रूस में कानून बनाने वालों ने पिछले मंगलवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को रूसी सेना का इस्तेमाल देश से बाहर भी करने की मंजूरी दी और उसकी सेना ने यूक्रेन के पूर्वी हिस्से पर धावा बोल दिया. मार्के की बात यह है कि इसकी धमक हजारों मील दूर भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी महसूस की गई.
यूक्रेन की राजधानी कीव से करीब 5000 किलोमीटर दूर बहराइच में मंगलवार को एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया में चल रही ‘उथलपुथल’ का जिक्र किया और सभा में आए लोगों से सवाल किया— ‘कल क्या होगा, परसों क्या होगा, गिनतियां चलती हों तो ऐसे में भारत को ताकतवर होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए?’ ‘आगे उन्होंने यह भी पूछा कि क्या वे ‘ढीला-ढाला मास्टर’ या ‘ढीला-ढाला दारोगा’ चाहेंगे?
‘भारत मजबूत बने यह केवल भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए जरूरी है. आपका एक-एक वोट भारत को शक्तिशाली बनेगा… क्या आप मजबूत मास्टर और दारोगा नहीं चाहते? इसलिए, भाइयो-बहनो, इतने बड़े देश, इतने बड़े प्रदेश की ज़िम्मेदारी मजबूत कंधों पर होनी चाहिए. होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए? समय की मांग पर मजबूत नेता की जरूरत होती है.’
बहराइच से दिए गए उनके इस संकेत को पकड़ने में भाजपा के उनके सहयोगियों को कुछ समय लगा. शायद वे भ्रमित हो गए. चीन जिस तरह हमारी सीमा पर निरंतर दुस्साहस करता रहा है, उसके मद्देनजर यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा तार्किक लगी. पार्टी के सहयोगी सुब्रह्मण्यम स्वामी का यह तर्क भी उचित लगा कि भारत को ‘यूक्रेन और नाटो का साथ देना चाहिए’ क्योंकि रूस ‘चीन और पाकिस्तान से मिला हुआ है’. लेकिन मोदी सरकार भारत के साथ रूस की पुरानी, आजमाई हुई दोस्ती को खतरे में नहीं डालना चाहती. रूस भारत को सैन्य साजोसामान देने वाला भरोसेमंद सप्लायर भी रहा है. इसके लिए कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसी नफीस चालों की जरूरत है, जो ‘भारत माता की जय’ वाली राजनीति के साथ शायद ही मेल खाती हैं.
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भाजपा के लिए मोदी का संदेश
वैसे, बहराइच से दिया गया संदेश भाजपा नेताओं को शुक्रवार तक समझ में आने लगा. वह संदेश यह था कि सच को पीछे छोड़ चुके इस समय में जनमत बनाने में तथ्य आड़े नहीं आते. पहल फिल्म स्टार से नेता बनीं हेमा मालिनी ने की, उन्होंने बरेली की चुनावी सभा में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को पूरी दुनिया में वह प्रतिष्ठा हासिल है कि वे ‘रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिश में लगे हैं’; कि ‘इसके लिए सब लोग विनती कर रहे हैं हमारे मोदीजी से’.
इसके एक दिन बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने मोदी को फोन किया और मोदी ने उनसे कहा कि भारत शांति कराने के प्रयासों में शामिल होने को तैयार है. हेमा मालिनी की बरेली सभा से पहले की रात मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को फोन किया था लेकिन भाजपा की सांसद हेमा को ही मालूम होगा कि पुतिन ने उनसे युद्ध ‘रोकने’ की ‘गुजारिश’ की या नहीं. अब इस फोन वार्ता के जो आधिकारिक ब्योरे उपलब्ध हैं उनसे तो यही लगता है कि पुतिन ने अगर ऐसी ‘गुजारिश’ की भी तो मोदी ने शायद सुनी नहीं.
शनिवार को, भाजपा उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा लोगों को ‘उड़ी और बालाकोट’ के आतंकवादी हमलों की याद दिला रहे थे, जिनका बदला लेने के लिए मोदी सरकार ने सितंबर 2016 में पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी अड्डों पर और फरवरी 2019 में बालाकोट में आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंपों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ किए थे. इन सबने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपाई प्रचार अभियान को जबरदस्त बढ़त प्रदान की थी.
शनिवार और रविवार को भाजपा नेताओं पूनम महाजन, पीयूष गोयल और केंद्रीय नागरिक विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के वीडियो सोशल मीडिया पर छा गए, जिनमें महाजन और गोयल मुंबई हवाईअड्डे पर और सिंधिया दिल्ली हवाई अड्डे पर यूक्रेन से लौटे छात्रों का स्वागत करते दिखे. गोयल ने ट्वीट किया—’थ्री चीयर्स फॉर इंडिया!’
‘थ्री चीयर्स फॉर भाजपा’ भी! 2022 के चुनावों में जो कड़ी छूट रही थी वह बिलकुल समय पर जुड़ गई.
बचाव के लिए रूस
2017 में, भाजपा का चुनाव अभियान मुख्यतः तीन मुद्दों पर केन्द्रित था— ब्रांड मोदी और जनकल्याण के उनके कार्यक्रम; ‘कब्रिस्तान बनाम श्मशान’ नारे से हुआ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण; और पाकिस्तान पर सर्जिकल हमलों से मजबूत हुआ आक्रामक राष्ट्रवाद. दूसरे अहम तत्व भी थे— मसलन, 2014 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह द्वारा बनाया गया सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला और तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ असंतोष की भावना.
2022 में, ब्रांड मोदी और जनकल्याण के उनके कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में अपना असर बनाए हुए हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसका लाभ लेने की कोशिश में हैं. ध्रुवीकरण वाली बहस को भी, एक ओर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण तथा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, तो दूसरी ओर अतीक़ अहमद तथा मुख्तार अंसारी जैसे माफिया को ‘ध्वस्त’ करने की कार्रवाई से तेजी मिली है. योगी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और दूसरे भाजपा नेता अपने भाषणों में अतीक़ और अंसारी के नाम लेते रहते हैं. लेकिन उनमें से कोई भी दूसरे ‘डॉन’, ब्राह्मण विकास दुबे के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने की न तो बात करता है, न उसका श्रेय लेता है.
तीसरा मुद्दा यानी छाती ठोक राष्ट्रवाद अब तक इन चुनावों से गायब था. भाजपा नेता भी इस मुद्दे को भूल रहे थे, क्योंकि बेरोजगारी, आवारा पशुओं की समस्या, महंगाई आदि तमाम मुद्दों के कारण योगी सरकार के खिलाफ असंतोष उभर रहा था. उधर अखिलेश जिस तरह विभिन्न जातियों और उप-जातियों के साथ गठबंधन कर रहे थे वह भी मुश्किलें पैदा कर रहा था.
इस मुकाम पर पुतिन ने कदम रखा, बेशक अनजाने में. रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत में काफी दिलचस्पी पैदा की है जिसमें हिंदी समाचार चैनलों समेत तमाम टीवी चैनलों ने मौके से खबरें देकर योगदान दिया है. यूपी वाले भी यूरोप के हालात पर गहरी नज़र रखे हुए हैं. आप कहेंगे कि यूपी में किसे फिक्र है कि पुतिन ने गलत किया या सही, कि किसे मतलब है कि रूस-चीन-पाकिस्तान मेल से भारत पर क्या असर पड़ता है, कि मोदी सरकार किस तरह की कूटनीतिक दुविधा से रू-ब-रू है?
सच को पीछे छोड़ चुके इस समय की राजनीति के लिए इन बारीक बातों की शायद ही कोई प्रासंगिकता है. भाजपा के आइटी प्रकोष्ठ के कार्यकर्ता आपको बताएंगे कि इनकी एकमात्र प्रासंगिकता इसलिए है कि भारत के पड़ोसी भी आक्रामक हैं. इसलिए लोगों को मजबूत कंधे वालों को वोट देना चाहिए— केंद्र के लिए मोदी को और लखनऊ के लिए योगी को.
इसलिए, बैजयंत पांडा जब उड़ी और बालाकोट का जिक्र करते हैं तो उसका मतलब समझ में आता है. रूस-यूक्रेन वाली बहस में उड़ी या बालाकोट का क्या संदर्भ जुड़ता है? आपको यह समझ में नहीं आएगा लेकिन भाजपा के वोटरों को पेच समझ में आ जाएगा. वैसे ही, जैसे न आपको और न मोदी अथवा पुतिन को यह पता चल पाएगा कि रूसी और यूक्रेनी राष्ट्रपतियों ने भारतीय प्रधानमंत्री से युद्ध ‘रुकवाने’ की ‘गुजारिश’ कब की.
डीके सिंह पॉलिटिकल एडिटर हैं, उनका ट्विटर हैंडल @dksingh73 है, यहां व्य्कत विचार निजी है
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