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Tuesday, 5 November, 2024
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सफेद अवशेष, ‘टैल्क’ व्हाट्सएप ग्रुप, हवाला- मुंद्रा पोर्ट पर कैसे पड़ा 21,000 करोड़ रुपए की ड्रग्स पर छापा

NIA चार्जशीट में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, एक ऐसे दुःसाहसी हेरोइन रैकेट की कहानी है, जिसके तार अफगानिस्तान, ईरान, और पाकिस्तान से लेकर पंजाब, यूपी, और तमिलनाडु तक फैले थे.

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नई दिल्ली: दिल्ली के एक वेयरहाउस के फर्श पर फैला सफेद अवशेष, ‘टैल्क’ नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप, और हवाला के रास्ते अफगानिस्तान भेजे गए पैसे के रिकॉर्ड्स. पता चला है कि ये कुछ ऐसे सुराग़ थे, जिन्होंने जांचकर्त्ताओं को पिछले साल गुजरात के अदानी के स्वामित्व वाले मुंद्रा बंदरगाह पर, रिकॉर्ड मात्रा में पहुंची ड्रग्स तक पहुंचा दिया.

सितंबर 2021 में, राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने भारत में हेरोइन की अभी तक की सबसे बड़ी मात्रा- 3,000 किलोग्राम ज़ब्त की, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में जिसकी क़ीमत 21,000 करोड़ थी, और जिसे टैल्क यानी सेलखड़ी के सेमी-प्रोसेस्ड पत्थरों के बीच छिपाकर रखा गया था, और माना जाता है कि उसे ईरान के रास्ते तस्करी करके देश में लाया गया था.

इस विशाल ड्रग रैकेट के पीछे एक बहुत ‘अच्छे से चल रहा सिस्टम’ था, जो कथित रूप से अफगानिस्तान से संचालित और वित्त-पोषित हो रहा था, और जिसे अलग अलग तरह के लोगों का एक समूह नियंत्रित कर रहा था, जिन्होंने बड़ी आसानी के साथ ड्रग्स को भारत में घुसा दिया, जहां उनका मक़सद उसे देश के अंदर बेंचना था.

इसके अलावा, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के एक सूत्र ने बताया, कि भारत में ड्र्ग से हासिल हुई रक़म को ‘आतंकी गतिविधियां चलाने के लिए वापस अफगानिस्तान भेज दिया जाता था’.

सूत्र ने आगे कहा कि एनआईए के जमा किए गए सबूतों से पता चलता है, कि इस रैकेट में ‘दर्जन भर फर्ज़ी दस्तावेज़’ तैयार किए गए, जिनमें जीएसटी इनवॉयसेज़, कस्टम क्लियरेंस सर्टिफिकेट्स और कंपनी रिकॉर्ड्स आदि सब होते थे. बहुत से लोगों को ‘रिश्वतें दी गईं’, और दिल्ली में ड्रग्स को स्टोर करने के लिए किराए पर जगहें ली गईं, जहां से उसे घूमकर बेंचने वाले विक्रेताओं के नेटवर्क के ज़रिए, भारतीय बाज़ार में वितरित किया जाता था.

एनआईए सूत्र ने बताया, ‘पिछले साल जून में अभियुक्त सुरक्षा एजेंसियों से बच निकलने में कामयाब हो गए थे, जब उन्होंने एक खेप यहां भेजी थी, और उसे बेंचकर करोड़ों रुपए बना लिए थे. लेकिन दूसरी खेप जो सितंबर में आई, उसका पता चल गया और उसे ज़ब्त कर लिया गया’.

सूत्र ने आगे बताया कि ‘अफगानिस्तान में बैठे लोगों’ के पास, ऐसे लोगों का एक पूरा नेटवर्क था, जो ईरान और भारत में उनके लिए काम कर रहे थे. दिल्ली में, रैकेट के सदस्यों ने सैनिक फार्म्स में एक फार्महाउस, और अलीपुर में एक वेयरहाउस किराए पर ले लिया, जहां हेरोइन को रखकर उसे शुद्ध किया जाता था, जिसके बाद ‘बाज़ार में बेंचने के लिए उसे विक्रेताओं में बांट दिया जाता था’.

पिछले छह महीनों में एनआईए ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें पांच अफगानी नागरिक और पांच भारतीय हैं. छह अन्य- एक ईरानी और पांच अफगानी नागरिक- अभी भी फरार चल रहे हैं.

इस सोमवार को दाख़िल की गई एनआईए की चार्जशीट में, इन सभी 16 अभियुक्तों के नाम दिए गए हैं.

Graphic: ThePrint Team
ग्राफिक: दिप्रिंट टीम

जो लोग अभी क़ानून की गिरफ्त में आने बाक़ी हैं, उनमें दो प्रमुख अभियुक्त हैं- अफगानी नागरिक मोहम्मद हुसैन दाद और मोहम्मद हसन, जो कंधार में मैसर्स हसन हुसैन लिमिटेड के मालिक हैं, और कथित रूप से इस पूरे ऑपरेशन को फंड करते थे.

एनआईए सूत्र के अनुसार, मुंद्रा पोर्ट के कुछ कर्मचारियों की ड्रग रैकेट में संदिग्ध संलिप्तता के लिए जांच की जा रही है, हालांकि चार्जशीट में उन्हें नामित नहीं किया गया है.

अदानी समूह ने इस पूरे मामले से दूरी बनाने की कोशिश की है, और पिछले साल एक बयान में उन्होंने कहा, कि देशभर की कोई भी बंदरगाह किसी कंटेनर की जांच नहीं कर सकती, और उनकी भूमिका बंदरगाहों के संचालन तक सीमित है.

दिप्रिंट ने एनआईए के एक सूत्र से बातचीत की, और एजेंसी की चार्जशीट तक विशेष पहुंच हासिल करके, एक ऐसे कथित ड्रग रैकेट का ख़ाका बेनक़ाब किया, जो जितने बड़े स्तर का था उतना ही जटिल था, और जिसके तार अफगानिस्तान, ईरान, और पाकिस्तान से लेकर पंजाब, यूपी, और तमिलनाडु तक फैले थे.


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‘फर्श पर पड़े सफेद अवशेषों से रैकेट का पता लगाने में मदद मिली’

पिछले साल 12 सितंबर को, गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर अगानिस्तान से दो कंटेनर, ईरान के रास्ते होते हुए पहुंचे, जिनमें ज़ाहिरा तौर पर कुल 38 जम्बो बैग्स लदे हुए थे, जिनमें टैल्क पत्थर भरे थे. लेकिन, ख़ुफिया जानकारी के आधार पर डीआरआई जांचकर्त्ताओं को शक था, कि दाल में कहीं कुछ काला था.

जब कंटेनर्स की जांच की गई, तो 38 में से तीन कंटेनर्स में हेरोइन रखी हुई पाई गई. पहले कंटेनर के 18 जम्बो बैग्स में से दो के अंदर कुल 1999.58 किलोग्राम हेरोइन रखी मिली. दूसरे कंटेनर में, जिसमें 20 बैग थे, एक बैग में 988 किलो हेरोइन पाई गई.

एनआईए के अनुसार, माल की ये खेप कंधार से मैसर्स हसन हुसैन की ओर से भेजी गई थी, जिसके मालिक आफगानिस्तान के मोहम्मद हुसैन दाद, और मोहम्मद हसन थे. ये सारा माल मैसर्स आशी ट्रेडिंग कंपनी के लिए था, जिसकी मालिक तमिलनाडु के चेन्नई की, डीपी वैशाली नाम की एक महिला थी.

जब दोनों कंपनियों के रिकॉर्ड चेक किए गए, तो जांच कर्त्ताओं को पता चला कि जून में भी, इसी तरह के माल की एक खेप भारत पहुंची थी, जिसे मंज़ूरी दे दी गई थी.

डीआरआई ने फिर पता लगाया कि जून के उस माल के तार, दिल्ली में अलीपुर के एक गेस्ट हाउस से जुड़े थे, जहां से उसे मामले में एक नया सुराग़ हाथ लगा- फर्श पर बिखरे हुए सुख सफेद अवशेष.

एनआईए ने बताया, ‘उस माल का सुराग़ लगाते हुए डीआरआई, अलीपुर के एक गेस्ट हाउस तक पहुंच गई, जहां जून की खेप का माल रखा गया था. 17 सितंबर को जब वहां की तलाशी ली गई, तो वेयरहाउस ख़ाली पाया गया. लेकिन, जब वेयरहाउस के फर्श पर झाड़ू लगाई गई, तो वहां से 16.105 किग्रा. सफेद अवशेष जमा किए गए’. सूत्र ने आगे बताया कि उसे जांच के लिए भेजा गया, तो वो हेरोइन के लिए पॉज़िटिव निकला.

File image of Mundra port | Wikimedia Commons
मुंद्रा बंदरगाह की फ़ाइल छवि | विकिमीडिया कॉमन्स

चार्जशीट के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, हुसैन नाम के एक अफगान नागरिक ने उस वेयरहाउस को, प्रदीप कुमार के नाम से किराए पर लिया था. ऐसा माना जाता है कि यहां के माल का कुछ हिस्सा, दिल्ली के एक फार्म हाउस को भेजा गया.

इस बीच, बताया जा रहा है कि ड्रग की इस खेप से पंजाब का भी एक लिंक सामने आया है.

1 जुलाई 2021 को पंजाब पुलिस ने, सरबजीत सिंह और गगनदीप नाम के दो व्यक्तियों के पास से, 500 ग्राम हेरोइन बरामद की थी. उनसे मिली जानकारी के आधार पर, 5 जुलाई को पुलिस ने दिल्ली के सैनिक फार्म्स में एक फार्म हाउस पर छापा मारा. यहां से पुलिस को 16.5 किलोग्राम हेरोइन बरामद हुई, जिसे कथित रूप से शुद्ध किया जा रहा था, और पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया. जांचकर्त्ताओं को ये भी पता चला कि फार्महाउस को कथित रूप से, ख़ालिद नाम के एक अफगान नागरिक ने किराए पर लिया हुआ था.

एनआईए चार्जशीट से पता चलता है, कि जांचकर्त्ताओं ने जल्द ही सूत्र की कड़ियां जोड़ लीं. जांचकर्त्ताओं के अनुसार, पंजाब पुलिस द्वारा ज़ब्त की गई ड्रग उसी खेप का हिस्सा थी, जिसे जून 2021 में अलीपुर में उतारा गया था.

एनआईए सूत्र ने कहा, ‘जब इस केस की बारीकियां और अफगान नागरिक से इसके लिंक का पता चला, तो आगे की जांच में सामने आया कि जून में जो माल भारत आया था, उसे अलीपुर में रखा गया था, जहां से उसे फिर सैनिक फार्म्स, और गुड़गांव तथा गाज़ियाबाद के वेयरहाउसों में शुद्ध करने के लिए भेजा जा रहा था’.

सूत्र ने बताया, ‘यहां से, तैयार माल विक्रेताओं को यूपी तथा पंजाब के बाज़ारों में बेंचने के लिए दिया जाता था’. सूत्र ने आगे कहा इसके तार अफगानिस्तान से नियंत्रित किए जा रहे थे.

‘एक अच्छे से चल रहा सिस्टम’

एनआईए सूत्र के अनुसार, ईरान के रास्ते तस्करी से ड्रग्स को भारत लाकर, उन्हें विक्रेताओं को वितरित करने की सारी कार्रवाई के मास्टरमाइंड्स, दो अफगानी भाई मोहम्मद हुसैन दाद और मोहम्मद हसन थे. सूत्र ने बताया कि योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए, एक ‘बहुत अच्छा सिस्टम’ क़ायम किया गया.

शुरू में दोनों भाईयों ने कथित रूप से एक ईरानी नागरिक जावेद नजफी को अपने साथ मिलाया, जिसका काम ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट पर, ड्रग की खेप को आसानी के साथ निकलवाने, और फिर जहाज़ के ज़रिए उसे सुरक्षित भारत भिजवाने के लिए, ‘लॉजिस्टिक सहायता’ उपलब्ध कराना था.

नजफी को भारत में किसी ऐसे शख़्स को तलाशने का ज़िम्मा भी दिया गया, जो जहाज़ से भेजे गए माल को वसूलने का काम कर सके. एनआईए सूत्र ने बताया, ‘उन्हें भारत में कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए था, जो मुंद्रा पोर्ट पर माल से जुड़े लॉजिस्टिक के काम को संभाल सके, और फिर ड्रग्स को वेयरहाउस तक पहुंचा सके’.

इसी काम के लिए तमिलनाडु से तीन भारतीय नागरिक- राजकुमार पेरुमल, और एक शादी-शुदा जोड़ा मचावरम सुधाकर और डीपी वैशाली- कथित रूप से पिक्चर में आए.

चार्जशीट के अनुसार, नजफी ने मई 2021 में राजकुमार से संपर्क किया, और उससे मुंद्रा पोर्ट पर इंपोर्ट क्लियरेंस, और फिर माल के आगे के परिवहन में सहायता करने के लिए कहा. राजकुमार फिर सुधाकर के पास गया, जिसने सहायता करने और माल वसूलने की पेशकश कर दी. चार्जशीट में कहा गया है कि सुधाकर वैशाली की कंपनी आशी ट्रेडिंग के नाम पर, माल वसूलने के लिए तैयार हो गया.

चार्जशीट में आगे कहा गया कि सुधाकर ने, पैसे के फायदे की ख़ातिर इंपोर्ट, कस्टम क्लियरेंस, और माल के आगे के परिवहन का काम भी अपने ज़िम्मे ले लिया.

सूत्रों ने बताया कि माल ‘भेजने वाली कंपनी’ थी हसन हुसैन लिमिटेड, कंधार, जिसे इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान से कारोबार का लाइसेंस मिला हुआ था. ज़ाहिरा तौर पर कंपनी सेमी-प्रोसेस्ड टैल्क पत्थर की शिपिंग करती थी, लेकिन दरअसल इसकी आड़ में वो कथित रूप से ड्रग का धंधा चलाती थी.

एनआईए सूत्र ने कहा, ‘शिपिंग के कागज़ात उसी हिसाब से तैयार किए गए- हसन हुसैन लिमिटेड से आशी ट्रेडर्स को, और इस तरह ड्रग्स की पहली खेप भारत पहुंचाई गई’.

ग्रुप की गतिविधियों में समन्वय करने, और डॉक्युमेंट्स साझा करने के लिए, राजकुमार पेरुमल ने जून 2021 में ‘टैल्क’ नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया, जिसके सदस्य नजफी, सुधाकर, दाद, और अन्य लोग थे.

एनआईए सूत्र ने बताया, ‘तकनीकी सबूत के तौर पर हमारे पास व्हाट्सएप ग्रुप टैल्क की विश्लेषण रिपोर्ट मौजूद है. इसमें इन लोगों के बीच संचार साबित हो जाता है. इस साज़िश की तैयारी और उसके अमल पर चर्चा के अलावा, वो एक दूसरे के साथ डॉक्युमेंट्स भी साझा कर रहे थे. उस सभी को चार्जशीट में शामिल किया गया है’.

चार्जशीट में कहा गया है, कि दूसरे संदिग्धों के फोन नंबरों की विश्लेषण रिपोर्ट और टावर लोकेशंस से, अलीपुर वेयरहाउस में उनकी मौजूदगी साबित हो गई है, जहां माल को स्टोर करके रखा गया था.


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फर्ज़ी इनवॉयसेज़, कस्टम क्लियरेंस लाइसेंस- भारत में कैसे दाख़िल हुईं ड्रग्स

ड्रग्स की पहली खेप कथित रूप से पिछले साल 2 जून को भारत भेजी गई थी. वो आगे अपनी मंज़िल की ओर बढ़ती चली गई, चूंकि शिपिंग और कस्टम क्लियरेंस के लिए ज़रूरी सभी कागज़ात मौजूद थे.

एनआईए सूत्र ने कहा कि सुधाकर, रैकेट के लिए बहुत कार्यकुशल साबित हुआ. उसने न सिर्फ एक शिपिंग एजेंट, कंटेनर प्रोवाइडर, और कस्टम्स के दलाल की सेवाएं जुटा लीं, बल्कि ड्रग्स के अलीपुर वेयरहाउस तक परिवहन का भी बंदोबस्त कर लिया.

सूत्र ने आगे बताया, ‘वो माल 5 जून को मुंद्रा पहुंचा जो 22 बैग्स में था, जिनका कुल वज़न 24,730 किलोग्राम था. उसे ईरान से एक 20 फीट के कंटेनर में भेजा गया था, जिसके साथ इनवॉयस, पैकिंग लिस्ट, और मूल स्थान का प्रमाणपत्र जैसे तमाम डॉक्युमेंट्स मौजूद थे’.

पता चला है कि इस माल का कस्टम क्लियरेंस, एक कस्टम्स कंपनी द्वारा फाइल किए गए बिल ऑफ एंट्री (बीओई) के आधार पर किया गया, जिसे सुधाकर ने हायर किया था. क्लियरेंस के बाद, माल को कथित रूप से इंतज़ार कर रहे एक ट्रेलर तक ले जाया गया, जिसने उसे अलीपुर वेयरहाउस तक पहुंचा दिया. एनआईए सूत्र ने बताया, कि नजीबुल्लाह ख़ालिद नाम के एक सह-अभियुक्त अफगान नागरिक ने, ‘ड्राइवर को अलीपुर तक का रास्ता बताया था’.

चार्जशीट के अनुसार, माल के परिवहन के लिए सुधाकर ने 19 जून की तारीख़ का, एक फर्ज़ी इनवॉयस भी तैयार किया, जिसमें उस माल को आशी ट्रेडिंग की ओर से अलीपुर के कुलदीप सिंह को बेंचा हुआ दिखाया गया था.

सूत्र ने बताया, ‘इनवॉयस के मुताबिक़ 24,730 किलोग्राम सेमी-प्रोसेस्ड टैल्क पत्थरों को, 9,16,617 रुपए में बेंचा हुआ दिखाया गया था. आशी ट्रेडर्स की अधिकृत हस्ताक्षरकर्त्ता की हैसियत से, इनवॉयस पर सुधाकर की पत्नी के दस्तख़त थे’.

सुधाकर की पत्नी डीपी वैशाली भी कोई बेख़बर सह-अपराधी नहीं थी.

एनआईए सूत्र ने कहा, ‘वो सुधाकर द्वारा पत्थरों के बेनामी आयात, और हेरोइन की तस्करी को सुगम बनाने के लिए, अपनी फर्म के इस्तेमाल किए जाने पर सहमत हो गई. उसने अपनी इच्छा से सेमी-प्रोसेस्ड टैल्क पत्थरों के आयात, कस्टम क्लियरेंस, और फिर उसे दिल्ली में एक बेनामी को बेंचने से जुड़े तमाम डॉक्युमेंट्स पर दस्तख़त किए, और इस तरह ड्रग्स के परिवहन को सुगम बनाया’. सूत्र ने आगे बताया कि उसने पैसे को भारत से अफगानिस्तान भेजने के लिए, अपनी कंपनी के बैंक खाते का इस्तेमाल करने की भी अनुमति दी.


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‘अफगान नागरिक द्वारा फंड किया गया ड्रग ऑपरेशन’

भारत में चली इस पूरी कार्रवाई की ज़्यादातर फंडिग और निगरानी, अफगान नागरिक हुसैन दाद ने अफगानिस्तान से बैठकर की थी, सिवाय जून 2021 में एक छोटे से दौरे के, जब वो पहली खेप पर नज़र रखने के लिए भारत आया था.

एनआईए की जांच-पड़ताल में पता चला, कि जून 2021 में माल को मुंद्रा से दिल्ली तक पहुंचाने तक, इंपोर्ट क्लियरेंस और परिवहन के सारे ख़र्च का भुगतान उसी ने किया था. मुद्रा पोर्ट पर तमाम लॉजिस्टिक्स का बंदोबस्त करने, और ड्रग्स को आसानी के साथ अलीपुर तक पहुंचाने के लिए, उसने कथित रूप से सुधाकर को 9 लाख रुपए दिए थे.

चार्जशीट के अनुसार, सितंबर 2021 की खेप के लिए दाद ने सब-अभियुक्त अफगान नागरिक अलोकोज़ई मौहम्मद ख़ान को फंड्स दिए, ताकि कस्टम्स क्लियरिंग एजेंट सनार्ड शिपिंग को एडवांस का भुगतान किया जा सके.

एआईए सूत्र ने बताया, ‘दाद ने सुधाकर और अलोकोज़ई को ये सारा पैसा हवाला के ज़रिए भेजा. हमने एक गवाह से उस नक़द राशि का एक हिस्सा भी बरामद किया है, जो उसे सुधाकर की मदद करने के एवज़ में मिला था’.

सूत्र ने आगे बताया कि सुधाकर, उसकी पत्नी, और अन्य लोगों के बैंक स्टेटमेंट्स से साबित हो गया है, इस पूरे संचालन का ख़र्च दाद ने उठाया था.

सूत्र ने कहा, ‘कार्गो के लिए पैसा, ड्रग्स को दिल्ली तक लाने, किराए के वेयरहाउसों में रखने, हितधारकों को पैसा चुकाने, और इससे जुड़े दूसरे तमाम ख़र्च…इन सबका बंदोबस्त दाद ने किया और नक़द भुगतान किया. ये सारे लेनदेन दिल्ली के हवाला कारोबारियों के ज़रिए किए गए’. सूत्र ने आगे कहा कि ‘लेनदेन की वैधता’ को दिखाने के लिए, दाद से मिलने वाले पैसे को, बैंक डिपॉज़िट्स में तब्दील कर दिया गया.

चार्जशीट में कहा गया है कि इस बात के सबूत हैं, कि सह-अभियुक्त नजीबुल्लाह ख़ां ख़ालिद ने जो भी तक फरार है, ड्रग सिंडिकेट के वित्तीय लेनदेन संभालने के लिए, अफगान हवाला ऑपरेटर्स की सेवाएं लीं, जो दिल्ली में चांदनी चौक के बल्ली मारान से काम करते थे.

एनआईए सूत्र ने बताया, कि इन हवाला कारोबारियों के एक कर्मचारी द्वारा, ‘हाथ से लिखे हिसाब-किताब’ के अनुसार, ड्रग्स की बिक्री से हासिल हुई कुल 76.59 करोड़ रुपए की रक़म, भारत से हवाला चैनलों के ज़रिए अफगानिस्तान भेजी गई.

ज़्यादा अहम ये है कि इस पैसे का इस्तेमाल, सिर्फ एक ठाठदार जीवन शैली का ख़र्च उठाने के लिए नहीं किया गया.

सूत्र ने आगे कहा, ‘भारत में हेरोइन बेंचकर हासिल की गई रक़म को वापस अफगानिस्तान भेजा गया, जिससे कि बाहर से आतंकी गतिविधियों की फंडिंग की जा सके’.

बड़ा रैकेट और तालिबान लिंक

चार्जशीट के मुताबिक़, केस की जांच ने एक ‘बड़े रैकेट’ की ओर इशारा किया है, जो पाकिस्तान में बैठे हैण्डलर्स की मदद से, अफगानिस्तान से चलाया जा रहा है.

एनआईए सूत्र ने कहा, ‘नशीली दवाओं के अंतर्राष्ट्रीय तस्कर, जिनका ताल्लुक़ अफगानिस्तान और ईरान से है, तस्करी से भारी मात्रा में हेरोइन भारत लाते हैं और उससे कमाई करते हैं, जिसे फिर विदेशी मुल्कों में भेज दिया जाता है. ये तस्कर पाकिस्तान-स्थित आतंकी संगठनों के संपर्क में रहते हैं’.

इसके अलावा, उसने आगे कहा कि इस बात के सबूत हैं कि अभियुक्त हुसैन दाद ‘सीधे तौर से तालिबान से जुड़ा है, और उसे उनका समर्थन हासिल है’.

एनआईए का मानना है कि तालिबान के ज़रिए, दाद के पाकिस्तान के आतंकी समूहों से रिश्ते हैं, और ‘भारत के खिलाफ विध्वंसक गतिविधियां अंजाम देने के लिए, उसे उनका सक्रिय समर्थन हासिल है’.

चार्जशीट में ये भी कहा गया है, कि दाद एक भारतीय और एक पाकिस्तानी सिम का इस्तेमाल कर रहा था, जिसके ज़रिए वो पाकिस्तान में स्थित लोगों के संपर्क में रहता था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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