नई दिल्ली: क़रीब पांच महीने पहले, 16 साल की सजर राझिम ने राष्ट्रीय राजधानी के लाजपत नगर इलाक़े में, एक स्थानीय जिम ज्वॉयन किया और पावर लिफ्टिंग शुरू कर दी. पिछले हफ्ते उसने अपनी साथियों को पछाड़ते हुए, दिल्ली स्टेट सब-जूनियर पावर लिफ्टिंग चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीत लिया.
अगर आप उसके हालात देखें तो उसका कारनामा और ज़्यादा प्रभावशाली लगता है. सजर और उसकी बहनें 2013 में, युद्ध से तबाह अफगानिस्तान से बच निकलकर एक बेहतर जीवन की तलाश में, अपने परिवार के साथ भारत आ गईं थीं. लेकिन, फिलहाल उनके पिता सैयद दाऊद राझिम तालिबान-नियंत्रित काबुल में फंसे हुए हैं.
प्रतियोगिता में अपनी कामयाबी से सजर बहुत ख़ुश है, जहां उसने 217 किलोग्राम वज़न उठाया- जो उसके अपने वज़न के चार गुना से भी ज़्यादा है. उसने हंसते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने करीब 217 किलो वज़न उठाया, और मेरा अपना वज़न क़रीब 52 किलो है’.
वो तो ख़ुश थी ही, उसके पिता की ख़ुशी का भी कोई ठिकाना नहीं था. काबुल से एक व्हाट्सएप कॉल पर बात करते हुए, वो अपने उत्साह को छिपा नहीं पा रहे थे.
लेकिन ये कहानी इस तरह फासले के साथ नहीं रहनी थी.
परिवार आठ साल तक भारत में एक साथ था, लेकिन अप्रैल 2021 में महामारी की दूसरी लहर ने, सैयद और उनकी पत्नी को एक बड़ा झटका दिया, और दोनों की दिल्ली के एक अस्पताल में प्रबंधन की नौकरियां चली गईं. स्थानीय विकल्पों की कमी को देखते हुए, सैयद ने वापस काबुल जाने का फैसला किया, जहां वो यूएन विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ, स्थानीय स्टाफ का काम करने लगे.
उन्हें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि चार महीने बाद, तालिबान सत्ता में वापस आ जाएंगे. सैयद ने बताया कि उसके बाद से, कई कारणों के चलते वो वहां फंस गए हैं, जिनमें वीज़ा मिलने में देरी और ये वजह भी शामिल है, कि वहां अपनी नौकरी से वो घर पैसा भेज सकते हैं.
सैयद ने दिप्रिंट को बताया, ‘अपने परिवार से दूर, यहां काबुल में काम करना बहुत मुश्किल है. यहां पर काम के मामले में, ख़ासकर महिलाओं पर बहुत बंदिशें हैं, और तालिबान की तरफ से हमेशा ख़तरा बना रहता है. लेकिन मुझे बहुत ख़ुशी है कि मेरी बेटियां, खेलों में बहुत अच्छा कर रही हैं. जब सजर ने दिल्ली के टूर्नामेंट में गोल्ड जीता, तो मुझे बेहद ख़ुशी हुई’.
सजर अपनी मां और बहनों के साथ 3 बेडरूम के एक छोटे से अपार्टमेंट में रहती है. उसकी बहनें, सहर(21), सवीन(13) और समा(11) भी, जूडो, कराटे, और मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स जैसे खेलों में पेशेवर एथलीट बनने की ट्रेनिंग कर रही हैं.
सजर ने कहा, ‘मेरे पिता ने हमेशा मेरी बहनों को और मुझे, फिट और स्ट्रॉन्ग होने के लिए प्रोत्साहित किया है’.
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‘कुश्ती में अफगानिस्तान और पावरलिफ्टिं में भारत की नुमाइंदगी करना चाहूंगी’
सजर ने, जो 52 किलो भार वर्ग में सब-जूनियर वर्ग (18 वर्ष और उससे नीचे) में मुक़ाबला करती है, 5 मार्च को अपने ताज़ा मुक़ाबले में कुल मिलाकर क़रीब 217 वज़न उठाया- 67 किग्रा स्क्वॉट में, 40 किग्रा. बेंच प्रेस में, और 110 किग्रा. डेडलिफ्ट में.
वेटलिफ्टिंग के विपरीत, जिसमें तेज़ी के साथ हरकत करते हुए, वेट को उठाया और गिराया जाता है, पावरलिफ्टिंग में वज़न को एक ही मोशन में उठाया जाता है. प्रतियोगिता के अंदर पावरलिफ्टर्स को तीन चरणों में वज़न उठाने होते हैं: स्क्वॉट, बेंच प्रेस और डेडलिफ्ट.
सजर के कोच और रियल स्टील जिम के मालिक, सौरव बिसोया ने दिप्रिंट को बताया, ‘डेडलिफ्ट आख़िरी राउण्ड था. मैंने देखा कि वो थोड़ा नर्वस हो रही थी, इसलिए मैंने उसे नहीं देखने दिया कि मैंने कितना वज़न रखा था’.
सजर ने आगे कहा, ‘कोच (सौरव) ने मुझे 100 किलो या 105 किलो रखने के लिए कहा था. इसलिए मैं उसी मानसिकता के साथ गई. वो मुझे बहुत आसान लगा. बाद में, जब उन्होंने मुझे बताया कि वो वास्तव में कितना था, तो मैं हैरान रह गई’.
सजर फिलहाल आगामी नेशनल क्लासिक पावरलिफ्टिंग चैम्पियनशिप के लिए तैयारी कर रही है, जो 9 अप्रैल से केरल के अलाप्पुझा में होने जा रही है.
उसके कोच के अनुसार, इस बार का लक्ष्य कुल 270 किलो वज़न उठाने का है.
जहां युवा सजर का मुख्य लक्ष्य निश्चित रूप से पावरलिफ्टिंग है, लेकिन उसे कुश्ती और ग्रैपलिंग की ट्रेनिंग भी दी गई है.
उसने कहा, ‘मैंने 2019 के आसपास कुश्ती लड़ना शुरू किया, क्योंकि मेरे पिता ने मुझे प्रोत्साहित किया. इसी वजह से अगर कभी मुझे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुक़ाबला करने का मौक़ा मिलता है, तो मैं कुश्ती में अफगानिस्तान, और पावरलिफ्टिंग में भारत की नुमाइंदगी करना चाहूंगी’.
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‘काबुल में एक दिन वर्ल्ड क्लास जिम खोलना चाहती हूं’
ये पूछने पर कि उसकी क्या महत्वाकांक्षाएं हैं, सजर ने कहा कि उसके मुल्क में सियासी अस्थिरता की वजह से, बहुत कम महिला एथलीट्स ऑलंपिक्स में मुक़ाबला कर पाई हैं.
उसने कहा, ‘कुश्ती या पावरलिफ्टिंग की बात आती है, तो मेरे दिमाग़ में महिला एथलीट्स के ज़्यादा नाम नहीं आते. ये भी है कि बहुत कम महिलाओं ने ऑलंपिक्स में हिस्सा लिया है. हमारे पास कुछ बहुत ज़बर्दस्त महिला साइकलिंग चैम्पियंस हैं, लेकिन उन्होंने भी तालिबान की वजह से अफगानिस्तान छोड़ दिया है’.
पिछले नवंबर ख़बर मिली थी, कि अफगानी साइकलिस्ट रुख़सार हबीबज़ई भी, जो अपने मुल्क की पहली महिला साइकलिंग टीम की कप्तान थीं, उन बहुत से लोगों में शामिल थीं, जिन्होंने तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान छोड़ दिया था.
सजर ने कहा, ‘मैं निश्चित रूप से अपने लिए एक अच्छा करियर बनाना चाहती हूं, और इतना पैसा कमाना चाहती हूं कि महिला एथलीट्स के लिए, काबुल में एक वर्ल्ड-क्लास जिम खोल सकूं. अफगानिस्तान में हमारे पास अच्छी टेलंट है, लेकिन तालिबान को लगता है कि महिलाओं के लिए खेलों में हिस्सा लेना मुनासिब नहीं है’. उसने आगे कहा, ‘उम्मीद है, कि एक दिन वो नज़रिया बदल जाएगा’.
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