scorecardresearch
Thursday, 14 November, 2024
होमहेल्थ'DNA-आधारित, सुई-मुक्त कोविड टीका ZyCoV-D फेज़ 3 ट्रायल में 67% प्रभावी'- लांसेट

‘DNA-आधारित, सुई-मुक्त कोविड टीका ZyCoV-D फेज़ 3 ट्रायल में 67% प्रभावी’- लांसेट

भारत की नियामक अथॉरिटीज़ ने ज़ाइडस लाइफ साइंसेज़ (जो पहले कैडिला हेल्थकेयर नाम से जानी जाती थी) की ज़ाइकोव-डी को 12 वर्ष से बड़े बच्चों के लिए स्वीकृति दे दी है लेकिन वैक्सीन अभी देश के बाज़ार में नहीं आई है.

Text Size:

नई दिल्ली: दुनिया की पहली डीएनए-आधारित वैक्सीन ज़ाइकोव-डी के तीसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल से पता चला है कि सुई-मुक्त, तीन ख़ुराक वाली वैक्सीन 66.6 प्रतिशत कारगर है- ये ख़ुलासा दि लांसेट पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों में किया गया है.

हालांकि भारत की नियामक अथॉरिटीज़ ने ज़ाइडस लाइफ साइंसेज़ (जो पहले कैडिला हेल्थकेयर नाम से जानी जाती थी) की ज़ाइकोव-डी को 12 वर्ष से बड़े बच्चों के लिए स्वीकृति दे दी है लेकिन वैक्सीन अभी देश के बाज़ार में नहीं आई है.

2020 में विकसित, जानवरों में शुरूआती अध्ययन से ज़ाहिर हुआ कि वैक्सीन एंटीबॉडी रेस्पॉन्स पैदा करती है जिसमें सार्स-कोव-2 के खिलाफ एंटीबॉडीज़ निष्क्रिय हो जाते हैं. बाद में 1,048 इंसानी वॉलंटियर्स में पहले और दूसरे दौर के ट्रायल्स में वैक्सीन को सुरक्षित पाया गया.

वैक्सीन्स में जनेटिक्ली इंजीनीयर किया गया एक प्लाज़्मिड होता है- एक छोटा डीएनए मॉलिक्यूल जो स्वतंत्र रूप से ख़ुद को दोहरा सकता है. प्लाज़्मिड इस तरह बना होता है कि ये वायरस का स्पाइक प्रोटीन बनाता है, जो फिर एक रक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करता है.

निष्क्रिय बनाए गए वैक्सीन्स के विपरीत, जिन्हें वायरसों की मृत या निष्क्रिय रूप में ज़रूरत होती है, डीएनए-आधारित वैक्सीन्स को किसी सार्स-कोव-2 वायरस स्ट्रेन की ज़रूरत नहीं होती. इस कारण से वायरस को विकसित करना कहीं अधिक आसान हो जाता है. चूंकि उसे कम से कम जैव-सुरक्षा ज़रूरतों के तहत निर्मित किया जा सकता है.

वैक्सीन में किसी संक्रामक एजेंट के न होने की वजह से इसे न्यूनतम जैव-सुरक्षा ज़रूरतों (बीएसएल-1) के तहत निर्मित किया जा सकता है.

ज़ाइकोव-डी एक सुई-मुक्त इंजेक्शन डिवाइस से दिया जाता है.

वैक्सीन का ट्रायल, जो भारत में किया गया, दुनिया भर में तीसरे चरण का पहला ट्रायल है, जिसमें एक सुई-मुक्त डिवाइस का इस्तेमाल किया गया है और ये भी पहली बार है कि कोई कोविड-19 वैक्सीन भारत में 12-17 के आयु वर्ग में आज़माई जा रही है.

कुल मिलाकर, स्टडी से ज़ाहिर हुआ कि त्वचा के अंदर लगने वाला ज़ाइकोव-डी इंजेक्शन सुरक्षित और सहज है और ये एक बड़ी आबादी में कोविड-19 बीमारियों से सफलतापूर्वक बचाव कर सकता है.

लेखकों ने अपनी स्टडी में लिखा, ‘इसके अलावा, डीएनए वैक्सीन प्लाज़मिड डीएनए प्लेटफॉर्म पर आधारित है जिससे तेज़ी के साथ नए कंस्ट्रक्ट पैदा होते हैं. इस प्रकार ज़ाइकोव-डी एक नई पीढ़ी की डीएनए वैक्सीन्स का रास्ता साफ कर सकती है, जो म्यूटेंट स्ट्रेन्स से निपटने में सक्षम होंगी’.

उन्होंने कहा, ‘हम अपेक्षा करते हैं कि इस स्टडी का एक बड़ा परिणाम ये होगा कि सार्स-कोव-2 जैसी अत्यधिक संक्रामक बीमारियों के खिलाफ, डीएनए-आधारित रोगनिरोधी चिकित्सा शुरू हो जाएगी’.

स्टडी से ज़ाहिर हुआ कि एक सुई-मुक्त इंजेक्शन के ज़रिए, त्वचा के अंदर पहुंचाई गईं ज़ाइकोव-डी की तीन ख़ुराकें, कोविड-19 के खिलाफ 66.0 प्रतिशत कारगर पाई गईं.

ये स्टडी भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के चरम पर की गई थी जो मुख्य रूप से बी.1.617.2 (डेल्टा) वेरिएंट के कारण आई थी. 27,703  वॉलंटियर्स ने ट्रायल में हिस्सा लिया जिनमें से 13,851 को वैक्सीन दी गई जबकि बाक़ी को एक प्लेसिबो दिया गया.

ये टीम जिसमें ग्रांट गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, मुंबई के सर जेजे अस्पताल समूह, बेंगलुरू के एनआरआर अस्पताल और कैडिला हेल्थकेयर के डॉक्टर शामिल थे. इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि ज़ाइकोव-डी वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी है.

शोधकर्त्ताओं ने कहा, ‘ये देखते हुए कि ज़ाइकोव-डी ग्रुप में कोई गंभीर या मामूली कोविड-19 मामले नहीं पाए गए और अंतरिम विश्लेषण के नतीजों के आधार पर ये वैक्सीन गंभीर और मध्यम कोविड-19 मामलों के खिलाफ 100% और हल्के कोविड-19 मामलों के खिलाफ 64.9% प्रभावी पाई गई’.

स्टडी के मुताबिक़, ‘इसलिए मुमकिन है कि गंभीर और मध्यम मामले जो मौतों में बदलकर हेल्थ-केयर प्रणालियों पर भारी दवाब डाल सकते हैं, ज़ाइकोव-डी का इस्तेमाल करके उन्हें मुकम्मल टीकाकरण के साथ काफी हद तक रोका जा सकता है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मीराबाई के पद, टैगोर और किशोर के गीत- रिटायर हो रहे राज्यसभा सदस्यों के संगीतमय विदाई की तैयारी


share & View comments