नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बलात्कार के अपराध में मुकदमे का निर्णय ‘डीएनए प्रोफाइलिंग’ में चूक से तय नहीं हो सकता, खासकर तब जब इसमें हत्या का मामला भी जुड़ा हो क्योंकि यदि जांच में केवल इस तरह की खामी के कारण अपराधी बरी होता है तो आपराधिक न्याय का उद्देश्य खुद पीड़ित बन जाएगा।
शीर्ष अदालत ने आठ साल की बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में दोषी को दी गई मौत की सजा को इस शर्त के साथ आजीवन कारावास में बदल दिया कि वह 30 साल तक वास्तविक अवधि की सजा काटने से पहले समय पूर्व रिहाई या छूट का हकदार नहीं होगा।
न्यायमूर्ति ए एम खनविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने दोषी की अपील पर फैसला सुनाया जिसने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी थी।
पीठ ने उल्लेख किया कि दोषी की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया था कि अपीलकर्ता को मृतका के शरीर पर पाए गए नमूनों से जोड़ने के लिए कोई डीएनए परीक्षण नहीं किया गया और इस तरह दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 53 ए का उल्लंघन हुआ।
सीआरपीसी की धारा 53ए किसी चिकित्सक द्वारा बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की जांच से संबंधित है।
पीठ ने 84 पृष्ठ के अपने निर्णय में कहा, ‘‘सीआरपीसी की धारा 53ए और संदर्भित फैसलों के मद्देनजर…हमारा मत है कि डीएनए प्रोफाइलिंग करने में हुई चूक को बलात्कार के अपराध में मुकदमे का निर्णय तय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब इसमें हत्या का मामला भी जुड़ा हो क्योंकि यदि जांच में केवल इस तरह की खामी के कारण अपराधी बरी होता है तो आपराधिक न्याय का उद्देश्य खुद पीड़ित बन जाएगा।’’
इसने उल्लेख किया कि भले ही इस मामले में जांच में ऐसी कोई खामी हुई हो, फिर भी अदालत का यह कर्तव्य है कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या उसके सामने उपलब्ध सामग्री और सबूत अभियोजन पक्ष के मामले को साबित करने के लिए पर्याप्त और ठोस हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस स्थिति के बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता कि निष्पक्ष सुनवाई के लिए निष्पक्ष जांच जरूरी है।
पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी का यह कर्तव्य है कि वह जांच में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए आरोपी और पीड़ित दोनों के अधिकारों की रक्षा करे तथा निष्पक्ष, सक्षम एवं प्रभावी जांच सुनिश्चित करे।
अपीलकर्ता मृतक लड़की की मां का चचेरा भाई था और घटना सितंबर 2014 में ग्वालियर जिले में हुई थी।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गंभीर चोटों से स्पष्ट था कि अपीलकर्ता ने ‘शैतानी और वीभत्स तरीके’ से लड़की को प्रताड़ित किया था।
पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने सजा के सवाल पर विचार किया और उसी दिन फैसला सुनाया जिस दिन अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया था।
इसने कहा कि अपीलकर्ता अपराध के समय 25 वर्ष का था जिसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से है तथा जेल के अंदर उसका बेदाग आचरण रहा है।
पीठ ने कहा, ‘इसलिए, उपरोक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हमें अपीलकर्ता के सुधार और पुनर्वास की संभावना से इनकार करने का कोई कारण नहीं दिखता।’
भाषा नेत्रपाल माधव
माधव
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.