सुनील अरोड़ा, जो दिसंबर में मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में प्रभारी होंगे, होने वाले आम चुनाव की समाप्ति तक केवल 10 विधान सभा चुनाव की देख रेख कर चुके होंगे जो कि 2009 और 2014 में रहे उनके पूर्ववर्तियों के आधे अनुभव से भी कम है।
नई दिल्ली: कुछ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने इस तथ्य के बारे में चिंता व्यक्त की है कि एक अपेक्षाकृत अनुभवहीन अधिकारी अगले साल के लोकसभा चुनाव में देश के शीर्ष चुनाव निकाय का नेतृत्व करेगा। यह रिपोर्ट उस समय आई है जब चुनाव आयोग के आचरण पर सवाल उठाए गए हैं।
21 मई को पूर्व ईसी प्रमुखों के साथ एक बंद दरवाजे की बैठक में यह मुद्दा मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत और दो चुनाव आयुक्तों, सुनील अरोड़ा और अशोक लवासा द्वारा उठाया गया था।
2019 के आम चुनाव की समाप्ति तक मुख्य चुनाव आयुक्त केवल 10 विधान सभा चुनाव की देख रेख कर चुके होंगे जो कि 2009 और 2014 में रहें उनके पूर्ववर्तियों के आधे अनुभव से भी काफी कम है।
‘बहुत जटिल’
तत्कालीन सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त आरोड़ा दिसंबर 2018 में, रावत के कार्यालय छोड़ने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप कार्य भार संभालेंगे। वह पिछले साल सितंबर में चुनाव आयोग में शामिल हुए थे, जिसका मतलब है कि वह 2019 के चुनाव से पहले दो साल से भी कम समय कार्यालय में व्यतीत कर चुके होंगे।
अरोड़ा के बाद लवासा, जिन्होंने इसी साल 23 जनवरी को पद संभाला है, चुनाव आयोग में दूसरे सबसे वरिष्ठ आधिकारी होंगे जो कि अरोड़ा से भी कम चुनावों का संचालन कर चुके होंगे। इसी बीच शेष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति दिसंबर में होगी।
पिछले हफ्ते हुई बैठक में भाग लेने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों में एमएस गिल, जेएम लिंगदोह, टीएस कृष्णमूर्ति, बीबी टंडन, एसवाई कुरैशी, वीएस संपथ, एचएस ब्रह्मा और नसीम जैदी, साथ ही पूर्व चुनाव आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति की भी उपस्थित थे।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों में से एक ने कहा, “कुछ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने इस मुद्दे को उठाया क्योंकि कुछ महीनों या एक वर्ष के अनुभव के साथ चुनाव कराने में बहुत मुश्किल हो सकती है। आपको राष्ट्रीय स्तर के चुनाव कराने के लिए कुछ पूर्णता और लगभग तीन से पाँच साल का अनुभव चाहिए होता है।”
हालांकि, पूर्व आईएएस अधिकारी अरोड़ा ने कहा कि सरकार ने राष्ट्रीय चुनाव की निगरानी करने के लिए चुनाव आयोग के योग्य अधिकारियों के लिए चुनावों की संख्या निर्धारित करने के कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं किये हैं। उन्होंने आगे कहा, “आईएएस अधिकारी के रूप में, हम नियमित रूप से नये कार्यों में शामिल होते हैं और सीखने की पूरी कोशिश करते हैं।”
संख्याओं में कमी क्यों?
अब तक आयोग में अपने कार्यकाल के दौरान अरोड़ा ने गुजरात सहित छह राज्यों में विधानसभा चुनावों की निगरानी की है, जहाँ चुनाव आयोग का आचरण गंभीर आलोचना के घेरे में आया था। 2019 के आम चुनाव से पहले चार अन्य राज्यों – राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव होने हैं।
इसके विपरीत, वीएस संपथ ने 2014 के लोकसभा चुनावों की अध्यक्षता करने से पहले तक चुनाव आयोग के सदस्य के रूप में 25 विधानसभा चुनावों की देखरेख की थी।
2009 में हुआ चुनाव भारत के इतिहास में एकमात्र ऐसा चुनाव था, जिसका दो मुख्य चुनाव आयुक्तों, नवीन चावला और एन गोपालस्वामी ने पर्यवेक्षण किया था। लोकसभा चुनाव से पहले कुल 23 और 31 विधानसभा चुनाव क्रमशः चावला और गोपालस्वामी के पर्यक्षण में आयोजित किए गए थे।
गोपालस्वामी ने कहा कि आम चुनाव आयोजित करने से पहले एक मुख्य चुनाव आयुक्त की अध्यक्षता में आयोजित चुनावों की संख्या “महत्वपूर्ण” नहीं है। उन्होंने कहा, “मायने यह रखता है कि आप आयोग की संस्थागत स्मृति से कितना लाभ उठा सकते हैं क्योंकि मुद्दे पुराने जैसे ही रहते हैं।”
Read in English : Election Commission inexperienced to handle 2019, fear former poll body chiefs