scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमडिफेंसयूक्रेन संकट में भारत के लिए छुपे हैं कई सबक, आगे की राह में सबसे महत्वपूर्ण है आत्मनिर्भरता

यूक्रेन संकट में भारत के लिए छुपे हैं कई सबक, आगे की राह में सबसे महत्वपूर्ण है आत्मनिर्भरता

यूक्रेन युद्ध से यूरोप नींद से जागा और फौज तथा रक्षा मामलों में निवेश पर फोकस बढ़ाया.

Text Size:

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में युद्ध छेड़कर दुनिया के भू-रणनीतिक नक्शे में ऐसा भूचाल ला दिया है कि इसका उनके देश पर ही नहीं, भारत, चीन, अमेरिका और यूरोप पर भी भारी असर पड़ेगा.

उसने यूरोप को नींद से जगा दिया है और उसने फौज और रक्षा में बेहद अहम निवेश पर फोकस बढ़ा दिया है, जैसा कि जर्मनी के सेना प्रमुख के बयान से साफ हुआ है. अल्फोंस मैस ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में दूसरे युद्ध को देखने की कल्पना तक नहीं की थी.

मास्को के खिलाफ नई पाबंदियों, खासकर रक्षा में प्रतिबंधों से रूस-भारत व्यापार रिश्ते में फौरी और लंबे वक्त के असर दिखेंगे.

भारत, अपने हित देखो

यूक्रेन में जारी संकट का भारत के लिए बड़ा सबक यह है कि अगर चीन से लड़ाई हुई तो कोई तीसरा देश नई दिल्ली की मदद, खासकर सैन्य मामले में, करने को हाथ आगे बढ़ाने वाला नहीं है. पाकिस्तान का मामला अलग है और भारत के पास अपने पश्चिमी पड़ोसी से निपटने की पर्याप्त सैनिक-रणनीतिक क्षमता है.

अमेरिकी भारत के लिए चीन से लड़ाई मोल लेने वाले नहीं हैं. अलबत्ता, भारत के पक्ष में काफी मौखिक बयान जारी किए जा सकते हैं, जैसा कि रूस के खिलाफ देखा जा रहा है, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय ताकतें सीधे दखल देने से दूर ही रहेंगी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

ये देश भारत को यूक्रेन की तरह काफी फौजी साजो-सामान भी नहीं दे सकते, क्योंकि उनसे फिलहाल सीधे संपर्क में नहीं है.

रूस भारत का दशकों से करीबी दोस्त रहा है, जबकि नए वैश्विक परिदृश्य में मास्को और बीजिंग एक-दूसरे की बाहों में हैं.

इसलिए भारत के पक्ष में रूस से किसी सक्रिय भूमिका निभाने की उम्मीद नहीं की जा सकती. हालांकि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या आम सभा में किसी प्रस्ताव पर जरूर गैर-हाजिर रह सकता है, जैसा कि भारत ने यूक्रेन पर रूस के मामले में किया.

हम इस धारणा के साथ अपनी सामरिक तैयारी कर रहे हैं कि हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी, मगर सत्ता-प्रतिष्ठान में कुछ लोगों को यह खुशफहमी है कि आखिरकार अमेरिका भारत के पक्ष में खड़ा होगा.

ऐसी सोच को बाहर का दरवाजा दिखाने की दरकार है.

भारत लंबे समय तक भू-राजनीति में संतुलन बनाए रखने के काबिल नहीं होगा. दुनिया नए सिरे से अमेरिका, चीन और रूस के ब्लॉकों में बंट जाती है, तो हम चाहे किसी ब्लॉक में न रहें, मगर हमें तय करना पड़ सकता है कि हम किसके करीब रहना चाहते हैं.


यह भी पढ़ें : भारत ने माउंटेन वारफेयर के लिए हल्के टैंकों के स्वदेशी निर्माण के लिए मंजूरी दी


आत्मनिर्भरता ही आगे का रास्ता

रक्षा पर अधिक खर्च और स्वदेशी हथियार तथा रक्षा साजो-सामान निर्माण दोनों ही मदों पर फोकस बढ़ाना ही आगे का रास्ता है. हम युद्ध और रक्षा साजो-सामान दोनों ही मदों अपनी रक्षा जरूरतों के लिए दूसरे देश पर निर्भर नहीं रह सकते हैं.

भारत को भविष्य के युद्ध भारतीय हथियार से ही लड़ना होगा.

रूस-यूक्रेन संकट से साफ जाहिर है कि सैन्य साजो-सामान के लिए दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहा जा सकता.

मेक इन इंडिया का मतलब महज यह नहीं हो सकता कि भारतीय कंपनियां थोड़ी-बहुत देसी किस्म की हेरफेर करके विदेशी हथियारों को सेना को बेचें, कुछेक मामलों में तो महज स्टीकर बदल दिया जाता है.

फोकस रिसर्च और विकास पर करना पड़ेगा. नए बजट में नरेंद्र मोदी सरकार ने रक्षा उपकरणों के निर्माताओं को बजट पूंजी का 68 फीसदी हिस्सा उनके लिए आरक्षित करके भारी प्रोत्साहन दिया है. सरकार ने आरएंडडी फंड का 25 फीसदी भी प्राइवेट कंपनियों, स्टार्टअप और अकादमिक हलकों के लिए आरक्षित रखा है.

रक्षा मंत्रालय ने रिसर्च में बढ़ोतरी के लिए नई योजनाएं पहले ही जारी कर चुका है और सावधानी बरती है कि अपने ही करे, न कि रक्षा रिसर्च और विकास संगठन (डीआरडीओ) के जरिए.

सरकार को सेना में अपने आरएंडडी पर जोर देना चाहिए और ऐसे उत्पादों और अपनी रिसर्च तथा टेक्नोलॉजी पर आधारित सिस्टम विकसित करने वाली कंपनियों को तरजीह देना चाहिए.

स्वदेशी उत्पाद बनाने वाली भारतीय कंपनियों को तरजीह दी जानी चाहिए. चाहे ड्रोन, बख्तरबंद गाडिय़ां या कोई सामान हो, सिर्फ विदेशी उपकरणों को देसी बताकर चलाने के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.

भविष्य की टेक्नोलॉजी पर फोकस करें

रूस-यूक्रेन युद्ध ने यह भी दिखाया कि टैंक और जंगी हेलिकॉप्टर जैसे युद्ध लड़ने की परंपरागत औजारों से युद्ध नहीं जीता जाएगा. यह अजरबैजान और आर्मेनिया की लड़ाई में भी साफ हो गया था.

सैकड़ों टैंक और बख्तरबंद गाडिय़ों से रूस का यूक्रेन पर हमला बेमानी साबित हुआ है और सीमित संसाधनों वाले काफी छोटा देश एक सैन्य महाशक्ति को रोक रहा है.

यह हथियारबंद ड्रोन, सचल तोपों और ढोई जाने वाली मिसाइलों से जंगी हेलिकॉप्टरों और जंगी जहाजों को नुकसान पहुंचाकर हासिल किया जा सका है.

टैंक-रोधी गाइडेड मिसाइलों की तो बात ही दूर, यूक्रेन ने दिखा दिया है कि हथगोलों से रूसी बख्तरबंद फौजी टुकडिय़ों को भेदा जा सकता है.

युद्ध के तौर-तरीके बदल गए हैं और नई सैन्य टेक्नोलॉजी पर फोकस करना जरूरी है, न कि पुराने औजारों पर समय बर्बाद किया जाए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. व्यक्त विचार निजी हैं.)


यह भी पढ़ें : चीन के पास सबसे बड़ी सेना, तो रूस के पास है न्यूक्लियर हथियारों का जखीरा, ये हैं दुनिया की बड़ी सैन्य ताकतें


 

share & View comments