चौदह दिनों की लड़ाई के बाद भी यूक्रेन की सीमाओं पर रूस चौतरफा हमले करके भी अपने सैन्य लक्ष्य की ओर सुस्त गति से ही आगे बढ़ पाया है. जाहिर है, रूस का लक्ष्य यूक्रेन की सेना को नेस्तनाबूद करके वहां सत्ता परिवर्तन करवाना और पूरे देश पर अपना कब्जा करना है. लेकिन यूक्रेनी राजनीतिक और सामरिक नेतृत्व का हौसला पस्त होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं. कीव पर कब्जे की लड़ाई कछुए की गति से आगे बढ़ रही है और शहर के बाहरी इलाकों में ही सीमित है. ना ही कोई महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल किया जा सका.
सीमा के इर्दगिर्द इलाकों में रूस आंशिक नियंत्रण ही कायम कर पाया है. उत्तर में वह 100-150 किलोमीटर तक अंदर घुस पाया है, उत्तर–पूर्व में 220-250 किमी तक और दक्षिण में 100-150 किमी तक ही घुस पाया है. यानी कुल मिलाकर वह यूक्रेन के करीब 20-25 प्रतिशत भाग पर ही काबिज हो पाया है. पश्चिमी यूक्रेन अभी अछूता है और वहां नाटो देशों से सैन्य तथा साइबर/इलेक्ट्रोनिक सूचना युद्ध के साधनों की खुली आमद हो रही है.
क्या रूस को गतिरोध और अपने समापन बिंदु तक समय से पहले पहुंचने के लिए मजबूर कर दिया गया है? या यह तूफान से पहले की खामोशी है? मैं यहां युद्ध के ऑपरेशन तथा सामरिक स्तर की स्थिति और भावी दिशा का आकलन करने का प्रयास करूंगा.
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ऑपरेशन तथा सामरिक स्तर की स्थिति
यूक्रेन का इलाका जैसा है उसके मद्देनजर रूसी सेना बाहरी क्षेत्रों से चार बड़ी एक्सिस दिशा के इर्दगिर्द ऑपरेशन चला रही है. सामरिक कार्रवाई इस तरह की जा रही है कि हमलावर सेना दुश्मन के जितने करीब पहुंचती है उतना ही वह आपस में एक–दूसरे को समर्थन देने में अक्षम हो जाती है और अपने अड्डों से भी दूर हो जाती है.
उत्तरी एक्सिस बेलारूस से नाइपर नदी के दोनों तटों से होती हुई कीव तक है. पूर्वी एक्सिस शुरू में खारकीव से सुमि की दिशा तक थी. अब इसका कुछ हिस्सा सुमि से लुखीव, बोर्जना, बोबरोवितस्या और ब्रोवरी/बोरिस्पिल होता हुआ कीव तक फैला है. दक्षिण–पूर्व से डोनबास एक्सिस मारियूपोल, खारकीव और पश्चिम की ओर ऑपरेशन चला रही है.
दक्षिण से क्रीमिया एक्सिस शुरू में खेरसन पर केन्द्रित थी लेकिन उस पर कब्जा हो जाने के बाद वह जल–थल पर हमला करते हुए ओडेसा और जापोरिझिया की ओर बढ़ने के लिए मारीयूपोल और माइकोलैव पर तीन तरफा हमला कर रही है. बड़े पैमाने पर ये सारी एक्सिस 3,000 किमी के दायरे में फैली हैं और एक–दूसरे की सहायता नहीं कर पा रही हैं, सिवा कीव के जहां पूर्वी एक्सिस का कुछ हिस्सा कीव की ओर और कुछ हद तक डोनबास, पूर्वी तथा क्रीमिया एक्सिस के बीच डोनबास क्षेत्र की ओर चला गया है.
रूसी सेना राजनीतिक केंद्र कीव या खेरसन को छोड़ किसी बड़े शहर पर कब्जा नहीं कर पाई है. खेरसन पर भी कब्जा उसने एक सप्ताह पहले किया था. मारियूपोल के सिवा किसी बड़े शहर की न तो घेराबंदी कर सकी है और न किसी को अलगथलग कर सकी है. पिछले एक सप्ताह में प्रयास फिर से एकजुट होने, साजोसामान इकट्ठा करने, और आंशिक रूप से अलगथलग किए गए शहरों पर तोपों, मिसाइलों के साथ हवाई हमले करके उन्हें कमजोर करने का रहा है.
यूक्रेन का राजनीतिक और सामरिक कमांड और कंट्रोल कुल मिलाकर कायम है. उसकी सेना एकजुट होकर लड़ रही है और उसे समन्वित लड़ाई के लिए अनुकूल छोटे आंतरिक क्षेत्रों से कार्रवाई करने की सुविधा हासिल है. दुश्मन की चढ़ाई को रोकने के साथ शहरों का बचाव करने के बाद भी उसके पास जवाबी हमले करके रूसी सेना की दुखती रग, उसके साजोसामान को निशाना बनाने की क्षमता बची हुई है. यूक्रेनी जनता को संगठित और हथियारबंद किया गया है ताकि वे शहरों की लड़ाई में अपनी सेना की मदद कर सकें और स्पेशल फोर्सेस के साथ मिलकर रूसी सेना पर पीछे से वार कर सकें.
पेंटागन के मुताबिक, रूस ने चढ़ाई के लिए करीब डेढ़ लाख सैनिकों को जमा किया था और उन सबको युद्ध में झोंक दिया गया है. अब तक कोई संकेत नहीं है कि रूस के दूसरे हिस्सों से सेना इधर बुलाई जा रही है या नहीं. अनुपात से ज्यादा सैनिकों को रूसी सैन्य साजोसामान और विस्तारित संचार व्यवस्था की रक्षा में लगा दिया गया है. युद्धक्षेत्र में बर्फ और कीचड़ के कारण मेकेनाइज्ड सेना अपनी परिचालन की लड़ाई नहीं कर पा रही है. मार्च के तीसरे सप्ताह में ‘बर्फ की पिघलन/’रास्पुटित्सा’/ ‘आम कीचड़’ शुरू होने के बाद स्थिति और खराब हो जाएगी. ज़्यादातर ऑपरेशन सड़क के रास्ते हैंगे, जिनकी रक्षा करना आसान है. बाहरी लाइनों के बीच बड़ी दूरी के कारण एक्सिसों के बीच तालमेल नहीं हो पा रहा है. रूसी सेना के पास इतने सैनिक नहीं हैं कि वह चार एक्सिस में से किसी एक पर गति बनाए रख सके.
सांगठनिक खामियों और यूक्रेनी जवाबी कार्रवाइयों के कारण रूसी सैन्य तंत्र लड़ाई में गति बनाकर नहीं रख पा रहा है. कंबाइंड आर्म्स ब्रिगेड/ बटालियन टैक्टिकल ग्रुपों में पुनर्गठित किए जाने के बाद कोर/आर्मी लेवल पर केंद्रीय संसाधन काफी कम हो गए और सुरक्षा कमजोर हो गई. इलाका ऐसा है कि चार या छह पहियों वाले वाहन सड़क छोड़कर नहीं चल सकते. पुलों को तोड़े जाने के कारण भी ऑपरेशन की रफ्तार धीमी हो गई है.
इस कारण ट्रैफिक जाम लगता है और साजोसामान के काफ़िलों की रफ्तार धीमी हो जाती है. साजोसामान के ठिकाने सड़कों के पास ही हैं, जिन्हें निशान बनाना आसान है. एक टैंक को 1000 लीटर और बख्तरबंद वाहन को 500 लीटर तेल रोज चाहिए. तेल ढोने वाले ट्रक बख्तरबंद नहीं होते. यूक्रेनी सेना और नागरिक सैनिक खास तौर से इन ट्रकों को निशाना बना रहे हैं. इसके लिए बस ‘मोलोतोव कॉकटेल’ चाहिए.
प्रारंभिक हवाई हमलों की बुनियादी रणनीति गुरुत्वाकर्षण के पांच केंद्रों को निशाना बनाने की होती है. रूस ने इन केंद्रों को निशाना बनाने के लिए हवाई/मिसाइल/ड्रोन आधारित हमले का जो रणनीतिक/ ऑपरेशनल लेवल का अभियान चलाया वह आंशिक रूप से ही सफल हुआ. वायु क्षेत्र में तो वर्चस्व हासिल कर लिया गया है लेकिन यूक्रेन के बिजली, सड़क/रेल और संचार नेटवर्क जैसे ज़्यादातर इन्फ्रास्ट्रक्चर को साबुत छोड़ दिया गया. यह कहना मुश्किल है कि यह राजनीतिक मकसद से किया गया या खराब योजना, अकुशलता, संसाधन की कमी की वजह से.
युद्ध के पहले और उसके दौरान बड़ी संख्या में दूसरी/तीसरी पीढ़ी के टैंक–रोधी मिसाइलों और ‘मैनपैड्स’ नामक एयर डिफेंस सिस्टम के प्रयोग ने यूक्रेनी सेना को मेकेनाइज्ड फोर्सेस को कुंड करने और रूसी वायुसेना को परे रखने में सक्षम बनाया है. शुरू के कुछ दिनों के बाद ‘मैनपैड्स’ के डर से वायुसेना ऐक्शन में नहीं दिखी. यह बात कुछ हद तक हेलिकॉप्टरों के लिए भी सच है.
सूचना, इलेक्ट्रोनिक तथा साइबर युद्ध में रूस की ताकत ने अपेक्षित परिणाम नहीं दिलवाए हैं. या तो इन क्षमताओंका आम तौर पर या खासकर रूसी क्षमता को ज्यादा करके आंक लिया गया या उनका कमजोर प्रयोग किया गया. यूक्रेन ने भी अपनी कमांड, कंट्रोल, साबर, संचार तथा वेपन कंट्रोल/ गाइडेंस सिस्टम को दुरुस्त करनी के प्रयत्न किए हैं. नाटो सेनाएं पड़ोसी देशों से सूचना युद्ध में यूक्रेन की मदद कर रही हैं.
उपरोक्त कारणों के मेल ने पुनः एकजुट होने और साजोसामान जुटाने के लिए ऑपरेशन तथा सामरिक स्तर पर एक सप्ताह का विराम लेने को मजबूर कर दिया है.
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पूर्वानुमान
ऐसा लगता है कि रूस कीव पर अंतिम चढ़ाई करने के वास्ते अपनी सेना को फिर से एकजुट करने की सम्मिलित कोशिश की है. संभव है कि साजोसामान की खातिर और अग्रिम मोर्चों के सैनिकों को आराम देने के लिए पीछे के क्षेत्रों और संचार मार्गों को बेलारूस के सैनिकों की मदद से सुरक्षित किया गया है. पूर्वी ऐक्सिस से कुछ सैनिकों को कीव की ओर भेज दिया गया है.इसका अर्थ हुआ कि सुमि और खारकीव को कम अहमियत दी गई है और वे अलगथलग रहने दिए जाएंगे.
ऐसा ही प्रयत्न क्रीमिया ऐक्सिस पर किया जाना चाहिए था और जपोरीझिया की ओर बढ़ने का दबाव बनया जाना चाहिए था तथा पूरब में तैनात यूक्रेनी सैनिकों को घेरने के लिए नाइपर नदी के किनारे प्राचीन कैनी युद्ध जैसी लड़ाई लड़ी जाती. लेकिन समस्या सैनिकों की कमी की है, और फिर से किसी बड़े जमावड़े की खबर नहीं है. तीन ऐक्सिसों पर जपोरीझिया, मारियूपोल और माइकोलैव की दिशा में ऑपरेशन जारी हैं. माइकोलैव पर कब्जा होने के बाद संचार के लैंड लाइन खुल गए तो ओड़ेस्सा पर जल–थल मार्ग से हमला शुरू हो सकता है.
मेरा आकलन है कि मुख्य ज़ोर कीव पर कब्जा करने पर ही रहेगा. रूसी सेना कीव को उत्तर–पश्चिम, पश्चिम, दक्षिण–पश्चिम और पूरब से काट देनी की कोशिश कर रही है. वह कीव सिटी सेंटर से अभी भी 20-30 किमी दूर है. यूक्रेनी सेना उसका सामने से, दोनों बगल से और दबाव के कई मोर्चों पर उसका मुक़ाबला कर रही है.
कीव पर अंतिम हमला बाहरी उपनगरों को साफ करने और काट देने के 72-96 घंटे के भीतर किया जा सकता है. इसके पहले रूसी सेना रक्षा के लिए तैनात सेना को कमजोर करने के लिए शहर और इसके उपनगरों पर काफी हिंसक हवाई/मिसाइल/ड्रोन/टॉप हमला कर सकती है.
डोनबास ऐक्सिस पर रूसी सेना काफी हद तक एकजुट है और उसके साजोसामान सुरक्षित हैं. रूसी मीडिया की खबर के मुताबिक डोनेत्स्क और लुहान्स्क के सामने क्रीमिया और पूर्वी ऐक्सिस से हमला करके यूक्रेनी सेना को घेरे में लिया है. कोई स्वतंत्र स्रोत से यह खबर नहीं आई है. अगर यह सही है तो यह यूक्रेनी सेना के लिए बड़ा झटका है.
इस लेखक के साथ अधिकतर रक्षा विशेषज्ञ रूसी सेना के खराब प्रदर्शन को लेकर आश्चर्य कर रहे हैं. यह खराब सैन्य आकलन के कारण नहीं है बल्कि युद्ध में अत्याधुनिक क्षमता का उपयोग न कर पाने के कारण है. ऑपरेशनों की सुस्त प्रगति और हताशा से शहरों पर बेलगाम बम बरसाए जा सकते हैं. मुझे लगता है कि युद्ध के अगले 10 दिन बेहद हिंसक होंगे. अगर रूस निर्णायक नतीजे नहीं हासिल कर पाता है तो उसके सामने गतिरोध की स्थिति पैदा हो सकती है, जो एक सुपर पावर के लिए हार ही होगी. और तब यह माना जाएगा कि यूक्रेन ने युद्ध का पहला दौर जीत लिया है.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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