scorecardresearch
Saturday, 16 November, 2024
होमदेशहिजाब विवाद : उच्च न्यायालय ने चार सवाल तय किये व तदनुरूप जवाब दिये

हिजाब विवाद : उच्च न्यायालय ने चार सवाल तय किये व तदनुरूप जवाब दिये

Text Size:

बेंगलुरु, 15 मार्च (भाषा) उडुपी की कुछ छात्राओं की हिजाब पहनने की अनुमति संबंधी याचिकाएं मंगलवार को खारिज करने वाले कनार्टक उच्च न्यायालय ने पूरे मामले को चार प्रश्नों में विभाजित किया और उसके अनुरूप जवाब दिया।

हिजाब विवाद की सुनवाई आठ फरवरी से शुरू हुई थी और पहले न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित की एकल पीठ ने दो दिन सुनवाई की तथा उसके बाद मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी, न्यायमूर्ति दीक्षित और न्यायमूर्ति जे एम खाजी की पूर्ण पीठ ने सुनवाई को आगे बढ़ाया।

हर कार्यदिवस को सुनवाई करने वाली पीठ ने कहा कि इसने चार प्रश्न तैयार किये थे और पूरे मामले पर समग्र दृष्टि अपनाते हुए सभी के जवाब दिये।

विचार के लिए जो प्रश्न लाये गये थे उनमें पहला सवाल था कि क्या हिजाब पहनना इस्लाम में ‘अनिवार्य धार्मिक प्रथा’ है और क्या यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है?

मुख्य न्यायाधीश ने अपने आदेश में इस सवाल का जवाब दिया, ‘‘पहले प्रश्न का हमारा उत्तर है कि हमारा सुविचारित मत है कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामिक में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।’’

पीठ द्वारा तैयार दूसरा प्रश्न था कि क्या स्कूल में यूनिफॉर्म की अवधारणा कानूनी तौर पर अनुमति योग्य नहीं है और क्या यह याचिकाकर्ताओं के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में वर्णित अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त निजता के अधिकारों का उल्लंघन हैं?

अदालत ने अपने जवाब में कहा, ‘‘इस सवाल का जवाब है कि हमारा सुविचारित मत है कि स्कूल यूनिफॉर्म की अवधारणा केवल संविधान के तहत अनुमति योग्य तार्किक प्रतिबंध है, जिसपर विद्यार्थी आपत्ति नहीं जता सकते।’’

तीसरा प्रश्न कर्नाटक सरकर के पांच फरवरी के आदेश से संबंधित है कि क्या यह आदेश निरंकुश था, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है?

पीठ ने उत्तर दिया, ‘‘हमारा सुविचारित मत है कि सरकार का पांच फरवरी का आदेश अवैध नहीं है, क्योंकि सरकार के पास इस तरह का आदेश जारी करने का अधिकार है।’’

चौथा प्रश्न उडुपी के सरकारी पीयू बालिका विद्यालय, प्राचार्य और शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने के निर्देश जारी करने से जुड़ा था, जिस पर पीठ ने कहा कि इस मामले में रिट याचिका संख्या 2146/2022 में छह से 14 नंबर तक के प्रतिवादियों के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, जबकि प्रतिवादी संख्या 15 और 16 के खिलाफ अधिकार पृच्छा का मामला नहीं बनता है।

पीठ ने कहा कि इन परिस्थितियों में इन याचिकाओं में मेरिट का अभाव नजर आता है और इसलिए ये खारिज करने योग्य हैं। अदालत ने कहा, ‘‘इन सभी रिट याचिकाओं के खारिज किये जाने के मद्देनजर सभी लंबित अर्जियां अमहत्वपूर्ण हो जाती है और तदनुसार, इनका निपटारा किया जाता है।’’

भाषा सुरेश उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments