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Friday, 22 November, 2024
होमदेशWFH शुरू होने के बाद से कैसे ‘चीनी एप घोटाले’ लाखों भारतीयों को निशाना बनाकर लूट रहे हैं करोड़ों रुपए

WFH शुरू होने के बाद से कैसे ‘चीनी एप घोटाले’ लाखों भारतीयों को निशाना बनाकर लूट रहे हैं करोड़ों रुपए

इन घोटालों में निवेश या बाज़ियों पर छोटे भुगतान करके, लोगों को लुभाकर उनका भरोसा जीता जाता है. पुलिस का कहना है कि जब लोग ज़्यादा पैसा निवेश करने लगते हैं, तो वो ग़ायब हो जाता है.

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नई दिल्ली: 27 वर्षीय व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा, कि उसने पांच महीनों में 46 लाख रुपए कैसे गंवा दिए. पिछले साल सितंबर में वो एक अच्छा निवेश लगा था, जब एक महिला ने उसे छोटे समय के व्यावसायिक निवेशों पर मुनाफे के बारे बताया, लेकिन अब वो उसका शिकार हुआ है, जिसे पुलिस बाज़ार का सबसे ताज़ा घोटाला बता रही है, जिसमें चीनी एप्स भारतीयों से करोड़ों रुपए लूट रहे हैं.

वो पहली बार महिला के संपर्क में तब आया, जब उसने एक नंबर से संपर्क किया जो सोशल मीडिया पर दिया गया था. ‘अब घर बैठे पैसा कमाईए. ज़्यादा जानकारी के लिए 9xxxxxxxxx पर संपर्क करें’. शुरुआती निवेश बहुत कम थे और मुनाफा क़रीब 5 प्रतिशत था. वो बहुत रोमांचित हो गया- महिला सभी निवेशों पर उसका मार्गदर्शन कर रही थी.

मुनाफा देखकर उसे लगा कि ये बहुत अच्छी स्कीम थी, और बड़ा निवेश करने के लिए उसने अपनी पुश्तैनी ज़मीन भी बेंच दी. लेकिन आख़िर में उसे लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है- और उसे पता चला कि उसका पैसा डूब गया है. आख़िरकार, वो दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की साइबर यूनिट के पास पहुंच गया.

पुलिस के अनुसार, घोटाले में पहले निवेश या बाज़ियों पर छोटे भुगतान करके लोगों को लुभाया जाता है, और जब स्कीम में उनका भरोसा क़ायम हो जाता है, तो फिर पलक झपकते पीड़ितों का सारा पैसा ग़ायब हो जाता है.

इन ‘स्कीमों’ में तत्काल-वापसी के फायदे शामिल होते हैं, जो दैनिक, साप्ताहिक, या मासिक आधार पर वापसी का वादा करते हैं, जिसमें निवेश किए गए पैसे पर 5 से 25 प्रतिशत ब्याज, और कूपंस का लालच दिया जाता है, जिन्हें भुनाया जा सकता है.

कुछ ट्रेडिंग स्कीमों में लक्ष्यों को लुभाने के लिए, पहले मुनाफा कमाने में उनकी सहायता की जाती है, और एक बार उनकी एक बड़ी रक़म निवेश हो जाए, तो फिर उन्हें ब्लॉक कर दिया जाता है.

इसका एक और तरीक़ा बाज़ी के ज़रिए है, जिसमें यूज़र्स को अपने पैसे की बोली लगाने के लिए कहा जाता है, और फिर कुछ शुरुआती वापसियों के बाद, उस व्यक्ति को ब्लॉक कर दिया जाता है, और उसका पैसा ग़ायब हो जाता है. इनका निशाना बने लोगों में रिक्शापुलर से लेकर, जो अपने 100 रुपए के निवेश पर 5 रुपए मुनाफा कमाना चाहता है, वो लोग तक शामिल हैं, जो लाखों में निवेश करते हैं.


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पुलिस का कहना है कि ये घोटाले पहले कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान शुरू हुए, जो मार्च 2020 में शुरू हुआ था, और ये दिन के हर मिनट लाखों भारतीयों को निशाना बना रहे हैं. दिल्ली पुलिस के सूत्रों के अनुसार, ये एप घोटाले तब शुरू हुए, जब घर से काम करने की प्रथा ज़्यादा प्रचलित  हुई.

दिप्रिंट द्वारा देखे गए आंकड़ों से पता चलता है, कि 2020 से 2022 के बीच ऐसे व्यापक घोटालों के, जो कथित रूप से चीन-स्थित इकाइयों द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं, सात से अधिक मामले स्पेशल की इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रेटेजिक ऑपरेशंस (आईएफएसओ) यूनिट में दर्ज किए गए हैं. इनमें से पांच मामले सुलझा लिए गए हैं. इन मामलों में अभी तक कुल 40 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनमें कुछ चीनी नागरिक भी शामिल हैं.

पावर बैंक ऐप का मामला 

इसमें पावर बैंक एप केस भी शामिल है, जिसमें देश भर के 5 लाख से अधिक भारतीयों से, 300 करोड़ रुपए से अधिक लूटे गए. पिछले साल जून में 11 लोग गिरफ्तार किए गए थे, और दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में कहा, ‘पावर बैंक एप ने ख़ुद को बेंगलुरू में स्थित एक कंपनी की तरह पेश किया, जो त्वरित चार्जिंग टेक्नॉलजी के क्षेत्र में काम कर रही थी. इस एप का सर्वर चीन में लगा पाया गया’.
प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) इस सिंडिकेट द्वारा मनी लॉण्डरिंग किए जाने की जांच कर रहा है.
पावर बैंक एप जो उस समय गूगल के प्ले स्टोर पर लिस्टेड थी, एक बड़े साइबर घोटाला रैकेट के केंद्र में पाया गया, जो पीड़ितों को उनके पैसे को एक महीने में दो गुना करने के वादे के साथ फुसलाता था, और कभी कभी उन्हें साप्ताहिक या दैनिक आधार पर ब्याज भेजता भी था. उसी समय ऐसी एक और एप जिसके बारे में पुलिस को शिकायतें मिलीं, वो थी ईज़ेड प्लान, जो उसकी अपनी वेबसाइट पर होस्ट की जाती थी.
डीसीपी साइबर, अन्येश रॉय ने कहा था कि एप के मालिकान और मास्टरमाइंड चीन में बैठे लोग थे, जो भारत में बैठे अपराधियों के साथ मिलकर काम कर रहे थे. पुलिस का दावा था कि ये सिंडिकेट नक़ली वेबसाइट्स और एप्स के ज़रिए लोगों को निशाना बनाता था, और पैसे का सुराग़ छिपाने के लिए उसने शेल कंपनियां बनाई हुईं थीं.
दिल्ली पुलिस के एक सूत्र ने बताया, ‘इन लोगों के काम करने का तरीक़ा एक सा होता है- शुरू में संतोषजनक मुनाफा देकर, लक्ष्यों को पैसे के प्रलोभन में फंसाइए, और फिर उनकी पहुंच को ब्लॉक कर दीजिए’.

घोटालों के प्रकार और MO

इन घोटालों को मोटे तौर पर चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है- ट्रेडिंग तथा क्रिप्टो निवेश, सादा निवेश जिनके साथ ई-कॉमर्स साइट्स पर कूपंस जैसे ऑफर होते हैं, गेमिंग एप्लिकेशंस और बाज़ियां.

एक सूत्र ने बताया, ‘ये लक्ष्य ऐसे कोई भी लोग हो सकते हैं, जिनके पास इंटरनेट पहुंच के साथ एंड्रॉयड स्मार्ट फोन हो, जिनमें कुछ अतिरिक्त आय की इच्छा रखने वाली ग्रहिणी से लेकर, छात्र और व्यवसायी तक हो सकते हैं. हर श्रेणी में समाज के अलग अलग तबक़ों को निशाना बनाया जाता है. मसलन, गेमिंग एप्स में प्रमुख रूप से छात्र को लक्ष्य बनाया जाता है. ये उस समय और लाभदायक हो गया, जब कक्षाएं ऑनलाइन मोड में चलीं गईं’.

उन्हें अपने लक्ष्य कैसे मिलते हैं? इधर उधर देखिए, ये लगभग हर वो व्यक्ति है जो इंटरनेट इस्तेमाल करता है. हैशटैग्स के ज़रिए इन एप्स और वेबसाइट्स को फेसबुक और इंस्टाग्राम जैस सोशल मीडिया साइट्स पर ट्रेंड किया जाता है, और उन्हें स्क्रोल करने वाला हर कोई व्यक्ति एक निशाना बन जाता है. व्हाट्सएप और टेलीग्राम ग्रुप्स भी इन एप्स से जुड़ी पोस्टों को प्रोत्साहित करते हैं. आपको यूट्यूब के कमेंट्स सेक्शन और पायरेटेड फिल्मों की साइट्स पर भी, इन एप्स से जुड़ी पोस्ट दिख जाएंगी.

एक दूसरे सूत्र ने बताया, ‘अधिकतर समय इन लिंक्स को पोस्ट करने वाले, और एप्स के लिए काम करने वाले लोग, घोटाले से वाक़िफ नहीं होते- वो डमी होते हैं. वो इसे किसी नौकरी की तरह समझते हैं’.

मसलन, सूत्र ने समझाया, कि कोई पोस्ट हो सकती है जो जल्दी से पैसा बनाने के लिए, किसी निवेश या क्रिप्टो स्टार्ट-अप के लिए घर से काम करने का प्रचार करती है. जब इच्छुक व्यक्ति दिए गए नंबर पर संपर्क करते हैं, तो एक छोटे से इंटरव्यू के बाद उन्हें पार्टनर के तौर पर हायर कर लिया जाता है- और उनका इस्तेमाल पैसे के निशान छिपाने के लिए, फर्ज़ी बैंक खाते और शेल कंपनियां खोलने में किया जाता है.

सूत्र ने आगे कहा, ‘वो भी एक तरह से घोटाले का शिकार होते हैं, चूंकि मुख्य संचालक चीन में बैठे होते हैं. उन्हें कंपनी प्रमुखों की ओर से इन स्कीमों के बारे में, व्हाट्सएप, टेलीग्राम, और फेसबुक पर संदेश प्रसारित करने के लिए कहा जाता  है’.

सूत्रों ने बताया कि इन रैकेट्स की कई परतें होती हैं, और कमान की श्रंखला सीधी नहीं होती.

सूत्र ने कहा, ‘सोशल मीडिया अकाउंट्स देखने के अलावा, इन डमीज़ को बैंक खाते बनाने के लिए भी कहा जाता है. लूटे गए पहले शिकार का पैसा इसी खाते में भेजा जाता है. डमी से कहा जाता है कि ये आपका हिस्सा है- उसके खाते या वॉलट में ट्रांसफर होने वाले 50,000 रुपए में से 5,000 रुपए. फिर उससे बाक़ी रक़म को किसी दूसरे खाते में भेजने के लिए कहा जाता है’.


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फिर एक दूसरे पार्टनर से इस पैसे को सीधे शेल कंपनियों के खातों में भेजने के लिए कहा जाता है, या उससे क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंज बाइनेंस पर एक खाता खोलने को कहा जाता है.

सूत्र ने आगे बताया, ‘फिर उनसे कहा जाता है कि बाइनेंस खाते का ब्यौरा, मुख्य संचालक के साथ साझा करें जो इस पैसे को निकालकर, कुछ समय बाद इन डमीज़ को ब्लॉक कर देता है. कभी कभी इनसे पैसे को फोनपे या पेटीएम जैसे वॉलेट्स में भेजने के लिए भी कहा जाता है.

भारत में बाज़ी लगाना ग़ैर-क़ानूनी है, लेकिन गेमिंग नहीं. लेकिन सूत्रों ने बताया कि कुछ गेमिंग एप्स एल्गॉरिथ्म में भी धोखा करती हैं. सूत्र ने कहा, ‘पहले वो आपको खेलने के लिए सिक्के ख़रीदने को कहती हैं, और शुरू में आप जीतते रहते हैं. कुछ समय के बाद दांव पर लगाई जाने वाली रक़म बढ़ती जाती है, और आप खेल में हारते जाते हैं’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘सरल निवेश कम समय के निवेश ऑफर्स के साथ आते हैं. मसलन, इसमें कहा जाता है कि अमुक रक़म निवेश कीजिए, और आपको एक रेफरल कोड मिलेगा. रेफरल कोड से कूपंस और डिस्काउंट्स हासिल किए जा सकते हैं. एक बार शिकार एक बड़ी रक़म निवेश कर देता है, तो फिर एप या वेबसाइट यूज़र को ब्लॉक कर देती है’.

सूत्रों ने कहा कि अधिकतर मामलों में, शुरू में पीड़ितों के संपर्क में महिलाएं आती हैं, जो देश के बाहर के नंबरों का इस्तेमाल करके उनसे संपर्क करती हैं.

सूत्र ने बताया, ‘लक्ष्य के साथ एक घनिष्ठता सी बना ली जाती है. जब वो उस व्यक्ति पर विश्वास करने लगता है, तो उससे निवेश करने के लिए कहा जाता है. इससे पहले कि उसे  घोटाले का अहसास हो, एक ही शिकार को कई बार लूटा जा सकता है’.

जांच-पड़ताल में बाधाएं

ऐसी अधिकतर एप्स एक ही वेबपेज का हिस्सा होती हैं, जिनके यूआरएल बदलते रहते हैं.

सूत्रों ने कहा कि जांच में सबसे बड़ी बाधा ये है, कि लोग पहली बार में ही धोखा-धड़ी की ख़बर नहीं देते. एक तीसरे सूत्र ने कहा, ‘वो शिकायत तब दर्ज कराते हैं, जब उनका बहुत सारा पैसा डूब चुका होता है. जब तक जांच शुरू होती है, तब तक यूआरएल, आईडीज़, और बांक खाते, सब बंद कर दिए जाते हैं, और कड़ी टूट जाती है’.

सूत्रों ने बताया कि इन शेल कंपनियों के ज़रिए, पैसे को देश से बाहर भेज दिया जाता है, और उसे वापस हासिल करना लगभग असंभव हो जाता है. सूत्र ने कहा, ‘जब पैसे को क्रिप्टो में बदलकर बाहर भेज दिया जाता है, तो फिर पूरी रक़म को वापस पाने के लिए, कुछ नहीं किया जा सकता’.

डीसीपी साइबर सेल, आईएफएसओ, केपीएस मल्होत्रा ने कहा, ‘त्वरित लोन एप्स लॉकडाउन के दौरान शुरू हुईं थीं. ये एक बड़ा व्यवस्थित अपराध है, जिसने बड़ी संख्या में भारतीयों को निशाना बनाया है. चाहे गेम्स के ज़रिए हो, या घर से काम के ज़रिए, ये एप्स दिन के हर मिनट भारतीयों को निशाना बना रही हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन असली अपराधी अकसर देश से बाहर बैठे होते हैं, जो लूटे गए पैसे का सुराग़ लगाने में एक बड़ी बाधा होती है. अधिकतर मामलों में पैसे का लेनदेन धोखे से हासिल किए गए खातों, और वीओआईपी (वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकोल) संचार के माध्यम से होता है, जिससे जांच में बाधाएं बढ़ जाती हैं’.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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