आईआरएस अधिकारियों का कहना है कि हमारे पास राजस्व और सरकार दोनों का अनुभव है। रेलवे और वन अधिकारियों के साथ भी कुछ ऐसा ही है। अभी भी इन मंत्रालयों का नेतृत्व आईएएस द्वारा किया जाता है।
नई दिल्ली: जहाँ एक तरफ नरेंद्र मोदी सरकार निजी क्षेत्र की प्रतिभा को उच्च नौकरशाही में लेटरल एंट्री की अनुमति देने पर विचार कर रही है, वहीं आईआरएस अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को लिखा है कि केवल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (आईएएस) में ही “योग्यता और पात्रता” नहीं है बल्कि यह अन्य केंद्रीय सेवाओं में भी है।
प्रधानमंत्री को तीखे शब्दों में लिखे गए पत्र में, भारतीय राजस्व सेवा संघ ने सचिव, अपर सचिव और संयुक्त सचिव पदों के लिए मनोनयन और चयन के मामलों में आईएएस अधिकारियों के पक्ष में “पक्षपात” का आरोप लगाया है।
22 जून 2018 के आठ पेज के पत्र में लिखा गया है, “वर्तमान में, आईआरएस का कोई भी अधिकारी सचिव स्तर पर और अपर सचिव स्तर के पद पर नहीं है। प्रणालीबद्ध पक्षपात के कारण हमारी सेवा से बहुत ही कम अधिकारियों को उस स्तर पर काम करने का मौका दिया गया है।”
यह भी लिखा है कि सरकार में सचिव स्तर, अपर सचिव और संयुक्त सचिव, पर “अन्य सेवाओं की योग्यता और पात्रता” को अनदेखा करते हुए “आईएएस से संबद्धता” के आधार पर नियुक्तियां की जाती हैं।
केंद्र सरकार के 81 सचिव स्तर के अधिकारियों में से 57 अधिकारी आईएएस हैं और केवल 24 अधिकारी ही अन्य सेवाओं और लेटरल एंट्री से हैं।
एक वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र द्वारा बाहरी प्रतिभा की तलाश के साथ, एसोसिएशन ने सोचा कि यह सरकार के भीतर “प्रतिभा पर प्रकाश डालने” का एक उपयुक्त क्षण था।
अधिकारी ने कहा, “लेटरल एंट्रियों के लिए दिया जा रहा कारण यह है कि यह क्षेत्र विशेषज्ञता रखने वाले उम्मीदवारों को चुनने में मदद करेगा। इस तर्क के हिसाब से, एक आईआरएस अधिकारी एक डोमेन एक्सपर्ट है, जिसके पास राजस्व और सरकार दोनों का अनुभव है। ठीक यही चीज रेलवे और वन अधिकारियों के लिए भी लागू होती है। अभी तक, इन सभी मंत्रालयों का नेतृत्व आईएएस अधिकारियों द्वारा किया जाता है।”
भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) के एक अधिकारी ने भी नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा कि अधिकारियों के बीच एक धारणा यह भी है कि सरकार “सुधार के मूड में है”।
अधिकारी ने यह कहते हुए कि अन्य सेवाओं के संगठन भी अपनी शिकायतों को व्यक्त करने पर विचार कर रहे हैं, कहा कि “यह उनका आखिरी साल है और वे लेटरल एंट्री के बारे में भी बात कर रहे हैं, इसलिए यह एक अच्छा समय था।”
एक ‘अपमानजनक‘ नीति
आईआरएस एसोसिएशन ने आईएएस अधिकारियों और अन्य केंद्रीय सेवा अधिकारियों के लिए “मनोनयन की अवकल नीति” को “अपमानजनक” कहा है। अब इसने प्रधानमंत्री से “सरकार में उच्च स्तरीय अधिकारियों के मनोनयन और चयन की मनमानी और भेदभावपूर्ण प्रणाली” को हटाने का अनुरोध किया है।
इसके पत्र में आरोप है कि केन्द्रीय कर्मचारी चयन योजना (सीएसएस), जो कि विभिन्न सेवाओं से योग्य अधिकारियों को केंद्र सरकार के पदों को आवंटित करने के लिए ज़िम्मेदार है, ने सचिव और अतिरिक्त सचिव पदों पर नियुक्ति के नियमों को बदला था।
आईआरएस पत्र के अनुसार, सभी 37 सेवाओं के अधिकारी, सचिव और अतिरिक्त सचिव पदों के लिए पात्र थे लेकिन 2001 में आईएएस अधिकारियों और अन्य केंद्रीय सेवाओं के बीच दो साल के अंतर को लेकर पात्रता मानदंड को बदल दिया गया था।
आईआरएस के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इसका प्रभावी अर्थ यह है कि राजस्व, वन और डाक सेवाओं जैसी केंद्रीय सेवाओं के अधिकारी आईएएस अधिकारियों, जो उनसे दो बैच जूनियर हैं, के बराबर हैं।
अधिकारी ने आगे कहा, “यह भी अपमानजनक है कि हमें उसी बैच के आईएएस अधिकारियों से दो साल जूनियर माना जाता है, जिन्होंने उसी परीक्षा के माध्यम से सिस्टम में प्रवेश किया है।”
पत्र बताता है कि, जहाँ आईएएस अधिकारियों को केंद्र सरकार में सचिव स्तर के पद की योग्यता के लिए सेवा में 32 साल के अनुभव की आवश्यकता होती है, वहीं उनके समकक्षों को 34-35 से भी अधिक वर्षों के अनुभव की आवश्यकता होती है, जिसके पहले ही ज्यादातर अधिकारी रिटायर हो जाते हैं।
आईआरएस अधिकारी ने कहा, “इन मनमाने नियमों के माध्यम से हमें व्यावहारिक रूप से समाप्त कर दिया गया है। सरकार में इतनी मजबूत आईएएस लॉबी है कि उन्होंने निश्चित रूप से अन्य सभी सेवाओं को अवरुद्ध कर दिया है।”
आईआरएस पत्र सातवें केंद्रीय वेतन आयोग के चेयरमैन न्यायमूर्ति ए.के. माथुर का भी उद्धरण देता है, जिन्होंने देखा था कि “कुछ समय से आईएएस ने शासन की सभी शक्तियों को स्वयं हथिया लिया है और अन्य सभी सेवाओं को द्वितीयक स्थिति में पहुँचा दिया है।”
माथुर ने कहा, “यदि सभी सेवाओं के साथ उचित और न्यायसंगत व्यवहार नहीं किया जाता है, तो आईएएस और अन्य सेवाओं के बीच का अंतर बढ़ जाएगा तथा इससे स्थिति अराजक हो सकती है और यह शासन एवं देश के लिए अच्छा नहीं होगा।”
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