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Friday, 22 November, 2024
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प्रीफरेंशियल एक्सेस, पल-पल की जानकारी के लाभ: फायदे के लिए कैसे NSE सर्वर्स से की गई छेड़छाड़

CBI ने पूर्व-NSE चीफ चित्रा रामकृष्णा को शेयर बाजार में हेराफेरी मामले में गिरफ्तार किया है, जिनपर एक ऐसे व्यक्ति के साथ महत्वपूर्ण और गोपनीय जानकारी ‘साझा’ करने का आरोप है, जिसे वो ‘हिमालय का योगी’ बताती थीं.

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नई दिल्ली: ‘स्विचिंग के समय’, ‘को-लोकेशन सुविधाएं’, ‘बैकअप सर्वर्स’ तक पहुंच, और ‘लोड बैलेंसर्स’ की अनुपस्थिति- यही वो चीज़ें हैं जिनके नतीजे में, भारत के सबसे बड़े शेयर बाज़ार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सर्वर के साथ, कथित रूप से छेड़छाड़ की गई.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच के अनुसार, ये सब काम एनएसई अधिकारियों की मिलीभगत के साथ अंजाम दिया गया, जिससे एक कंपनी को ‘अनुचित लाभ’ पहुंचा, और दूसरे दलालों तथा व्यापारियों को ‘अनुचित नुकसान’.

जांचकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि डेटा तक प्रीफरेंशियल एक्सेस से जुड़े सर्वर्स और तथ्यों से कथित छेड़छाड़ के बेनक़ाब होने के बाद, न केवल एनएसई बल्कि सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) अधिकारियों को भी, एक अनुकूल रिपोर्ट बनाने के लिए रिश्वतें दी गईं.

रविवार को सीबीआई ने शेयर बाज़ार में हेराफेरी के मामले में, चित्रा सुब्रह्मण्यम को गिरफ्तार कर लिया, जो 2013 से 2016 के बीच एनएसई की मुख्य कार्यकारी और प्रबंध निदेशक थीं. उन्हें को-लोकेशन घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया है. हालांकि सीबीआई की एफआईआर में रामकृष्णा का नाम नहीं है, लेकिन पिछले महीने जारी सेबी की एक रिपोर्ट में उनकी कथित भागीदारी की ओर इशारा किया गया है.

जांचकर्ताओं ने कहा कि रामकृष्णा ने कथित रूप से एक ऐसे व्यक्ति के साथ एनएसई की महत्वपूर्ण और गोपनीय जानकारी ‘साझा’ की, जिसे वो ‘हिमालय का योगी’ बताती थीं. सीबीआई को शक है कि वो योगी और कोई नहीं, बल्कि स्टॉक एक्सचेंज का पूर्व ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर (जीओओ) आनंद सुब्राह्मण्यम है, जिसे पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था.

सुब्राह्मण्यम को सबसे पहले 2013 में एनएसई में चीफ स्ट्रेटजिक एडवाइज़र नियुक्त किया गया था, फिर रामकृष्णा ने 2015 में उसे तरक़्क़ी देकर जीओओ बना दिया. बाज़ार नियामक सेबी ने इसी महीने एक रिपोर्ट में कहा था कि सुब्राह्मण्यम की नियुक्ति उन फैसलों में से एक थी, जो चित्रा रामकृष्णा ने ‘योगी’ के प्रभाव में लिए.

वो कथित घोटाला क्या है जिसकी सीबीआई जांच कर रही है? को-लोकेशन सुविधा क्या होती है? स्विच करने का समय क्या होता है और उसका क्या महत्व है? लोड बैलेंसर्स क्या होते हैं और एक कंपनी को कथित प्रीफरेंशियल एक्सेस देने के लिए सिस्टम के साथ कैसे छेड़छाड़ की गई? दिप्रिंट ये सब समझा रहा है.


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‘स्विच ऑन समय तक पहुंच’

2018 में सीबीआई को पहली बार सूत्रों से जानकारी मिली थी, जिसमें उसे कथित घोटाले से आगाह किया गया था.

केंद्रीय एजेंसी के अनुसार, जानकारी मिली थी कि 2010 और 2014 के बीच, दिल्ली-स्थित स्टॉक ब्रोकर ओपीजी सिक्योरिटीज़ के मालिक और प्रमोटर संजय गुप्ता ने, एनएसई अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके उसके सर्वर आर्किटेक्चर का दुरुपयोग किया था.

सूत्रों ने बताया कि गुप्ता ने अपने बहनोई अमन कोकराड़ी, जो ख़ुद भी सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में नामज़द हैं, और कुछ अन्य अज्ञात लोगों की सहायता से, एनएसई डाटा केंद्र के कुछ स्टाफ को कथित रूप से अपने साथ मिला लिया, जो मौद्रिक लाभ के एवज़ में एक्सचेंज सर्वर्स के चालू होने के समय की जानकारी उन्हें दे देते थे.

एक सूत्र ने कहा, ‘इससे ओपीजी सिक्योरिटीज़ को फायदा हुआ, और उन्हें दूसरों के ऊपर बढ़त हासिल हो गई. इस फायदे के साथ वो एनएसई के एक्सचेंज सर्वर में सबसे पहले लॉग-इन कर लेते थे, जिससे उन्हें सभी प्रासंगिक सुराग़ मिल जाते थे, जो उन्हें स्पष्ट रूप से फायदा पहुंचाते थे’.

एनएसई अधिकारियों ने भी ओपीजी सिक्योरिटीज़ को, कथित रूप से ऐसे सर्वर्स तक पहुंच दे दी, जो आधुनिकतम तकनीक से लैस थे, और जिनमें उस समय विशेष पर सबसे कम भीड़ होती थी.

सिस्टम में जल्दी लॉग-इन करने से सुनिश्चित हो जाता था कि ब्रोकर शेयर या स्टॉक्स के बारे में मूल्य डाटा के प्रसार का, दूसरों से पहले फायदा उठा लेता था.

सर्वर के हर पोर्ट के लिए 30 कनेक्शंस की सीमा निर्धारित थी, जिनसे एनएसई ट्रेडिंग सदस्यों को मूल्य डाटा प्रसारित करता था. लेकिन, इस सीमा का पालन नहीं किया गया और एक पोर्ट में कनेक्शंस की संख्या, अक्सर 30 से अधिक हो जाती थी. इससे वो सदस्य घाटे में रह जाते थे, जो ज़्यादा भीड़ वाले पोर्ट्स पर होते थे.

को-लोकेशन सर्वर क्या होता है, और ये कैसे काम करता है

सीबीआई सूत्रों के अनुसार, 2010 से 2014 के बीच गुप्ता को एनएसई को-लोकेशन सुविधा तक अनुचित रूप से पहुंच दी गई, जिससे उसकी कंपनी को दूसरों के मुक़ाबले फायदा मिला.

को-लोकेशन सेट-अप ब्रोकर के कंप्यूटर को उसी जगह रखे जाने की अनुमति देता है, जिसमें स्टॉक एक्सचेंज का सर्वर होता है. इससे उसे दूसरे ब्रोकर्स के मुकाबले, दस गुना अधिक स्पीड का फायदा मिल जाता है.

सीबीआई सूत्रों के अनुसार, 2014 तक एनएसई सर्वर से सारी जानकारी को-लोकेशन सुविधा से जुड़े ब्रोकर्स को, एक टिक-बाइ-टिक (टीबीटी)-आधारित सिस्टम आर्किटेक्चर से दी जाती थी. इस आर्किटेक्टर में डाटा को एक क्रमबद्ध तरीक़े से प्रसारित किया जाता था, जिसमें एक्सचेंज सर्वर से सबसे पहले जुड़ने वाले स्टॉक ब्रोकर को, बाद में जुड़ने वाले ब्रोकर से पहले टिक्स मिलते थे, जिनका मतलब बाज़ार फीड होता है.

ऊपर हवाला दिए गए सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘सूत्र ने सीबीआई को सूचित किया था कि 2010 से 2014 के बीच संजय गुप्ता की एनएसई को-लोकेशन

‘इंबैलेंस लोड फैक्टर’

सुविधा तक अनुचित पहुंच थी, जिससे उसकी कंपनी ओपीजी सिक्योरिटीज़ सेकंडरी सर्वर में सबसे पहले लॉग-इन कर लेती थी, और उसे बाक़ी सबसे पहले डाटा मिल जाता था, जिससे वो एनएसई की डाटा फीड तक, दूसरों से एक क्षण पहले पहुंच जाती थी’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘माना जाता है कि डाटा तक पहुंचने में पल भर की तेज़ी भी, स्टॉक ट्रेडर को भारी मुनाफा दिला सकती है’.

सीबीआई को बताया गया कि शुरू में एनएसई के पास ऐसी व्यवस्था नहीं थी कि वो हर रोज़ एक तय समय पर अपने टीबीटी सर्वर्स को चालू कर सके. लेकिन सूत्रों ने बताया कि गुप्ता ने कथित रूप से एनएसई डाटा सेंटर स्टाफ को अपने प्रलोभन में फंसा लिया, जो उसे एक्सचेंज सर्वर्स के चालू होने का समय बता देते थे, जिससे उसकी कंपनी को अनुचित लाभ पहुंच जाता था.

ऊपर हवाला दिए गए सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, कि अक्टूबर 2012 में एनएसई ने अलग अलग टीबीटी को-लोकेशन सर्वर्स के बीच, इंबैलेंस लोड फैक्टर की प्रणाली में सुधार किया, और विभिन्न टीबीटी को-लोकेशन सर्वर्स के बीच ‘लोड बैलेंसर’ शुरू किया.

सूत्र के अनुसार लोड बैलेंसर टीबीटी सर्वर्स के बीच लोड का समान वितरण सुनिश्चित करता है.

सूत्र ने बताया कि एनएसई के लोड बैलेंसर शुरू करने के बाद भी, गुप्ता ने एनएसई डेटा सेंटर स्टाफ की मिलीभगत से, अपनी फर्म को एक्सचेंज के बैक-अप सर्वर से जुड़वा लिया, जिस पर ‘ज़ीरो लोड’ था.

एनएसई इन बैकअप सर्वर्स को केवल ऐसी स्थिति में ब्रोकर्स के सर्वर्स से जुड़ने के लिए उपलब्ध कराता है, जब मूल सर्वर तकनीकी ख़ामी या किसी दूसरे कारण से बंद हो जाए.

लेकिन, जहां दूसरे तमाम ब्रोकर्स के सर्वर्स एनएसई के प्राइमरी सर्वर से जुड़े थे, वहीं गुप्ता ने कथित रूप से डाटा सेंटर स्टाफ के साथ मिलकर धोखाधड़ी से, बैकअप सर्वर तक पहुंच हासिल कर ली और अपने सर्वर को उसके साथ जुड़वा लिया. सूत्र ने बताया कि इससे गुप्ता को ‘दूसरे ब्रोकर्स से पहले बाज़ार फीड मिल जाती थी, जिससे उसकी कंपनी को अनुचित लाभ पहुंच जाता था’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘बैकअप सर्वर्स पर ज़ीरो लोड होता था, इसलिए गुप्ता की कंपनी को दूसरे ब्रोकर्स के मुक़ाबले, कहीं बेहतर और तेज़ी के साथ बाज़ार फीड तक पहुंच मिल जाती थी’.

SEBI की जांच

सीबीआई सूत्रों ने बताया कि टीबीटी आर्किटेक्चर के साथ, ओपीजी सिक्योरिटीज़ द्वारा ‘छेड़छाड़’ की शिकायतें मिलने के बाद, सेबी ने एनएसई में कथित कुशासन की जांच कराई. नियामक की तकनीकी सलाहकार समिति (टीएसी) की रिपोर्ट में कहा गया: ‘एनएसई के टीबीटी आर्किटेक्चर का शोषण करके, ओपीजी सिक्योरिटीज़ ने भौतिक रूप से फायदा उठाया’.

सीबीआई सूत्रों के अनुसार, टीएसी रिपोर्ट से ये भी पता चला कि 2010 से 2014 के बीच ट्रेडिंग के अधिकतर दिनों में, ओपीजी सिक्योरिटीज़ ने चुनिंदा टीबीटी सर्वर्स पर, सबसे पहले लॉग-इन किया था और उसकी उन सर्वर्स तक भी पहुंच थी, जिनका हार्डवेयर बेहतर था.

एफआईआर से पता चला, जिसे दिप्रिंट ने देखा है कि एनएसई की को-लोकेशन सुविधा की फॉरेंसिक समीक्षा करने वाली कंपनी डिलॉयट टौच तोहमात्सु को पता चला कि ट्रेडिंग सेशन के दौरान अधिकतर दिनों में, ओपीजी सिक्योरिटीज़ सबसे पहले लॉग-इन करती थी.

दिसंबर 2016 में एनएसई को पेश की गई डिलॉयट फॉरेंसिक रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि ऐसा लगता है कि लोड बैलेंसर्स न होने की वजह से, ‘मैन्युअल हस्तक्षेप के कारण कुछ सदस्यों को फायदे पहुंचे’.

‘अनुकूल रिपोर्ट के लिए SEBI अधिकारियों को प्रभावित किया’

ऊपर हवाला दिए गए सूत्र ने बताया कि चल रही जांच में सेबी से एक अनुकूल रिपोर्ट सुनिश्चित करके अपने बच निकलने के लिए, गुप्ता ने सेबी के अधिकारियों को रिश्वत देकर प्रभावित किया.

सूत्र ने कहा, ‘हमें जानकारी मिली थी कि टीबीटी के शोषण पर पर्दा डालने के लिए, एनएसई और सेबी अधिकारियों को रिश्वतें दी गईं. इसके अलावा, हमारी सूचना में ये भी कहा गया कि गुप्ता ने अपने कर्मचारियों से कुछ महत्वपूर्ण मेल्स, लिखित मैसेज, और लॉग्स डिलीट करने के लिए कहा, जो को-लोकेशन विवाद से संबंधित थे. उसकी मंशा अपने और अपनी कंपनी के खिलाफ, इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को नष्ट करने की थी’.

‘चाणक्य सॉफ्टवेयर’

एफआईआर के अनुसार, अजय नरोत्तम शाह नाम का एक व्यक्ति भी, एनएसई टीबीटी आर्किटेक्चर के शोषण में सहायक रहा था.

शाह ने कथित तौर से रिसर्च के नाम पर एनएसई डेटा एकत्र किया, और बाद में उसे आगे निजी लोगों को दे दिया, जिन्होंने उसके बदले में ‘चाणक्य’ नाम से एक एल्गो सॉफ्टवेयर विकसित किया. एफआईआर में कहा गया कि उस सॉफ्टवेयर को, फिर कुछ चुनिंदा ब्रोकर्स को बेंच दिया गया, जिनमें ओपीजी सिक्योरिटीज़ भी शामिल थी, जिसने इस सॉफ्टवेयर के ज़रिए, एनएसई के टीबीटी आर्किटेक्चर का शोषण करके फायदा उठाया.


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