनेलवेली, कोटा और वाराणसी में 80 प्रतिशत से अधिक था.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘इमेजिंग से सीटी या एमआरआई के साथ इमेजिंग द्वारा स्ट्रोक के डायग्नोज को लेकर संरचित डेटा में स्ट्रोक के प्रकार के बारे में जानकारी नहीं थी.’

सार्वजनिक अस्पताल सबसे आगे

सार्वजनिक अस्पतालों ने स्ट्रोक देखभाल का लगभग पूरा बोझ अपने ऊपर ले रखा है. केरल में 81 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 91 प्रतिशत, जम्मू और कश्मीर में 94 प्रतिशत, बिहार में 85.4 प्रतिशत और दादरा में 100 प्रतिशत सरकारी अस्पताल सेवा दे रहे हैं. विश्लेषण से पता चलता है कि सूचीबद्ध निजी अस्पतालों ने पंजाब में 75 प्रतिशत, उत्तराखंड में 82 प्रतिशत और हरियाणा में 74 प्रतिशत में अधिकांश सेवाएं प्रदान की हैं.

लाभार्थियों में 61 प्रतिशत पुरुष और 39 प्रतिशत महिलाएं थीं. विश्लेषण में पाया गया, ‘ उम्र बढ़ने के साथ, लाभार्थियों के अनुपात में वृद्धि हुई. और अधिकतम अनुपात पुरुषों और महिलाओं दोनों में 60-74 आयु वर्ग में देखा गया. इस उम्र के ग्रुप में पुरुषों की तुलना में 60-74 और 75 से ज्यादा की उम्र की महिलाओं का अनुपात अधिक था.’

पुरुषों में औसत आयु 42 (छत्तीसगढ़) से 63.2 (जम्मू-कश्मीर) और महिलाओं में 49 (छत्तीसगढ़) से 66.3 (केरल) के बीच थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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