फली नरीमन ने अमित शाह को जवाब देते हुए बताया कि कानून और परंपरा दोनों सुनिश्चित करेंगे कि न्यायमूर्ति गोगोई भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनें, सेवा-निवृत्त होने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश मात्र एक औपचारिकता है।
प्रसिद्ध न्यायवादी और वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने भारत की न्यायपालिका के मुद्दों के बारे में एनडीटीवी के साप्ताहिक शो वाक द टॉक पर दिप्रिंट के मुख्य संपादक और अध्यक्ष शेखर गुप्ता से बातचीत की।
नरीमन ने कहा कि इससे बचा जा सकता था क्योंकि मुख्य न्यायाधीश और बाकी न्यायाधीशों को एक टीम की तरह कार्य करना चाहिए। नरीमन ने अपनी नई किताब- गॉड सेव दि ऑनरेबल सुप्रीम कोर्ट, के बारे में भी बात की।
स्पष्टता के लिए यहां संपादित विस्तृत प्रतिलिपि दी गई है:
शेखर गुप्ताः आप अपनी नई किताब – गॉड सेव दिस ऑनरेबल सुप्रीम कोर्ट, को यह नाम देकर आप क्या बताना चाह रहे हैं ?
नरीमन: देखिए, मुझे बहुत दुःख होता है जब ये सब चीजें होता हैं, खासकर प्रेस को दिए गये उस साक्षातकार के बाद, और बुरा इस बात का भी लगा कि हर कोई कुछ न कुछ उल्टा सीधा कह रहा था। वकील पक्ष ले रहे थे। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में मेरे 67 साल के अभ्यास में, मैंने कभी इतना निराशाजनक कुछ नहीं देखा है। मुझे बहुत दुःख महसूस हुआ।
शेखर गुप्ताः क्या आपको लगता है कि न्यायाधीशों को प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करनी चाहिए थी?
नरीमन: बिल्कुल नहीं करनी चाहिए थी, उन्हें इसे बाहर नहीं बल्कि चार दीवारी के भीतर करना चाहिए था। कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें नहीं किया जा सकता।
शेखर गुप्ताः लेकिन उनके विचार थे कि उन्होंने भीतर समस्या को समझने की कोशिश की लेकिन यह वहाँ नहीं हो पा रहा था।
नरीमन: इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर यह काम नहीं कर रहा था और यदि आपको यह पसंद नहीं है, तो आप इसको झेलते। आप या तो मुख्य न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने तक प्रतीक्षा करते या खुद इससे दूर हो जाते, बस इतनी सी बात है।
आप या तो मुख्य न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने तक प्रतीक्षा करते या आप इससे दूर हो जाते
शेखर गुप्ताः इस्तीफा दें और सब कुछ छोड़ कर चले जाएँ?
नरीमन: जो भी हो। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा जो मैंने अपनी पुस्तक में भी कहा है। जब न्याय (एस.एच.) कपाडिया मुख्य न्यायाधीश बने, तो उन्होंने दो साल तक अपने पद पर कार्य किया। जिस दिन उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने अपनी अदालत सहित हर एक अदालत में किसी भी वकील द्वारा मेन्शनिंग रोक दी। वकील द्वारा किसी चीज को मेन्शन करना एक बहुत महत्वपूर्ण चीज है। अगर कुछ गलत हो रहा है, तो मैं उसे मेंशन करना चाहता हूँ और उसकी सुनवाई करवाना चाहता हूँ। उन्होंने कहा कि नहीं ऐसा नहीं किया जा सकता है, ऐसा करने के लिए कार्यालय में जाओ। सभी ने शिकायत की, न्यायाधीशों ने शिकायत की, वकीलों ने शिकायत की लेकिन फिर भी ऐसा होता रहा। यह दो साल तक चला। जिस क्षण उनका उत्तराधिकारी आया, उन्होंने इसको वापस बदल दिया।
शेखर गुप्ता: तो इन चारों ने सार्वजनिक होकर गलती की?
नरीमन: बेशक उन्होंने गलती की।
शेखर गुप्ताः उन्होंने कुंठा के कारण ऐसा किया जो आप भी देख सकते थे?
नरीमन: यह उनका तरीका है। हम उनकी कुंठा से चिंतित नहीं हैं। हम सर्वोच्च न्यायालय के बारे में चिंतित हैं। हम कानून के बारे में चिंतित हैं। यदि आप डोनाल्ड ट्रम्प के अप्रवासन का समर्थन करते हुए अमेरिकी मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट के नवीनतम फैसले को पढ़ते हैं, तो वह आपके सवाल का सटीक जवाब देते हैं कि राष्ट्रपति हर दिन अजीब-अजीब ट्वीट करके क्यों अपनी बेइज्जती करवाते हैं। उनका इसपे जवाब था कि हम इस अदालत में राष्ट्रपति से व्यक्तिगत रूप से सरोकार नहीं रखते हैं, हम राष्ट्रपति के कार्यालय से सरोकार रखते हैं।
आप जानते हैं कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। आपको सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के कार्यालय से निपटना होता है। आप कुछ हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कब बने थे चाहे आप इसके योग्य हैं या नहीं। इसलिए, आपको निश्चित लोकाचार एवं सिद्धांतों का एक निश्चित समूह रखना चाहिए जो हर किसी से अलग हो।
शेखर गुप्ताः तो अदालत का अधिक अपमान किसने किया? इन चार न्यायाधीशों ने या …
नरीमन: मुझे इसकी परवाह नहीं है, यह एक लंबा सवाल है, मैं इसका उत्तर नहीं दूँगा। कोई भी बदनामी नहीं चाहता, मैं नहीं चाहता कि अदालत को विवादित किया जाए। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अदालत की गरिमा और सम्मान को बनाये रखना है। न्यायाधीशों के लिए नहीं। अतीत में हमारे पास 240 न्यायाधीश थे। उनके बारे में कौन सोचता है और कौन उन्हें याद रखता है?
शेखर गुप्ताः मुश्किल से चार या पाँच?
नरीमन: हाँ उन्हें छोड़कर, शीर्ष लोग।
शेखर गुप्ताः उनमें से कुछ को लेकिन बहुत अच्छे कारणों की वजह से नहीं।
नरीमन: इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। देखिए, हम इन सभी कारणों से चिंतित नहीं हैं। 100 वर्षों के बाद, आप सर्वोच्च न्यायालय का इतिहास लिख सकते हैं लेकिन जब तक यह काम कर रहा है यह संविधान का एकमात्र और अंतिम व्याख्याता है। कृपया यह याद रखें। हर किसी का जीवन और स्वतंत्रता सर्वोच्च न्यायालय पर निर्भर करती है। इसलिए, चाहे वे इसे महसूस करें या न करें, लेकिन उन्हें करना चाहिए- सभी न्यायाधीश एक साथ हैं।
शेखर गुप्ताः न्यायमूर्ति सीकरी ने अपने मामले में शांति भूषण को जवाब देते हुए कहा कि अदालत को सबसे बड़ा नुकसान तब पहुँचता है जब नीचे के लोग अदालतों पर संदेह करना शुरू कर देते हैं।
नरीमन: , मुझे समझ में नहीं आता कि इन वरिष्ठ अधिवक्ताओं को फटकार क्यों नहीं लगायी जाती है। जब वरिष्ठ अधिवक्ता पूछते हैं कि कृपया मुझे बताइए, आप यहाँ कैसे नियुक्त हो गये – यह बिल्कुल बेहूदा है।
शेखर गुप्ताः उन्हें इस चीज से वैसे भी कोई मतलब नहीं होना चाहिए।
नरीमन: इससे न केवल उनका लेना-देना नहीं है बल्कि इससे हर अदालत के मुख्य न्यायाधीश का लेना-देना नहीं है। तो पूछने का कोई सवाल ही नहीं है कि आप कैसे नियुक्त हुए हैं। यदि आज एक आदमी अदालत संख्या छह में बैठता है, तो क्या मैं उसके पास जाकर उससे उसकी नियुक्ति का प्रमाण मांगूगा। क्या प्रमाण उसे अपनी जेब में रखना चाहिए? यह हास्यास्पद है। मुझे बहुत खेद है, यह सभी चीजें गलत हैं।
शेखर गुप्ताः क्या मुख्य न्यायाधीश का रोस्टर चलाने का तरीका सही है?
नरीमन: मैं रोस्टर और इन सब के बारे में नहीं जानता, मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। देखिए रोस्टर के सन्दर्भ में, वही उसके मास्टर हैं।
शेखर गुप्ताः क्या मुख्य न्यायाधीश मास्टर हैं?
नरीमन: हाँ, वह मास्टर हैं लेकिन उनको अपनी पहुँच भी बनाए रखनी चाहिए। न्यायालय में हर न्यायाधीश को पहुँच बनाए रखनी चाहिए। इसी वजह से मैंने कॉलेजियलिटी (कॉलेजियम की सदस्यता) के बारे में बात की थी। आपके पास कॉलेजियलिटी जरूर होनी चाहिए वरना आप पूरी टीम में बैठ नहीं सकते हैं। एक टीम के रूप में आपके पास कुछ काम होते हैं। नियमों से आप पाएंगे कि एक अकेले न्यायाधीश का मतलब कुछ भी नहीं होता है। मध्यस्थता अधिनियिम के तहत भी, एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त एक मध्यस्थ में से एक, यहाँ तक कि उनके निर्णय भी। यहाँ तक कि यह भी जरूरी नहीं है कि अगर वह कुछ कहे तो उसको माना ही जाए। आपको कम से कम दो लोगों की एक टीम की जरूरत होती है।
शेखर गुप्ताः क्या अपने सहयोगियों से बात करके मुख्य न्यायाधीश इसको बेहतर तरीके से संभाल सकते थे?
नरीमन: बिल्कुल, वह कर सकते थे और नहीं भी। यह जरूरी है। अब, किसको पता कि क्या हुआ था? ह लोग नहीं जानते। मैं नहीं जानता। आप नहीं जानते। यही कहा जा सकता है कि ये हुआ है या वो हुआ है।
शेखर गुप्ताः एक चीज जो हम लोग जानते हैं कि हुई है वह यह है कि संविधान की किसी भी न्यायपीठ के पास इन चारों वरिष्ठ न्यायाधीशों में से कोई भी न्यायाधीश नहीं था।
नरीमन: नहीं, मैं माफी चाहता हूँ। अगर आप मेरा पहला अध्याय पढ़ते हैं, तो सबसे पहले अध्याय में ही आप जान जाएंगे कि कितने न्यायाधीश और किस मामले में बैठे थे। जनवरी 2017 से अब तक, इन मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ दो अन्य न्यायधीशों के अंतर्गत काफी महत्वपूर्ण फैसले दिए गए थे। आप देखिये, यह न्यायालय के पूरी तरह से मायने रखता है कि कौन कहाँ बैठता है क्या करता है वगैरह-वगैरह।
शेखर गुप्ताः क्या सभी न्यायाधीशों के साथ एक ही तरह से बर्ताव किया जाना चाहिए?
नरीमन: हाँ, बिल्कुल। केवल एक वजह से पाँचों महत्वपूर्ण हैं – दूसरे न्यायाधीशों के मामले में न्यायमूर्ति (जे.एस.) वर्मा का फैसला जिसमें उन्होंने तीन के लिए कहा था जो बाद में पाँच हो गए थे। उन्होंने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश के अलावा कुछ और भी लोग होने चाहिए और यह उन्होंने न्यायमूर्ति (ए.एन.) रे के संदर्भ में कहा था जो इंदिरा गाँधी के समय में योग्य न्यायाधीशों को नियुक्त नहीं कर रहे थे।
इंदिरा गाँधी ने न्यायाधीशों को स्थानांतरित करना शुरू कर दिया था इस तथ्य के बावजूद भी कि उन्हें स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए। क्या आपको पता है कि स्थानांतरण की यह नीति क्यों रोक दी गई थी? केवल इसलिए की एक स्थानांतरित न्यायमूर्ति ने कहा था कि बॉम्बे से मेरी तबीयत ठीक नहीं है और कलकत्ता में उनका निधन हो गया था। इसलिए उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक दल के खिलाफ एक बहुत ही बुरा प्रतिघात है। अतः यह एक न्यायमूर्ति नहीं बल्कि एक राजनेता थे जिन्होंने इसे रोक दिया था।
शेखर गुप्ताः अब, चार में से एक न्यायाधीश, न्यायमूर्ति चेलमेश्वर, जा चुके हैं। दो और न्यायाधीश भी समय के साथ-साथ चले जायेंगे जिसमें अब बहुत समय शेष नहीं नहीं है। अब मुख्य न्यायाधीश न्यायालय में फिर से अनुशासन कैसे लाते हैं?
नरीमन: उनको इसे लाना ही होगा। यही उनका काम है। यह इसी तरह होना चाहिए। वह एक लीडर हैं। मैंने उनको एक लीडर के रूप में नहीं नियुक्त किया, आपने उनको लीडर नहीं नियुक्त किया। संवैधानिक परिपाटी, कि सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश बनना चाहिए, की वजह से वह एक लीडर बने। और सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश वाली परंपरा केवल इसलिए अस्तित्व में आई क्योंकि पहले मुख्य न्यायाधीश हरिलाल कनिया के पद संभालने के कुछ महीनों के भीतर ही उनका निधन हो गया था।
और यह सुझाव दिया गया था कि उन्हें न्यायमूर्ति एम.सी. चागला को भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में नियुक्त कर देना चाहिए, जो उस समय बॉम्बे के मुख्य न्यायाधीश थे। सर्वोच्च न्यायालय में शेष बचे चार या पाँच न्यायाधीशों को इससे पूर्णतयः मना कर दिया गया था और कहा था कि हम उन्हें यहाँ नहीं रख सकते। ऐसी स्थिति में, न्यायमूर्ति पतंजलि शास्त्री को अगले उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया गया था। इस तरह से इस परंपरा की शुरूआत हुई।
शेखर गुप्ताः अब तो आप न्यायापालिका के अध्यक्ष हैं।
नरीमन: नहीं, नहीं। मैं न्यायापालिका का अध्यक्ष नहीं हूँ। मैं केवल एक ऐसा शख्स हूँ जिसने 67 सालों तक प्रैक्टिस की है। काफी लंबे समय तक।
शेखर गुप्ताः यही तो आपको अध्यक्ष बनाता है। अब आपके पास इस बारे में कुछ नुस्खे होने चाहिए कि शांति वापस कैसे लायी जाए।
नरीमन: मुख्य न्यायाधीश द्वारा संवाद होना चाहिए, इन मुख्य न्यायाधीश द्वारा, मुख्य न्यायाधीश के उत्तराधिकारी द्वारा, जो अब रंजन गोगोई होंगे। वे दोबारा अधिक्रमण नहीं कर सकते हैं। दो अधिक्रमण हुए थे। हर एक विनाशकारी था और संस्थान के लिए काफी बुरा था।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को मुख्य न्यायमूर्ति का उत्तराधिकारी होना चाहिए।
शेखर गुप्ताः क्या आपको किसी अधिक्रमण की कोई आशंका है?
नरीमन: नहीं, मुझे तो इसकी कोई आशंका नहीं है
शेखर गुप्ताः चूँकि, अमित शाह कहते हैं कि उसी व्यक्ति की नियुक्ति की जाएगी जिनकी सिफारिश पद छोड़ने वाले मुख्य न्यायाधीश करेंगें।
नरीमन: नहीं, यह एक परंपरा नहीं है बल्कि एक सिफारिश है। आपको ध्यान रखना चाहिए कि यहाँ पर दो बातें हैं – मुख्य न्यायाधीश के लिए सिफारिश एक परंपरा नहीं है। वह सातवें न्यायाधीश की भी सिफारिश कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सातवें न्यायाधीश को नियुक्त कर लिया जाएगा। परंपरा यह है कि सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। और दूसरे न्यायाधीशों के मामले में न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह ने कहा था कि यह संवैधानिक परिपाटी एक कानून है।
शेखर गुप्ता: यह एक पिछड़ा शहर है, यहाँ चर्चाएँ वगैरह हैं। और अब चर्चाओं का प्रमुख मुद्दा यह है कि अगला मुख्य न्यायाधीश कौन होगा क्योंकि यह सरकार जस्टिस गोगोई को तो नहीं बनाएगी क्योंकि उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लिया था।
नरीमन: हर्गिज़ नहीं। जस्टिस गोगोई को सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश होने के नाते नियुक्त किया जाना चाहिए। मेरे मन में कोई संदेह नहीं है। यहाँ किसी भी सही सोचने वाले व्यक्ति के मन में कोई संदेह नहीं है।
शेखर गुप्ता: और अगर संदेह किया जाता है, तो क्या यह एक गलत कदम होगा?
नरीमन: यह पूरी तरह गलत और असंवैधानिक कदम होगा। आपको याद रखना चाहिए कि संवैधानिक परंपरा संवैधानिक प्रावधान जितनी ही अच्छी है।
शेखर गुप्ता: विशेष रूप से जस्टिस कुलदीप सिंह ने कहा है कि यह कानून है।
नरीमन: हाँ, और यह एक एकमत निर्णय था। दूसरे न्यायाधीशों के मामले में जस्टिस सिंह का निर्णय एक अनिवार्य निर्णय था।
शेखर गुप्ता: तो यह प्रभावी ढंग से कार्यकारिणी के लिए कोई जगह नहीं छोड़ता है?
नरीमन: कोई जगह नहीं, मुझे नहीं पता कि वे ऐसा करने के इच्छुक हैं या नहीं, उन्हें नहीं होना चाहिए क्योंकि हमें भारत संघ के रूप में कार्य करना होगा। हम सभी भारत संघ हैं। न्यायपालिका, कार्यकारिणी, संसद, विधानसभा ये सब भारत संघ का हिस्सा हैं।
शेखर गुप्ता: आप कहते हैं कि भगवान माननीय सुप्रीम कोर्ट को बचाए, आपने इसे अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय से लिया है।
नरीमन: अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय 220 साल से चला आ रहा है और हर सुबह जब भी अदालत सत्र चालू होता है तो हमारे यहाँ के विपरीत वहां हर दिन सभी नौ न्यायाधीश एक साथ बैठते हैं। उनके पास न्यायपीठ नहीं हैं। एक नियमित पद्धति है जो कहती है कि भगवान संयुक्त राज्य अमेरिका और इस माननीय न्यायालय को बचाए।
शेखर गुप्ता: यदि भगवान भारत और इस माननीय सुप्रीम कोर्ट को बचाए, लेकिन किससे?
नरीमन: हर किसी से। उन लोगों से जो बात करते हैं, उनसे जो बोलते हैं और न्यायाधीशों से भी। आखिरकार, आप देखिये कि सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च है इसलिए नहीं है कि इसमें 5 या 15 न्यायधीश हैं बल्कि इसलिए है क्योंकि इसमें सभी न्यायाधीश एक साथ शामिल हैं। यह संस्थान है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अदालत के संवैधानिक प्रमुख हैं। किसी को ऐसा कुछ करना पड़ेगा जो कोई दूसरा नहीं कर सकता। यही कारण है कि जब यह उच्च न्यायालय में हुआ, जब मुखर्जी मुख्य न्यायाधीश थे और अदालत के चार या पांच न्यायाधीशों को कोई समस्या थी, तो 200 वकीलों ने एक शिकायत पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि वह जांच करेंगे। 8 या 9 दिनों के बाद उन्होंने फैसला किया कि ये आरोप सही हैं और इन 5 न्यायाधीशों को काम देने से रोक दिया गया। हर सुबह उन्होंने अदालत आना बंद कर दिया। क्यों? क्योंकि मुख्य न्यायाधीश मास्टर हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अदालत के संवैधानिक प्रमुख हैं।
शेखर गुप्ता: कुछ ऐसा ही इस बार भी हुआ क्योंकि इन चार न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी?
नरीमन: नहीं, मुझे इसके बारे में पता नहीं है, मेरे लिए, प्रेस कॉन्फ्रेंस पूरी तरह गलत थी।
शेखर गुप्ता: मुख्य न्यायाधीश विशाल हार्दिकता कैसे दिखा सकते हैं?
नरीमन: जाइए और उनसे पूछिए, मैं मुख्य न्यायाधीश का प्रवक्ता नहीं हूँ। मैं सुप्रीम कोर्ट का प्रवक्ता हूँ।
शेखर गुप्ता: क्या आप वरिष्ठ-न्यायाधीशों को एक साथ बैठते देखना चाहते हैं?
नरीमन: हाँ, कुछ मौकों पर, लेकिन वे एक साथ बैठे थे – सभी के सभी सात न्यायाधीश, और मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सीएस) कर्णन को जेल भेज दिया। वे सात और सबसे वरिष्ठ थे।
शेखर गुप्ता: लेकिन हाल ही में नहीं? नंबर एक और दो एक साथ नहीं बैठ रहे हैं?
नरीमन: उन्हें बैठना चाहिए, किसी विशेष समय में। नंबर एक और तीन को एक साथ बैठना चाहिए। नंबर दो और चार को एक साथ बैठना चाहिए।
शेखर गुप्ता: क्या यह आपकी सलाह है?
नरीमन: मैं कैसे सलाह दे सकता हूँ, वे जो कुछ भी करना चाहते हैं वह कर सकते हैं। मेरे मन में एक बात बिल्कुल तय है कि अगला मुख्य न्यायाधीश दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश को होना चाहिए। वह विकल्प वहां नहीं है।
शेखर गुप्ता: तो सुप्रीम कोर्ट अब कमजोर हो गया है?
नरीमन: हाँ निश्चित रूप से, क्योंकि लोगों ने भरोसा खो दिया है। इस घटना ने इसमें योगदान दिया है। वे कहते हैं कि कुछ तो गलत है, भगवान जाने कि क्या गलत है।
शेखर गुप्ता: तो क्या अदालत के कमजोर होने का नतीजा यह है कि सरकार – कार्यकारिणी – अब नियुक्तियों में देरी कर सकते हैं?
नरीमन: हाँ अगर वे चाहते हैं तो वे कर सकते हैं लेकिन मुझे लगता है कि सरकार द्वारा नियुक्तियों में देरी करना बहुत बड़ी मूर्खता होगी।
सरकार द्वारा नियुक्तियों में देरी करना बहुत बड़ी मूर्खता होगी
शेखर गुप्ताः न्यायमूर्ति जोसेफ मामला?
नरीमन: देखिए, यह मेरे या आप के लिए कहना ठीक नहीं है कि न्यायमूर्ति (के.एम.) जोसेफ की नियुक्ति की जानी चाहिए या नहीं की जानी चाहिए। यही पर हम गलत हैं क्योंकि हम गलत सवाल पूछकर गलत जवाब पाने की कोशिश कर रहे हैं। पूरा देश यह नहीं कह सकता कि यूसुफ को नियुक्त किया जाए या न किया जाए।
शेखर गुप्ताः कॉलेजियम ने सिफारिश की है।
नरीमन: हाँ, इसलिए उन्हें यह कहना पड़ेगा कि आपको इसे आगे बढ़ाना चाहिए और इसे नियुक्त करना चाहिए जब तक कि आप उस सिफारिश को वापस करने का प्रयास नहीं करते हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि वे उस नज़रिए में गलत हैं।
शेखर गुप्ताः सुप्रीम कोर्ट में कई अन्य रिक्तियाँ हैं।
नरीमन: और उच्च न्यायालयों में भी।
शेखर गुप्ताः लोग अब हताश हो रहे हैं क्योंकि वे कानूनी विलम्ब, कार्यप्रणाली में अपरिवर्तन और विशेष रूप से उच्च न्यायालय के स्तर पर कोई सुधार नहीं देखते हैं।
नरीमन: अरे हाँ, बिल्कुल। ऐसा लगता है कि लोगों के बीच बहुत अधिक नाराजगी है और यह चारों और फैलने वाली सभी अफवाहों की शुरुआत है।
शेखर गुप्ताः तो फली, चलो हम आगे बात करते हैं।
नरीमन: हाँ, आगे बढ़ना सबसे महत्वपूर्ण है जो हम कर सकते हैं। यह सब छोड़ो। यह एक बुरा सपना है, यह एक संस्था के जीवनकाल में होता है। जिस तरह से मैं इसे देखता हूँ, संस्था उन व्यक्तियों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, जो हाल-फ़िलहाल के लिए ही संस्था में होते हैं। कुछ जज ऐसे हैं वैसे हैं आदि।
शेखर गुप्ताः समय के साथ-साथ न्यायाधीशों का कद बढ़ता है या घटता है?
नरीमन: मुझे नहीं लगता कि समय के साथ यह बढ़ता है या घटता है। हम में से उनका कद बढ़ता है जिनकी सराहना की जाती है।
शेखर गुप्ताः यही कारण है कि आपके कंधों पर इतना भार है। ऐसा लगता है कि शीर्ष वकीलों को इतना अधिक भुगतान किया जाता है जितना आपको कभी नहीं किया गया होगा क्योंकि आप लालची नहीं रहे हैं। मुझे पता है कि यही आपके पीछे छिपी आपकी मजबूती है। क्या आप निराश हैं कि वे आवाज नहीं उठा रहे हैं?
नरीमन: वे सभी मेरे सहकर्मी हैं इसलिए मैं उनके बारे में कुछ नहीं कह सकता। उनमें से प्रत्येक यह कहने का हकदार है कि उसे क्या पसंद है। मैंने अपने सहयोगियों में से एक को बताया था कि यदि आप एक न्यायाधीश पर अभियोग लगाना चाहते हैं, तो उचित आधारों पर ऐसा करें। आपको जान लेने के लिए गोली चलानी होगी। यदि आप चोट पहुँचाने के लिए गोली चलाते हैं तो यह किसी पुरुष या महिला को नहीं बल्कि संस्थान को चोट पहुँचाएगा।
शेखर गुप्ताः यहाँ तक कि हमारा संपादकीय विचार भी यही था कि यह सबसे बेहूदा कृत्य था, क्योंकि यह किसी उद्देश्य की तरफ नहीं जा रहा था।
नरीमन: वी. रामास्वामी का मामला, जो वहां गया था और एक या दो निर्णय कलकत्ता वगैरह से, से अलग यह बहुत ही गंभीर था। विभिन्न कारणों के चलते यह मामला इस तरीके से बाहर नहीं आया क्योंकि संसद सर्वोच्च है, जो कह सकता है कि समिति के फैसले के बावजूद वे इसे ख़ारिज कर सकते हैं – यह सही भी हो सकता है और गलत भी। असल में शांति भूषण जब रामास्वामी का महाभियोग वाजपेयी के पास हस्ताक्षर करने गए थे तब उन्होंने मुझसे कहा था कि, यह एक मामूली सी बात है। मैं वास्तव में वाजपेयी को याद करता हूँ, उनके पास सच को पहचानने की एक विलक्षण समझ थी।
शेखर गुप्ताः वाजपेयी ने इसे कैसे संभाला होगा?
नरीमन: मुझे नहीं पता कि उन्होंने इसे कैसे संभाला होगा लेकिन शायद मैं आपको बता सकता हूँ कि उन्होंने एक विशेष मंत्री को कैसे संभाला जिसने एक पदस्थ न्यायमूर्ति का अनादर किया था और कहा था कि वे शायद 65 वर्ष के हैं और उन्हें बहुत पहले सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए था। वाजपेई ने उनसे इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा बल्कि सीधे राष्ट्रपति के पास गए और उनसे उन मंत्री महोदय को बर्खास्त करने के लिए कहा।
शेखर गुप्ताः आप कॉलेजियम व्यवस्था से खुश हैं जिस प्रकार यह जारी है?
नरीमन: मैं इससे खुश नहीं हूँ। यह और विकट स्थिति की और बढ़ रही है। मैं सरकार द्वारा इसके स्वयं के नामांकित व्यक्तियों की नियुक्ति से खुश नहीं हूँ।
शेखर गुप्ताः आप एनजेएसी विचार से खुश नहीं हैं?
नरीमन: नहीं, मैं खुश नहीं हूं, लेकिन यह ठीक है। असल में, मैंने विपक्ष से कहा कि अगर सरकार वेंकटचालम सूत्र को अपनाने के लिए सहमत है तो मैं एनजेईसी के खिलाफ याचिका वापस लेने को तैयार हूँ। यह कॉलेजियम नहीं था – आयोग, तीन वरिष्ठ न्यायाधीश और दो अन्य सदस्य। कुछ प्रकार के न्यायाधीशों का बहुमत होना आवश्यक है, आप उन्हें अल्पसंख्यक की श्रेणी में नहीं रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे संविधान की मूल संरचना के संदर्भ में इसका प्रस्ताव रखते हैं।
शेखर गुप्ताः अगर ऐसा किया जाता है तो क्या सरकार की कार्यकारिणी शक्ति द्वारा इसे रोका नहीं जाना चाहिए?
नरीमन: बिल्कुल।
शेखर गुप्ताः यही सब कुछ था, मुस्कुराते रहें और खुश रहें, आप नहीं जानते कि आप कितने महत्वपूर्ण हैं।
नरीमन: धन्यवाद, आपसे मिलकर अच्छा लगा।
यह साक्षात्कार रत्नादीप चौधरी द्वारा लिखा और अमित उपाध्याय द्वारा संपादित किया गया था। यहाँ एनडीटीवी पर पूरा साक्षात्कार देखें।
Read in English : Top SC judges erred in holding press conference. Should’ve lumped it or quit: Fali Nariman