(कीथ गॉट्सचॉक, राजनीति शास्त्र विशेषज्ञ, यूनिवर्सिटी ऑफ द वेस्टर्न केप)
केप टाउन, 12 मार्च (द कन्वरसेशन) दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) महासभा में उस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसमें यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा की गई थी और पूर्वी यूरोपीय देश से रूसी बलों की वापसी की मांग की गई थी।
दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने सफाई दी है कि उसके रूस और यूक्रेन, दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं, लिहाजा वह संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा।
वहीं, राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका मतदान में इसलिए शामिल नहीं हुआ, क्योंकि यह सार्थक भागीदारी की मांग को आगे नहीं बढ़ाता था।
दक्षिण अफ्रीका में विपक्षी दल द डेमोक्रेटिक अलायंस ने इस कदम को लेकर सत्तारूढ़ अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) को घेरने में जरा भी देरी नहीं की। पार्टी ने आरोप लगाया कि सरकार मतदान से इसलिए नदारद रही, क्योंकि रूसी व्यवसायी विक्टर वेक्सेलबर्ग ने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) को 75 लाख रूबल का चंदा दिया था।
हालांकि, वेक्सेलबर्ग को सिर्फ इसलिए पुतिन समर्थक नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह एक रूसी नागरिक हैं।
यही नहीं, क्रेमलिन द्वारा 2005 में अरबपति मिखाइल खोदोरकोव्स्की को जेल में डालने और उनकी संपत्ति जब्त करने के बाद कुलीन वर्ग का कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक रूप से पुतिन विरोधी विचार व्यक्त करने की हिम्मत नहीं जुटाएगा।
इसके अलावा, हकीकत के कई आयाम हैं। और इस मामले में इतिहास भी प्रासंगिक है। एएनसी को याद है कि शीत युद्ध के दौरान उसके सहयोगी कौन थे और किसने उसे ‘आतंकवादी’ कहा था।
इस तथ्य ने अन्य विचारों को खारिज कर दिया है, जिनमें यह भी शामिल है कि दक्षिण अफ्रीका एक छोटे-से देश के रूप में किसी महाशक्ति के आक्रमण से बचने के लिए संयुक्त राष्ट्र के उन चार्टर सिद्धांतों पर निर्भर करता है, जो किसी क्षेत्र पर कब्जे के लिए युद्ध और आक्रमण की रणनीति का विरोध करते हैं।
ऐतिहासकि संबंधों का बंधन
-एएनसी और पूर्व सोवियत संघ के बीच रिश्तों का लंबा इतिहास रहा है। 1927 में एएनसी के संस्थापक सदस्यों में शामिल योशिय्याह त्सांगना गुमेदे तत्कालीन सोवियत संघ की यात्रा करने वाले पहले पार्टी नेता बने थे। उनकी यह यात्रा बेल्जियम में साम्राज्यवाद विरोधी लीग की बैठक में उपस्थिति दर्ज कराने के बाद हुई थी।
वर्ष 1960 में रंगभेद पर प्रतिबंध लगने के बाद एएनसी को दक्षिण अफ्रीका को श्वेत शासन से आजाद कराने की लड़ाई में अपने निर्वासित मिशन के लिए सोवियत संघ से मदद मिली थी। यह मदद अखिल अफ्रीका अफ्रीकी एकता संगठन या किसी अन्य से मिली सहायता से कहीं ज्यादा थी, जो अब अफ्रीकी संघ के नाम से जाना जाता है।
वर्ष 1970 के दशक के अंत में जाकर स्कैंडिनेवियाई मदद सोवियत फंडिंग से अधिक हो गयी थी। लेकिन स्कैंडिनेवियाई सहायता केवल शांतिपूर्ण सहायता तक ही सीमित रही। सिर्फ सोवियत संघ ने एएनसी की सशस्त्र शाखा ‘उमखोंटो वी सिजवे’ को हथियार और अन्य सैन्य सहायता मुहैया कराई।
1988 में इस बात की आहट लगने पर कि रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में जीत करीब है, मॉस्को ने नौसैनिक और वायुसैनिक प्रशिक्षण के अलावा एएनसी को पारंपरिक युद्ध एवं गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग में भी सहयोग देना शुरू कर दिया।
इस तरह के ऐतिहासिक संबंध यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर यूएन महासभा में हुए मतदान के दौरान अफ्रीकी देशों की प्रतिक्रिया में दिखे अंतर से स्पष्ट थे।
स्वापो के नेतृत्व वाले नामीबिया, एमपीएलए के शासन वाले अंगोला और फ्रेलिमो की हुकूमत वाले मोजाम्बिक ने भी प्रस्ताव पर मतदान का बहिष्कार करने में दक्षिण अफ्रीका का साथ दिया।
स्वापो, एनपीएलए और फ्रेलिमो को 20वीं सदी में शीत युद्ध के दौरान सोवियत सहायता प्राप्त हुई थी, जब वे खुद गुरिल्ला युद्ध लड़ने वाले मुक्ति संगठन थे।
इसके विपरीत, बोत्सवाना और जाम्बिया ने रूसी आक्रमण की निंदा करने के पक्ष में मतदान किया। गौरतलब है कि दोनों देशों की सत्ताधारी पार्टियां शांतिपूर्ण रूप से सत्ता में आई थीं और उनके रूस से कोई संबंध नहीं हैं।
28 सदस्यीय अफ्रीकी संघ के 17 देश यूएन महासभा में रूसी आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहे।
(द कन्वरसेशन) पारुल शोभना
शोभना
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