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Monday, 18 November, 2024
होमदेशतेलंगाना का ‘GO 111’ क्या है और क्यों इसे ‘खत्म’ करने का KCR का फैसला निजाम-युग के जलाशयों के लिए खतरा बन गया है

तेलंगाना का ‘GO 111’ क्या है और क्यों इसे ‘खत्म’ करने का KCR का फैसला निजाम-युग के जलाशयों के लिए खतरा बन गया है

केसीआर ने राज्य विधानसभा में कहा कि 1996 में जारी सरकारी आदेश अब बेमानी हो गया है. उस समय यह आदेश हिमायत सागर और उस्मान सागर जलाशयों के संरक्षण के लिए लाया गया था.

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हैदराबाद: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने इसी हफ्ते 26 साल पुराना एक सरकारी आदेश (जीओ) रद्द करने की घोषणा की है, जिससे निजाम-युग के दो जलाशयों पर संकट मंडराने लगा है और लाखों एकड़ जमीन कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो जाने भी खतरा उत्पन्न हो गया है.

केसीआर ने मंगलवार को राज्य विधानसभा में कहा कि 1996 में जारी सरकारी आदेश 111 बेमानी हो चुका है और अब इसे ‘निरस्त’ करने का समय आ गया है. उन्होंने कहा कि सरकार विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट आने के बाद इस दिशा में कदम उठाएगी.

हालांकि, सरकार के इस फैसले को कई विशेषणों ने ‘लापरवाही’ करार दिया है.

आखिर जीओ 111 क्या है?

पूर्ववर्ती आंध्र प्रदेश सरकार ने यह आदेश दो जलाशयों हिमायत सागर और उस्मान सागर के पूर्ण टैंक स्तर के 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के बड़े निर्माण और औद्योगिक गतिविधि को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से जारी किया था. ये जलाशय दशकों तक शहर में पेयजल का स्रोत रहने के साथ-साथ बाढ़ नियंत्रण और अन्य पर्यावरणीय फैक्टर के लिहाज से बेहद अहम रहे हैं.

जलाशयों के संरक्षण के उद्देश्य के साथ इस जीओ के जरिये जलग्रहण क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की प्रदूषणकारी गतिविधि से बचने के लिए एक बफर जोन बनाया गया था, इसके तहत झील क्षेत्र में औद्योगिक, वाणिज्यिक से लेकर भारी आवासीय निर्माण जैसे गतिविधियों पर रोक लगाई गई थी.

करीब एक सदी पुराना इतिहास

उस्मान सागर और हिमायत सागर को क्रमशः 1920 और 1927 में निजाम-युग के अंतिम शासक मीर उस्मान अली खान ने बनवाया था. यह कदम हैदराबाद में 1908 में हजारों लोग की जान ले लेने वाली विनाशकारी बाढ़ के बाद उठाया गया था.

शहर को बाढ़ से बचाने के उपाय करने की जिम्मेदारी प्रख्यात इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया को सौंपी गई थी. बाढ़ के दौरान अतिरिक्त पानी को नियंत्रित करने की उनकी सिफारिश के तहत ही विशाल भंडारण क्षमता वाले इन जलाशयों का निर्माण किया गया.

उस्मान सागर में 15 गेट हैं और हिमायत सागर में 17

करीब 80 सालों के बाद 2003 में पहले बार सूखने तक जलाशय पेयजल का एक महत्वपूर्ण स्रोत बने रहे क्योंकि मुसी और इसा नदी का पानी भंडारण इकाइयों में एकत्र किया जाता था, खासकर शहर के पुराने हिस्से के लिए.

जीओ 111 हैदराबाद के आसपास के विभिन्न मंडलों जैसे शमशाबाद, राजेंद्रनगर, मोइनाबाद, चेवेल्ला, शबद आदि में 84 गांवों की 1.32 लाख एकड़ भूमि पर लागू है. ये 84 गांव उस्मान सागर और हिमायत सागर के 10 किलोमीटर के कैचमेंट एरिया के अंतर्गत आते हैं.

आवासीय क्षेत्रों में विकास की अनुमति तो है लेकिन आदेश के तहत 90 फीसदी क्षेत्र खास तौर पर रिक्रिएशन और संरक्षण के लिए वर्गीकृत है. कैचमेंट क्षेत्र में आने वाले गांवों के किसी भी लेआउट में कुल क्षेत्रफल का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा खुली जगह और सड़कों के तौर पर रखा जाना होता है.


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क्या हैं मुख्यमंत्री के तर्क और विशेषज्ञ क्यों कर रहे निंदा

मुख्यमंत्री केसीआर के मुताबिक, शहर अब पानी की जरूरत पूरी करने के लिए इन जलाशयों पर निर्भर नहीं रहा क्योंकि सरकार अब कृष्णा और गोदावरी नदियों से पानी लेने में सक्षम है.

हालांकि, स्थानीय निकाय ने 2019 तक अन्य जलाशयों के सूखने के बाद हिमायत सागर और उस्मान सागर के जल संसाधनों का इस्तेमाल किया है.

2000 में एक औद्योगिक इकाई के कैचमेंट एरिया के 10 किलोमीटर के दायरे के भीतर काम करने की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के दौरान शीर्ष कोर्ट की तरफ से जारी ‘प्रिकॉशनरी प्रिंसिपल’ का जिक्र करते हुए प्रख्यात पर्यावरणविद् के. पुरुषोत्तम रेड्डी ने कहा कि सरकारी आदेश रद्द करना आसान नहीं होगा.

शीर्ष कोर्ट ने झील को प्रदूषित करने वाली किसी भी निर्माण गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हुए जीओ 111 को बरकरार रखा था और रेखांकित किया था कि ऐसा एक भी उद्योग जल निकायों के लिए असुरक्षित हो सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी आदेश रद्द करने का कोई भी कदम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन होगा.

यह पहली बार नहीं है जब केसीआर ने यह सरकारी आदेश रद्द करने की बात कही है, विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक ऐसा कदम है जिससे रियल एस्टेट लॉबी को काफी हद तक फायदा हो सकता है.

2018 के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि उनकी पार्टी के सत्ता में आने के कुछ महीनों के भीतर ही जीओ 111 खत्म कर दिया जाएगा.

शहर में 2020 में आई बाढ़, जिसमें कई लोगों की जानें गई और विभिन्न क्षेत्रों में कई दिनों तक जनजीवन ठप रहा, का जिक्र करते हुए रेड्डी ने कहा, ‘उस्मान सागर और हिमायत सागर दोनों को पेयजल संग्रह के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था बल्कि मुख्य रूप से 1908 की भारी बाढ़ के बाद बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से बनाया गया था. पिछले तीन वर्षों में हैदराबाद में दो बार बाढ़ आई और हमने इसका प्रभाव देखा है.’

रेड्डी ने आगे कहा, ‘और अगर उस्मान सागर और हिमायत सागर जैसे जलाशयों को बरकरार नहीं रखा गया तो शहर में जलप्रवाह का असर बहुत गहरा होगा और इससे शहर में तबाही भी मच सकती है.’

एक्टिविस्ट और अर्थशास्त्री लुबना सरवथ के मुताबिक, केसीआर ने सदन के अंदर गलतबयानी की जब उन्होंने झीलों को ‘अनावश्यक’ बताया.

सरवथ ने कहा, ‘2020 और 2021 की बाढ़ के दौरान जलाशय के द्वार खोले गए थे और वे अभी भी पेयजल का एक स्रोत हैं. ये ऐसे जलाशय हैं जहां भरा पानी शहर के प्राकृतिक जल स्रोतों को भरने का काम करता है. और फिर सरकार की तरफ से शहर के नजदीकी जल निकायों को नष्ट करके कृष्णा नदी जैसे दूरवर्ती जल स्रोतों पर ही निर्भर क्यों रहना चाहिए?’

पर्यावरण से जुड़े अन्य फैक्टर

पर्यावरणविद् रेड्डी ने बताया कि शहर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित जलाशय कैसे दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान अच्छी हवा प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं. उन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का प्रदूषण हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा.

विशेषज्ञों का कहना है कि इन दोनों जलाशयों के बीच स्थित मृगवानी राष्ट्रीय उद्यान और यह पूरा क्षेत्र शहर की गर्मी सोखने के लिहाज से भी बेहद आवश्यक है और अगर इसे कंक्रीट के जंगल में बदला गया तो शहर भट्ठी की तरह हो जाएगा.

पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के समय जीओ 111 जारी किए जाने के दौरान जल संरक्षण सलाहकारों में शामिल रहे संरक्षणवादी राजेंद्र सिंह ने केसीआर के फैसले को ‘हैदराबाद के लिए सबसे बड़ी आपदा’ करार दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर पर्यावरण कार्यकर्ता शीर्ष अदालत का रुख करेंगे.

भारत के वाटरमैन कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि केसीआर सरकार ने पहले ही जीओ रद्द करने का फैसला कर लिया है और विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जल निकायों की रक्षा के बजाये उनकी सरकार के इरादों के अनुरूप बनाई जाएगी.

रेड्डी ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम है. कोई भी सदन पटल पर जो चाहे बोल सकता है…लेकिन वह शीर्ष कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं जा सकता.’ साथ ही जोड़ा राज्य की सबसे उपजाऊ भूमि इन क्षेत्रों में है और ज्यादातर स्थानीय लोग अपनी आय के स्रोत के लिए कृषि पर ही निर्भर हैं.

रियल एस्टेट लॉबी सक्रिय?

केसीआर सरकार शहर में रियल एस्टेट बूम का ज्यादा से ज्यादा फायदा सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय लोगों और रीयल्टर्स की तरफ से जीओ 111 को खत्म किए जाने की ‘मांग’ पर जोर दे रही है. हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा कि स्थानीय लोगों से ज्यादा रियल स्टेट सेक्टर ही इस क्षेत्र को भुनाना चाहता है.

सरवथ ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि फैसले स्थानीय लोगों की तुलना में रियल एस्टेट लॉबी के दबाव से ज्यादा लिया गया है. क्षेत्र में कई अवैध अतिक्रमण भी हैं. रंगारेड्डी कलेक्टर कार्यालय ने क्षेत्र में ऐसे अतिक्रमणों के बारे में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को एक रिपोर्ट सौंपी थी.’

2016 में रंगारेड्डी कलेक्टर ने एनजीटी को सूचित किया था कि लगभग 12,500 अवैध निर्माण और 400 अवैध लेआउट की पहचान की गई है. यह सब तब हुआ था जब एक एक्टिविस्ट ने जीओ 111 के उल्लंघन के बारे में एनजीटी को सूचित किया था.

विपक्षी दल कांग्रेस के सांसद रेवंत रेड्डी ने केसीआर के बेटे और आईटी मंत्री के.टी. रामा राव के खिलाफ यह आरोप लगाते हुए एक केस दायर किया है कि रंगारेड्डी जिले के शंकरपल्ली मंडल में उनका फार्महाउस जीओ 111 का उल्लंघन करके बना है. मंत्री ने मामला रद्द करने के लिए तेलंगाना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, और अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.

राज्य विधानसभा में केसीआर ने कहा कि आदेश अचानक रद्द करने से ‘अराजकता’ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, इसलिए उनकी सरकार इसे ‘चरणबद्ध’ तरीके से हटाने पर विचार कर रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि नगर प्रशासन विभाग को मास्टर प्लान बनाने और ग्रीन जोन तैयार कर चरणबद्ध तरीके से इस मुद्दे को हल करने को कहा गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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