नयी दिल्ली, आठ जून (भाषा) अमेरिका में जारी एक चिकित्सकीय परीक्षण को विशेषज्ञों ने आशावादी करार दिया है क्योंकि छह महीने तक एंटीबॉडी दवा लेने के बाद रेक्टल कैंसर के 12 रोगियों के एक समूह में ट्यूमर के कोई लक्षण नहीं दिखे।
‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में हाल में प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है कि परीक्षण का हिस्सा बने रोगियों के ट्यूमर पूरी तरह से गायब होने के अलावा प्रतिभागियों में से किसी ने भी कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं बताया। मरीजों की कई मेडिकल जांच हुई, शारीरिक, एंडोस्कोपी, बायोस्कोपी, पीईटी स्कैन और एमआरआई स्कैन लेकिन किसी भी रिपोर्ट में ट्यूमर नहीं दिखा।
अध्ययन के लेखकों ने कहा, ‘‘मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग पर ट्यूमर का कोई सबूत नहीं होने के साथ सभी 12 रोगियों की नैदानिक पूर्ण प्रतिक्रिया हुई।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रतिक्रिया की अवधि का आकलन करने के लिए लंबे समय तक नजर बनाए रखने की आवश्यकता है।’’
शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि क्या मानक कीमोरेडियोथेरेपी और मानक सर्जरी के बाद डोस्टारलिमैब (एंटीबॉडी दवा) ट्यूमर के लिए एक प्रभावी उपचार है।
‘मिसमैच रिपेयर’ (एमएमआर) की कमी वाली कोशिकाओं में आमतौर पर कई डीएनए म्यूटेशन होते हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं। न्यूयॉर्क में मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में अलग अलग वर्ग में प्रतिभागियों को ‘रिपेयर डेफिसिएंट’ चरण दो या तीन के ‘रेक्टल एडेनोकार्सिनोमा’ के साथ किए गए परीक्षण में छह महीने तक हर तीन सप्ताह में दवा दी गई थी।
एडेनोकार्सिनोमा एक प्रकार का कैंसर है जो हमारे अंगों को किसी नली या प्रणाली से जोड़ने वाली ग्रंथियों में पनपता है। प्रारंभिक योजना के अनुसार, मानक कीमोथेरेपी और सर्जरी के बाद उपचार किया जाना था और जिन रोगियों की नैदानिक पूर्ण प्रतिक्रिया थी, वे मानक कीमोथेरेपी और सर्जरी के बिना आगे बढ़े।
कम से कम छह महीने तक मरीजों पर नजर रखने के बाद सभी 12 रोगियों ने ‘‘नैदानिक पूर्ण प्रतिक्रिया’’ दिखाई, जिसमें ट्यूमर के कोई लक्षण नहीं थे।
हैदराबाद के यशोदा अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट, मेडिकल ओंकोलॉजिस्ट और हीमेटो-ओंकोलॉजिस्ट डॉ निखिल एस घडियालपाटिल ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ये परिणाम आशा का किरण हैं, हालांकि यह परीक्षण के साथ-साथ उन रोगियों के लिए शुरुआती दिन हैं जो इस उपचार को शुरू करना चाहते हैं। यह दृष्टिकोण वर्तमान उपचारात्मक बहुविध उपचार दृष्टिकोण का स्थान नहीं ले सकता है।’’
उन्होंने कहा कि उपचार निश्चित रूप से रेक्टल कैंसर के रोगियों में एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण की प्रारंभिक झलक दिखाता है और इस अध्ययन के लेखकों को इस प्रयास के लिए बधाई दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में अब तक इस तरह का कोई परीक्षण नहीं हुआ है।
घडियालपाटिल ने कहा कि पेम्ब्रोलिजुमैब भारत में उपलब्ध है लेकिन वर्तमान अध्ययन में इस्तेमाल किया जाने वाला डोस्टारलिमैब मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में डोस्टारलिमैब की कीमत ज्ञात नहीं है, लेकिन प्रति खुराक कुछ लाख रुपये होने की उम्मीद है।’’
परीक्षण पर टिप्पणी करते हुए उत्तरी कैरोलिना कैंसर अस्पताल में डॉ. हन्ना के. सैनॉफ ने कहा कि परिणाम आशावादी हैं लेकिन अध्ययन में उपयोग की जाने वाली उपचार प्रक्रिया वर्तमान उपचारात्मक उपचार दृष्टिकोण का स्थान नहीं ले सकती है।
भाषा सुरभि अविनाश
अविनाश
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