पटना: यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, वहां पढ़ाई करने वाले युवा लौट रहे हैं, जिसके बाद सभी पार्टी के विधायकों ने सरकार से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस की सीमा तय करने की मांग की है. हालांकि, नीतीश सरकार इस मामले में कुछ भी कर पाने में असहाय नज़र आ रही है.
यूक्रेन में कम फीस और आसानी से दाखिला होने की वजह से मेडिकल की पढ़ाई की चाहत रखने वाले छात्रों के लिए यह पसंदीदा जगह है. हालांकि, वे जारी संकट की वजह से भविष्य के प्रति अनिश्चितता से गुजर रहे हैं.
सरकारी कॉलेजों में दाखिला के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है. वहीं, प्राइवेट कॉलेजों की फीस बहुत ज़्यादा है. ऐसे में चीन और रूस के साथ ही, पूर्वी यूरोप का देश यूक्रेन मेडिकल की पढ़ाई करने वालों के लिए बेहतर विकल्प है. यूक्रेन में जारी संकट के बाद वहां से लौटे छात्रों के लिए बाकी बचे सिलेबस को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है.
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के विधायक संजीव कुमार ने गुरुवार को यूक्रेन में फंसे बिहार के छात्रों की ओर ध्यान दिलाने के लिए विधानसभा में ‘ध्यानकर्षण प्रस्ताव’ पेश किया.
कुमार ने विधानसभा में कहा, ‘अगर बिहार के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस कम होती तो इतने छात्रों को यूक्रेन नहीं जाना पड़ता और युद्ध की स्थिति में वहां से भागना नहीं पड़ता.’
सत्तारूढ़ बीजेपी विधायक नीतीश मिश्र ने सरकार से बिहार में मेडिकल की सीटों की संख्या बढ़ाने की मांग की. राज्य में मेडिकल की सीटों की संख्या काफी समय से बढ़ाई नहीं गई है. राज्य में 1850 मेडिकल की सीटें हैं.
राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने आरोप लगाया कि ‘निजी मेडिकल कॉलेज छात्रों को लूटते हैं’ क्योंकि सरकार इस मामले में कुछ नहीं करती.
उन्होंने कहा, ‘बिहार में एमबीबीएस की डिग्री लेने के लिए अभिभावकों को एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि विदेशों में फीस काफी कम है.’
इस मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिप्रिंट से कहा कि राज्य सरकार इस मामले में बहुत कुछ नहीं कर सकती है और केंद्र को इस मामले में ‘पहल’ करनी होगी.
विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने भी इसी तरह की बात कही कि सरकार के हाथ बंधे हैं. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फीस तय करने के लिए कमिटी का गठन किया है. हम अपनी सिफारिश भेजेंगे.’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एनडीए सरकार अपने कार्यकाल में अब तक छह मेडिकल कॉलेज खोल चुकी है और आने वाले समय में चार और खोले जाने की योजना है.
बिहार में 12 सरकारी कॉलेज और छह प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं. प्राइवेट कॉलेजों को 50 फीसदी सीटें ही खुद से दाखिला लेने की छूट है, जबकि बाकी सीटें नीट की परीक्षा पास करने वाले छात्रों के लिए आरक्षित की गई हैं.
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लौटते छात्र
गुरुवार तक करीब 100 छात्र यूक्रेन से बिहार लौट चुके हैं. सरकारी सूत्रों ने कहा कि लौटने वालों की संख्या 1,200 तक हो सकती है.
एक अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि बिहार के छात्र एमबीबीएस डिग्री हासिल करने के लिए सिर्फ यूक्रेन ही नहीं जाते हैं, वे रूस, चीन, पोलैंड और यहां तक की नेपाल का भी रुख करते हैं. उन्होंने कहा, ‘यूक्रेन संकट के बाद जो संख्या बताई जा रही है वह इससे कहीं ज्यादा है.’
इन देशों से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वालों को भारत में मेडिकल की प्रैक्टिस करने के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (एफएमजीई) की परीक्षा पास करनी होती है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बिहार यूनिट के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर ब्रजनंदन यादव ने कहा, ‘इस परीक्षा को पास करने की दर सिर्फ 16 फीसदी है, इनमें से कई लोगों को परीक्षा पास करने के लिए कई बार प्रयास करना पड़ता है.’
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मुख्यमंत्री ने कहा- उन्हें पढ़ने वालों की संख्या की जानकारी नहीं थी
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यूक्रेन से लौटने वाले छात्रों की संख्या पर आश्चर्य जताया. उन्होंने कहा, ‘मुझे बस इस बात का अंदाजा नहीं था कि यूक्रेन में इतने सारे छात्रों ने मेडिकल की पढ़ाई की है. यूक्रेन में युद्ध जैसी स्थिति पैदा होने के बाद ही मुझे पता चला कि वहां मेडिकल के इतने सारे छात्र थे.’
उन्होंने कहा, ‘यूएसएसआर के जमाने में, कुछ कम्युनिस्ट नेताओं के बेटे और बेटियां ही यूएसएसआर और सोवियत ब्लॉक के अन्य देशों में पढ़ते थे. मुझे पता चला है कि अब दिल्ली में बैठे इन विदेशी विश्वविद्यालयों के एजेंट, छात्रों को वहां जाने में मदद करते हैं.’
हालांकि, उन्होंने यूक्रेन से लौटने वाले बिहार के छात्रों की संख्या का जिक्र नहीं किया. उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों को कहा गया है कि यूक्रेन से लौटने वाले बिहार के छात्रों को राज्य में उनके घरों तक पहुंचाया जाए.’
मुख्यमंत्री ने मेडिकल की पढ़ाई के खर्च को कम करने में अपनी असमर्थता जताई. उन्होंने कहा, ‘केंद्र की ओर से इसको लेकर पहल की जानी चाहिए.’
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बिहार में छात्र कितनी फीस देते हैं
बिहार में आधा दर्जन प्राइवेट कॉलेज हैं. यहां पर पांच साल की एमबीबीएस डिग्री लेने के लिए छात्रों को एक करोड़ रुपये देने होते हैं. इनमें आमतौर पर 10 लाख रुपये की सालाना फीस, 5 लाख रुपये का सालाना विकास शुल्क और हर साल चार से पांच लाख रुपये हॉस्टल फीस शामिल है.
यूक्रेन जैसे देशों में इन कोर्स के लिए पूरे प्रोग्राम की फीस 20 लाख से कम पड़ती है.
यादव ने कहा, ‘बिहार के प्राइवेट कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र आर्थिक तौर पर संपन्न परिवारों से आते हैं. वहीं, यूक्रेन में पढ़ने वाले आमतौर पर मध्यम वर्ग से आते हैं.’
पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) के एक पूर्व सुपरिटेंडेंट ने कहा कि प्राइवेट कॉलेज की फीस की सीमा तय करने की बहुत गुंजाइश नहीं है.
आईजीआईएमएस के एक पूर्व प्रमुख ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, ‘प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के लिए अपनी फीस कम कर पाना मुश्किल है, क्योंकि उन्हें विकास के लिए फंड नहीं मिलता है. वे इसे अपने यहां पढ़ने वाले 50 फीसदी छात्रों से हासिल करते हैं. (बाकी सीटें नीट की परीक्षा पास करने वाले छात्रों के लिए आरक्षित होती है).’
उन्होंने कहा, ‘अगर कॉलेज को एमआरआई (मशीन) लगाना हो, तो इसका खर्च 12 करोड़ रुपये आएगा. एक ऑपरेशन टेबल की कीमत तीन लाख रुपये पड़ती है और इसे चलाने का खर्च बहुत ज्यादा है. मेडिकल कॉलेज को फैकल्टी मेंबर कैसे मिलेगा अगर वे उन्हें अच्छी तनख्वाह नहीं देंगे?’
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