नयी दिल्ली,18अप्रैल (भाषा) राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि भारत में ‘वाद-विवाद’ तथा ‘संवाद’ की प्राचीन परंपरा है और आज का युवा उस धरोहर के साथ पुन:जुड़़ने का इच्छुक है।
राष्ट्रपति ने यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) के हीरक जयंती समारोह में यह बात कही। उन्होंने कहा कि भारत का प्राचीन दर्शनशास्त्र, जिसे दर्शन भी कहते हैं,उसे अक्सर अन्यंत्र कहीं भी तैयार किए गए सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक दस्तावेजों से कहीं अधिक तीक्ष्ण और गहरा माना जाता है।
उन्होंने कहा कि लोग,खासतौर पर युवा अधिक सीखने के इच्छुक हैं और ये सिर्फ तथ्यों की बात नहीं है बल्कि सत्य तक पहुंचने के आवश्यक चिंतन के माध्यमों के बारे में भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि जब विचारों के आदान-प्रदान के लिए 1958 में एक अंतरराष्ट्रीय मंच के तौर पर आईआईसी की कल्पना की गई थी, तब दुनिया एक निष्पक्ष और स्थिर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था तथा विरासत में मिले दो विश्व युद्धों के बोझ से जुड़े मुद्दों का सामना कर रही थी।
उन्होंने कहा कि एशिया और अफ्रीका में वि-उपनिवेशीकरण की प्रकिया चल रही थी,अब जब समसामयिक विश्व संक्रमणकालीन दौर से गुजर रहा है तो ऐसे में आईआईसी जैसे मंच और प्रासंगिक हो जाते हैं।
कोविंद ने कहा कि भारत के भविष्य और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में इसकी भूमिका के दृष्टिकोण से इस संस्था की स्थापना महिलाओं और पुरुषों ने की थी।
उन्होंने कहा कि आईआईसी एक जीवंत लोकतंत्र के भारत के दृष्टिकोण का प्रतीत है जहां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के साथ सौहार्द और समझ के माहौल में बातचीत शुरू करना संभव है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईसी के हीरक जयंती वर्ष में वह कामना करते हैं कि भारत भर में सैकड़ों आईआईसी हों, कई राज्यों और छोटे शहरों में हो तथा बहस और चर्चा के उच्च मानक स्थापित करें।
भाषा
शोभना उमा
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