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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतमुफ्त की बिजली, मुफ्त का पानी देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत महंगी पड़ेगी

मुफ्त की बिजली, मुफ्त का पानी देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत महंगी पड़ेगी

चुनाव जीतने का यह जो हथकंडा अपनाया जा रहा है वह देश के लिए घातक है क्योंकि इस तरह की मुफ्तखोरी से विकास के कदम ठप हो जाएंगे.

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तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे पंजाब में नई सरकार ने जो घोषणा की है वह उसे रसातल में ही ले जायेगा. आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में कहा था कि जब पार्टी सत्ता में आयेगी तो वह बिजली मुफ्त करेगी, 20 हजार लीटर पानी फ्री देगी और हर महिला को हजार रुपये हर महीने दिये जायेंगे. इतना ही नहीं विधवा पेंशन, बुजुर्ग पेंशन , विकलांग पेंशन वगैरह 500 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपए कर दिये जायेंगे. अब सबसे पहले 300 यूनिट तक बिजली फ्री देने की घोषणा जल्दी-जल्दी कर दी गई है क्योंकि हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव हैं और आम आदमी पार्टी वहां चुनाव लड़ेगी. एक तीर दो शिकार, पंजाब के वोटरों को तोहफा और हिमाचल के वोटरों को लालच.

आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल के पास सारे कुतर्क हैं ऐसी मुफ्तखोरी के पक्ष में. उन्होंने दिल्ली में बिजली, पानी, महिलाओं को फ्री बस पास देकर चुनाव जीता और कहते रहे कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को कोई धक्का नहीं लगेगा क्योंकि वह भ्रष्टाचार खत्म करके ये पैसे वापस ला देंगे. अपने को बहुत बड़ा अर्थशास्त्री साबित करने में वह अनाप-शनाप बातें करते हैं जिनका कोई सिर पैर नहीं है. सच यह है कि दिल्ली जल बोर्ड 54 हजार करोड़ रुपये के भारी कर्ज में डूबा हुआ है. इसकी हालत इतनी नाजुक है कि इसका प्राइवेटाइजेशन तक हो सकता है. इसी तरह दिल्ली ट्रांसपोर्ट निगम (डीटीसी) हर साल एक हजार करोड़ रुपये के घाटे में चल रहा है.

ये सब बताने के पीछे यह है कि इतनी मुफ्तखोरी पंजाब को वहां ले जायेगी जहां से लौटने का कोई रास्ता नहीं है. वहां वही होगा जो वेनेजुएला में हुआ और अभी श्रीलंका में हुआ जहां राजपक्षे बंधुओं ने मुफ्तखोरी सिखाई और जनता तथा बौद्ध भिक्षुकों को हर सेवा आधे दामों पर देनी शुरू कर दी. देखते ही देखते वहां की अर्थव्यवस्था बैठ गई. आज वह 32 अरब डॉलर के कर्ज में है और श्रीलंका सरकार ने अपने को दीवालिया घोषित कर दिया है.

पंजाब के लोग अपने को अन्य राज्यों से सुपीरियर समझते हैं, उन्हें पता नहीं है कि जिस बिहार को वह मजदूरों और गरीबों का राज्य कहते थे, आर्थिक दृष्टि से उससे कहीं बेहतर है. भले ही वह बीमारू राज्यों की सूची में हो लेकिन आबाजी बहुत ज्यादा होने के बावजूद पंजाब से कहीं कम कर्ज उस पर है. वहां की गरीब जनता मेहनत-मशक्कत करके जीवन यापन करती है जबकि पंजाब में बड़े-बड़े एसयूवी पर चलने वाले, ट्रैक्टरों से खेती करने वाले लोग मुफ्तखोरी पसंद करते हैं. उनमें बड़े किसान भी हैं जिन्हें मुफ्त की बिजली, पानी, सब्सिडी वाली खाद वगैरह सभी मिलती है.

साथ ही देश में एमएसपी पर खर्च होने वाली तीन लाख करोड़ रुपए की रकम का बड़ा हिस्सा भी उनके पॉकेट में जाता है. इतिहास बताता है कि पंजाब में राजनीतिक दलों ने शुरू से ही सब्सिडी और मुफ्तखोरी को बढ़ावा दिया. वहां कई साल पहले ही किसानों को मुफ्त बिजली देने की शुरूआत की गई थी और उस समय ही किसानों को मुफ्त बिजली देने का लाभ उठाने के लिए बड़े किसानों ओर मालदार लोगों ने शहर के बाहर फार्म हाउस बनाये. इतना ही नहीं बड़े-बड़े ट्यूब वेल लगाकर किसानों ने भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन किया गया जिससे राज्य में पानी का स्तर भयानक रूप से गिर गया. मुफ्त की बिजली खूब फूंकी गई और बिजली का पैसा सरकार देती रही और आज भी दे रही है.

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अंग्रेजी में कहावत है, देयर इज नो फ्री लंच. लेकिन सरकारें थीं कि खजाने का पैसा लुटा रही थीं. अब आम आदमी पार्टी को एक मौका मिला है. दिल्ली के उदाहरण से पार्टी को एक बात समझ में आ गई है कि मुफ्तखोरी एक बहुत आकर्षण है और जनता को इससे मूर्ख बनाया जा सकता है. जहां तक बिजली की बात है इस देश में 70 के करीब थर्मल पॉवर स्टेशन हैं और 22 न्यूक्लियर पॉवर स्टेशन. इनकी रनिंग पर अरबों रुपये का खर्च आता है और ये लाखों लोगों को नौकरियां देते हैं. ये सभी राज्य बिजली बोर्डों को बिजली बेचती हैं और उससे ही ये प्लांट चलते हैं लेकिन उनकी हालत बुरी है.

बिजली पैदा करने वाली कंपनियों का बिजली बेचने वाली कंपनियों (डिस्कॉम) पर, करीब सवा लाख करोड़ रुपए बकाया है. उधर बिजली उत्पादक कंपनियां कोयला उत्पादकों के करीब 6400 करोड़ रुपये दबाये बैठी हैं जिससे उनकी भी हालत खराब है. वे समय पर कोयला सप्लाई करने की स्थिति में नहीं हैं जिससे पंजाब के ही कई प्लांट बंद हो गये हैं. जाहिर है बिजली कटौती आने वाले समय में बड़े पैमाने पर होगी. हैरानी की बात है कि कई राज्य बकाया चुकाने की स्थिति में नहीं हैं फिर भी बिजली की खरीद कर रहे हैं. अगर ऐसी हालत कुछ साल और रह गई तो कई उत्पादक कंपनियां बंद ही हो जाएंगी. ऐसे में बेरोजगारी और बढ़ेगी.

चुनाव जीतने का हथकंडा

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है. चुनाव जीतने का यह जो हथकंडा अपनाया जा रहा है वह देश के लिए घातक है क्योंकि इस तरह की मुफ्तखोरी से विकास के कदम ठप हो जाएंगे. समस्या है कि इसे रोकने का कोई तरीका नहीं है. इस बारे में एक याचिका डाली गई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दिया. राजनीतिक दल बिजली, पानी, फ्री बस यात्रा के अलावा नकदी, टीवी, लैप टॉप, सोने के लॉकेट, मंगल सूत्र, बाइक बांटने की घोषणा करते रहते हैं. बाद में उन पर अरबों रुपये का खर्च आता है जिससे इन्फ्रास्ट्रक्चर की योजनाएं या विकास के काम थम जाते हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री चाहे कुछ भी दावे कर लें लेकिन सच्चाई है कि यहां भी इस तरह के काम ठप हो गये हैं. शीला दीक्षित के समय में शुरू की गई कई योजनाएं ही पूरी नहीं हो पई हैं.

अब पंजाब की समस्या यह है कि उसके पास राजस्व बढ़ाने का कोई जादुई तरीका नहीं है. यह राज्य अपने खर्च के लिए कुल राजस्व का 47.4 फीसदी जुटाता है जबकि शेष केन्द्र सरकार से आता है. आम आदमी पार्टी के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने तीन महीनों के लिए पेश अपने अंतरिम बजट में 4788 करोड़ रुपए ब्याज के तौर पर आवंटित किये हैं. यह राशि शिक्षा, कृषि, पुलिस वगैरह से भी ज्यादा है. इसका मतलब यह भी हुआ कि राज्य सरकार इस वित्त वर्ष में 19,000 करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज के ब्याज के तौर पर ही खर्च कर देंगी.

अगर राज्य सरकारें वोटरों को पटाने के लिए के लिए इसी तरह पैसे लुटाने में लगी रहेंगी तो यह स्थिति हो जाएगी कि वे सरकारी कर्मचारियों को नियमित वेतन भी नहीं दे पाएंगी. कर्जों के ब्याज ने पकिस्तान, श्रीलंका, वेनेजुएला जैसे देशों को पस्त कर दिया है और वे दिवालिया हो गए हैं.

इस मुफ्तखोरी से बड़ा सवाल यह उठता है कि ये राजनीतिक दल देश को कहां ले जा रहे हैं? उन्हें तो चुनाव जीतने से मतलब है और उसके लिए वे जनता और देश के बहुमूल्य पैसों को पानी की तरह बहाने में बर्बाद कर देंगे और उसके साथ ही आने वाली पीढ़ियों को भी क्योंकि इसके बाद मेहनत करना कोई चाहेगा भी क्यों? 140 करोड़ की आबादी वाले देश में क्या हम ऐसा अफोर्ड कर सकते हैं. अगर हम ऐसा करने लगे तो आगे चलकर यह एक ऐसी समस्या बन जायेगी जिसका हल किसी के पास नहीं होगा.

(मधुरेंद्र सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और डिजिटल रणनीतिकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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