नयी दिल्ली, दो मार्च (भाषा) रोजमर्रा के इस्तेमाल वाले उत्पाद बनाने वाली भारतीय कंपनियों (एफएमसीजी) को वर्ष 2021 में मुद्रास्फीति की वजह से शहरी बाजारों में खपत में सुस्ती और ग्रामीण क्षेत्रों में गिरावट की स्थिति का सामना करना पड़ा।
आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली फर्म नीलसन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि ऊंची मुद्रास्फीति से परेशान इन कंपनियों को बार-बार कीमतों में वृद्धि करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
हालत यह हो गई कि वर्ष 2021 में एफएमसीजी उद्योग को लगातार तीन तिमाहियों में अपने मार्जिन को बचाने के लिए दहाई अंक में दाम बढ़ाने पड़े। इसकी वजह से वर्ष 2020 की तुलना में बीते साल कीमत-नियंत्रित वृद्धि 17.5 फीसदी पर पहुंच गई।
नीलसन आईक्यू की खुदरा बुद्धिमत्ता टीम की बनाई गई एफएमसीजी स्नैपशॉट रिपोर्ट कहती है कि अक्टूबर-दिसंबर 2021 तिमाही में भी एफएमसीजी उद्योग को मुद्रास्फीति दबावों की वजह से खपत में 2.6 प्रतिशत की गिरावट का सामना करना पड़ा।
इसके मुताबिक, वर्ष 2021 के दौरान बढ़ी हुई मुद्रास्फीति ने लगातार तीन तिमाहियों में दहाई अंकों में कीमतें बढ़ाने के लिए कंपनियों को मजबूर किया था। इससे शहरी बाजारों में खपत में सुस्ती आई जबकि ग्रामीण बाजारों में खपत गिर गई।
एफएमसीजी कंपनियों की कुल बिक्री में करीब 35 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण बाजारों का है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बाद इस पर तगड़ी मार पड़ी और एचयूएल समेत कई एफएमसीजी कंपनियों के तिमाही नतीजों में ग्रामीण बिक्री में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।
नीलसन की रिपोर्ट कहती है कि कीमतें बढ़ने से छोटे उत्पादकों पर असर पड़ रहा है। इस वजह से 100 करोड़ रुपये से कम कारोबार वाले छोटे विनिर्माताओं की संख्या में 13 प्रतिशत की कमी हो चुकी है।
भाषा प्रेम रमण
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