भारत, रूस-यूक्रेन युद्ध को दो मोर्चों पर लड़ रहा है. पहला कूटनीतिक मोर्चा है जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का है, जहां सोमवार को भारत ने रूस के खिलाफ वोट देने से दूसरी बार परहेज किया. इस बार प्रस्ताव यह था कि रूसी हमले पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में व्यापक विचार-विमर्श किया जाए. सुरक्षा परिषद में भारत अभी संयोग से उपस्थित है, क्योंकि दो साल की इसकी अस्थायी सदस्यता इस साल के आखीर में समाप्त होगी. इसने नरेंद्र मोदी सरकार को अपना अंतरराष्ट्रीय प्रभाव जताने का मौका दे दिया है और उसने इसका प्रभावी इस्तेमाल किया है.
दूसरा मोर्चा यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे 20 हजार भारतीय छात्रों को वहां से पोलैंड, हंगरी, रोमानिया और स्लोवाकिया जैसे पड़ोसी देशों के मार्फत सुरक्षित भारत लाने का है. सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने छात्रों को निकालने के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के प्रयासों को विस्तार देने के लिए शहरी विकास मंत्री तथा पूर्व राजनयिक हरदीप सिंह पुरी को हंगरी, कानून मंत्री किरण जीजिजू को स्लोवाकिया, सड़क परिवहन मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह को पोलैंड, नागरिक विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोमानिया और मोल्डोवा जाने को कहा.
और तमाम चुनावों में सबसे अहम उत्तर प्रदेश के चुनाव के मद्देनजर इन प्रयासों को ‘ऑपरेशन गंगा’ नाम दिया गया है.
भारतीय नागरिकों को वापस ला रहे एअर इंडिया के विमान में सिंधिया की मौजूदगी ने उस सद्भावना की याद दिला दी, जो कभी सुषमा स्वराज की विशेषता होती थी और जिन्होंने सोशल मीडिया पर उनकी मदद करने की अपनी यह उदार सद्भावना जताते हुए हर एक को यह अनुभव कराती थीं कि वे सब एक ही परिवार के सदस्य हैं. स्वराज ने यूक्रेन में फंसे छात्रों को आश्वस्त करने के लिए विदेश मंत्रालय के ट्वीटर हैंडल का इस्तेमाल करने की मंजूरी का निश्चित ही इंतजार नहीं किया होता और उन्हें यह समझाया होता कि हालांकि वे युद्ध के बीच फंस गए हैं लेकिन भारत सरकार उनकी खबर रखे हुए है और उन्हें शीघ्र स्वदेश लाने के लिए अपने बूते यथासंभव हर कोशिश कर रही है.
जो लोग युद्ध क्षेत्र में फंस जाते हैं उनकी आधी चिंता यह जान कर ही दूर हो जाती है कि कोई है जो इंटरनेट के दूसरे छोर पर आपका इंतजार कर रहा है, आपकी खोज खबर रख रहा है. सोमवार को जब मोदी ने मामले को अपने हाथ में लिया, उससे पहले विदेश मंत्रालय के सोशल मीडिया हैंडल मुख्यतः उच्चस्तरीय रणनीति की ही बातें— हालांकि वे बेहद महत्वपूर्ण थीं— कर रहे थे कि भारत ने सुरक्षा परिषद में दो बार वोट देने से परहेज क्यों किया, कि मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमायर जेलेंस्की से क्या कहा, आदि-आदि.
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सुषमा की कमी खली
उक्रेन में भारत के राजदूत पार्थ सत्पथी वीडियो पर ठहर-ठहरकर बोलते दिखाई दिए, वह भी केवल एक बार— बेशक हर कोई पहली बार ही वीडियो पर स्मार्ट नहीं बन जाता, खासकर जब युद्ध का माहौल हो और कोई टेलीप्रोंप्टर भी न हो. विदेश सचिव हर्ष शृंगला ने मीडिया से बस उस दिन बात की जिस दिन रूस ने धावा बोला था, उसके बाद नहीं.
बुद्धिमान जयशंकर भारत के राष्ट्रहित की रक्षा के लिए यूरोपीय देशों के विदेश मंत्री से बातचीत करते रहे, और जब भारतीय छात्रों को यूक्रेन से बाहर निकालने का मुद्दा गरम होने लगा तो उन्होंने यूक्रेन और पड़ोस के हंगरी तथा मोल्डोवा के विदेश मंत्रियों से भी बात की.
इस तरह, यूक्रेन से लौट रहे भारतीय छात्रों के विशेष विमान में जाकर उनका स्वागत करने का काम सिंधिया के पल्ले पड़ा. उनके साथ जूनियर विदेश मंत्री मुरलीधरन भी खड़े दिखे. उन्होंने शायद इसलिए कुछ नहीं कहा क्योंकि मलयाली होने के कारण वे हिंदी ठीक से नहीं बोल पाते (हालांकि शशि थरूर हिंदी बोलने से कभी परहेज नहीं करते). सिंधिया ने कम शब्दों में अपनी बात कही मगर भरोसा बढ़ाने वाली बात की, क्योंकि उन्हें पता था कि भारतीय छात्र मौत के मुंह से जीवित बच निकलने के कारण घबराए हुए थे.
ऐसे में सुषमा स्वराज की कमी खली. शायद इसीलिए मोदी ने मामले को अपने हाथ में लिया. यह युद्ध है, और रूस तथा यूक्रेन के प्रतिनिधियों ने अगले कदम के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए बेलारूस में बैठक की है. भावनाओं को बस में करने में सोशल मीडिया कितना कारगर हो सकता है यह भारत में मोदी से ज्यादा शायद ही कोई जानता होगा. उन्हें मालूम है कि लखनऊ की गरिमा मिश्र जैसी हिंदीभाषी छात्रा के वीडियो, या विदेश मंत्रालय के हेल्पलाइन पर एक गुजराती अभिभावक की बातचीत की ऑडियो उनके और उनकी सरकार के बारे में लोगों की धारणा को किस कदर बदल सकती है.
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने जाने-माने अमेरिकी पत्रकार थॉमस फ्रीडमैन का एक जोरदार लेख प्रकाशित किया है जिसमें बताया गया है कि यह युद्ध पुतिन की उम्मीद से किस तरह भिन्न है. यह बताता है कि सेलफोन रखने वाले, इस युद्ध के प्रभावों को दर्ज करने और उन्हें पूरी दुनिया के लिए वेब पर जारी करने वाले लोग कितने ताकतवर हैं. यूक्रेन से खबरें भेज रहे दूसरे पश्चिमी पत्रकारों ने कहा है कि इसी वजह से पुतिन ने फेसबुक को आंशिक रूप से बंद करवा दिया है.
हमें यह सब मालूम है. हम जानते हैं कि युद्ध और चुनाव और लोगों के जमावड़े सोशल मीडिया से किस कदर प्रभावित होते हैं. यह सब कहने का अर्थ यह नहीं है कि मोदी सरकार को यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की परवाह नहीं है, उसे उनकी पूरी फिक्र है लेकिन उसने उन्हें बार-बार यह संदेश देने में महंगी देरी कर दी कि हालांकि जनवरी में ही बाहर निकल जाने की सलाह जारी की गई थी लेकिन कीव में भारतीय दूतावास उनकी सुरक्षित निकासी का पासपोर्ट है.
पूरी पिक्चर बाकी है
इस बीच बड़ी तस्वीर उभर रही है. यूरोपीय संघ ने रूस के खिलाफ मोर्चा मजबूत कर दिया है, उसने कुछ रूसी संगठनों को भुगतान की ‘स्विफ्ट’ व्यवस्था से इनकार कर दिया है, हालांकि रूस से तेल और गैस की सप्लाई पर रोक नहीं लगाई गई है. यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर खारकीव अभी डटा हुआ है. पुतिन ने अपने सामरिक कमांड को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के लिए तैयार रहने का आदेश दे दिया है. उधर, यूक्रेन ने रूस से बेलारूस में वार्ता करने की मांग की है.
यूक्रेन में युद्ध को लेकर कई पश्चिमी पत्रकारों ने नस्लवादी टिप्पणियां की हैं, जिससे भारत को हैरान होने की जरूरत नहीं है. @मिंटप्रेसन्यूज़ के @अलानआरमैकलियोड द्वारा संयोजित एक ‘ट्विटर थ्रेड’ काफी खुलासा करता है. सीबीएस के विदेश संवाददाता चार्ली डी’अगाटा ने कहा— ‘यह इराक़ या अफगानिस्तान नहीं है… यह तुलनात्मक रूप से ज्यादा सभ्य, ज्यादा यूरोपीय शहर है.’ ‘अल जज़ीरा’ के एंकर ने पलायन करते यूक्रेनियों के बारे में कहा कि वे ‘पड़ोस में रहने वाले किसी यूरोपीय परिवार की तरह लगते हैं.’ फ्रांस की बीएफएम टीवी के एंकर ने कहा, ‘हम यूरोप के एक शहर में हैं लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि वहां क्रूज मिसाइल ऐसे गिर रहे हैं मानो हम इराक या अफगानिस्तान में हों?’ ब्रिटेन के अखबार ‘डेली टेलीग्राफ’ के संवाददाता ने लिखा, ‘इस बार युद्ध गलत हुआ है क्योंकि हमारी तरह वे लोग भी नेट्फ़्लिक्स और इन्स्टाग्राम का इस्तेमाल करते हैं.’
बहरहाल, युद्ध की बात करें. प्रधानमंत्री मोदी ने रूस, यूक्रेन समेत सभी पक्षों से बात करके अच्छा किया है, और अब उन्होंने भारतीय छात्रों को वहां से निकालने की ज़िम्मेदारी ले ली है. एक चीनी मुहावरा कहता भी है कि ‘जब आप दिलचस्प दौर में रह रहे हों तब आपको दिलचस्प उपाय ही ढूंढ़ने पड़ते हैं.’
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(ज्योति मल्होत्रा दिप्रिंट की सीनियर कंसल्टिंग एडिटर हैं. वह @jomalhotra ट्वीट करती हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)
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