scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमशासनक्यों बार-बार सड़क पर उतर रहे हैं किसान

क्यों बार-बार सड़क पर उतर रहे हैं किसान

Text Size:

वह कौन सी मांगें हैं जिन्हें लेकर करीब एक लाख किसानों ने हरिद्वार से लेकर दिल्ली तक मार्च किया?

नई दिल्ली: ‘हमारी मांग है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पूरी तरह से लागू की जाए. तेल का दाम घटाया जाए और हमारी फसलों का उचित मूल्य दिया जाए. अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानेगी तो हम आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे.’ यह शब्द थे भारतीय किसान यूनियन की किसान क्रांति यात्रा में शामिल हाथरस के वीरेंद्र सिंह के. उनकी तरह तमाम किसान कार्यकर्ता और किसान नेता लंबे समय से यह मांग करते आ रहे हैं. उनकी प्रमुख मांगें हैं— स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करना, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना और कृषि कर्ज़ माफी.

दो अक्टूबर को हरिद्वार से चली किसान क्रांति यात्रा दिल्ली की सीमा पर पहुंची तो उसे रोक दिया गया. यात्रा में शामिल किसानों और पुलिस बल के बीच झड़प भी हुई और दिन भर तनावपूर्ण स्थिति के बीच एनएच—24 जाम रहा. हालांकि, सरकार ने किसानों की कुछ मांगें मानने का आश्वासन दिया और दिल्ली के किसान घाट पहुंचकर यह यात्रा समाप्त हो गई.

इस यात्रा को आयोजित करने वाले संगठन भारतीय किसान यूनियन के मुखिया नरेश टिकैत समेत सभी किसान संगठनों के नेता इस मांग को बार बार दोहरा रहे हैं कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया जाए.

पहली बार नहीं है किसान आंदोलन

इन्हीं मांगों को लेकर मार्च, 2018 में मुंबई में महाराष्ट्र के 30 हज़ार किसानों ने एकत्र होकर प्रदर्शन किया था. इसके पहले नवंबर, 2017 में देश भर 184 किसान संगठनों ने जंतर मंतर पर किसान संसद लगाई थी, जिसमें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के अलावा कृषि कर्ज माफ करने, फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने, फसलों के उचित मूल्य देने, सिंचाई की उचित व्यवस्था करने और फसलों की खरीद की व्यवस्था बनाने को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया था.

किसान संगठनों के अनुसार, डीज़ल, पेट्रोल, कीटनाशक, उर्वरक, पानी, बिजली आदि की लागतों में निरंतर वृद्धि को नहीं रोकना और सरकारी सब्सिडी में कटौती किया जाना कृषि की लागत और आय में बढ़ते असंतुलन का मुख्य कारण है.

प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी जब लोकसभा का चुनाव प्रचार कर रहे थे तो अपनी रैलियों में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बात कहते थे. भाजपा के घोषणा पत्र में भी यह वादा किया गया कि सत्ता में आने के बाद भाजपा इस रिपोर्ट को लागू करेगी. इसके पहले मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी यह मांग बार बार दोहराई जाती रही है.

क्या है स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट

18 नवंबर, 2004 को केंद्र सरकार ने एक राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था. इसका अध्यक्ष हरित क्रांति के जानेमाने चेहरे एमएस स्वामीनाथन को बनाया गया, जिनके नाम पर इसे स्वामीनाथन आयोग कहा जाता है.

किसानों को रोकने के लिए दिल्ली बॉर्डर सील किया गया | दिप्रिंट.इन

इस आयोग ने कृषि संकट से निपटने के लिए दिसंबर, 2004 से लेकर अक्टूबर, 2006 के बीच सरकार को पांच रिपोर्ट सौंपी. इन रिपोर्ट में मुख्य सिफारिश थी कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए ताकि किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिले. इसके अलावा योजना आयोग की पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को प्रमुखता दी जाए और ‘समावेशी विकास’ पर ज़ोर दिया जाए.

इन सिफारिशों में खाद्य सुरक्षा पर ज़ोर देना, कृषि क्षेत्र में स्थायित्व को बढ़ावा देना, कृषि उत्पादनों का उचित मूल्य दिया जाना और कृषि उत्पादनों की बिक्री के लिए कई अहम बातें कही गई हैं. खाद्य सुरक्षा के तहत पारदर्शी वितरण प्रणाली बनाने, स्वयं सहायता समूह बनाने, पंचायतों को मज़बूत करने और सिंचाई के लिए जल बैंक बनाने की बात आयोग ने प्रमुखता से कही थी.

आयोग का मानना है कि छोटे और सीमांत किसानों के लिए खेती में असुरक्षा बढ़ रही है. कृषि में कम लागत और उत्पादों के उचित मूल्य मिलने से यह असुरक्षा खत्म हो सकती है.

आयोग ने भूमि, जल, जैव संसाधन, क्रेडिट और इंश्योरेंस, तकनीकी प्रबंधन, बाज़ार, सूचना संबंधी अहम सिफारिशें कीं. आयोग ने अपने अध्ययन में पाया कि छोटे व सीमांत किसान और कृषि मज़दूर, जिनकी संख्या सर्वाधिक है, भीषण संकट का सामना कर रहे हैं. यह संकट कई बार उन्हें आत्महत्या तक करने पर मजबूर करता है.

किसान आत्महत्या रोकने के उपाय हों

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 1995 से लेकर 2015 तक तीन लाख से अधिक किसानों ने अलग अलग समस्याओं के चलते आत्महत्या कर ली. कर्ज़, फसलों का खराब होना, तंगहाली और गुरबत इन आत्महत्याओं की प्रमुख वजह है.

लगातार बढ़ती किसान आत्महत्या पर चिंता जताते हुए आयोग ने इसे तुरंत रोकने के कार्यक्रम लागू करने की बात कही थी. कृषि कर्ज़ को माफ करना, कृषि मज़दूरों के लिए अनाज वितरण सुनिश्चित करना, फसल बीमा योजना लागू करना, न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने जैसे उपाय किसान आत्महत्याओं को रोक सकते हैं.

इसके अलावा आयोग ने किसानों के लिए कर्ज की उपलब्धता को आसान बनाने, ब्याज दर न्यूनतम रखने, जबरन कर्ज़ वसूली पर रोक लगाने की विशेष जरूरत पर जोर दिया है.

रोज़गार और भूमि सुधार

आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा था कि कृषि पर आधारित जीविका वाले लोगों की संख्या तेज़ी से घट रही है. 1961 में कृषि से जुड़े रोज़गार में 75 फीसदी लोग थे, जबकि 2000 तक यह संख्या घटकर 59 फीसदी हो गई क्योंकि खेती रोज़गार के लिए बेहद असुरक्षित है. कृषि क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाए जिससे इस क्षेत्र की असुरक्षा खत्म होगी और किसान खेती छोड़ने की जगह इससे जुड़ना चाहेंगे. इससे बेरोजगारी पर भी लगाम लगेगी.

स्वामीनाथन आयोग ने भूमि सुधार को लेकर भी चिंता जताते हुए कहा था कि करीब 50 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ तीन फीसदी है, जबकि कुछ लोगों के पास उनकी ज़रूरतों से ज़्यादा ज़मीन है. भूमि सुधार को लागू करके यह अंतर कम करके कृषि क्षेत्र की विसंगतियों को भी कम किया जा सकता है.

किसानों का जमावड़ा| दिप्रिंट.इन

जंगलों और आदिवासियों के लिए विशेष नियम बनाने, बेकार पड़ी ज़मीनों को सदउपयोग करने और खेती के लिए मुफीद ज़मीनों के गैर कृषि इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात भी आयोग ने कही है.

सिंचाई और सहकारिता

विदर्भ और बुंदेलखंड जैसे देश के कई हिस्सों में सूखा प्रमुख समस्या है. किसानों के लिए पानी और सिंचाई की व्यवस्था को लेकर आयोग ने अहम सिफारिशें की थीं. सभी क्षेत्रों में सभी के लिए पानी की उपलब्धता, पुराने जल स्रोतों का संरक्षण, नये जल स्रोतों का निर्माण, बारिश के पानी का संचयन, समुचित सप्लाई आदि प्रमुख सुझाव हैं.

स्वामीनाथन का मानना है कि कृषि में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है. इसके लिए कृषि पर आधारित लोगों की भूमिका बढ़ानी होगी. सिंचाई, भूमि सुधार, वितरण, जल संरक्षण, परिवहन सुविधाओं में ज्यादा से ज्यादा ‘जन सहभागिता’ सुनिश्चित की जानी चाहिए.

हालांकि, यह रिपोर्ट अभी तक लागू नहीं हुई है. जून, 2017 में मंदसौर में किसानों के आंदोलन में पुलिस गोलीबारी में छह किसान मारे गए थे. उसके बाद देश भर में किसानों के आंदोलन तेज़ हुए. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के किसान लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं.

सरकारें कहती हैं कि हमने किसानों की आय को दोगुना करने के उपाय कर दिए हैं लेकिन किसानों का कहना है कि सरकार लगातार किसानों को नज़रअंदाज़ कर रही है और वादाखिलाफी कर रही है.

यह भी पढ़ें :किसान आंदोलनकारी नाराज़, नहीं देंगे मोदी को वोट

share & View comments