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Sunday, 6 October, 2024
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किर्लोस्कर परिवार विवाद : केएमडी के सीएमडी की याचिका पर 15 मार्च को न्यायालय में सुनवाई

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नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (केबीएल) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) संजय किर्लोस्कर की याचिका पर 15 मार्च को सुनवाई करेगा। इस याचिका में बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत संपत्ति से जुड़े पारिवारिक विवाद में मध्यस्थता का निर्देश दिया गया था।

केबीएल की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि दूसरा पक्ष मध्यस्थता और सुनवाई में बार-बार हो रहे स्थगन का फायदा उठा रहा है तथा वह प्रचार सहित अन्य गतिविधियों में शामिल है।

सिंघवी ने पीठ से कहा, “मध्यस्थता की अवधि और सुनवाई में लगातार जारी स्थगन का फायदा उठाकर दूसरा पक्ष प्रचार सहित अन्य प्रमोशनल गतिविधियां कर रहा है, जबकि मेरे मुकदमे पर स्टे लगा दिया गया है। अदालत ने दो बार इसे सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया, पर यह सुनवाई के लिए नहीं आया।”

पीठ में न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं। उसने कहा, “हम याचिका को 15 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे।”

चार फरवरी को केबीएल ने अदालत को सूचित किया था कि उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा की मध्यस्थता में किर्लोस्कर परिवार के विवाद को सुलझाने की कोशिश नाकाम रही है। इस पर पीठ ने कहा था कि वह मामले की सुनवाई करेगी।

इससे पहले, पीठ ने केबीएल द्वारा प्रतिवादी बनाए गए उद्योगपति अतुल चंद्रकांत किर्लोस्कर और 13 अन्य लोगों से मामले को निपटाने के लिए मध्यस्थता के मुद्दे पर अपनी राय बताने का निर्देश दिया था।

पिछले साल 27 जुलाई को शीर्ष अदालत ने किर्लोस्कर पारिवारिक विवाद मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।

पुणे की दीवानी अदालत में केबीएल द्वारा पारिवारिक समझौते के उल्लंघन के लिए हर्जाने की मांग किए जाने संबंधी मामले की सुनवाई में भी यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया था।

मामले में शामिल पक्षों (किर्लोस्कर बंधु-अतुल और संजय किर्लोस्कर) से मध्यस्थता की संभावना तलाशने की बात कहते हुए पीठ ने संजय किर्लोस्कर की याचिका पर नोटिस जारी किया था। अदालत ने सभी पक्षों से नोटिस पर जवाब दाखिल करने को भी कहा था। 130 साल से अधिक पुराने किर्लोस्कर समूह की संपत्ति से जुड़े पारिवारिक समझौते पर विवाद उस समय शीर्ष अदालत में पहुंच गया, जब संजय किर्लोस्कर ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें मध्यस्थता का निर्देश दिया गया था।

किर्लोस्कर बंधुओं ने 2009 में पारिवारिक समझौता (डीएफएस) किया था।

याचिका के मुताबिक, डीएफएस के तहत किर्लोस्कर इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस मैनेजमेंट स्टडीज (केआईएएमएस) और किर्लोस्कर फाउंडेशन (केएफ) से संबंधित विवादों को सर्वसम्मति से सुलझाया जाना है।

इसमें कहा गया है कि यदि सर्वसम्मति नहीं बनती है तो इस मुद्दे को दो मध्यस्थों-अनिल अलवानी और सीएच नानीवाडेकर के पास भेजा जाना है।

याचिका के अनुसार, अगर दोनों मध्यस्थों की राय जुदा है तो विवाद को तीसरे मध्यस्थ श्रीकृष्ण इनामदार के हवाले किया जाना है।

इसमें कहा गया है कि डीएफएस स्पष्ट करता है कि केवल केआईएएमएस और केएफ से संबंधित विवादों को मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा, न कि अन्य विवादों को।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि डीएफएस के एक अन्य प्रावधान में कहा गया है कि परिवार में कोई भी व्यक्ति कारोबार में किसी अन्य सदस्य के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करेगा।

केबीएल ने आरोप लगाया कि राहुल और अतुल किर्लोस्कर ने पंप निर्माता कंपनी ला गज्जर मशीनरी प्राइवेट लिमिटेड में हिस्सेदारी लेकर इस प्रावधान का उल्लंघन किया है।

पारिवारिक समझौते के उल्लंघन को लेकर केबीएल ने पुणे की एक दीवानी अदालत में मामला दायर कर 750 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग भी की थी।

भाषा पारुल प्रशांत

प्रशांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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