नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग को छह महीने के अंदर ऐसे दिव्यांग परंतु मेधावी अभ्यर्थियों के लिए मेडिकल शिक्षा के कुछ विषयों की पढ़ाई करने की संभावना तलाशने का सोमवार को निर्देश दिया, जो शारीरिक विकलांगता की वजह से एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं ले सकते हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘लोकोमोटर विकलांगता’ (चलने फिरने में अक्षमता) से पीड़िता एक एमबीबीएस अभ्यार्थी की याचिका पर आदेश पारित किया है।
पीठ ने एक विशेषज्ञ निकाय की रिपोर्ट के मद्देनजर याचिकाकर्ता को कोई राहत देने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता फिट नहीं है। इस पीठ में न्यायमूर्ति नवीन चावला भी शामिल हैं।
अदालत ने कहा कि वह विशेषज्ञों की ‘राय को लेकर दायर अपील पर नहीं बैठी रह सकती है ‘ और यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता जो मेधावी प्रतीत होती है, अपनी शारीरिक विकलांगता के कारण पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं नहीं ले सकती है,’ लेकिन अधिकारियों से कहा कि वे इस पहलू पर गौर करें कि याचिकाकर्ता जैसे अभ्यार्थी अगर पूर्ण मेडिकल पाठ्यक्रम नहीं कर सकते हैं तो मेडिकल शिक्षा के कुछ विषयों की पढ़ाई कर लें।
अदालत ने कहा, “समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, हम याचिकाकर्ता को कोई राहत देने में खुद को असमर्थ पाते हैं, इस कारण से कि याचिकाकर्ता के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला लेने और एक डॉक्टर के रूप में सेवा करने की क्षमता के संबंध में मूल्यांकन विशेषज्ञों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, जो एम्स के विशेषज्ञों द्वारा किया गया है।”
पीठ ने कहा कि वे प्रतिवादियों को निर्देशित करते हैं कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति को ध्यान में रखते हुए इस बात की संभावना की तलाश करें कि याचिकाकर्ता जैसे अभ्यर्थी भले ही मेडिकल की पूर्ण पढ़ाई नहीं कर सकते हैं, लेकिन वे मेडिकल के कुछ विषयों की पढ़ाई कर सकते हैं या नहीं।
भाषा
नोमान मनीषा दिलीप
दिलीप
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