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Friday, 15 November, 2024
होमदेशसीता और द्रौपदी पहली फ़ेमिनिस्ट थीं, JNU की VC शांतिश्री डी पंडित ने DU कार्यक्रम में कहा

सीता और द्रौपदी पहली फ़ेमिनिस्ट थीं, JNU की VC शांतिश्री डी पंडित ने DU कार्यक्रम में कहा

दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शांतिश्री डी. पंडित ने यह भी कहा कि इतिहास को अब 'महिलाओं' के नजरिए से लिखे जाने की जरूरत है.

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नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री डी पंडित ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में कहा, ‘द्रौपदी ने महाभारत में अपने पतियों से जो कहा, उसके लिए उनसे बड़ी नारीवादी कौन हो सकती है? या सीता जो पहली सिंगल मदर थी? द्रौपदी और सीता पहली फ़ेमिनिस्ट थीं, तब तक दुनिया इस अवधारणा को जानती भी नहीं थी.’

पंडित विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रही थी, जिसका शीर्षक था ‘स्वराज से न्यू इंडिया तक भारत के विचार का पुनर्रावलोकन’

वीसी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बारे में बात करते हुए कई मुद्दों पर भी बात की – भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के भूले हुए क्रांतिकारियों से लेकर महात्मा गांधी तक, चोल वंश से लेकर मुगलों तक. उन्होंने संगम साहित्य की पंक्तियों को भी उद्धृत किया.

पंडित ने कहा कि भारत केवल अपने संविधान से ही नहीं, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से पहले की एक ‘सांस्कृतिक सभ्यता’ से भी बंधा है.

‘भारत ने संविधान से बंधे एक नागरिक राष्ट्र बनने में अपने इतिहास, प्राचीन विरासत, संस्कृति और सभ्यता को किनारे कर दिया है. मैं भारत को एक सिविलाइजेशन स्टेट के रूप में मानती हूं. दो ही सिविलाइजेशन स्टेट हैं… वे हैं भारत और चीन. हालांकि जब चीन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करता है, तो वह धर्मनिरपेक्ष हो जाता है, लेकिन जब यही बात भारत करता है, तो उसे सांप्रदायिक मान लिया जाता है.’

गुरुवार को उद्घाटन समारोह में गृह मंत्री अमित शाह और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी मौजूद थे. इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले अन्य प्रख्यात वक्ताओं में अमेरिका स्थित शॉनी स्टेट यूनिवर्सिटी की लावण्या वेमसानी और बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के अमित ढोलकिया शामिल हैं.


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‘इतिहास को अब महिलाओं के नजरिए से लिखे जाने की जरूरत है’

इतिहासकार एडवर्ड हैलेट कैर के कथन ‘तथ्य अपनी जगह पर सही हैं, लेकिन उनकी व्याख्याएं अलग-अलग हो सकती है’ का उल्लेख करते हुए पंडित ने कहा, ‘दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत और मैं जिस विश्वविद्यालय से संबंधित हूं वहां इस सिद्धांत को उलट दिया गया है. इसे इस तरह से बना दिया गया है- व्याख्याएं अपनी जगह सही हैं लेकिन तथ्य अलग-अलग हो सकते हैं. यह बहुत खतरनाक है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वर्तमान नैरेटिव में हम अपने इतिहास को आत्म-घृणा और पराजितों द्वारा जीती गई भूमि के नजरिए से देखते है. एक काल का अत्यधिक महिमामंडन किया जाता है और मैं दक्षिण से आती हूं, ये मुझे और भी बुरा लगता है. इस देश में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश चोलों का रहा है. चोलों के महान राजाओं का कोई उल्लेख है? दिल्ली में महान शासकों के नाम पर कोई सड़क हैं?’

उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास अपने वर्तमान स्वरूप में ‘पुरुषों’ की कहानी है, अब इसे ‘महिलाओं’ के नजरिए से लिखे जाने की जरूरत है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


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