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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतचुनावों में हेरा फेरी के बावजूद आगे बढ़ रहे इमरान खान, अस्थिरता में ढकेला जाएगा पाकिस्तान

चुनावों में हेरा फेरी के बावजूद आगे बढ़ रहे इमरान खान, अस्थिरता में ढकेला जाएगा पाकिस्तान

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दो दशकों पूर्व पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ या न्याय के लिए आंदोलन शुरू करने वाले भूतपूर्व क्रिकेटर की यात्रा बहुत लम्बी रही है।

नई दिल्लीः इमरान खान पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बनने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं, परन्तु सत्य यह है कि सैन्य शासन का अनुकूल सहयोग भी उन्हें एक सामान्य बहुमत नहीं दिलाने में अब तक सक्षम नहीं हो पाया, क्योंकि पंजाब में नवाज़ शरीफ के वफादार मतदाताओं ने उन्हें उनके गढ़ में बढ़त लेने से किसी तरह रोक लिया।

वास्तव में ऐसा लगता है कि पाकिस्तान चुनाव परिणामों के लिए तैयार छोटे व बड़े राजनैतिक दलों के साथ लम्बी अस्थिरता की खुराक पीने के लिए तैयार है।

शरीफ भाइयों, नवाज एवं शहबाज की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) से लेकर फजल-उर-रहमान की जमात-इ-इस्लामी और बिलावल भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी जैसे प्रतिद्धदियों द्वारा बड़ी हेराफेरी एवं मिलीभगत के आरोपों के साथ बानीगाला में स्थित उनके आलीशान घर से लेकर पाकिस्तान की राजधानी में प्रधानमंत्री आवास की अप्रभावित संरचना तक, खान साहब का सफरनामा किसी प्रकार से आसान नहीं लगता है।

गुरूवार सुबह 9.30 बजे पाकिस्तान के जीओ टीवी ने सूचना दी कि इमरान खान की पार्टी तहरीर ए इंसाफ 122 सीटो पर बढ़त बनाए हुए थी, जबकि पीएमएल 60 सीटों पर आगे चल रही थी एवं पीपीपी 35 सीटों पर बढ़त के साथ तीसरे स्थान पर थी।

लेकिन भारतीय मानक समय के अनुसार बुधवार सायं 5.30 बजे मतदान बन्द होने तक और कई घण्टों की मतगणना के बावजूद अब तक एक भी विजेता की घोषणा नहीं की गई है। सोशल मीडिया पर इन आरोपों की झड़ी लगी हुई है कि मतदान अभिकर्ता मतदान केन्द्रों से भगा दिए गए थे एवं चुनाव आयोग का फॉर्म 45 जिस पर चुनाव समाप्त होने की मुहर लगाई जाती है, वहाँ से गायब था।

जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकार और पूर्व राजनेता मुशहिद हुसैन ने कहा:

 

पाकिस्तान के सबसे प्रसिद्ध पत्रकार हामिद मीर ने बताया:

 

इस बीच, एक अन्य शीर्ष पाकिस्तानी समालोचक तलत हुसैन ने कहा:

 

272 सदस्यीय राष्ट्रीय विधानसभा में, एक पार्टी को अपनी सरकार बनाने के दावे के लिए 137 सीटों की जरूरत है। अन्य 70 सीटें महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं।

लेकिन पंजाब में पीएमएल (एन), जो सुबह 6.30 बजे तक मात्र 104 सीटों की बढ़त पर थी, की तुलना में 96 सीटों पर बढ़त के साथ पीटीआई ने जो सफलता हासिल की है, वह समान रूप से महत्वपूर्ण है। शरीफ का किला अब तक ढहा नहीं है, पर चरमरा गया है।

एक विश्व स्तरीय क्रिकेटर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय अय्याश तक, रूढ़िवादी नेता से लेकर प्रधानमंत्री बनने के दावेदार तक, खान के परिवर्तन ने विश्व को उनकी उम्र का अनुमान लगाने में ही अटका रखा है।

चुनावी प्रचार के अन्तिम सप्ताह में प्रकाशित होने वाली उनकी पूर्व पत्नी रेहम खान द्वारा लिखी गई किताब ने निश्चित रूप से उत्तेजना बढ़ा दी, विशेष रूप से तब जब पिछले सप्ताह शरीफ घर लोटे और उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपो में गिफ्तार कर लिया गया।

किन्तु रहम के तथाकथित नशा करने एवं रासलीला से लेकर, रॉक एंड रोल समेत पाश्चात्य संगीत की रूचि जैसे आरोपों के बावजूद ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान के सैन्य संस्थान के अखरी प्रयास ने राष्ट्र को उनके पूर्व शोहर के हाथों में सौंप दिया है।

किन्तु जैसे ही पर्दा गिरा खान खुद ही अपने द्वारा बढिया रची हुई अपनी ही कहानी को संभाल नहीं पाए। बुधवार को इस्लामाबाद में हुए मतदान में खान ने अपने मतपत्र पर अपनी चहेती जनता की नजरों के सामने मुहर लगाई, जो कि उनके मतदान को निष्फल
प्रतिपादित कर सकता है। चुनावी नियम में गुप्त मतदान की ही मान्यता होती है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि खान अन्य चार निर्वाचन क्षेत्र हैं जहाँ से वह चुनाव लड़के अपने राजनीतिक भविष्य की शुरूवात कर रहे है।

परिणामस्वरूप तात्पर्य यह है कि यदि खान जैसे-तैसे अपनी सरकार का निर्माण कर भी लेते हैं, तो भी वह भारी अस्थिरता से प्रभावित हेागी। निश्चित रूप से, पाकिस्तानी सैन्य व्यवस्था जो भारत, अफगास्तिान और यूएस की तरफ़ देश की मुख्य नीतियों को अपने हाथ में रखना चाहता है, ऐसा होना देना नहीं चाहेगा।

इससे पहले चुनाव के दिन, खान पाकिस्तान के रंगीन भाषाई परिदृश्य में खुफिया एजेंसियों का जिक्र करते हुए “लड़कों” के लिए इसे छोड़ने के लिए तैयार प्रतीत होते थे।

खान ने पत्रकारों से कहा, “भारत का केवल एक ही उद्देश्य है, वह है पाकिस्तानी सेना को कमजोर करना। नवाज शरीफ ने हमेशा भारत की मदद की है। वह केवल भारतीय हितों की रक्षा करेंगे, पाकिस्तान के नहीं। लेकिन मेरी वफादारी (निष्ठा) हमेशा पाकिस्तान के साथ रहेगी।”

उन्होंने चुनाव के दौरान एक साक्षात्कार में, रावलपिंडी की सोच के मुताबिक इमरान ने जम्मू-कश्मीर में परेशानियों पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने कहा, “कश्मीर में एक स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा है। इसके लिए भारत पाकिस्तान को दोषी ठहराता है… मोदी के (सत्ता में) आने के बाद रिश्तों (भारत-पाकिस्तान) की हालत बदतर हो गई है। यह एक बहुत ही कठोर सरकार है… कश्मीर…भारतीय सैनिकों की क्रूरता, भारतीय सेना का उल्लंघन…पूरा उपमहाद्वीप कश्मीर मुद्दे पर बंधक बना हुआ है।”

एक घिरी हुई कुर्सी

पाकिस्तान के 71 साल लंबे इतिहास में, इसका कोई भी प्रधानमंत्री पाँच साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद शरीफ को पिछली जुलाई में ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा हटा दिया गया था। उनका कार्यकाल पूरा होने में एक ही साल बचा था कि न्यायिक रूप से उनका तख्ता पलट कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने शरीफ को बेईमान और झूठा (उर्दू में – सादिक और अमीन नहीं) घोषित करते हुए शासन के लिए अनुपयुक्त करार दिया था। इसके बाद खान जो कि प्रतिष्ठान के लाड़ले और पसंदीदा थे इस दौड़ के प्रबल दावेदार बन गए थे।

अब तक, वह विवादास्पद धारा 295सी के पक्षधर के रूप में सामने आ चुके थे। इस धारा को संविधान में लोकप्रिय रूप से “ईश-निंदा” कानून के रूप में जाना जाता है। जिया-उल-हक के दमनकारी शासन के दौरान प्रस्तुत की गई इस धारा में पैगम्बर (उन पर सलामती हो) के साथ किसी भी रूप से खिलवाड़ करते हुए पाए जाने वाले किसी भी पाकिस्तानी को कड़ी सजा देने का प्रावधान है।

ईश-निंदा कानून पर खान के विचार तभी स्पष्ट हो गए थे जब पंजाब के गवर्नर सलमान तसीर की उनके कट्टरपंथी सुरक्षा गार्ड मुमताज कादरी द्वारा 2011 में हत्या कर दी गई थी, जिसने बताया था कि तसीर ने कथित रूप से पैगम्बर की निंदा करने वाली एक ईसाई महिला का बचाव किया था।

इस बीच, उपनाम ‘तालिबान खान ” ने कहा –पीटीआई के घोषणापत्र के वादे के बावजूद, कि वह पाकिस्तान से भ्रष्टाचार मिटा देंगे, नागरिकों की परिस्थितियों में सुधार करेंगे, खासतौर पर पेयजल, स्वास्थ्य और शिक्षा,जो उनके #नयापाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।

इस महीने के शुरू में पाकिस्तान के अंग्रेजी दैनिक डॉन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि युवा मतदाता पीटीआई को वोट देना पसंद करते हैं।शायद, पाकिस्तान की युवा आबादी को – यूएनडीपी रिपोर्ट के अनुसार, 64 प्रतिशत आबादी 30 साल से कम हैऔर 29 प्रतिशत आबादी 15 से 29 साल की उम्र के बीच की है – खान की जीत से कुछ लेना देना है।निश्चित रूप से, खान और पीटीआई ऐसा सोचते हैं।

लेकिन लाहौर में शौकत खानम कैंसर अस्पताल, जोउन्होंने अपनी मां की स्मृति में बनाया था, के नेतृत्व में उनकी परोपकारी गतिविधियों के बावजूद, खान ने प्रत्याशित बलों की रक्षा जारी रखी है, हाल ही में उन्होंने नाटो के बारे में कहा था कि “वह खून के प्यासे पश्चिमी उदारवादी हैं”।

आलोचकों ने कहा कि वह केवल पाकिस्तानी सैन्य संस्थान में उनके सलाहकारों द्वारा निर्धारित मार्ग का पालन कर रहे थे।

शीर्ष तक की यात्रा

फिर भी, पाकिस्तानी क्रिकेट टीम को विश्व कप ले जाने से लेकर 2018 में रातनीतिक सत्ता में आने तक,पख्तून के नेता ने निश्चित रूप से कड़ी मेहनत तो की है।

उन्होंने 1996 में लोगों के कल्याण, विश्वसनीय नेतृत्व और प्रणाली से भ्रष्टाचार को खत्म करने के आधार पर पीटीआई की स्थापना की। उनको पहली राजनीतिक सफलता 2002 में मिली थी, जब बहुत लंबे इंतजार के बाद वह अपने गृह नगर मियांवाली से नेशनल असेंबली के सदस्य बने।

2008 में, जब सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने पद छोड़ने और चुनाव कराने का फैसला किया, तो पीटीआई ने आरोप लगाया कि चुनाव गलत थे और उनका बहिष्कार किया ।

2013 एक ऐसा साल था जब खान की पार्टी ने पाकिस्तानी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जमात-ए-इस्लामी और क्यूमी वतन पार्टियों के साथ गठबंधन करते हुए पीटीआई उत्तर-पश्चिमी प्रांत खैबर-पख्तुनख्वा में सत्ता में आई।
राष्ट्रीय चुनावों जो एक साथ आयोजित किए गए थे, में पीटीआई ने एक प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए 31 संसदीय सीटें जीती जो कि 2002 के चुनावों में प्राप्त की गई सीटों से 300 प्रतिशत अधिक थीं। इसके साथ तब यह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी और पंजाब प्रांत में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी।

लेकिन खान नतीजे से संतुष्ट नहीं थे और आरोप लगाया था कि चुनावों में धांधली की गई थी। उन्होंने 14 अगस्त से 17 दिसंबर 2014 तक ‘आजादी मार्च’ का नेतृत्व किया, जिसमें परिणामों की पूरी जांच की मांग की गई। दिसंबर 2014 में पेशावर स्कूल हमले के बाद उन्होंने विरोध प्रदर्शन बंद कर दिया।

2016 में, खैबर-पख्तुनख्वा में पीटीआई की अगुआई वाली सरकार ने अपने बजट से दारुल उलूम हक्कानिया, एक मदरसा जिसे ‘जिहाद का विश्वविद्यालय’ कहा जाता है और इस मदरसे ने अपने पूर्व प्रमुख मुल्ला उमर समेत कई शीर्ष तालिबान नेताओं को निर्मित किया है, को 300 मिलियन रूपए देने का फैसला किया। इसके बाद खान की बहुत आलोचना की गई थी।

उनके राजनीतिक और व्यक्तिगत अधिकारों की ओर झुकाव और एक साल पहले की गई तीसरी पत्नी बुशरा मेनका से शादी के लिए कहा जाता है कि यह सब आध्यात्मिक सलाहकार द्वारा प्रेरित था, लेकिन खान अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं को ख़ुद चुनते थे।

स्वतंत्र मीडिया इसमें से नहीं थी। क्योंकि इस चुनाव के दौरान राज्य ने टीवी प्रसारणों को अवरुद्ध करते हुए और कई शहरों और छोटे शहरों में समाचार पत्रों पर रोक लगाते हुए पाकिस्तानी मीडिया पर कड़ी कार्रवाई की गयी थी, इस दौरान खान बिलकुल शांत रहे थे ।

और अब वह इंतेज़ार कर रहे हैं की वही मीडिया उनको इस चुनाव में विजेता घोषित करे, तथा साथ ही यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने नियंत्रित लोकतंत्र की ओर अपने आप को फिर से धकेल दिया है।

अलींद चौहान और प्रतीक गुप्ता के इनपुट के साथ

Read in English : Pakistan seen headed for instability as Imran Khan emerges frontrunner amid poll rigging charges

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