scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेश'जिंदगी में टूटना बहुत जरूरी': फिल्म अभिनेता रघुबीर यादव ने कहा- अलग-अलग काम करने की फितरत रही है

‘जिंदगी में टूटना बहुत जरूरी’: फिल्म अभिनेता रघुबीर यादव ने कहा- अलग-अलग काम करने की फितरत रही है

रघुबीर यादव ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दी हैं और उन्होंने थियेटर से लेकर 70 एमएम तक हर माध्यम में अपना जौहर दिखाया है. वो रघुबीर ही हैं जिनकी आठ फिल्में ऑस्कर के लिए नॉमिनेट की जा चुकी हैं.

Text Size:

नई दिल्ली:मेहनत ही सफलता की एक मात्र सीढ़ी है… जो आसानी से हाथ नहीं आती ‘. इन बातों के साथ वैसे तो अभिनेता रघुबीर यादव ने अपनी बात खत्म की थी लेकिन खुद उनकी जिंदगी की कहानी इसी कड़ी मेहनत से शुरू होती है.

वेब सीरीज पंचायत के प्रधान-पति के रोल की तारीफें अभी कम भी नहीं हुई थी कि ‘मैं घोड़े को जलेबी खिलाने ले जा रिया हूं ‘ फिल्म में हलवाई के तौर पर वे फिर से छा जाने को तैयार हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए अभिनेता रघुबीर यादव कहते हैं, ‘मेरी फितरत रही है कि मैं अलग-अलग काम करूं. एक बार जो काम कर लिया है वैसा किरदार दुबारा न करूं ताकि मुझे मेहनत करने का मौका मिले, मुझे होमवर्क करने का मौका मिले..’

‘काम का मजा तो तभी है जब आप जम कर काम करते हैं.’

वे कहते हैं, ‘मैं बचपन से ही आराम तलबी नहीं था. जब मुझे एक तरह का काम मिलता है तो मैं मना भी कर देता हूं कि मैं ये काम कर चुका हूं कुछ दूसरा काम लाइए.’

‘काम तो वो है जिसमें आपकी रातों की नींद खराब हो जाए. इसलिए मेरी कोशिश होती है कि मैं अलग हटकर काम करता रहूं.’


यह भी पढ़ें: धुनों पर गीत लिखने वाले गीतकार योगेश जिनके गाने जीवन के उतार-चढ़ाव से टकराते हैं


‘बस काम करता रहना चाहता हूं..’

हल्के रंग की कमीज, लंबे बाल लिए अपनी नई फिल्म ‘घोड़े को जलेबी खिलाने ले जा रिया हूं ‘ के प्रमोशन के लिए दिल्ली आए रघुबीर यादव आज भी चकाचौंध की दुनिया से काफी दूर नजर आते हैं. उनके दिल के एक कोने में आज भी जबलपुर का गांव और वो बचपन जिंदा है.

वो कहते हैं, ‘मैं तो गांव में ही पला-बढ़ा हूं, गांव के लोग सहज सरल होते हैं…वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. अब गांव जाने का मौका तो नहीं मिल पाता है लेकिन गांव से जुड़ी फिल्मों में ही गांव को जी लेता हूं.’

रघुबीर यादव ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दी हैं और उन्होंने थियेटर से लेकर 70 एमएम तक हर माध्यम में अपना जौहर दिखाया है. वो रघुबीर ही हैं जिनकी आठ फिल्में ऑस्कर के लिए नॉमिनेट की जा चुकी हैं.

मुंगेरी लाल के हसीन सपने वाला मुंगेरी हो या फिर बच्चों के दिलों पर छा जाने वाले चाचा चौधरी का किरदार, लगान का भूरा हो या फिर हाल ही में रिलीज हुई वेब सीरीज पंचायत के प्रधान-पति.. हर किरदार में जान डाल देने वाले रघुबीर कहते हैं, ‘मैं कभी भी एक तरह का काम नहीं करना चाहता, मैं बस काम करता रहना चाहता हूं.’

‘अगर आप अपने चारों तरफ देखें तो इतना काम है कि कई जन्म लेने पड़ेंगे लेकिन तब भी मैं इतना काम नहीं कर पाऊंगा…’


यह भी पढ़ें: ‘हिंदी की सुबह हुई’: गीतांजलि श्री के ‘रेत समाधि’ को बुकर प्राइज़ मिलना क्यों है बड़ी घटना


 

गांव, संगीत और घर से भागना

बचपन के यादगार किस्से और थिएटर के दिनों को याद करते हुए रघुबीर यादव बताते हैं, ‘उन्हें परिवार वालों ने साइंस स्ट्रीम दिलाई थी..रिजल्ट आने वाला था मुझे लगा कि मैं पास नहीं कर पाउंगा तो मेरी शादी करा दी जाएगी तो मैं इस डर से घर से भाग गया.’

उन्होंने कहा, ‘मैं मजे के लिए कहता हूं कि मैं घर से भाग गया था. क्योंकि मैं जानता था कि घरवाले 8वीं-9वीं के बाद मुझसे नौकरी करवाएंगे या फिर बिजनेस करवाएंगे…फिर शादी फिर बच्चे…यही चलता चला जाएगा…मुझे तो बचपन से ही गाने का शौक था तो मैं निकल गया घर से. भोपाल पहुंचा तब मेरी सही मामले में लोगों से सामना हुआ.’

यादव को बचपन से ही गीत-संगीत से लगाव था इसलिए वो रामलीला और स्टेज शो करते थे. वो कहते हैं, ‘बचपन में मुझे संगीत ने बड़ा ही इंस्पायर किया..एक पापड़ वाला आता था और बड़े लय में वो पापड़ बेचता था…मूंग के पापड़ लो उड़द के पापड़ लो.….वहीं से संगीत की तरफ खिंचता चला गया.’

हालांकि आप कितने भी अच्छे कलाकार हों, इंसान हों उतार चढ़ाव हर किसी की जिंदगी में आता है. रघुबीर जिंदगी के इस पल को याद करते हुए कहते हैं, ‘उतार-चढ़ाव जिंदगी में आते रहते हैं.’

वह कहते हैं, ‘हो सकता है जिसे आप जिंदगी का उतार समझ रहे हों वो चढ़ाव हो और आप कुछ सीख रहे हों. और परेशानी के बिना जिंदगी कैसी.’

अभिनेता ने बातचीत में बहुत मजे से बताया कि जब तक जिंदगी में परेशानियां आएंगी नहीं आप कुछ सीखेंगे नहीं. उन्होंने कहा, ‘परेशानियों को आने दीजिए..जिंदगी में टूटना बहुत जरूरी है. मैं तो टूटने को ही संभलना समझता हूं क्योंकि टूटने से आपको काफी सीख मिल जाती है.’


यह भी पढ़ें: ‘हुमच के, बनराकस, छेक के, रंगबाजी’: पंचायत का फुलेरा बिल्कुल बदल चुका है


 

share & View comments