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Wednesday, 20 November, 2024
होमडिफेंसभारत को चीन के साथ सीमा पर किसी लड़ाई की 'संभावना' नहीं दिखती, लेकिन अगर तनाव फिर से होगा तो 'पीछे नहीं हटेगा'

भारत को चीन के साथ सीमा पर किसी लड़ाई की ‘संभावना’ नहीं दिखती, लेकिन अगर तनाव फिर से होगा तो ‘पीछे नहीं हटेगा’

उद्देश्य न केवल सीमा पर तैनात सैनिकों को वहां से हटाना (डिसइंगेजमेंट) है, बल्कि समग्र रूप से डी-एस्केलेशन सुनिश्चित करना है. भारत सरकार बातचीत के जरिए यह तनाव सुलझाने के पक्ष में है क्योंकि वह चीन समेत सभी पड़ोसियों के साथ शांति चाहती है.

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नई दिल्ली: ‘लद्दाख गतिरोध’ के अब तीसरे वर्ष में प्रवेश करने के साथ ही शीर्ष सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन से फिर से किसी लड़ाई की संभावना नहीं देखते. हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर बीजिंग फिर से तनाव बढ़ाने की कोशिश करता है, तो भारत परिणाम की चिंता किए बिना ‘ताकतवर जवाब’ (मस्कुलर रिस्पांस) देगा.

इस अटकल के बारे में पूछे जाने पर कि आने वाले कुछ महीनों में या फिर अगले कुछ सालों में यह तनाव दोनों देशों के बीच किसी संघर्ष में बदल सकता है, एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘हम किसी तरह के युद्ध या संघर्ष की संभावना नहीं देखते हैं, जैसे कि पहले गलवान में हुआ था. भारत एक शांतिप्रिय देश है और चीन सहित अपने सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध चाहता है.’

सरकारी सूत्रों ने कहा कि चीनी इस बात को ‘समझ गए हैं कि भारत किसी भी तरह की आक्रामकता के खिलाफ डटकर खड़ा होगा’, और जब अन्य कोई चारा नहीं हो तो वह पीछे नहीं हटेगा.

सूत्रों ने आगे कहा, ‘गलवान में, हमने पूरी बहादुरी से लड़ाई लड़ी और चीनी पक्ष में कई को हताहत किया. हां, हमें भी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन चीनियों ने महसूस कर लिया है कि हम पीछे नहीं हटेंगे.’

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत आपसी बातचीत के माध्यम से इस तनाव को हल करने के पक्ष में है क्योंकि वह चीन सहित अपने सभी पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहता है.

यह पूछे जाने पर कि अगर किसी संघर्ष का सामना करना पड़े तो क्या होगा, सूत्रों का कहना था, ‘हमारे सैनिक बहुत दृढ़ निश्चय वाले हैं. जंग सिर्फ हथियारों और सुरक्षा प्रणालियों के जरिये हीं नहीं बल्कि सैनिकों के धैर्य और दृढ़ संकल्प से भी लड़ी जाती है, जो हमारे पक्ष में बहुत अधिक है. यदि वास्तव में कोई संघर्ष होता है, तो हम इस बात की परवाह किए बिना कि इसके परिणाम क्या होंगें, एक ताकतवर जवाब देंगे.‘


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बातचीत लंबी खिंचेगी

एलएसी मुद्दे पर भारत के साथ चीन की वर्तमान में चल रही सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के बारे में इन सूत्रों ने बताया कि ये निकट भविष्य में भी जारी रहेंगी.

उन्होंने आगे कहा कि हालांकि पैंगोंग-त्सो के दोनों किनारों, गलवान घाटी और गोगरा पोस्ट में डिसंगजमेन्ट हुआ है, लेकिन देपसांग प्लेन्स और डेमचोक के मुद्दे पर बने रहेंगे क्योंकि वे मौजूदा गतिरोध से पहले के हैं.

दिप्रिंट ने ही सबसे पहले अगस्त 2020 में यह खबर दी थी कि लद्दाख के देपसांग के मैदानों (देपसांग प्लेन्स) में भारत-चीन तनाव मौजूदा गतिरोध से कम-से-कम कई महीनों पहले हुआ था.

सरकारी सूत्रों का कहना है कि देपसांग प्लेन्स पर बातचीत जारी रहेगी और अभी इसका मकसद अप्रैल 2020 की यथास्थिति की बहाली को सुनिश्चित करना है, जिसमें न केवल सैनिकों को हटाया जाएगा (डिसइंगेजमेंट ऑफ ट्रुप्स), बल्कि समग्र रूप से डी-एस्केलेशन भी होगा.

इसका मतलब यह होगा कि भारत और चीन दोनों को 40,000 से भी अधिक उन अतिरिक्त सैनिकों को वापस लेना होगा, जिन्हें लद्दाख में एलएसी के पास तैनात किया गया है, और अप्रैल 2020 के बाद से बनाये गए सभी रडार और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल स्थलों और अन्य को भी नष्ट करना होगा.

लद्दाख में तनाव की वजह से सैन्य रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ा है

सरकारी सूत्रों ने कहा कि चीन के साथ हुए तनाव की वजह से सैन्य प्राथमिकताओं पर फिर से विचार किया गया है, और ‘सम्पूर्ण राष्ट्र (आल ऑफ़ नेशन)’ वाले दृष्टिकोण का पालन किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, एलएसी तनाव को केवल सेना के नजरिये से नहीं देखा जा सकता है. इसे सम्पूर्ण राष्ट्र के दृष्टिकोण की आवश्यकता है और कूटनीति और अर्थशास्त्र सहित इसके व्यापक प्रभाव हैं.’

सूत्रों ने आगे बताया कि अब आधुनिक तकनीक और सीमा पर बेहतर बुनियादी ढांचे (बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर) पर काफी जोर दिया जा रहा है.

यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में 30 अप्रैल को अपना पदभार संभालने वाले सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने भी सहमति जताई थी.

पिछले हफ्ते पत्रकारों के एक समूह के साथ बातचीत में, सेना प्रमुख ने कहा था कि भारत की उत्तरी सीमा पर चीन के साथ गतिरोध उनकी ‘सबसे बड़ी चिंता’ है .

दिप्रिंट के इस सवाल का जवाब देते हुए कि चीन से निपटने के लिए भारत को क्या कदम उठाने चाहिए, जनरल पांडे ने तब कहा था, ‘मूल मुद्दा सीमा (निर्धारण) का समाधान बना हुआ है. हम जो बात देख रहे हैं वह यह है कि चीन की मंशा सीमा मुद्दे को जीवित रखने की रही है. एक देश के रूप में हमें ‘सम्पूर्ण राष्ट्र वाले दृष्टिकोण’ की आवश्यकता है और सैन्य क्षेत्र में, यह एलएसी पर यथास्थिति को बदलने के किसी भी प्रयास को रोकना और उसका मुकाबला करना है.

उन्होंने यह भी कहा कि वह सभी को इस बात से आश्वस्त करना चाहते हैं कि हर तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए एलएसी पर सेना एक मजबूत स्थिति में है. उन्होंने बताया कि उनका ध्यान खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही क्षमताओं के लिए और अधिक टेक्नोलॉजी लाने के साथ-साथ संचालन और लॉजिस्टिक्स (रसद एवं साजो सामन) में सहायता करने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करने पर है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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