नई दिल्ली: भारत में ‘राष्ट्रीय टीबी प्रसार’ पर केंद्र सरकार की तरफ से कराया गया सर्वेक्षण गुरुवार को विश्व टीबी दिवस के अवसर पर जारी किया गया है, जिसमें पाया गया कि इस बीमारी की लक्षणों वाली एक बड़ी आबादी (64 प्रतिशत) ने 2019 और 2021 के बीच इलाज की कोई सुविधा नहीं ली.
तीन वर्ष तक चला यह सर्वेक्षण 1955-58 के बाद से देश भर में अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है, और देश में यह केवल दूसरा मौका है जब टीबी की बीमारी के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए इस तरह का कोई राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया गया है.
सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि 15 वर्ष से अधिक आयु के भारतीयों में टीबी के बीमारी की संभावना प्रति 1 लाख आबादी पर 312 मामले है, जो कि प्रति 1 लाख लोगों पर लगभग 127 मामलों के वैश्विक औसत से दोगुनी ज्यादा है.
दिल्ली में प्रति एक लाख आबादी पर 534 मामलों के साथ टीबी की बीमारी सबसे ज्यादा होती है, इसके बाद राजस्थान में 484, उत्तर प्रदेश में 481 और हरियाणा में 465 मामले सामने आते हैं. केरल में यह आंकड़ा सबसे कम प्रति एक लाख पर 115 मामले है.
सर्वेक्षण के मुताबिक, 20 राज्यों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में माइक्रोबायोलॉजिकली पुष्ट पल्मोनरी टीबी की बीमारी काफी ज्यादा होती है. सर्वे ने इलाज कराने की इच्छा संबंधी मरीजों के व्यवहार और टीबी संक्रमण बढ़ने की संभावनाओं का भी पता लगाया.
इसके लिए नेशनल सैंपल साइज 5,00,000 रखा गया था और इसे 625 क्लस्टर समूहों में बांटा गया, जिसमें हर एक में 800 की आबादी कवर की गई. एक मानक प्रश्नावली और सीने की एक्स-रे स्क्रीनिंग का इस्तेमाल करते हुए सभी पात्र अध्ययन प्रतिभागियों के लक्षणों की जांच की गई.
अत्यधिक संक्रामक बीमारियों में शुमार टीबी दो प्रमुख वजहों से भारत के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती है, एक तो कुपोषण और दूसरा अधिक भीड़भाड़ की वजह से इस बीमारी का संक्रमण तेजी से फैलने के पूरे आसार रहते हैं. लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता जब तक मजबूत बनी रहती है तब तक टीबी के बैक्टीरिया कोई नुकसान पहुंचाए बिना उनके शरीर में बने रह सकते हैं और जैसे ही इम्युनिटी कमजोर होती है, वे एकदम धावा बोल सकते हैं.
यह भी पढ़ेंः दक्षिण पूर्वी एशिया में टीबी के 45 लाख नए मामलों को रोकने के लिए तीन अरब डॉलर के वार्षिक निवेश की जरूरत: डब्ल्यूएचओ
‘हर 284 मामलों में लगभग 100 ही सामने आते हैं’
सर्वेक्षण में एक चौंकाने वाला निष्कर्ष सामने आया कि 64 प्रतिशत ऐसे लोगों ने इलाज की कोशिश नहीं की जिसमें बीमारी के लक्षण थे. इसके बारे में लोगों के बताए कारणों में लक्षणों की अनदेखी (68 प्रतिशत), लक्षणों को टीबी के रूप में नहीं पहचानना (18 प्रतिशत), खुद ही इलाज करना (12 प्रतिशत) और देखभाल में असमर्थ होना (2 प्रतिशत) शामिल हैं.
सर्वेक्षण में शामिल जिन 36 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अपने लक्षणों को देखकर स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश की, सरकारी और निजी अस्पतालों को लेकर उनकी प्राथमिकता समान थी.
सर्वेक्षण में पाया गया कि वयस्कों में पल्मोनरी टीबी की संभावना से सूचना तक का अनुपात लगभग 2.84 है, जिसका अर्थ है कि देश में ऐसे हर 284 मामलों में केवल लगभग 100 ही रिपोर्ट किए जाते हैं. ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि 2012 से देश में टीबी के सभी मामलों को अधिसूचित किया जाना अनिवार्य हो चुका है. ऐसा न करने पर डॉक्टरों को जेल की सजा तक हो सकती है, इसलिए यह संभावना अधिक है कि ये ऐसे मरीज हैं जिनका वर्तमान में इलाज नहीं हो रहा है.
रिपोर्ट में बताया गया है, ‘(इस) सर्वेक्षण से पता चला है कि सामने आए टीबी के मामलों में 12 प्रतिशत में पहले से ही इलाज चल रहा था और 23.3 प्रतिशत में इलाजा कराया जा चुका था, ऐसे में इलाज करा चुके मरीजों में फिर से टीबी होने का समय पर पता लगाने और उपचार करा चुके मरीजों के फिर टीबी की चपेट में आने से रोकने के लिए फॉलोअप के तौर पर उपयुक्त कदम उठाने की जरूरत है.’
इसमें कहा गया है, ‘मरीजों को कॉमन फैसिलिटी पर ज्यादा भरोसा है; ऐसे में निजी क्षेत्र की भागीदारी से सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज की गुणवत्ता सुधारने की जरूरत है.’
‘2025 तक टीबी उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध’
विश्व टीबी दिवस के मौके पर विज्ञान भवन में आयोजित समारोह, जहां सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की गई, में मौजूद गणमान्य लोगों ने विश्व स्तर पर निर्धारित लक्ष्य से पांच साल पहले यानी 2025 तक टीबी उन्मूलन लक्ष्य हासिल करने की भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया.
राज्य मंत्री (स्वास्थ्य) भारती प्रवीण पवार ने बताया कि कोविड-19 से जूझने के अनुभवों ने कैसे भारत को टीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई मजबूती से लड़ने के लिए प्रेरित किया है. वहीं, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि सभी लोगों को टीबी पीड़ित एक बच्चे को गोद लेना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसे पर्याप्त पोषण मिल पाएगा.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि टीबी की निगरानी के लिए भी जीनोमिक सर्विलांस का इस्तेमाल किया जाएगा. उन्होंने ‘डेयर टू इरेज टीबी’ प्रोग्राम लॉन्च करने की घोषणा की, जो भारतीय डेटा और डब्ल्यूजीएस (पूरी जीनोम सीक्वेंसिंग) टीबी सर्विलांस के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टियम के गठन पर आधारित है. उन्होंने देश में टीबी की बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए डिसीज बायोलॉजी, दवाओं की खोज और वैक्सीन विकास की दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तरफ से किए जा रहे प्रयासों को भी रेखांकित किया.
दवा प्रतिरोधी टीबी दुनिया भर की तुलना में भारत में सबसे बड़ी समस्या है. स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि महामारी के बावजूद देश टीबी उन्मूलन को लेकर 2025 की समय सीमा पर खरा उतरेगा जो लक्ष्य मूलत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में निर्धारित किया था.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः भारत में 360 डिग्री समग्र दृष्टिकोण टीबी उन्मूलन के लिए आधारशिला : मांडविया