scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशअर्थजगतगोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम पर विचार कर रही सरकार, स्कीम चलाना महंगा, लक्ष्य पूरा कर पाने में रही नाकाम

गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम पर विचार कर रही सरकार, स्कीम चलाना महंगा, लक्ष्य पूरा कर पाने में रही नाकाम

आरबीआई को स्कीम की संरचना की समीक्षा करने को कहा गया है. इसमें इसकी जरूरत, ऊंची लागत, और इसे जारी रखने की परिस्थिति पर विचार किया जाएगा.

Text Size:

नई दिल्ली: खबर है कि नरेंद्र मोदी सरकार गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (जीएमएस) पर नए सिरे से विचार कर रही है. ऐसा इसलिए, क्योंकि इसकी लागत फायदे से ज्यादा है. साथ ही यह स्कीम लक्ष्यों पूरा कर पाने में नाकाम रही है.

इस स्कीम को साल 2015 में लॉन्च किया गया था. स्कीम के तहत घर में पड़े सोने को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की ओर से प्राधिकृत बैंक में जमा करके ब्याज कमाया जा सकता है. यह फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह है. इसमें 2.5 फीसदी तक ब्याज मिल सकता है. ब्याज की दर जमा करने की अवधि के हिसाब से तय होती है. साथ ही, सोना जमा करने पर मिलने वाले ब्याज पर कैपिटल गेन टैक्स, वेल्थ टैक्स और इनकम टैक्स नहीं लगता है.

स्कीम लागू करने का एक मकसद निवेशकों को प्राकृतिक सोना खरीदने से हतोत्साहित करना और पेपर गोल्ड में निवेश करने के लिए प्रेरित करना था. प्राकृतिक सोने की बड़ी मात्रा में आयात से चालू खाता घाटा बढ़ता है. माल एवं सेवाओं के निर्यात और आयात के फर्क को चालू खाता घाटा कहते हैं.

भारत का ‘चालू खाता घाटा’ वित्त वर्ष 2021-2022 के अप्रैल से सितंबर तिमाही में जीडीपी का 0.2 फीसदी था. ऐसा व्यापार घाटे की वजह से हुआ. वहीं, पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में चालू खाता अधिशेष (सरप्लस) जीडीपी का तीन फीसदी था.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने स्कीम की लागत अनुमान से ज़्यादा होने के मद्देनजर आरबीआई को GMS की संरचना की समीक्षा करने को कहा है.

अधिकारी ने कहा कि स्कीम बनाते समय यह अनुमान लगाया गया था कि इससे सोने के आयात में कमी आएगी या घर में रखे सोना को अर्थव्यवस्था में शामिल किया जा सकेगा. अनुमान है कि भारत में 23,000 से 24,000 टन सोना पड़ा हुआ है. हालांकि, इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सका.

अधिकारी ने अपना नाम नहीं छपने की शर्त पर कहा कि अनुमान है कि स्कीम का लागत खर्च, इसके लिए सरकार ने जो कर्ज लिया है उससे ज्यादा है. उन्होंने कहा, ‘सोना महंगा होने की वजह से सरकार के लिए यह संभव नहीं है.’

‘आरबीआई की ओर से कोई जवाब नहीं’

अधिकारी के मुताबिक, इस स्कीम के तहत वित्त वर्ष 2021-22 में अबतक 30 टन से कम सोना जमा हुआ है. यह देश में सोने की मांग के मुकाबले बहुत कम है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्लूजीसी) ने भारत में साल 2021 (जनवरी से दिसंबर) में सोने (आभूषण, सिक्के और बार) की मांग 797.3 टन रहने का अनुमान लगाया. साल 2020 में यह 446.4 टन था.

साल 2020 के मुकाबले 2021 में भारत में 165 फीसदी ज़्यादा सोने का आयात किया गया. साल 2021 में 924.6 टन सोने का आयात किया गया. वहीं, 2020 में 349.5 टन सोने का आयात किया गया था. हालांकि, आयातित सोना का पूरा हिस्सा घरेलू बाजार में खपत नहीं होता है.

जनवरी में प्रकाशित डब्लूजीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘2022 के बाद के कुछ सालों में नीति में सुधार, तकनीक और नए तरह के उद्योग का असर देखने को मिलेगा, इसकी वजह से सोना पारदर्शी और मुख्य संपत्ति के तौर पर उभरेगा.’

उस अधिकारी ने कहा कि स्कीम की संरचना की समीक्षा में इसकी ज़रूरत, इससे जुड़ी ऊंची लागत, और इसे जारी रखने की परिस्थिति पर विचार किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय बैंक ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.’

यह खबर तब आई है जब भारत में सोने का आयात पिछले साल की तुलना में दोगुना हो गया है. जनवरी 2022 से 10 महीने पहले तक 40.4 बिलियन डॉलर का सोना आयात किया गया है, यह 94 फीसदी ज्यादा है. हालांकि, जनवरी में सोना के आयात में 40.5 फीसदी की कमी आई है. मोदी सरकार ने सोने के कारोबार को संगठित रूप देने के लिए जीएमएस सहित कई कदम उठाए हैं. इनमें सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना, अनिवार्य हॉलमार्किंग, और प्रत्येक आभूषण के लिए हॉलमार्क विशिष्ट पहचान संख्या देने जैसे फैसले शामिल हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें- एक मिनट का भाषण, राष्ट्रगान से पहले वॉकआउट- महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी को लेकर ताजा विवाद


share & View comments