नई दिल्ली: हर पांच भारतीय महिलाओं में से एक, और हर चार पुरुषों में से एक हाइपरटेंशन से ग्रस्त है लेकिन जब इलाज की बात आती है तो सिर्फ 7 प्रतिशत महिलाएं और 6 प्रतिशत पुरुष, जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर बताया गया है दवाएं लेते हैं- ये ख़ुलासा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के आंकड़ों से हुआ है.
सर्वे में ये भी पता चला कि 33 प्रतिशत महिलाओं और 46 प्रतिशत पुरुषों ने कभी अपना ब्लड प्रेशर नपवाया नहीं है.
निदान या इलाज न किए जाने पर ब्लड प्रेशर आगे चलकर दिल को नुकसान पहुंचा सकता है, जिसमें कंट्यूशन (जिसे कार्डियोमेगाली कहते हैं) भी शामिल है जब ऊंचे डायस्टोलिक (निचले) ब्लड प्रेशर की वजह से दिल का आकार बढ़ जाता है.
पिछले सप्ताह जारी एनएफएचएस-5 डेटा पर आधारित राष्ट्रीय रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि देश में कैंसर स्क्रीनिंग की कवरेज भी बहुत कम है- केवल 1.2 प्रतिशत महिलाओं ने सर्वाइकल जांच कराई थी, 0.6 प्रतिशत ने ब्रेस्ट परीक्षण कराया था और 0.7 प्रतिशत ने ओरल कैविटी टेस्ट कराया था.
ये ख़राब आंकड़े इसके बावजूद आए हैं कि बारह साल पहले 2010 में, कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों, और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया था.
ये पहली बार था जब उच्च रक्तचाप सर्वेक्षण के लिए कट-ऑफ आयु को 18 वर्ष की बजाय 15 वर्ष रखा गया था.
एनएफएचएस-5 में अनुमान लगाया गया कि 15 वर्ष से ऊपर की 21 प्रतिशत महिलाओं को हाइपरटेंशन की शिकायत है, जबकि इसी आयु वर्ग में ऐसे पुरुषों का प्रतिशत 24 है.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘बारह प्रतिशत महिलाओं और 9 प्रतिशत पुरुषों का कहना है कि दो या उससे अधिक बार उन्हें किसी डॉक्टर या स्वास्थ्य प्रोफेशनल ने बताया था कि उन्हें हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप की शिकायत है. लेकिन निदान किए गए हाइपरटेंशन वाले लोगों में फिलहाल केवल 7 प्रतिशत महिलाएं और 6 प्रतिशत पुरुष अपना ब्लड प्रेशर घटाने के लिए दवाएं लेते हैं’.
सरकारी सर्वे में पता चला कि दूसरे धर्मों के मुक़ाबले हाइपरटेंशन का प्रसार सिखों (पुरुषों में 37 प्रतिशत और महिलाओं में 31 प्रतिशत), जैनियों (पुरुषों में 30 प्रतिशत और महिलाओं में 25 प्रतिशत) और ईसाइयों (पुरुषों में 29 प्रतिशत और महिलाओं में 26 प्रतिशत) में ज़्यादा है.
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रक्त में ग्लूकोज़ की ऊंची मात्रा
सर्वे में भारतीय लोगों के अंदर ख़ून में ग्लूकोज़ के स्तर को भी देखा गया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों के ख़ून में ग्लूकोज़ का स्तर थोड़ा अधिक था.
सर्वे में पाया गया: ‘15 वर्ष या उससे ऊपर की छह प्रतिशत महिलाओं के ख़ून में ब्लड ग्लूकोज़ लेवल (141-160 एमजी/डीएल) अधिक है, और अतिरिक्त 6 प्रतिशत में ब्लड ग्लूकोज़ लेवल (160 एमजी/डीएल से ऊपर) बहुत अधिक है. इस तरह कुल 12 प्रतिशत महिलाओं का ब्लड ग्लूकोज़ लेवल 140 एमजी/डीएल से अधिक है’.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘15 वर्ष या उससे अधिक आयु के पुरुषों में ब्लड ग्लूकोज़ लेवल ज़्यादा है, और अतिरिक्त 7 प्रतिशत में ये बहुत ज़्यादा है, जो मिलकर 14 प्रतिशत हो जाता है’.
सर्वे में ये भी पाया गया कि दूसरे धार्मिक समूहों के मुक़ाबले ईसाई महिलाओं (18 प्रतिशत) और पुरुषों (17 प्रतिशत) में, ऊंचे ब्लड शुगर लेवल की प्रवृत्ति ज़्यादा होती है. राज्यों के बीच, महिलाओं में अधिक और बहुत अधिक ब्लड ग्लुकोज़ (मिलाकर) लद्दाख़ में 6 प्रतिशत से लेकर केरल में 21 प्रतिशत तक है. पुरुषों में ये प्रसार लद्दाख़ और जम्मू-कश्मीर दोनों में 7-7 प्रतिशत से लेकर गोवा में 22 प्रतिशत और केरल में 24 प्रतिशत तक है.
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कच्ची मृत्यु दर
एनएफएचएस-5 का फील्ड वर्क दो चरणों में किया गया जिसके दौरान 6,36,699 परिवारों से जानकारी प्राप्त की गई, और 7,24,115 महिलाओं तथा 1,01,839 पुरुषों से संपर्क किया गया.
पहले चरण में, 17 जून 2019 से 30 जनवरी 2020 के बीच, 17 राज्यों और 5 केंद्र-शासित क्षेत्रों को कवर किया गया. दूसरे चरण में 2 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021 के बीच, 11 राज्यों और 3 केंद्र-शासित क्षेत्रों से आंकड़े एकत्र किए गए.
सर्वे में भारत की कच्ची मृत्यु दर (जो प्रति 1,000 मध्य वर्ष जनसंख्या पर मौतों की संख्या का संकेत देती है) का अनुमान प्रति 1,000 आबादी पर 9 प्रतिशत लगाया गया (पुरुषों के लिए हर 1,000 पर 10, और महिलाओं के लिए हर 1,000 पर 8).
भारत के सभी राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में कच्ची मृत्यु दरें (सीडीआर) 5 से 11 प्रति 1,000 थीं. उत्तरपूर्व, पश्चिमी, और उत्तरी राज्यों में सीडीआर राष्ट्रीय औसत से कम थी. मेघालय, जम्मू-कश्मीर, दादरा व नगर हवेली और दमन व दीव, लक्षद्वीप और नागालैंड में सीडीआर 5 मौतें प्रति 1,000 थीं, जबकि ओडिशा, पुदुचेरी और तमिलनाडु में ये संख्या 11 मौतें प्रति 1,000 थी.
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