नई दिल्ली: मुंडका में शनिवार को हवा स्याह और उदास दोनों है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस इलाके ने कल रात जो कुछ भी देखा उसे कभी नहीं भूल पाएंगे.
शुक्रवार की सुबह इलाके के मेट्रो स्टेशन के पास एक इमारत में भीषण आग – जिसमें कम-से-कम 27 लोगों की मौत हो गई थी – भड़कने के बाद से शनिवार को भी उस चार मंजिला इमारत से धुआं उठता रहा. इस घटना के बाद, इस इमारत – जिसमें सीसीटीवी कैमरे, वाईफाई राउटर और अन्य बिजली के उपकरणों बनाने वाला ऑफिस था – को पुलिस ने घेर रखा है.
अभी तक जहां सात लाशों की पहचान कर ली गई है, वहीं अभी भी लापता लोगों की एक लंबी सूची है.
यह इलाका दमकल गाड़ियों, नागरिक सुरक्षा सेवा के स्वयंसेवकों और दिल्ली पुलिस कर्मियों के साथ साथ इस त्रासदी पर चर्चा करने वाले लोगों के साथ खचाखच भरा रहा. इमारत के बाहर से सभी को जले हुए मलबे दिखाई दे रहे थे.
दमकल विभाग के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पहली मंजिल पर चल रहे एक जनरेटर में शॉर्ट सर्किट होने के बाद ही यह आग लगी थी.
दिल्ली फायर सर्विसेज के निदेशक अतुल गर्ग के अनुसार, इस इमारत में पर्याप्त रूप से हवा के आने- जाने का रास्ता (वेंटिलेशन) नहीं था और अग्नि सुरक्षा सम्बन्धी प्रोटोकॉल का भी पालन नहीं किया गया था.
गर्ग ने कहा, ‘इमारत के पास एनओसी (अग्निशमन विभाग से जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र) अथवा एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) की मंजूरी भी नहीं थी. ऐसा लगता है कि पूरी इमारत ही अवैध थी. अधिकांश शव दूसरी मंजिल से बरामद किए गए. हमने आज तीसरी मंजिल की भी तलाशी ली. बचाव अभियान अब खत्म हो गया है.’
उन्होंने आगे कहा: ‘हर मंजिल में दो निकास बिंदु (एग्जिट पॉइंट्स) होने चाहिए लेकिन इस इमारत में प्रत्येक मंजिल पर केवल एक ही था. उनके पास आग बुझाने का कोई यंत्र भी नहीं था.’
इस इमारत की क़ानूनी वैधता पर उत्तरी दिल्ली नगर निगम के एक स्रोत द्वारा भी सवाल उठाए गए, जिन्होंने दावा किया कि यह क्षेत्र ‘अपंजीकृत’, ‘एक नॉन-कन्फोर्मिंग जोन था यानी की ऐसी भूमि या संरचना जो उस समय लागू ज़ोनिंग और भवन के अनुसार कानूनी रूप से बनाया गया था, लेकिन जो मौजूदा ज़ोनिंग और बिल्डिंग नियमों को पूरा नहीं करते.
उन्होंने बताया, ‘यहां केवल कुछ ही क्षेत्रों को (नगरपालिका कानूनों के तहत) स्वीकृत किया गया है. हम सभी दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं. इस भूमि पर अतिक्रमण नहीं किया गया है लेकिन यह इमारत अवैध है क्योंकि उसके पास स्वीकृत भवन योजना (सैंक्शंड बिल्डिंग प्लान) नहीं थी. सभी इमारतों को एक स्वीकृत भवन योजना की आवश्यकता होती है.’
दिल्ली पुलिस के अनुसार दो भाइयों, वरुण गोयल और हरीश गोयल – जिन्होंने इस इमारत की तीन मंजिलें किराए पर ली थीं और निर्माण इकाई के मालिक भी थे – को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 (लापरवाही से मौत का कारण बनना), 308 (गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास), 120 (दंडनीय अपराध करने को छुपाने की साजिश) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत गिरफ्तार किया गया है. .
डीसीपी (आउटर दिल्ली) समीर शर्मा ने कहा कि इस इमारत का मालिक मनीष लखरा है, जो अपने परिवार के साथ सबसे ऊपरी मंजिल पर रहता था. शर्मा ने कहा, ‘अभी यह साफ नहीं है कि आग लगने के समय लखरा इमारत में था या नहीं. फ़िलहाल तो वह फरार है.’
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‘फायर ब्रिगेड द्वारा की गई देरी‘
चश्मदीदों और इस हादसे में जीवित बचे लोगों ने आरोप लगाया कि इमारत में आग बुझाने के उपकरण अथवा आपातकालीन निकास द्वार भी नहीं थे लेकिन दमकल विभाग के दस्ते द्वारा पहुंचने में की गई देरी ने हालत को और भी ख़राब कर दिया.
आग लगने के समय इमारत में मौजूद स्थानीय लोगों के अनुसार, यह सारा मामला दोपहर करीब साढ़े तीन बजे शुरू हुआ.
गर्ग ने कहा, ‘हमें शाम 4:30 बजे एक कॉल आया. आग पर काबू पाने में दमकल की 30 गाड़ियां और 125 कर्मियों की जरुरत पड़ी. रात 10 बजे तक आग पर काबू पा लिया गया था.’
उन्होंने यह भी बताया कि 50 से अधिक लोगों को बचाया गया और उनमें से 15 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिन्हें शनिवार को छुट्टी दे दी गई.
देरी होने के आरोप का जिक्र करते हुए गर्ग ने कहा, ‘हम इससे इनकार नहीं करते, यह इलाका बेहद भीड़भाड़ वाला है. वास्तव में, यह दिल्ली के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में से एक है, गाड़ियां एक ही जगह पर 10 मिनट से भी अधिक समय तक फंसी रहती हैं.’
लोगों की जान जाने के बारे में बात करते हुए, निर्माण इकाई के एक कर्मचारी साहिल प्रजापति ने कहा, ‘हताहतों की संख्या में इस वजह से वृद्धि हुई क्योंकि इमारत ऐसी स्थिति को संभालने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी. जनरेटर से चिंगारियां निकली और आग भड़क गई. किसी को खबर करने का समय ही नहीं था. ज्यादातर लोग दूसरी मंजिल पर फंसे हुए थे. केवल एक ही निकास द्वार था (पहली मंजिल पर, जहां वे थे). मैं (वहां से) कूद गया, इसलिए मैं सुरक्षित हूं.’
आशु नाम के एक अन्य बचे हुए शख्स, जिसे काफी चोटें आईं हैं, ने इस बात से सहमति दिखाई.
उन्होंने कहा, ‘कोई एग्जिट पॉइंट नहीं था. हमने सीढ़ियों से भागने की कोशिश की लेकिन उनमें काला धुआं भर गया था. प्रोडक्शन यूनिट में काम करने वाले हम लोगों में से डेढ़ सौ लोग वहीं फंस गए थे. दोपहर करीब 3 बजे वरुण गोयल ने एक बैठक बुलाई थी. बैठक के करीब 10 मिनट बाद ही बत्तियां भुकभुकाने लगीं और बिजली चली गई. हमें कुछ पता नहीं था लेकिन जैसे ही हमने दरवाजा खोला, वहां केवल काला धुआं भरा था. हमें बचने के लिए 10 मिनट भी नहीं मिले.’
आशु ने आगे कहा: ‘हम में से कुछ लोगों ने (खिड़कियों के) शीशे तोड़ने की कोशिश की लेकिन यह इतना कड़ा था कि मेरा हाथ ही टूट गया. फिर हमने इसे कुर्सी से तोड़ने की कोशिश की लेकिन कुर्सी भी टूट गई. अंत में, हमने एक मेज का इस्तेमाल किया और दो शीशे तोड़ दिए. पहला शीशे टूटने के बाद ही हम सांस ले सके. कुछ लोगों ने रस्सियां बांधी और क्रेन भी पहुंच गई तो वे बाहर निकल सके.’
फंसे हुए लोगों में फैली दहशत को याद करते हुए आशु ने कहा, ‘जिस पल धुंआ मेरी आंखों में लगा, मुझे लगा कि मेरी मौत नजदीक है. मैं फ्लोर से कूद गया. फिर मैं शीशे पर गिर पड़ा. बचने वालों में मैं आखिरी था, मेरे साथ वरुण गोयल भी थे.’
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