आज से लगभग 18 साल पहले हावर्ड यूनिवर्सिटी के चार छात्रों ने एक ऐसा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खड़ा किया जिसे फेसबुक का नाम दिया गया और जिसने सारी दुनिया में लोगों को एक दूसरे से जुड़ने की बहुत बड़ी सुविधा निशुल्क प्रदान की. इसका सदस्य बनना बच्चों के काल जैसा था. नतीजतन लोग तेजी से इसके जरिये एक दूसरे से जुड़ते गये और 2021 आते-आते 300 करोड़ लोग इसके सदस्य बन गये.
सिर्फ चार सालों में यह यह बन गया दुनिया का सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म. इसे यूज करना न केवल आसान था बल्कि इसमें कोई भी सदस्य जितनी भी जगह चाहे ले सकता है. वह जितने भी फोटो लगा सकता है और इन सबसे बढ़कर लाइव स्ट्रीमिंग भी कर सकता है. इसके सह संस्थापक मार्क ज़करबर्ग ने कई सारे प्रयोग किये ताकि इसका रेवेन्यू बढ़े और वह सफल भी हुए. 2021 में ही कंपनी ने अक्टूबर 2021 में 16 अरब डॉलर का अपना पहला पब्लिक इश्यू निकाला जो उस समय का सबसे बड़ा इश्यू था और उस समय कंपनी का कुल मूल्य 102.4 अरब डॉलर आंका गया. मार्क जकरबर्ग जो उस समय तक कंपनी के सर्वेसर्वा बन चुके थे, 19 अरब डॉलर के मालिक बन गये.
फेसबुक को टिक-टॉक और यू ट्यूब ने दी टक्कर
लेकिन इसके साथ ही विज्ञान का यह नियम भी लागू होने लगा कि जो वस्तु ऊपर जाएगी वह नीचे भी आएगी. फेसबुक चीन को छोड़कर सारी दुनिया में छा गया. फेसबुक के सामने ऐसी नई चुनौतियां आने लगीं जिसके बारे में कंपनी ने सोचा ही नहीं था. उसे अब झटके पर झटके लग रहे हैं. इससे न केवल उसका रेवेन्यू घटने लगा है बल्कि उसके सामने कई तरह की कानूनी अड़चनें आने लगी हैं जिससे मार्क ज़करबर्ग के माथे पर पसीना आ गया है.
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पब्लिक इश्यू के आने के बाद ही इस प्लेटफॉर्म को बड़ी तादाद में यूजर छोड़ने लगे. 2021 के अंतिम तीन महीनों में करीब पांच लाख डेली यूजर इसे छोड़ गये.
यह सिलसिला आज भी बरकरार है. दरअसल इस बार उसे टक्कर मिली टिक-टॉक से जो विदेशों में बेहद पॉपुलर हो चुका है. मार्क जकरबर्ग ने खुद ही मान लिया कि उसे टिक-टॉक और यू ट्यूब से कड़ी टक्कर मिल रही है जो छोटे-छोटे वीडियो बनाकर उसके यूजर्स को अपनी ओर खींच रहे हैं. टिक टॉक की ताकत को ज़करबर्ग ने खुद भी माना. आज यह ऐप्प दुनिया में सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाने वाला ऐप्प है. पिछले साल के सितंबर महीने तक इसके एक अरब यूजर सारी दुनिया में थे. यंग जेनरेशन को यह बेहद पसंद आ रहा है और इसने सबसे ज्यादा लोकप्रिय इंटरनेट डोमेन के मामले में गूगल को भी पीछे छोड़ दिया है. जकरबर्ग ने माना कि टिक टॉक एक बहुत बड़ा कंपीटिटर हो गया है और यह तेजी से बढ़ रहा है.
ऐसे में फेसबुक इंटरनेट डोमेन में तीसरे स्थान पर चला गया. यह जकरबर्ग के लिए परेशानी का बड़ा सबब है. इसे ही ध्यान में ऱखते हुए जकरबर्ग ने फेसबुक का नाम बदलकर मेटा रखा और उसे एक नई दिशा देने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर दिया. इस साल फरवरी में खबर आई कि मेटावेब प्रोजेक्ट में कंपनी को 10 अरब डॉलर का बड़ा झटका लगा जिससे उसके शेयर धड़ाम हो गये.
हालांकि कंपनी के लाभ पर उसका कोई असर नहीं पड़ा और उसका टर्न ओवर बढ़ता ही रहा लेकिन मार्क जॉकरबर्ग की व्यक्तिगत संपत्ति में भारी गिरावट आई. उधर इसके यूजर्स की संख्या बढ़ने की बजाय घटने लगी है. भारत में जहां इसके 35 करोड़ यूजर हैं वहां भी नये लोग इस प्लेटफॉर्म पर नहीं आ रहे हैं. हालांकि कंपनी का कहना है कि इसका कारण भारत में इंटरनेट की दरों में बढ़ोतरी है. लेकिन सच्चाई है कि नई पीढ़ी के लोगों की अब दिलचस्पी अब फेसबुक में घटती जा रही है और यहां मार्क ज़करबर्ग की ही कंपनी का एप्प इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप्प बेहद पॉपुलर हो गया है.
इतना ही नहीं भारतीय युवा वर्ग अब गेमिंग में खूब दिलचस्पी ले रहा है और कई तरह के नये ऐप्प सामने आ गये हैं जिनकी अच्छी खासी मांग है. इनमें से एक है डिस्कॉर्ड जिसमें गेमिंग के अलावा चैट की भी सुविधा है. इसमें कॉलेज वगैरह की कम्युनिटीज बनी हुई हैं जो उन्हें ज्यादा आकर्षित करती है. फेसबुक में लंबे-लंबे पोस्ट डालकर लोग अपनी भड़ास तो निकाल लेते हैं लेकिन उनमें अब किसी की दिलचस्पी नहीं रही है. लोग खासकर युवा वर्ग अब शॉर्ट वीडियोज पर ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं. इस तरह के ट्रेंड से भारत में भी फेसबुक का कोई बढ़िया भविष्य नहीं दिखता.
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फेसबुक राजनीतिक विरोध का बड़ा प्लेटफॉर्म बना
उधर अमेरिका में उसे सबसे ज्यादा झटका ऐप्पल की नई नीतियों से लगा है. ऐप्पल ने अपने फोन तथा अन्य य़ूजरों के प्रोफाइल लेने पर फेसबुक पर रोक लगा दी है. यानी ऐड ट्रैकिंग प्राइवेसी संबंधी प्रतिबंध लगा दिये हैं जिससे उसके यूजर्स को संबंधित विज्ञापन भेजना संभव नहीं हो पायेगा. यह एक चिंता का विषय है क्योंकि इससे उसकी इनकम को खासा धक्का लग सकता है. दरअसल विज्ञापन देने वाली कंपनियां यूजर्स की आदतों से सबंधित आकंड़े या डेटा ऐप्पल के य़ूजर्स के विहेवियर से पाती हैं. अब इसमें रोक लग जाने से मेटा यानी फेसबुक को वे सीमित विज्ञापन ही देंगी जिससे उसका टर्न ओवर घटेगा. अमेरिका में ऐप्पल के यूजर बड़ी तादाद हैं और वे बड़ा खर्च भी करते हैं इसलिए कंपनियां उन्हें टारगेट भी करती हैं.
लेकिन सबसे बड़ा खतरा तो यह पैदा हो गया कि फेसबुक जो कभी लोगों को एक दूसरे से मिलाने और उनके साथ जुड़कर बातें करने का एक सफल जरिया बना था वह एक तरह का विरोध का हथियार भी बनने लगा. इसमें राजनीति घुस गई. 2008 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में जब बराक ओबामा खड़े हुए थे तो उस समय फेसबुक का उनके समर्थन और विरोध दोनों में फेसबुक का जम कर इस्तेमाल हुआ. सैकड़ों ग्रुप बने और राजनीतिक भाषणबाजी खूब लाइव स्ट्रीमिंग हुई. इसका असर सारी दुनिया पर पड़ा और फिर हर देश में ऐसा होने लगा. बात यहां तक सीमित नहीं रही. यह एक दूसरे के प्रति घ़ृणा फैलाने का भी एकटूल बन गया. ज़हरीले भाषण या विचार इसमें अपलोड किये जाने लगे.
देश में तख्ता पलट जैसी साजिशें भी इसी माध्यम का इस्तेमाल करके होने लगी. 2011 में तो मिश्र में हुसनी मुबारक सरकार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत इसी से हुई. राजनीतिक विरोध का यह बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है. लेकिन इन सब ने फेसबुक के प्रमोटरों के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. उस पर सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोलने का प्लेटफॉर्म देना का आरोप लग रहा है. कई देशों की सरकारों ने तो इस पर सख्ती करनी शुरू कर दी है. लेकिन इससे भी बुरी बात यह हो रही है कि यह घृणा फैलाने का एक प्लेटफॉर्म भी बन गया है. इसमें धार्मिक उन्माद से लेकर नस्ली घृणा तक के पोस्ट मिलेंगे जिससे भारत सहित कई देशों की भृकुटि तन रही है. उसके विरुद्ध कई तरह के मुकदमें दायर हुए हैं.
भारत में फेसबुक और गूगल को बहुत यूजर्स मिले और यहां से उनके लाभ में भारी बढ़ोतरी हुई. फेसबुक की कमाई तो देश के चार टॉप मीडिया घरानों की कुल कमाई से भी ज्यादा रही है. 2020-21 में इसे विज्ञापनों से कुल 9,326 करोड़ रुपये की कुल कमाई हुई. लेकिन अब सरकार के नियम बदलते जा रहे हैं और विज्ञापनों के प्रकाशन में उसे पारदर्शिता लानी होगी. उसे यह भी बताना होगा कि कौन सी खबर या फीचर पैसे देकर पोस्ट किये गये हैं. यह आसान नहीं है और इसमें कंपनी को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
फेसबुक के सामने एक बड़ी चुनौती है
उधर यूरोप में तो फेसबुक को कई मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है. इस साल फरवरी में फेसबुक ने तंग आकर धमकी दी थी कि अगर उस पर कानूनी कार्रवाई हुई या उसकी बांह मरोड़ी जाएगी तो वह यूरोप में फेसबुक और इंस्टाग्राम की सेवाएं बंद कर देगा.
दरअसल यूरोपियन यूनियन एक नया कानून बना रहा है जिससे फेसबुक या ऐसी किसी भी कंपनी के लिए यूरोपीय नागरिकों के डेटा को दूसरे देशों में शेयर नहीं किया जा सकेगा. यानी वह डेटा अमेरिका में भी नहीं दिया जा सकेगा जो विज्ञापन देने वाली कंपनियों का सबसे बड़ा अड्डा है. इसके पीछे कारण यह बताया गया है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां फेसबुक से यूरोपीय नागरिकों का डेटा कानूनन ले सकते हैं. 2020 में आयरलैंड ने फेसबुक को इस आशय का आदेश दे दिया था. ऐसे कानूनों से फेसबुक को भारी घाटा होगा.
फेसबुक जेनरेशन की बड़ी समस्या से गुजर रहा है. खास तौर से भारत में जहां इसके 35 करोड़ यूजर हैं, इससे अब नई पीढ़ी के युवा नहीं जुड़ रहे हैं और सिर्फ ज्यादा उम्र के लोग ही इसमें समय लगा रहे हैं. यह कंपनी के लिए एक चेतावनी है. उसकी कमाई अब पहले जैसी तेजी से नहीं बढ़ेगी. इसके लिए कंपनी कई उपाय तो कर रही है जैसे शॉर्ट वीडियो शेयरिंग वगैरह का स्पेस तैयार करना. लेकिन अभी के हालात ऐसे हैं कि कुछ कहना मुश्किल है. फेसबुक या मेटा के सामने एक वास्तविक और बड़ी चुनौती खड़ी है. इससे भी शेयर बाज़ारों में हलचल है.
(मधुरेंद्र सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और डिजिटल रणनीतिकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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