नई दिल्ली: फेसबुक (अब मेटा) की एक पूर्व कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी ने कौशांबी (उत्तर प्रदेश) के भाजपा सांसद विनोद सोनकर से सीधे तौर पर जुड़े फर्जी खातों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि पंजाब कांग्रेस के तीन नेताओं – सुंदर शाम अरोड़ा, अरुण डोगरा, और बलविंदर सिंह लड्डी (जो तब से भाजपा में शामिल हो गए हैं) से जुड़े खातों पर तुरंत कार्रवाई करते हुए इन्हे निष्क्रिय कर दिया गया था.
फेसबुक की पूर्व डेटा साइंटिस्ट सोफी झांग ने अपने दावों को सही बताते हुए उनपर की गई कार्रवाई के स्क्रीनशॉट को सार्वजनिक किया है. झांग ने सबूत पेश करते हुए कहा कि उन्होंने लोकसभा में एक संसदीय समिति के सामने पेश होने को लिए छह महीने तक इंतजार किया. लेकिन अध्यक्ष की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
झांग ने पिछले अगस्त में दिप्रिंट को बताया था कि उन्हें दिसंबर 2019 में भारतीय राजनेताओं से जुड़े चार (हालांकि अब वह कहती है कि पांच थे) फर्जी नेटवर्कों के बारे में पता चला था. झांग ने कहा था कि अप्रमाणिक खातों के ये नेटवर्क फेसबुक दिशानिर्देशों के उल्लंघन में विशिष्ट राजनेताओं का समर्थन करने के लिए राजनीतिक संदेशों को बढ़ावा दे रहे थे.
झांग ने दावा किया था कि एक महीने के भीतर तीन फर्जी नेटवर्क हटा दिए गए, लेकिन एक नेटवर्क जो भाजपा सांसद से जुड़ा हुआ था तब भी सक्रिय था, जब उसे सितंबर 2020 में फेसबुक पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था. उस समय झांग ने किसी राजनेता का नाम नहीं लिया था.
हालांकि अब झांग ने दावा किया है कि भाजपा सांसद विनोद सोनकर के ‘फर्जी खाते सीधे व्यक्तिगत खाते से जुड़े थे’. उन्होंने कहा, ‘ यह बताता है कि सांसद के खाते तक व्यक्तिगत पहुंच वाला कोई व्यक्ति इन फर्जी खातों को चला रहा था … स्वयं सांसद, एक कर्मचारी, एक परिवार का सदस्य या फिर कोई और.’
झांग ने कहा कि हालांकि फेसबुक ने पेज एडमिन के जरिए पंजाब के तीन नेताओं से जुड़े खातों के एक अन्य समूह के खिलाफ कार्रवाई की थी. उन्होंने यह कहते हुए उनके नाम का चयन किया था कि उन्हें कुछ स्तर की जिम्मेदारी रखनी चाहिए.
लेकिन इन तीनों के अलावा नेटवर्क से कथित रूप से लाभान्वित होने वाले एक राजनेता का नाम यह कहते हुए जाहिर नहीं किया गया कि इसके कोई सबूत नहीं है कि वह इससे सीधे जुड़े हुए थे या इसके लिए जिम्मेदार थे.
झांग के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर चार नामित राजनेताओं में से प्रत्येक के करीबी सहयोगियों ने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने सोशल मीडिया पर फर्जी खातों का इस्तेमाल किया है.
एक बयान में मेटा के प्रवक्ता ने कहा कि ‘सोफी झांग जिस तरह हमारी प्रायोरिटी और अपने प्लेटफार्म के गलत इस्तेमाल को जड़ से खत्म करने की कोशिश पर बात कर रही हैं, उससे हम सहमत नहीं हैं.’
मेटा से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि कंपनी को कोई ‘निर्णायक सबूत’ नहीं मिला है कि सोनकर ‘नेटवर्क में शामिल’ थे.
हालांकि झांग ने दिप्रिंट के साथ अपने इस दावे के समर्थन में दस्तावेज साझा किए कि मेटा ने बीजेपी सांसद के साथ जुड़े अकाउंट से दूसरों से अलग व्यवहार किया था.
झांग ने कहा कि उन्होंने इस जानकारी को सार्वजनिक करने का फैसला इसलिए लिया क्योंकि वह समझ गई थी कि उसे सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति के समक्ष औपचारिक रूप से गवाही देने का मौका नहीं मिलने वाला है.
जब झांग को फेसबुक से निकाल दिया गया था, तो उसने एक लंबा-चौड़ा मेमो लिखा था जिसमें कहा गया था कि उन्हें ऐसा लगा मानो ‘वह इसके लिए जिम्मेदार है’ क्योंकि उन्होंने ही राजनीतिक हेरफेर के लिए इस्तेमाल किए गए फर्जी खातों के खिलाफ कार्रवाई न करने का खुलासा किया था.
अक्टूबर 2021 में उसने ब्रिटिश संसद के समक्ष इस मुद्दे पर गवाही दी और घोषणा की कि वह भारत सहित ‘किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की संसद के समक्ष गवाही देने के लिए तैयार है.’
अगले महीने सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने संकेत दिया कि झांग की गवाही लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सहमति देने के बाद हो सकती है.
थरूर ने ट्वीट किया था, ‘ किसी विदेश से गवाह से व्यक्तिगत रूप से गवाही लेने के लिए (झांग एक अमेरिकी नागरिक है) स्पीकर की सहमति की जरूरत होती है. इसकी मांग की जा रही है.’
This has just happened & with its agenda official, the Committee will hold its first meetings of the new session on Nov16&17. Under our procedures videoconferencing is not permitted. Testimony in person by witnesses from abroad requires the Speaker’s consent. This is being sought
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) November 1, 2021
झांग के अनुसार, उसने नवंबर 2021 में संसदीय पैनल को अपने सबूत सौंपे, लेकिन उसे गवाही देने के लिए कभी नहीं बुलाया गया.
इस साल 16 मई को, उन्होंने ट्वीट किया: ‘मुझे अभी भी माननीय अध्यक्ष की तरफ से कुछ सुनने के लिए नहीं मिला है. और मुझे अब लगता भी नहीं कि इस बारे में कभी कुछ हो पाएगा.’
It's been 13 months since I came forward as a whistleblower, and 6 months since the Lok Sabha asked for Speaker @ombirlakota to approve my testimony.
I still have not heard from the honorable speaker. I no longer believe that I will ever hear from him.https://t.co/uEeM38Gx1E
— Sophie Zhang(张学菲) (@szhang_ds) May 16, 2022
जब दिप्रिंट ने देरी के कारणों की जांच की, तो उसे होल्ड-अप और संसदीय समिति के नियमों के बारे में विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं मिलीं.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) राजीव दत्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘संसद समितियां संसद के नियमों और प्रक्रियाओं के तहत काम करती हैं. फिलहाल अध्यक्ष कार्यालय से कोई अप्रूवल पेंडिंग नहीं है.’
हालांकि लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी. आचार्य ने कहा कि ‘किसी विदेशी को गवाही के लिए बुलाने के संबंध में कोई विशिष्ट नियम या प्रक्रिया नहीं है.’
उनके मुताबिक, देरी की वजह समिति के अंदर का कोई ‘विवाद’ हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘अगर किसी विशेष विदेशी नागरिक को अभी तक गवाही देने का निमंत्रण नहीं मिला है, तो गवाह की पसंद को लेकर कमेटी के भीतर कुछ विवाद होगा’
आचार्य ने कहा कि एक बयान को सुविधाजनक बनाने का दायित्व मुख्य रूप से समिति के पास है. ‘जब कोई सवाल उठता है कि क्या किसी व्यक्ति, राष्ट्रीय या विदेशी का साक्ष्य समिति के उद्देश्य के लिए प्रासंगिक है, तो इसे अध्यक्ष के पास भेजा जाता है. उनका निर्णय अंतिम होता है. प्रासंगिकता ही एकमात्र बिंदु है जिसकी अध्यक्ष जांच करता है. फैसले के बारे में अध्यक्ष को याद दिलाना और उनका पालन करना कमेटी का कर्तव्य है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या पैनल के भीतर कोई असहमति थी, आईटी संसदीय समिति के एक सदस्य ने दिप्रिंट को बताया कि ‘कोई विवाद नहीं था.’
सदस्य ने कहा, ‘कमेटी ने सर्वसम्मति से नवंबर में सोफी झांग को आमंत्रित करने का फैसला किया था’ उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन लोकसभा सचिवालय ने जोर देकर कहा कि यह अध्यक्ष की मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता. ऐसा शायद एक विदेशी गवाह को लाने में शामिल खर्चों के कारण था.’
सदस्य ने कहा कि कमेटी के सचिव ने कई बार अध्यक्ष के कार्यालय को लिखा है. लेकिन ‘अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.’
इस सदस्य के अनुसार, घरेलू या विदेशी सभी गवाहों के लिए स्पीकर की मंजूरी मांगी जाती है. उन्होंने कहा, ‘हर बार जब भी हमने किसी गवाह को गवाही देने के लिए बुलाने की बात कही है, तो इस संदर्भ में समिति सचिव को स्पीकर की मंजूरी मिली है.’
सदस्य ने बताया कि पैनल ने झांग के लिखित दस्तावेजों को पढ़ लिया है और उस पर विचार किया गया है. जब एक गवाह औपचारिक रूप से समिति के सामने पेश होता है तो सांसद केवल सवाल कर सकते हैं और ‘सहज प्रतिक्रिया’ ले सकते हैं.
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झांग ने सबूत साझा किए
झांग को जनवरी 2018 में फेसबुक में एक डेटा वैज्ञानिक के रूप में ‘फर्जी तरीके से लाइक, कमेंट, शेयर और प्रतिक्रिया करने वाले अप्रमाणिक खातों की पहचान कर उन पर रोक लगाने निकालने के लिए एक टीम के साथ काम कर रही थी.
कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें दिसंबर 2019 में भारत में सैंकड़ों अकाउंट्स वाले कई नेटवर्क के बारे में पता चला था. इनका इस्तेमाल गलत तरीके से पॉलिटिकल मैसेज सर्कुलेट करने के लिए किया जा रहा था. जब उन्होंने इसके बाबत फेस बुक के जानकारी दी तो इन फर्जी अकाउंट्स पर कार्रवाई के लिए हरी झंडी मिल गई.
उन्होंने जिन सबूतों को संसदीय समिति के साथ साझा किया था, उन्हें अब वह मीडिया के सामने लेकर आई हैं. इन सबूतों में से कुछ फेसबुक कर्मचारियों के लिए आंतरिक कार्य प्रबंधन प्रणाली से एनोटेट किए गए स्क्रीनशॉट है.
झांग ने कहा, यह दर्शाता है कि कंपनी ने सभी मामलों को एक ही तरीके से निपटारा नहीं किया है.
नीचे दिया गया स्क्रीनशॉट दिखाता है कि 2 दिसंबर 2019 को तीन फर्जी अकाउंट नेटवर्क पर कार्रवाई करने के लिए एक ‘टास्क’ बनाया गया था. फिर 10 दिसंबर 2019 को झांग ने इंटरनल सिस्टम पर भाजपा सांसद विनोद सोनकर से जुड़े चौथे फर्जी अकाउंट नेटवर्क का पता चलने का संदेश भेजा.
झांग ने मैसेजिंग सिस्टम पर लिखा, ‘हमने लोकसभा सांसद विनोद सोनकर (भाजपा-कौशाम्बी), उत्तर प्रदेश के निर्वाचन क्षेत्र में इस तरह अप्रमाणिक समन्वित गतिविधि को भी देखना शुरू कर दिया है. सांसद से जुड़े फर्जी खातों से पता चलता है कि सोनकर पर कार्रवाई सकारात्मक प्रतिक्रिया देने और उनके पोस्ट को फिर से साझा करने की वजह से बनी है…’
अगला स्क्रीनशॉट यह दिखाने का प्रयास करता है कि 19 दिसंबर तक कंपनी ने फर्जी खातों वाले पहले के तीन नेटवर्क को फेसबुक से हटा दिया था. यहां एक फेसबुक कर्मचारी संदिग्ध खातों को ‘यूएफएसी’ नामक प्रणाली में नामांकित करने की बात करता है.
यह संक्षिप्त नाम ‘यूनिफाइड फेक अकाउंट चेकपॉइंट’ के लिए है. यह फेसबुक द्वारा की गई एक प्रवर्तन कार्रवाई है जहां यूजर को अपने खाते को बनाए रखने के लिए पहचान प्रमाण मुहैया करना होता है. जब तक यह सबूत नहीं दिया जाता, तब तक खाता लॉक कर दिया जाता है. और अगर निर्धारित समय में चेकपॉइंट पास नहीं होता है, तो खाता स्थायी रूप से निष्क्रिय कर हटा दिया जाता है.
बाद के संदेशों से पता चलता है कि 19 दिसंबर 2019 और 3 फरवरी 2020 के बीच, झांग ने सोनकर से जुड़े फर्जी खातों पर कार्रवाई के लिए पांच अनुरोध किए.
नीचे दिया गया स्क्रीनशॉट झांग के सोनकर नेटवर्क को हटाने के पहले अनुरोध पर एक अन्य कर्मचारी की प्रतिक्रिया दिखाता है.
इस कर्मचारी ने साफतौर पर लिखा, ‘इस बात की पुष्टि करना चाहता हूं कि हम इनके साथ काम करने में सहज हैं. इन यूजर्स में से एक (यानी विनोद सोनकर) के पास XCHECKs: BoB (बुक ऑफ बिजनेस) – गवर्नमेंट पार्टनर टेक्स्ट टैग… है.’ इस कर्मचारी ने बताया कि सोनकर ‘हाई प्रायोरिटी- इंडियन’ के रूप में भी टैग हैं.
मेटा ऑटोमेटिड एनफोर्समेंट से हाई-प्रोफाइल खातों को छूट देने के लिए XCheck, या क्रॉस-चेक नामक एक सिस्टम का इस्तेमाल करता है, जिसका संक्षेप में अर्थ है कि उन्हें कुछ नियमों को बायपास करने की अनुमति दी जा सकती है.
नीचे दिया गया स्क्रीनशॉट दिखाता है कि कैसे फेसबुक ने कांग्रेस समर्थक नेटवर्क के खिलाफ तेजी से कार्रवाई की. इसमें फेसबुक पर बनाए गए ऐसे एकाउंट शामिल थे जो बाद में 2020 के दिल्ली चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) का समर्थन करने लगे. इस नेटवर्क में फर्जी खातों के फिर से सामने आने के बाद (19 दिसंबर को पहली बार टेकडाउन नोट किए जाने के बाद), पता लगने के 16 दिन बाद 4 फरवरी 2020 को हटा दिया गया था.
नीचे दिए गए स्क्रीनशॉट से पता चलता है कि 7 फरवरी 2020 को झांग ने नोट किया कि झांग ने नोट किया कि फेसबुक पेज के एडमिन तीनों राजनेता – सुंदर शाम अरोड़ा, अरुण डोगरा और बलविंदर सिंह लड्डी के सीधे फर्जी खातों से जुड़े थे. झांग कहते हैं कि ‘एमपी सोनकर के मामले में भी ऐसा ही था.’
अगले स्क्रीनशॉट में झांग ने नोट किया कि आठ घंटे में एक प्रमुख इंडिया पॉलिसी एक्जयुकेटिव शिवनाथ ठुकराल ने इन तीन कांग्रेसी नेताओं से जुड़े खातों को निष्क्रिय करने की मंजूरी दे दी थी. लेकिन ‘विनोद सोनकर के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई’
ठुकराल के कार्यों पर झांग के दावों के बारे में पूछे जाने पर, मेटा के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह ‘पूरी तरह से गलत दावा’ है.
हालांकि झांग ने इन राजनेताओं को फर्जी खातों से जोड़ने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सटीक कार्यप्रणाली का खुलासा नहीं किया है. लेकिन झांग ने जिस आंतरिक पोस्ट का स्क्रीनशॉट साझा किया है वो फेसबुक द्वारा लॉग किए गए यूजर के ‘डिवाइस / नेटवर्क-स्तरीय सिग्नल’ को दिखाता है. और इसे अनधिकृत गतिविधि का पता लगाने के लिए उपयोगकर्ता खाते से लिंक किया जाता है.
समन्वित अप्रमाणिक गतिविधि का पता लगाने के लिए IP एड्रेस का भी इस्तेमाल करता है. इसके अलावा फर्जी अकाउंट में अकाउंट खोलने की तारीख, दोस्तों या फिर कोई जानकारी भी नहीं दी गई होती है और साथ ही प्रोफ़ाइल पिक्चर भी नहीं होती है.
अप्रमाणिकता के संकेतों में एक ही डिवाइस से कई अकाउंट को लॉग इन करना और बार-बार वही कार्य करना शामिल हैं. या फिर कह सकते हैं कि अगर एक ही डिवाइस से काफी सारे अकाउंट को लॉग इन किया जाता है और वह रोजाना सिर्फ एक ही समय यानी आमतौर पर सप्ताह के दिनों में काम करने वाले घंटों के दौरान सक्रिय होता है.
झांग ने कहा, यह अंतिम पैटर्न एक आईटी सेल के संचालन का संकेत हो सकता है, ‘क्योंकि उनके कर्मचारी स्वाभाविक रूप से अपने वर्किंग ऑवर में ही काम करना पसंद करते हैं.’
झांग ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि भारत में 2019 में जिन नेटवर्क के बारे में पता चला था वो कई दर्जन से लेकर कई सौ खातों तक था. कथित तौर पर भाजपा सांसद से जुड़े नेटवर्क में 54 अकाउंट थे.
उन्होंने आगे कहा कि सबसे बड़े नेटवर्क में 1,090 खाते थे और वो ‘असामान्य’ गतिविधि दिखा रह थे. झांग ने दावा किया था कि इन एकाउंट्स के जरिए पहली बार पंजाब में कांग्रेस का समर्थन किया था और फिर 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान इन्होंने आप पार्टी का समर्थन करना शुरू कर दिया.
उन्होंने आरोप लगाया था कि ये नेटवर्क भाजपा और पीएम मोदी का समर्थन करने का नाटक करके विश्वसनीयता हासिल करने के लिए एक असामान्य रणनीति का इस्तेमाल करते हैं. उदाहरण के लिए इनके कंटेंट कुछ इस तरह का होता है- ‘मैंने मोदी को वोट दिया था क्योंकि ये पूरे देश के लिए था.. लेकिन अब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का समर्थन करने का समय है’
झांग के अनुसार, इस तरह की गतिविधि एक ही मार्केटिंग फर्म को अनजाने में अलग-अलग पार्टियों द्वारा काम पर रखने का परिणाम भी हो सकती थी.
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सभी 4 नेताओं का कहना है कि उन्होंने ‘फर्जी खातों का इस्तेमाल नहीं किया’
जब दिप्रिंट ने आधिकारिक लोकसभा वेबसाइट पर अपने पेज पर विनोद सोनकर के लिए सूचीबद्ध नंबर पर कॉल किया, तो उत्तर देने वाले व्यक्ति ने कहा कि राजनेता का सिर्फ एक वेरिफाइड पेज है और वह किसी भी फर्जी अकाउंट का कोई इस्तेमाल नहीं करते हैं.
सुंदर शाम अरोड़ा के सहयोगी हरविंदर ने कहा कि झांग की जानकारी गलत थी और केवल एक पेज राजनेता से जुड़ा था. हरविंदर ने कहा कि वह पेज के एकमात्र एडमिन हैं.
डोगरा के एक सहयोगी अरुण डोगरा जिनका नंबर सत्यापित फेसबुक पेज पर सूचीबद्ध है, ने कहा कि वह कोई अन्य खाता नहीं चलाते हैं.
बलविंदर सिंह लड्डी के बेटे हैरी ने कहा कि वह अपने पिता के वेरिफाइड फेसबुक प्रोफाइल को देखते और वह कोई फर्जी अकाउंट नहीं चलाते हैं.
हम अपनी नीतियों को समान रूप से लागू करने का प्रयास करते हैं: मेटा
मेटा शुरू से ही झांग के आरोपों का खंडन करता आया है. दिप्रिंट के एक ईमेल के जवाब में एक प्रवक्ता ने कहा कि मेटा को ‘दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं. इसलिए विशिष्ट दावों पर बात नहीं कर सकते हैं. लेकिन हमने पहले कहा है कि सोफी झांग जिस तरह हमारी प्रायोरिटी और अपने प्लेटफार्म के गलत इस्तेमाल को जड़ से खत्म करने की कोशिशों पर बात कर रही हैं, हम उससे सहमत नहीं हैं. हम दुनिया भर में इस तरह के आरोपों से आक्रामक तरीके से निपटते हैं और स्पेशल टीम इस पर काम करती हैं.’
झांग के इस दावे पर कि भारत में तत्कालीन फेसबुक नीति प्रमुख शिवनाथ ठुकराल ने कांग्रेस के तीन नेताओं से जुड़े फर्जी खातों को हटाने के लिए घंटों के भीतर मंजूरी दे दी, लेकिन भाजपा सांसद के संबंध में तेजी से कार्रवाई नहीं की, मेटा प्रवक्ता ने कहा कि आरोप गलत था और कंपनी अपनी नीतियों को कैसे लागू करती है, इस बारे में उनकी ‘सीमित समझ’ को दर्शाती है.
प्रवक्ता ने कहा, ‘ कंटेंट के प्रसार को लेकर निर्णय भारत की सार्वजनिक नीति टीम के किसी एक सदस्य समेत, किसी एक व्यक्ति द्वारा एकतरफा नहीं किए जाते हैं. बल्कि इसके लिए कंपनी के भीतर विभिन्न टीमों से बातचीत और विचारों को शामिल किया जाता हैं. यह प्रक्रिया मजबूत जांच और संतुलन के साथ आती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नीतियों को लागू करते समय स्थानीय कानूनों को ध्यान में रखा जाए. हम किसी की राजनीतिक स्थिति या पार्टी संबद्धता की परवाह किए बिना अपनी नीतियों को समान रूप से लागू करने का प्रयास करते हैं’
एक्सचेक सिस्टम पर, जिसके तहत सोनकर का स्टेटस ‘हाई-प्रोफाइल भारतीय’ और ‘सरकारी भागीदार’ के तौर पर दिखता है, प्रवक्ता ने कहा कि ‘यह एक अतिरिक्त कदम के तौर पर अस्तित्व में है ताकि हम ऐसी सामग्री पर नीतियों को सटीक रूप से लागू कर सकें जिन पर अधिक समझ बनाने की जरूरत हो सकती है’ प्रवक्ता ने आगे कहा, ‘ सिस्टम के संचालन में सुधार करने के लिए प्रयास जारी थे’
मेटा से जुड़े एक सूत्र ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि कुछ मामलों में ‘संवेदनशील स्थितियों के लिए जांच की एक अतिरिक्त परत होती है’ लेकिन यह ‘न्याय की दो प्रणालियां बनाने’ के बजाय गलतियों से बचने के लिए है. सूत्र ने स्वीकार किया कि ये ‘सही नहीं है.’
सूत्र ने कहा, ‘हम ओवरसाइट बोर्ड से अपने क्रॉस-चेक सिस्टम की समीक्षा करने, इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है, इसके लिए सिफारिशें करने और सेकेंडरी रिव्यू के लिए प्राथमिकता वाले मानदंड निर्धारित करने के लिए गाइडेंस के लिए कहेंगे’
सोनकर के बारे में पूछे जाने पर सूत्र ने कहा, ‘हमें इस बात के निर्णायक सबूत नहीं मिले कि यह व्यक्ति नेटवर्क में शामिल था’
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