नई दिल्ली: कांग्रेस खेमे के एक बड़े हिस्से ने सोमवार को राष्ट्रव्यापी ‘सत्याग्रह’ के लिए अपने नेता राहुल गांधी के आह्वान का समर्थन किया है. वहीं, संगठन के भीतर इस बात को लेकर हंगामा हो रहा है कि एक पार्टी जिसके नेताओं को आए दिन केंद्र और बीजेपी की एजेंसियों द्वारा ‘परेशान’ किया जाता है, क्या उसे एक ऐसे नेता के लिए इस तरह का कदम उठाना जायज है जो ‘सिर्फ एक साधारण सांसद’ हो. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह पता चला है.
नेशनल हेराल्ड मामले में एजेंसी ने उन्हें और सोनिया गांधी को तलब किया है. जिसके बाद गांधी को सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समक्ष पेश होना है. हालांकि सोनिया गांधी पिछले हफ्ते कोविड होने की वजह से उपस्थित होने में असमर्थ थीं, तो वहीं राहुल ने भी देश से बाहर होने के कारण ईडी से एक अलग तारीख मांगी.
दिप्रिंट से बात करते हुए, पार्टी के कुछ नेताओं ने सवाल किया कि एकजुटता का प्रदर्शन केवल तभी क्यों किया जाता है जब ईडी गांधी परिवार को तलब करता है लेकिन जब अन्य नेताओं को केंद्रीय एजेंसियां द्वारा पूछताछ या गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता है तब तो कोई एकजुट होकर आगे नहीं आता.
पार्टी के सभी लोकसभा और राज्यसभा सांसदों, साथ ही कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्यों को पार्टी ने सोमवार को सुबह 9.30 बजे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) मुख्यालय में इकट्ठा होने के लिए कहा है, जहां से वे राहुल गांधी के साथ दिल्ली में ईडी ऑफिस तक मार्च शुरू करेंगे. जब उनसे पूछताछ की जा रही होगी तो प्रदर्शनकारी कार्यालय के बाहर डेरा डालेंगे. प्रदर्शनकारियों में भारतीय युवा कांग्रेस (IYC), भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI), सेवा दल और महिला कांग्रेस जैसे कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों के कार्यकर्ता भी शामिल होंगे.
पार्टी की राज्य इकाइयों को भी इसी दौरान राज्य की राजधानियों में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के लिए कार्यकर्ताओं को जुटाने के लिए कहा गया है. कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, राजस्थान आदि जैसे राज्यों में जहां कांग्रेस मजबूत है, वहां भी जिला और ब्लॉक स्तर पर विरोध की योजना बनाई गई है.
रविवार को दिग्विजय सिंह, सचिन पायलट, विवेक तन्खा और पवन खेड़ा जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने देश भर में इस मामले और ‘सत्याग्रह’ के बारे में बात करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
इससे पार्टी के सदस्यों में खलबली मच गई है.
कांग्रेस के एक सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘अगर यह सोनिया गांधी के लिए किया जा रहा होता तो समझ में आता क्योंकि वह पार्टी अध्यक्ष हैं और एक तरह से सभी का पार्टी में प्रतिनिधित्व करती हैं लेकिन उनके बेटे के लिए क्यों? वह तो सिर्फ एक ‘साधारण सांसद’ हैं.’ यह सांसद सोमवार को सत्याग्रह में हिस्सा लेंगे.
दिप्रिंट से बात करते हुए, कांग्रेस प्रवक्ता अलका लांबा ने कहा कि गांधी परिवार एकजुटता के इस प्रदर्शन के हकदार थे क्योंकि वे ‘केवल वही’ हैं जो बीजेपी के खिलाफ खड़े हैं.
लांबा ने कहा, ‘नहीं, वह कोई साधारण सांसद नहीं हैं. सांसद तो कई हैं लेकिन वह गांधी हैं. वह उसी नेहरू-गांधी परिवार का हिस्सा हैं जिसने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आज वे अकेले खड़े हैं और बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे हैं.
वह कहती हैं, ‘क्या आपने किसी गांधी परिवार को राज्यपाल या राष्ट्रपति जैसे बड़े पदों पर या ऐसे ही किसी अन्य पद पर देखा हैं? सोनिया और राहुल गांधी दोनों को जनता ने चुना हैं और सभी गांधी जनता द्वारा चुने गए हैं. वे एक ऐसा परिवार हैं जो 30 साल से देश के लिए बलिदान दे रहा है. वह सामान्य नहीं हैं.’
विरोध में शामिल पार्टी के सूत्रों ने कहा कि सोनिया के समन के लिए उपस्थित होने पर भी इसी तरह बड़े स्तर पर विरोध की योजना बनाई जाएगी. ज्यादातर सांसदों ने सोमवार को विरोध प्रदर्शन के बाद दिल्ली से जाने की बात कही है इसलिए राहुल को लगातार तलब किए जाने की स्थिति में फ्रंटल संगठनों को कैडरों को जुटाने के लिए स्टैंडबाय पर रहने के लिए कहा गया है.
विरोध प्रदर्शन में शामिल एक पार्टी पदाधिकारी ने बताया, ‘अगर राहुल को लगातार बुलाया जाता है तो विरोध जारी रहेगा. वरना फिलहाल तक तो यह एक दिन के लिए ही है. राजनीतिक रूप से, पार्टी को लगता है कि अब ताकत का प्रदर्शन करना समझदारी है क्योंकि ऐसे मामले जनता और मीडिया की याददाश्त से बहुत तेजी से गायब हो जाते हैं. मीडिया ने पहले समन और फिर पूछताछ के इस मुद्दे को कवर नहीं किया है, भले ही समन और कानूनी प्रक्रिया जारी है.’
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घर से ही उठती आवाजें
दिप्रिंट ने जिन कांग्रेस नेताओं से बात की उनमें से अधिकांश ने इसी तरह की भावनाओं को साझा किया. वे विरोध मार्च में हिस्सा ले भी सकते हैं और नहीं भी. उनका कहना है कि इस तरह की लामबंदी को केवल कांग्रेस अध्यक्ष के लिए उचित ठहराया जा सकता है, खासकर तब जब नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से हाल के दिनों में किसी अन्य नेता के लिए ऐसा नहीं किया गया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए एक और कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘उन्होंने मेरे लिए ऐसा क्यों नहीं किया?’, यह विशेष नेता फिलहाल एक ऐसे ही मामले में फंसा हुआ है और उन्होंने दावा कि ये ‘राजनीति से प्रेरित’, गांधियों के खिलाफ चलाए जा रहे मामले की तरह का ही एक है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, अधिकांश पार्टी नेताओं ने कहा कि वे सैद्धांतिक रूप से राहुल के लिए शक्ति प्रदर्शन से असहमत नहीं हैं लेकिन उन्होंने सवाल किया कि बीजेपी और केंद्रीय एजेंसियों के खिलाफ पार्टी लगातार सड़कों पर क्यों नहीं उतर पाई है.
एक राजनीतिक मामले में फंसे ऊपर जिक्र किए गए कांग्रेस नेता ने कहा कि गांधी परिवार को मिलने वाली विशेष तरजीह पार्टी में एक ‘वास्तविकता’ है लेकिन एक बार ताकत दिखाने से पार्टी को किसी भी तरह से मदद नहीं मिलेगी.
नेता ने कहा, ‘99.99 फीसदी कांग्रेसियों के लिए गांधी परिवार ही कांग्रेस है लेकिन एक हाथरस या एक रैली या एक सत्याग्रह से कोई फायदा नहीं होने वाला. पार्टी और उसके टॉप नेताओं को हर समय जमीन पर रहने की जरूरत है. विधायकों और सांसदों को इन मुद्दों को उठाने के लिए हर समय निर्वाचन क्षेत्रों में रहना होगा. बीजेपी की एजेंसियों के खिलाफ अभियान को जारी रखने की जरूरत है क्योंकि वे बड़े पैमाने पर पार्टी को निशाना बना रहे हैं. कांग्रेस को उसके लिए खड़ा होना चाहिए, न कि केवल गांधी परिवार के लिए.’
नेता ने पूछा, ‘मैं विरोध में खड़ा रहूंगा क्योंकि अगर मैं नहीं जाऊंगा तो वे मेरे लिए ऐसा कभी नहीं करेंगे. लेकिन क्या वे कभी मेरे लिए ऐसा करेंगे (भले ही मैं शामिल हो जाऊं)?’
विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होने वाले एक सांसद ने कहा कि कांग्रेस कहने भर के लिए विपक्ष नहीं है.
सांसद ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे लगता है कि पार्टी ने किसी भी चीज पर विश्वास करना बंद कर दिया है. हमारे प्रवक्ता भी इन दिनों पूरी दुनिया की प्रतिक्रिया के बाद ही सरकार के खिलाफ बोलने का साहस जुटा पा रहे हैं और इसके लिए केवल पार्टी ही दोषी है.’
उदासीनता का इतिहास
अतीत में कांग्रेस पार्टी ने कई हाई-प्रोफाइल समन देखे हैं और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों और विभिन्न राज्यों में भाजपा सरकारों द्वारा इनके नेताओं की गिरफ्तारी भी हुई है.
हाल ही में कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे, कार्ति चिदंबरम का नाम सीबीआई द्वारा कथित रूप से चीनी नागरिकों के लिए भारतीय कार्य वीजा की सुविधा के लिए कथित रिश्वत और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में एक प्राथमिकी में नाम दर्ज किया गया था. बाप-बेटे की जोड़ी पर सीबीआई ने छापा मारा और उसके बाद ईडी ने कार्ति को तलब किया.
हालांकि वरिष्ठ नेता चिदंबरम के समर्थन में किए गए ट्वीट्स के अलावा पार्टी ने बड़े पैमाने पर कुछ नहीं किया. हां,,आईवाईसी द्वारा अलग-अलग जगह पर कुछ विरोध के सुर जरूर निकल कर आए थे.
इससे पहले 2019 में, दोनों चिदंबरम को INX-मीडिया मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.
उस समय पी. चिदंबरम ने 106 दिन जेल में बिताए थे जबकि कार्ति 22 दिन तक गिरफ्तार रहे थे. तब पार्टी ने ऐसा कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं किया था.
उसी साल, अब कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया था.
2020 में कोविड लॉकडाउन के दौरान, तत्कालीन उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय कुमार लल्लू को भी बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और एक महीने तक जेल में रखा. उनकी गिरफ्तारी लॉकडाउन के समय घर लौटने के लिए यूपी के 1,000 मूल निवासियों के लिए बसों की व्यवस्था करने के मुद्दे पर राज्य सरकार के साथ टकराव को लेकर हुई थी.
इनमें से किसी भी मामले में गांधी विरोध में नहीं बैठे और न ही राष्ट्रव्यापी विरोध का आयोजन किया गया. गिरफ्तारी के मामलों के अलावा, चिदंबरम, शिवकुमार और पार्टी के कई अन्य लोग समन के लिए पेश होते रहे हैं.
सूत्रों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर मामलों में गांधी परिवार के पारंपरिक ट्वीट भी गायब रहे.
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