नई दिल्ली: शुक्रवार को पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ को पंजाब में ट्रांसफर करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया. इस बात की जानकारी पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दी है.
मान ने कहा कि ‘चंडीगढ़ को पंजाब ट्रांसफर करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया. अब पंजाब के मुद्दों और अधिकारों के लिए हम केंद्र सरकार से संपर्क कर रहे हैं. हम इसके लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से वक्त मांगेंगे. जहां भी जरूरत होगी हम पंजाब के अधिकारों के लिए जाएंगे.’
बता दें कि सीएम मान ने भारतीय जनता पार्टी के दो विधायकों की अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव पेश किया था. इन विधायकों ने सदन से बहिर्गमन किया था.
विधानसभा का यह एक-दिवसीय विशेष सत्र केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उस घोषणा के परिप्रेक्ष्य में बुलाया गया था जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय सेवा नियम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर भी लागू होंगे.
आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल के सदस्य और बहुजन समाज पार्टी के इकलौते विधायक इस प्रस्ताव के समर्थन में आए और केंद्र के कदम को ‘तानाशाही और निरंकुश’ करार दिया.
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क्या कुछ कहता है प्रस्ताव
प्रस्ताव में कहा गया है, ‘पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 के जरिए पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पंजाब राज्य का, हरियाणा राज्य, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुनर्गठन किया गया और पंजाब के कुछ हिस्से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए.’
इसमें कहा गया है कि ‘तब से पंजाब और हरियाणा राज्य के उम्मीदवारों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पदों को देकर साझा संपत्तियों जैसे कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के प्रशासन, में संतुलन रखा गया. हाल के अपने कई कदमों से केंद्र सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.’
प्रस्ताव के मुताबिक, केंद्र सरकार ने बीबीएमबी के सदस्यों के पद का विज्ञापन सभी राज्यों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए खोला जबकि इन पदों पर पारंपरिक रूप से पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों की भर्ती होती है. इसी तरह चंडीगढ़ का प्रशासन हमेशा पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों ने 60:40 के अनुपात में किया है.
इसमें कहा गया है, ‘बहरहाल, हाल में केंद्र सरकार ने बाहर के अधिकारियों को चंडीगढ़ में तैनात किया और चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू किए जो पूर्व में बनी सहमति के बिल्कुल खिलाफ है. चंडीगढ़ शहर को पंजाब की राजधानी के तौर पर बनाया गया. पूर्व में जब भी किसी राज्य को विभाजित किया गया तो राजधानी मूल राज्य के पास रही है. इसलिए पंजाब चंडीगढ़ को पूरी तरह पंजाब को हस्तांतरित करने के लिए अपना दावा पेश कर रहा है.’
मान ने कहा कि पहले भी इस सदन में चंडीगढ़ को पंजाब को हस्तांतरित करने का केंद्र सरकार से अनुरोध करते हुए कई प्रस्ताव पारित हुए हैं.
सदन में मुख्यमंत्री मान द्वारा लाए गए प्रस्ताव के अनुसार, ‘सौहार्द बनाए रखने और लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह सदन एक बार फिर चंडीगढ़ को तत्काल पंजाब को हस्तांतरित करने के मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने की सिफारिश करता है.’
इसमें कहा गया है, ‘यह सदन केंद्र सरकार से भी हमारे संविधान में प्रदत्त संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने और ऐसा कोई कदम न उठाने का अनुरोध करता है जिससे चंडीगढ़ का प्रशासन और बीबीएमबी जैसी उसकी साझा संपत्तियों का संतुलन बिगड़ता हो.’
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‘अब केंद्र राज्य के पानी को छीनने की कोशिश करेगा’
प्रस्ताव पेश होने के बाद चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है और उन्होंने मान से पंजाब के महाधिवक्ता से विचार-विमर्श करने और राज्य के पास उपलब्ध सभी कानूनी विकल्पों को तलाशने का अनुरोध किया.
उन्होंने राज्य सरकार से इस मुद्दे को प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष उठाने का भी अनुरोध किया. बाजवा ने वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों पर राज्य के हितों को नजरअंदाज करने के आरोप पर कड़ी आपत्ति जताई.
कांग्रेस विधायक तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने भगवंत मान की अगुवाई वाली सरकार से इस लड़ाई को आगे ले जाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि पूरा सदन सत्तारूढ़ दल के साथ है. उन्होंने डर जताया कि अब केंद्र राज्य के पानी को छीनने की कोशिश करेगा.
उन्होंने कहा, ‘पंजाब के लोगों ने आपको (आप) भारी जनादेश दिया है. आपको यह लड़ाई आगे ले जानी होगी. पंजाब के हितों की रक्षा के लिए जो भी जरूरी होगा, उसके लिए हम आपके साथ हैं.’
आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा ने कृषि कानून लागू करने और बीएसएफ मुद्दे (सीमा सुरक्षा बल का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने) के केंद्र के पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए उस पर पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया.
अरोड़ा ने राज्य में अपने 24 साल के शासन के दौरान इस प्रस्ताव को न लाने के लिए कांग्रेस पर भी निशाना साधा.
शिअद विधायक मनप्रीत सिंह अयाली ने कहा कि वह इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन करते हैं.
कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैड़ा ने केंद्र के हाल के कदम को ‘पूरी तरह गलत, एकतरफा, निरंकुश, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक’बताया.
प्रस्ताव का विरोध करते हुए बीजेपी विधायक अश्विनी शर्मा ने कहा कि पंजाब पुनर्गठन कानून के नियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ. वह बोलने की अनुमति न मिलने के बाद बीजेपी के अन्य विधायक जांगी लाल महाजन के साथ सदन से बाहर चले गए.
भाषा के इनपुट से
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