नई दिल्ली: केंद्र सरकार, दिल्ली के तीन नगर निगमों का एकीकरण सिर्फ़ इसकी प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाने के लिए ही करना नहीं चाहती है. इसका मकसद, देश की राजधानी में राजनीतिक हैसियत को बढ़ाना भी है. यह बात दिप्रिंट को बीजेपी के सूत्रों ने कही है. दिल्ली के उत्तर, दक्षिण और पूर्व नगर निगम को मिलाकर एक वृहद नगर निगम बनाने का प्रस्ताव है.
एमसीडी को 2012 में तब की दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित ने उत्तर, दक्षिण और पूर्व, इन तीन हिस्सों में बांटा था. जिनमें उत्तरी और दक्षिणी नगर निगम में 104 वार्ड और पूर्वी निगम में 64 वार्ड पड़े थे.
दिल्ली में बीजेपी की आखिरी सरकार 1998 में थी. उस समय दिल्ली की मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज थीं. लेकिन, पिछले 24 साल में बीजेपी, दिल्ली में सरकार नहीं बना पाई है. साल 1998 से 2013 तक दिल्ली में कांग्रेस सत्ता में रही. इसके बाद से, यहां आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है. हालांकि, एमसीडी की सत्ता हासिल करने में बीजेपी कामयाब रही. साथ ही, तीन हिस्सों में बंटी एमसीडी पर भी बीजेपी का कब्जा रहा. यहां पर पार्टी पिछले 15 से ज़्यादा सालों से काबिज है.
आम आदमी पार्टी अगले म्यूनिसिपल चुनाव में बीजेपी के दबदबे को कम करना चाहती थी. दिल्ली में अगले महीने अप्रैल में म्यूनिसिपल चुनाव होने थे. लेकिन, स्टेट इलेक्शन कमिशन (एसईसी) ने पिछले हफ्ते चुनाव की तारीखों की घोषणा को टाल दिया. प्रस्तावित एकीकरण की जानकारी केंद्र सरकार की ओर से मिलने के बाद एसईसी ने यह फैसला लिया है.
एसईसी के इस फैसले का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कड़ा विरोध किया. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी हार के डर से नगर निगम के चुनावों में देरी चाहती है. सोमवार को आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने बीजेपी के दिल्ली के मुख्य कार्यालयों पर प्रदर्शन किया.
दिप्रिंट से बातचीत में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दिल्ली में पार्टी प्रभारी, बैजयंत ‘जय’ पांडा ने कहा कि वह अच्छे प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त हैं और केजरीवाल की पार्टी को ‘जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर’ का सामना कर रही है
बीजेपी के एक अन्य सूत्र ने बताया कि अक्टूबर में पार्टी की ओर से कराये गए एक आंतरिक सर्वे में पता चला है कि आप, बीजेपी से आगे चल रही है, इसकी वजह से तीनों एमसीडी को जल्द से जल्द एक करने की ज़रूरत महसूस हुई. सूत्र ने कहा कि पंजाब में आप की बड़ी जीत ने भी, इसे तत्काल करने की ज़रूरत को बढ़ा दिया है.
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एकीकरण के मामले में बीजेपी की सोच
जब एमसीडी का विभाजन नहीं हुआ था, तब यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नगर निगम था. यह दिल्ली की 97 फीसदी आबादी को सेवाएं मुहैया करवाता था. 12 प्रशासनिक जोन में बंटे अविभाजित एमसीडी में 272 वार्ड, 22 विभाग और उसका एक कमिश्नर होता था. पहले नंबर पर जापान का टोक्यो नगर निगम है.
निकाय को तीन हिस्सों में बांटने के बाद, तीन कमिश्नर, विभागों के 66 प्रमुख और तीन मेयर ऑफिस अस्तित्व में आ गए.
साल 2012 में एमसीडी को तीन हिस्सों में बांटने के पीछे सिर्फ़ ‘विकेंद्रीकरण’ करना ही मकसद नहीं था. ऐसा करके कांग्रेस ने कम से कम एक या दो निकायों में सत्ता पाने का दांव भी खेला था, क्योंकि बीजेपी एमसीडी चुनावों में लंबे समय से चुनाव जीतती रही थी.
साल 2007 से 2009 तक दिल्ली की मेयर रहीं बीजेपी नेता आरती मेहरा ने कहा कि बीजेपी शुरुआत से ही निकाय को तीन हिस्सों में बांटने के पक्ष में नहीं थी.
मेहरा ने कहा, ‘जब शीला दीक्षित ने नगर निकाय को तीन हिस्सों में बांटा, तो हम लोगों ने इसका विरोध किया था. इसका मकसद राजनीतिक था, एमसीडी के कम से कम एक या दो जोन में अपने लिए रास्ता तैयार करना था और मेयर की ताकत को कम करके बीजेपी के दबदबे को कम करना था. हालांकि, केजरीवाल के शासनकाल में जिस तरह की समस्या है, शीला जी की गैर-टकराव वाली राजनीति होने की वजह से उस समय ऐसी नहीं थी.’
मेहरा ने कहा, ‘उस समय मेयर का पद शक्तिशाली था, लेकिन तीन हिस्सों में बांटने के बाद, इसका वजन और इसका केंद्रिय स्वरूप कमजोर हुआ है.’
बीजेपी के पास इससे जुड़ी ढ़ेरों शिकायतें हैं कि आम आदमी पार्टी पर नगर निकायों को काम नहीं करने दे रही है. इनमें, फंड को रोकना भी शामिल है. बीजेपी कार्यकर्ताओं के मुताबिक, इसकी वजह से कई कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिल पा रही थी. पिछले साल कर्मचारियों ने 10 से ज़्यादा हड़ताल कीं. इनमें ज़्यादातर हड़ताल बकाया रकम नहीं मिलने की वजह से हुईं.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न आने की शर्त पर कहा, ‘इससे सिर्फ़ कर्मचारी ही प्रभावित नहीं होते है, उनके परिवार पर भी असर पड़ता है.’
वहीं, आम आदमी पार्टी का इस मामले में कमिश्नर को दोषी ठहराती है. पार्टी का कहना है कि उत्तर, दक्षिण और पूर्व नगर निगमों के कमिश्नर फंड जारी नहीं कर रहे हैं. पिछले साल दिसंबर में, आम आदमी पार्टी ने नगर निगमों में ‘बदलाव’ लाने के लिए एक अभियान भी चलाया. पार्टी ने नगर निगमों पर भ्रष्टाचार में डूबे रहने और सड़कों पर कूड़े के ढ़ेर के लिए जिम्मेदार ठहराया था.
गौरतलब है कि 48 स्थानीय निकायों के स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में, उत्तर दिल्ली नगर निगम का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था और वह 45 वें स्थान पर रहा था. वहीं, पूर्व दिल्ली नगर निगम 40 वें और दक्षिण दिल्ली नगर निगम 31 वें स्थान पर रहा था.
चुनाव ‘जीतने’ के लिए बीजेपी की योजना
बीजेपी नेताओं के मुताबिक, पार्टी म्युनिसिपल चुनाव जीतने के लिए इस बात पर जोर देगी कि किस तरह से आम आदमी पार्टी ने नगर निगमों के काम में अड़ंगा लगाया है.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अगर इन तीन सिविल एजेंसियों में कुछ दिक्कतें हैं, तो आम आदमी पार्टी के खिलाफ भी मजबूत एंटी-इनकंबेंसी है.’
बीजेपी नेता ने कहा, ‘अगर एमसीडी का एकीकरण हो जाता है, तो हम लोगों को बता पाएंगे AAP सरकार काम में रुकावट डाली है. उसने कर्मचारियों का वेतन समय पर नहीं देने दिया और यह पक्का किया है कि नगर निगम समृद्ध न बन पाए. हमने अपने पब्लिसिटी कैंपेन में, इस बात को उठाएंगे कि फंड जारी नहीं करने की समस्या को कैसे खत्म करना चाहते हैं.’
बैजयंत पांडा ने कहा कि बीजेपी आम आदमी पार्टी की नीतियों पर निशाना बनाने की योजना बना रही है.
स्कूलों और मंदिरों सहित हर वार्ड में तीन ठेका (शराब की दुकानों) की उनकी शराब नीति के खिलाफ हमारा अभियान सफल रहा है. पांच राज्यों के चुनावों के परिणाम उत्साह लेकर आएं हैं. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं और टिकट चाहने वालों में जबरदस्त उत्साह है.’
पांडा ने कहा कि अगर एमसीडी को एक कर दिया जाता है, तो एक बार फिर मेयर का पद महत्वपूर्ण बन जाएगा. उन्होंने कहा, ‘मेयर के मजबूत व्यक्तित्व से हमें कोई डर नहीं है, जिससे केजरीवाल डरते हैं.’
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अंदरूनी सर्वे के बाद आई तेजी
बीजेपी साल 2014 से ही एमसीडी के एकीकरण की बात करती रही है, लेकिन अबतक इसको लेकर कोई खास प्रगति नहीं हुई थी.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘एमसीडी के एकीकरण को लेकर पिछले छह महीने में गति आई है. केंद्रीय नेताओं को इसके फायदे और नुकसान के बारे में बताया गया है.’
सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर महीने में पार्टी की ओर से करवाए गए एक सर्वे के अनुमानों में आप, बीजेपी से आगे निकलती दिख रही है, इसके बाद इस विचार को बल मिला है. इसके साथ ही, पंजाब में आप की जीत से भी इसे जल्द से जल्द पूरा करने की ज़रूरत महसूस हुई है.
बीजेपी नेता ने कहा, ‘कुछ महीनों की देरी (नगरपालिका चुनावों में) से हमें फायदा होगा. एक बार जब आम आदमी पार्टी पंजाब में समस्याओं का सामना करेगी, तो उनका (नेताओं) उत्साह कम हो जाएगा, और हम दिल्ली में ‘आप’ को हराने में कामयाब होंगे.’
मेयर को ज्यादा अधिकार, ज़्यादा वित्तीय मदद
उम्मीद की जा रही है कि एकीकरण से एमसीडी वित्तीय रूप से मजबूत होगी और मेयर को ज़्यादा अधिकार मिलेंगे.
पूर्वी दिल्ली के मेयर श्याम सुंदर अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया कि तीन हिस्सों में बांटने से कई तरह की वित्तीय संकट आई हैं.
अग्रवाल ने कहा कि तीन नगर निकायों में संसाधनों और रेवेन्यू का सही बंटवारा नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा, ‘तीन हिस्सों में बांटने के बाद हमें (EDMC) 800 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है. इससे ऑफिसर, विभागों, कमिटी और उनके रखरखाव में लगने वाला खर्च जैसे कि कार, एसी वगैरह, सब कुछ तिगुना हो गया है.’
उदाहरण के लिए SDMC के अधिकार क्षेत्र में ज़्यादा समृद्ध मोहल्लें पड़ते हैं, जहां से ज्यादा प्रॉपर्टी टैक्स मिलते हैं. वहीं, उत्तर और पूर्व एमसीडी में कई अनाधिकृत बस्तियां हैं और इनमें से कई कम टैक्स के दायरे में पड़ते हैं. इसकी वजह से कम रेवेन्यू मिलते हैं और सैलरी के भुगतान सहित कई तरह की वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
साल 2017 में हुए नगर निगमों के चुनावों से पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक, एसडीएमसी के पास 10 लाख से अधिक संपत्ति मालिकों में करीब 4.7 लाख करदाता हैं,. वहीं, एनडीएमसी के पास 10 लाख मालिकों के लिए 3.3 लाख करदाता हैं और ईडीएमसी में 4 लाख संपत्ति मालिकों में 2.2 लाख करदाता हैं.
बीजेपी के एक सूत्र ने कहा कि एकीकृत एमसीडी को केंद्र से फंड देने के प्रस्ताव पर विचार चल रहा है. इससे ‘राज्य पर से उसकी निर्भरता कम होगी.’ इसके साथ ही, इस कार्यकाल से, मेयर के कार्यकाल को बढ़ाया भी जा सकता है.
बीजेपी के दिल्ली के पूर्व राज्य अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि फिर से सभी निगमों को एक करके दिल्ली में एक ज़रूरी बदलाव को पूरा किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘एमसीडी की जरूरतें और उसकी छवि को बेहतर बनाने के लिए, ज़्यादा वित्तीय शक्तियां और मेयर को ज़्यादा अधिकार दिए जाने की ज़रूरत है. हम मेयर के कार्यकाल को बढ़ाने के पक्ष में हैं, वैसे ही जैसे दूसरे शहरों में ढाई से पांच साल का होता है.’
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