आईएएस अफसरों ने यह मुद्दा तब उठाया है जब मोदी सरकार संयुक्त सचिव स्तर पर लैटरल एंट्री को मंजूरी देने की बात कर चुकी है।
नई दिल्ली : आईएएस समुदाय ने आईएएस एसोसिएशन के नवनियुक्त अध्यक्ष के उस बयान के प्रति अपनी नाराज़गी जताई है जिसमें उन्होंने कहा था कि यह संगठन योग्यता आधारित नियुक्तियों के लिए सरकार के समक्ष अपनी मांग पेश करेगा। उनका मानना है कि आईएएस अफसरों के साथ लगे “जेनरलिस्ट” टैग को हटाने में इससे मदद मिलेगी।
यह मुद्दा तब सामने आया है जब केंद्र सरकार संयुक्त सचिव के स्तर पर लैटरल एंट्री के माध्यम से सरकार में क्षेत्र-विशेषज्ञों को लाने की बात कर एक नयी बहस की शुरुआत कर चुकी है।
पिछले हफ्ते दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश श्रीवास्तव, जो वर्तमान में महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के सचिव हैं, कहते हैं कि यह कदम उस धारणा के विरोध में है जिसके अनुसार आईएएस अफसर ‘जेनरलिस्ट’ हैं एवं उनमें विशेषज्ञता की कमी है। आईएएस संगठन सरकार से अफसरों को उनकी तकनीकी विशेषज्ञता के अनुसार नियुक्त करने की संभावना पर विचार करने का अनुरोध करेगा।
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श्रीवास्तव आगे कहते हैं, “आईएएस अफसर तकनीकी रूप से योग्य नहीं हैं, यह मान लेना सरासर गलत होगा। अधिकांश आईएएस अफसर इंजीनियर, सी ए, डॉक्टर इत्यादि हैं।”
“वे ‘जेनरलिस्ट’ तभी बनते हैं जब उन्हें किसी असंबद्ध विभाग में नियुक्त कर दिया जाता है… लेकिन यह कहना कि वे तकनीकी रूप से योग्य नहीं हैं, बिल्कुल गलत है।”
हालांकि ऐसा लगता है कि श्रीवास्तव के विचारों से कई अफसर सहमत नहीं हैं।
पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम कहते हैं, “आईएस अफसरों को ‘जेनरलिस्ट’ कहना अब घिसी पिटी बात हो गयी है… वे नीतिनिर्धारण में विशेषज्ञ होते हैं जोकि स्वयं में एक योग्यता है।
“शासन का यह मॉडल समय की कसौटी पर खरा उतरा है।”, वे जोड़ते हैं। एक ‘जेनरलिस्ट’ होने के भी अपने फायदे हैं।
‘जेनरलिस्ट’ होने के अपने फायदे हैं
मायाराम मानते हैं कि ‘जेनरलिस्ट’ न केवल अफसरशाही बल्कि सेना एवं कारपोरेट जैसे क्षेत्रों में भी नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाते हैं । उनका मानना है कि एक ऐसे ‘जेनरलिस्ट’ की ज़रूरत होती है जो शीर्ष स्तर पर नीति एवं निर्णय संबंधी पहलुओं की देखरेख कर सके।
वे बताते हैं, “ उदाहरण के तौर पर आर्मी में विभिन्न इकाइयों से अफसर जेनरल को रिपोर्ट करते हैं… जेनरल तो दरअसल ‘स्पेशलिस्ट’ से ‘जेनरलिस्ट’ बन जाते हैं।
अरुणा शर्मा वर्तमान इस्पात सचिव तो हैं ही, इसके अलावा उन्हें सूचना एवं प्रसारण से लेकर आयुर्वेद, आई टी एवं घरेलू मामलों का भी खासा अनुभव है। वे मायाराम की चिंता से सहमति जताते हुए कहती हैं , “ केवल योग्यता मात्र होने से किसी व्यक्ति में एक दूरदृष्टि रखने और उसे पूरा करने की क्षमता नहीं आ जाती।
वे कहती हैं, “मैं डेरी, आई टी या इस्पात, किसी क्षेत्र में स्नातक नहीं हूं” लेकिन साथ ही वह इस बात पर भी जोर देती हैं कि वे नीति-निर्धारण में विशेषज्ञता रखती हैं जोकि इन तकनीकी योग्यताओं से कहीं ज़्यादा मूल्यवान है।
इस साल की शुरुआत में दिप्रिंट ने 57 सचिव-स्तर के अधिकारियों की शैक्षिक योग्यता का विश्लेषण किया था। हमने पाया कि उनमें से केवल नौ ऐसे मंत्रालयों का संचालन कर रहे थे जिसका उनकी पढ़ाई से सीधा संबंध था।
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नाम न लेने की शर्त पर एक आईएफएस अधिकारी जेनरलिस्ट होने के फायदों के बारे में बताते हैं, “एक जेनरलिस्ट होना किसी भी आईएएस अफसर के लिए सबसे बड़ा फायदा होता है… अगर क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त होने को मानदण्ड के तौर पर लिया जाए तो वैसे सेवा-विशिष्ट अधिकरी भी हैं।
पहले छोटे कार्यकाल की समस्या का समाधान हो
मायाराम का मानना है कि विभागों एवं मन्त्रालयों में अफसरों का कार्यकाल लंबा होना ज़रूरी है क्योंकि तभी वे किसी भी विषय की गहरी समझ विकसित कर पाएंगे।
“सबसे पहले तो सरकार से संयुक्त सचिव/सचिव स्तर पर दीर्घकालीन पोस्टिंग का आग्रह करें”, उन्होंने कहा।
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वे आगे बताते हैं, “आइएएस अफसर कुछ खास क्षेत्रों में लंबे कार्यकाल की बदौलत महारथ हासिल कर पाते हैं। यही कारण है कि पहले संयुक्त सचिव एक मंत्रालय में औसतन पांच साल बिताते थे।”
वे अपने अनुभव से बताते हैं, “लेकिन आजकल आप देखेंगे कि अधिकारी एक मंत्रालय में महीना भी नहीं गुज़ारते और उनका तबादला हो जाता है। ऐसी हालत में भला वे क्या विशेषग्यता हासिल करेंगे?”
दिप्रिंट ने प्रमुख मंत्रालयों में सचिव- स्तर के अधिकारियों के कार्यकाल का विश्लेषण किया जिससे पता चला है कि तबादले और छोटे कार्यकाल भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार के अंतर्गत सामान्य बात हो चुकी है।
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