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Sunday, 29 September, 2024
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‘बफर’ पूंजी व्यवस्था के उपयोग की फिलहाल जरूरत नहीं: रिजर्व बैंक

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नयी दिल्ली, पांच अप्रैल (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को कहा कि उसने उतार-चढ़ाव से निपटने के लिये बनायी गयी पूंजी व्यवस्था यानी प्रति चक्रीय ‘बफर’ पूंजी (काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर) का मौजूदा समय में उपयोग नहीं करने का निर्णय किया है क्योंकि इसकी अभी जरूरत नहीं है।

प्रति चक्रीय बफर पूंजी, वह कोष है जो एक बैंक व्यापार चक्र संबंधित जोखिम से निपटने के लिये रखता है। इसका उद्देश्य आर्थिक स्थिति में बदलाव से होने वाले नुकसान से बैंक क्षेत्र को संरक्षित करना है।

रिजर्व बैंक ने प्रति चक्रीय बफर पूंजी पर रूपरेखा को दिशानिर्देश के रूप में फरवरी 2015 में जारी किया था। इसमें सलाह दी गयी थी कि जरूरत पड़ने पर इस पूंजी व्यवस्था का उपयोग किया जा सकता है और निर्णय की घोषणा सामान्य रूप से पहले की जाएगी।

दिशानिर्देश में मुख्य संकेतक के रूप में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात में ऋण अंतर की परिकल्पना की गई है। इसका उपयोग अन्य पूरक संकेतकों के साथ किया जा सकता है।

केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा, ‘‘प्रति चक्रीय बफर पूंजी (सीसीवाईबी) संकेतकों की समीक्षा और विश्लेषण के आधार पर, यह निर्णय किया गया है कि इस समय सीसीवाईबी व्यवस्था के उपयोग की जरूरत नहीं है।’’

भारत में सीसीवाईबी ढांचे में कर्ज-जीडीपी अंतर मुख्य संकेतक होगा।

केंद्रीय बैंक के अनुसार, सीसीवाईबी व्यवस्था के दो उद्देश्य हैं। पहला, इसके तहत बैंकों के लिये जरूरी है कि वे अच्छे समय में पूंजी का बफर बनाएं, जिसका उपयोग कठिन समय में संबंधित क्षेत्र में कर्ज प्रवाह बनाये रखने में किया जा सकता है।

दूसरा, यह बैंक क्षेत्र को अतिरिक्त कर्ज वृद्धि के समय जरूरत से अधिक ऋण देने पर अंकुश लगाकर वृहत आर्थिक सूझबूझ लक्ष्य को प्राप्त करता है। अत्यधिक कर्ज वृद्धि प्राय: प्रणालीगत जोखिम से संबंधित होती है।

वर्ष 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनजर केंद्रीय बैंकों के गवर्नर के समूह और निगरानी प्रमुखों (जीएचओएस) ने प्रति चक्रीय पूंजी उपायों की रूपरेखा बनाने की परिकल्पना की थी। जीएचओएस बासेल समिति के निर्धारित मानकों की देखरेख करने वाली इकाई है।

भाषा

रमण अजय

अजय

रमण

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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