नई दिल्ली: रूसी और फ्रांसीसी एयर टू एयर मिसाइलों (एएएम) पर दशकों से भारतीय निर्भरता को खत्म करने के उद्देश्य से भारतीय रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान, 160 किलोमीटर की स्वदेशी अस्त्र एमके 2 मिसाइल के पहले परीक्षण के लिए तैयार है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
मंगलवार को रक्षा मंत्रालय ने अस्त्र एमके1 बियॉन्ड विजुअल रेंज (बीवीआर) एएएम और संबंधित उपकरणों के लिए 2971 करोड़ रुपए के सौदे पर हस्ताक्षर करने की घोषणा की. इन मिसाइलों को भारतीय वायु सेना और नौसेना को दिया जाना है. उपकरण की आपूर्ति के लिए रक्षा मंत्रालय ने भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) के साथ करार किया है.
अभी तक इस प्रकार की मिसाइल को स्वदेशी तरीके से तैयार करने के लिए तकनीक उपलब्ध नहीं थी. भारतीय सशस्त्र बल हमेशा रूसी (मुख्य रूप से आर 73 और आर 77) और फ्रांस की (मीका और उल्का) हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों पर निर्भर रहा है.
हालांकि रक्षा प्रतिष्ठान मिसाइलों की सही संख्या पर चुप्पी साधे हुए हैं. सूत्रों ने बताया कि यह संख्या 200 से ज्यादा है. इसे भारतीय वायुसेना के सुखोई एसयू-30 एमकेआई और भारतीय नौसेना के मिग -29 के साथ जोड़ा जाएगा.
योजना चरणबद्ध तरीके से मिसाइल को भारतीय वायुसेना के मिग-29 और हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ में एकीकृत करने की है.
अस्त्र एमके1 की रेंज लगभग 110 किलोमीटर है. सूत्रों ने कहा कि असली गेम-चेंजर अगली पीढ़ी का संस्करण होगा, जिसकी लंबी रेंज लगभग 160 किलोमीटर होगी.
अस्त्र एमके1 मिसाइल की लागत लगभग 7-8 करोड़ रुपये है और इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित किया गया है. इसकी अधिकतम गति मच (Mach) 4.5 (5,500 किमी प्रति घंटे से अधिक) है.
सूत्रों ने संकेत दिया कि एयर टू एयर मारक क्षमता में भारत को पाकिस्तान पर बढ़त दिलाने वाले अस्त्र एमके 2 के लिए परीक्षण जल्द ही या इस महीने के भीतर हो जाएगा. अस्त्र एमके 2 की रेंज बढ़ाने के लिए डीआरडीओ ने एक डुअल-पल्स रॉकेट मोटर विकसित की है.
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रेंज का विस्तार
दिप्रिंट ने दिसंबर 2020 में बताया था कि डीआरडीओ अस्त्र मिसाइल के लंबी दूरी के संस्करण पर काम कर रहा है और साल 2022 के बीच में इसका परीक्षण कर सकता है.
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत की थी लेकिन जब पाकिस्तान ने 2010 में लंबी दूरी की अमेरिकी AMRAAM को तैनात किया तो उसने अपने समकक्ष के प्रति बढ़त बना ली.
तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया ने 28 फरवरी 2020 को कहा था कि सैन्य बल एयर-टू-एयर मिसाइल क्षमता में मजबूत स्थिति हासिल करने की कोशिश कर रहा है जिसमें भारत मिसाइल को शामिल किए जाने की 15 साल तक लंबी प्रक्रिया के कारण पिछड़ गया था.
IAF प्रमुख यूरोपीय निर्मित उल्का मिसाइलों का जिक्र कर रहे थे जिनकी रेंज लगभग 150 किमी है. ये मिसाइल अब राफेल लड़ाकू विमानों पर सवार हैं.
लेकिन बाद में उन्हें अन्य लड़ाकू विमानों के साथ एकीकृत करने की योजना को टाल देना पड़ा क्योंकि इसकी लागत बहुत अधिक थी. प्रत्येक मिसाइल की कीमत लगभग 25 करोड़ रुपए थी.
मिसाइल के यूरोपीय निर्माता एमबीडीए ने इंडियन एयर फोर्स को बताया कि फ्रांसीसी निर्मित मिराज 2000 और रूसी सुखोई एसयू-30 एमकेआई इस मिसाइल के लिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि इन विमानों के राडार इसकी क्षमता के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे.
एमबीडीए ने कहा कि तेजस विमान के लिए मिसाइल को तभी एकीकृत किया जा सकता है जब विमान शुरू में इस्तेमाल की जाने वाली इजरायल के बजाय स्वदेशी एईएसए रडार से लैस हो.
इसके बाद, IAF ने उल्का मिसाइल को राफेल तक सीमित रखने का फैसला किया और अपनी मुख्य मारक क्षमता के लिए अस्त्र और इजरायली आई-डर्बी के बेहतर संस्करणों पर भरोसा किया.
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