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Friday, 22 November, 2024
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यूक्रेन संकट के कारण कच्चे तेल की कीमतों में उछाल, भारत का आयात बिल 15 फीसदी बढ़ने की आशंका

रूस को कम कच्चे या प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने के लिए प्रतिबंधों के खतरे का तेल की कीमतों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ेगा.

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नई दिल्ली: यूक्रेन संकट के बढ़ने से 2014 के बाद पहली बार ब्रेंट ऑयल में 105 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी हुई है जिससे इस क्षेत्र की अहम ऊर्जा निर्यात में बाधा की आशंका पैदा हो गई है, जिसका असर भारत पर भी पड़ सकत है.

दुनिया का दूसरा सबसे बड़े तेल उत्पादक रूस है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चे तेल की बिक्री करती है और यूरोप को प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है जो इसकी आपूर्ति का लगभग 35 प्रतिशत देता है.

वैश्विक मांग में बढ़ोतरी और ओपेक द्वारा कम उत्पादन के कारण तेल की मौजूदा कमी के बीच सप्लाई साइड में बाधा की आशंका बढ़ने से ब्रेंट मंगलवार को 96 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गया.

रूस को कम कच्चे या प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने के लिए प्रतिबंधों के खतरे का तेल की कीमतों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ेगा.

क्रिसिल रिसर्च के निदेशक हेतल गांधी के मुताबिक, कच्चे तेल के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक रूस, 12 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी देता है. यूक्रेन के बीच संघर्ष ने कच्चे तेल की कीमतों को 8 साल के उच्च स्तर तक बढ़ा दिया है और आगे भी यह कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक बनी रह सकती हैं जब तक ओपेक भौतिक रूप से उत्पादन बढ़ाने का फैसला नहीं कर लेता है.

उन्होंने आगे कहा कि पिछले तीन महीनों में, ओपेक सदस्य अपने उत्पादन लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं जिससे कीमतें प्रभावित हो रही हैं. इसका परिणाम भारत के लिए ऊर्जा और व्यापार-घाटा है क्योंकि हम अपनी कच्चे तेल की जरूरत का लगभग 85 प्रतिशत आयात करते हैं. अगर क्रूड 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहता है तो आने वाले महीनों में भारत का आयात बिल लगभग 15 फीसदी तक बढ़ सकता है.

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी एंड करेंसी) नवनीत दमानी का मानना ​​है कि ‘यूक्रेन संकट, अमेरिका में कड़ाके की ठंड और दुनिया भर में तेल और गैस आपूर्ति में निवेश की कमी के कारण तेल की कीमत 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकती है.’ उन्होंने आगे कहा कि रूस विश्व में खपत होने वाले हर 10 बैरल तेल में से एक के लिए जिम्मेदार है. इसलिए जब तेल की कीमत तय करने की बात आती है तो यह एक महत्तवपूर्ण खिलाड़ी का रोल निभाता है. संकट के की वजह से बढ़ती कीमते हकीकत में पेट्रोल पंपों पर उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाने वाली है.

WPI बास्केट में कच्चे तेल से संबंधित उत्पादों की डायरेक्ट हिस्सेदारी नौ फीसदी से अधिक है. दमानी ने कहा, ‘कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से एलपीजी और केरोसिन पर सब्सिडी बढ़ने की भी उम्मीद है, जिससे सब्सिडी बिल में बढ़ोतरी होगी.’


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