नई दिल्ली: जैसे- जैसे भारतीय, जिनमें से ज्यादातर छात्र हैं, युद्धग्रस्त यूक्रेन से वापस भारत लौट रहे हैं, उनमें से कई लोगों ने अपने गुदगुदे (और कई मामलों में भयंकर भी) दोस्तों को पीछे छोड़ने से इनकार कर दिया है.
अपने-अपने प्रिय कुत्तों और बिल्लियों के साथ वापस लौटने वाले छात्रों की कहानियां सामने आने के बाद, अब एक सबसे ताजातरीन कहानी यूक्रेन में रह रहे एक भारतीय डॉक्टर की है, जिसने इस वजह से वह देश छोड़ने से इनकार कर दिया है क्योंकि वह अपने दो पालतू जानवरों – एक जगुआर और एक काले तेंदुए – को छोड़ना नहीं चाहता है.
हां, आपने एकदम सही पढ़ा है. डॉक्टर और यूट्यूब व्लॉगर कुमार बंदी, आंध्र प्रदेश के मूल निवासी जो पिछले 15 वर्षों से यूक्रेन में रह रहे हैं, अब अपने पालतू जानवरों के साथ डोनबास के एक बंकर में रह रहे हैं.
अन्य लोगों, साथी भारतीयों, को वहां से निकालने में मदद करने के बावजूद खुद के यूक्रेन में बने रहने के अपने फैसले के बारे में बात करते हुए अपने यूट्यूब चैनल पर पोस्ट एक वीडियो में बांदी ने कहा कि, ‘यदि मैं उन्हें छोड़ कर चला जाऊं तो वे निश्चित रूप से मर जायेंगे, और मैं इसे सहन नहीं कर सकता. मैं अपनी अंतिम सांस तक उनकी देखभाल करूंगा, और यदि मैं मर भी गया, तो मैं उनके साथ ही मारा जाऊंगा’.
कई भारतीय छात्र भी अपने पालतू जानवरों के साथ ही अपने-अपने घर लौटें हैं, और इनमें से कुछ ने तो उन्हें वापस लाने के लिए कुछ निजी सामान को भी पीछे छोड़ दिया है.
भारत सरकार ने भी विषम परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विदेश से पालतू जानवर लाने की अपनी नीतियों पर एक बार की विशेष रियायत प्रदान की है.
विगत 2 मार्च को मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने एक ज्ञापन जारी कर इस बारे में जानकारी दी.
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‘मैं उनके साथ ही मर जाऊंगा’
बांदी फ़िलहाल यूक्रेन की राजधानी कीव से लगभग 850 किलोमीटर दूर स्थित डोनबास क्षेत्र – जिसमें वे लुहान्स्क और डोनेट्स्क के वे प्रान्त शामिल हैं, जिन्हें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्वतंत्र गणराज्यों के रूप में मान्यता दे दी है – में बने अपने घर पर है.
उनका दावा है कि उनका एक पालतू जगुआर – जिसका नाम ‘यगवार’ है – एक अमूर इलाके के तेंदुए और एक जगुआर की संकर-नस्ल (क्रॉसब्रीड) है, और इस प्रकार यह एक दुर्लभ प्रजाति है.
हालांकि यगवार उनके पास पिछले 19 महीनों से है, दो महीने पहले ही उन्होंने इस जगुआर के साथ सहवास करवाने के उद्देश्य से एक ब्लैक पैंथर (काला तेंदुआ) भी खरीदा था.
खबरों से पता चलता है कि बंदी, जो हमेशा एक पशु प्रेमी रहे हैं, के पास कई पालतू बिल्लियां, कुत्ते और पक्षी भी हैं, लेकिन एक तेलुगु फिल्म – जिसमें नायक के पास एक पालतू तेंदुआ था – देखने के बाद उनमें बिल्ली प्रजाति के बड़े जीव पालने की इच्छा विकसित हुई.
15 साल पहले जब वह मेडिकल की पढाई करने के लिए यूक्रेन गए थे, तो बंदी एक रॉयल बंगाल टाइगर या एशियाई शेर पालने के लिए प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें इसके लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया.
फिर उन्होंने जगुआर की एक दुर्लभ नस्ल प्राप्त करने के बारे में सोचा, जिसके लिए उन्हें बाद में अनुमति दे दी गई.
बांदी का यूट्यूब चैनल, जिसे जगुआर कुमार कहा जाता है, यगवार के दिनों तथा बंदी द्वारा उसे पालने-पोसने और बड़ा करने के अनुभवों को बयां करता है. इस चैनल पर अपलोड किए गए पिछले कुछ वीडियो में बंदी और यगवार डोनबास स्थित कुमार के घर में बने बंकर में रहते दिखाई दे रहे हैं.
बंदी के भाई राम बंदी ने उनसे पहले ही यूक्रेन में मेडिकल की पढाई की थी और कुमार बंदी ने वहां की कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया है. अब कुमार बंदी ने दोनों भाइयों द्वारा यूक्रेन में फंसे अन्य भारतीयों के लिए मदद की व्यवस्था करते हुए वीडियो भी अपलोड किया.
हालांकि, अपने गहरे संपर्कों के बावजूद, उन्होंने जोर देकर कहा कि वह अपने दो पालतू जानवरों को अकेले नहीं छोड़ेंगे.
बंदी ने अपने चैनल पर तेलुगु में अपलोड किए गए एक वीडियो में कहा, ‘यदि मैं उन्हें छोड़ कर चला जाऊं तो वे निश्चित रूप से मर जायेंगे, और मैं इसे सहन नहीं कर सकता. मैं अपनी अंतिम सांस तक उनकी देखभाल करूंगा और यदि मैं मर भी गया, तो मैं उनके साथ ही मारा जाऊंगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे जीवन का मुख्य उद्देश्य ही लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण करना है,’
पालतू जानवरों के साथ लौटे भारतीय, सरकार ने दी पाबंदियों में ढील
जैसे ही यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू हुआ, इस देश में रह रहे कई भारतीय छात्रों ने न केवल अपने लिए बल्कि अपने पालतू जानवरों के लिए भी मदद का अनुरोध करने हेतु सोशल मीडिया का सहारा लिया.
ऐसा ही एक छात्र, ऋषभ कौशिक, जिसने अपने पालतू कुत्ते मालिबू को छोड़ने से इनकार कर दिया था, 4 मार्च को अपने चौपाया दोस्त के साथ खारकीव से भारत लौटा.
केरल की एक अन्य भारतीय छात्रा, आर्य एल्ड्रिन ने कहा कि वह अपनी पांच महीने की साइबेरियन हस्की, जायरा, के साथ 20 किलोमीटर पैदल चलकर रोमानियाई बॉर्डर तक पहुंची.
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा गत 2 मार्च को जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि भारत में पालतू जानवरों के निर्यात से सम्बन्घित औपचारिकताओं को यूक्रेन से लौटने वाले भारतीयों के लिए सिर्फ एक बार दी जाने वाली रियायत के रूप में ढीला किया जा रहा है.
मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है, ‘युद्ध प्रभावित यूक्रेन में मौजूद अद्वितीय और असाधारण स्थितियों, जिनकी वजह से भारत में पालतू जानवरों के निर्यात हेतु प्री-एक्सपोर्ट (निर्यात-पूर्व) की अपेक्षित औपचारिकताएं पूरी नहीं की जा सकती हैं, को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा वहां से बचा कर लाये जा रहे फंसे हुए भारतीयों के साथ आने वाले पालतू कुत्तों और/या पालतू बिल्लियों का आयात किया जा रहा है और उन्हें एकमुश्त छूट वाले उपाय के रूप में यह सुविधा दी जा रही है.’
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